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मौजूदा तकनीकी युग में डिजिटल भरोसा मजबूत करने की दरकार
भारत में डिजिटल लेन-देन और इस प्रारूप के जरिये होनेवाली विभिन्न गतिविधियों के संदर्भ में आपसी विश्वास बहाली का रिश्ता पूरी तरह से नहीं पनप पाया है. व्यक्तिगत डेटा में सेंधमारी और कई प्रकार की आशंकाओं की खबरों से इस भरोसे को मजबूती नहीं मिल पा रही है. अमेरिका की टफ्ट्स यूनिवर्सिटी के द फ्लेचर […]
भारत में डिजिटल लेन-देन और इस प्रारूप के जरिये होनेवाली विभिन्न गतिविधियों के संदर्भ में आपसी विश्वास बहाली का रिश्ता पूरी तरह से नहीं पनप पाया है. व्यक्तिगत डेटा में सेंधमारी और कई प्रकार की आशंकाओं की खबरों से इस भरोसे को मजबूती नहीं मिल पा रही है.
अमेरिका की टफ्ट्स यूनिवर्सिटी के द फ्लेचर स्कूल के एसोसिएट डीन ऑफ इंटरनेशनल बिजनेस एंड फाइनेंस और ब्रूकिंग्स इंडिया नॉन-रेजिडेंट सीनियर फेलो भास्कर चक्रवर्ती ने हाल ही में इस संदर्भ में अपनी चिंता जतायी है. क्या है यह चिंता और इससे जुड़े अन्य पहलू, इसे उनके ही शब्दों में समझने का प्रयास किया गया है आज के इन्फो टेक पेज में …
इस धरती पर इंसानों से अधिक संख्या मोबाइल फोन की हो चुकी है. सोशल मीडिया पर सक्रिय यूजर्स की बात करें, तो केवल फेसबुक पर ही दो अरब से अधिक लोग जुड़े हैं.
वहीं भारत के संदर्भ में सरकारी पहचान आइडी ‘आधार’ की बात करें, तो 93 फीसदी से अधिक आबादी इसके दायरे में आ चुकी है. हमारे व्यक्तिगत और बेहद उपयोगी आंकड़ों को सरकारों और सोशल मीडिया नेटवर्किंग साइटों के बीच डिजिटल माहौल में आपसी भरोसे को मजबूत बनाये रखना सबसे जरूरी तथ्य है, क्योंकि हमारे अस्तित्व की निर्भरता इन चीजों पर बढ़ती जा रही है.
हमारी रोजमर्रा की जिंदगी में जैसे-जैसे तकनीक की दखल बढ़ती जा रही है, बतौर नागरिक हमें विविध किस्म की डिजिटल खामियां उभरती हुई दिखती हैं.
इनमें कुछ चीजें इतनी आसान हैं कि चीजों को खोजने के क्रम में गूगल की अलगोरिद्म की रिवर्स इंजीनियरिंग हमें उन वेबसाइट तक ले जा सकती है, जिनमें इच्छित सामग्रियों के हासिल होने की अधिक संभावना होती है. अक्सर यहां मिनटों या घंटों में बेहद सक्षम तरीके से लाखों यूजर्स जरूरी चीजों की खोज करते हैं. चुनाव नतीजों से लेकर ब्रेक्जिट वोट, और विविध प्रकार की सूचनाएं इस प्रकार ऑनलाइन हासिल हो रही हैं, जैसा इतिहास में शायद पहले नहीं हुआ होगा.
चार तथ्यों की होगी व्यापक भूमिका
आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, पब्लिक डेटाबेस, ऑनलाइन सर्च हिस्ट्री और सोशल मीडिया प्रोफाइल के साथ डिजिटल प्लेनेट को नया आकार देने के मामले में सरकारें अहम भूमिका निभा सकती हैं. जैसे-जैसे टेक्नोलॉजी और ऑटोमेशन एडवांस होते हैं, भविष्य में कार्य निर्धारण और नौकरी के अवसरों को सृजित करने पर उनका असर पड़ता है.
दूसरी ओर, आम लोग भी धीरे-धीरे उनमें छिपी वास्तविकताओं से रूबरू होते हैं, और रोजमर्रा की जिंदगी में डिजिटल तौर पर उनका असर पड़ता है. वर्ष 2024 तक भारत उस मुकाम तक पहुंचने में सक्षम हो सकेगा, जहां पर आज चीन खड़ा है, और इसमें इन चार तथ्यों की व्यापक भूमिका होगी : उभरता हुआ फिजिकल इंफ्रास्ट्रक्चर, डिजिटल स्वरूप का विस्तार, महिलाओं की बड़ी आबादी के ऑनलाइन जुड़ने और शोध व विकास में व्यापक निवेश.
डिजिटल इवोलुशन इंडेक्स
अपने रिसर्च में चक्रवर्ती ने डिजिटल इवोलुशन इंडेक्स पर फोकस किया है, जो एक सूचक है, जिसमें देशों के बीच डिजिटल प्रतिस्पर्धा की माप की गयी है. इसमें 60 देशों की रैंकिंग की गयी है, जिसमें विविध किस्म के डिजिटल सूचकों को शामिल किया गया है. इसमें चार मुख्य चीजों को शामिल किया गया है :
– सप्लाई साइड < डिमांड साइड
– इंस्टीट्यूशनल एनवायरमेंट < नवोन्मेष व बदलाव.
भारतीयों में उच्च स्तर की सहनशीलता
देशभर में डिजिटल भरोसे का विश्लेषण करने पर पाया गया कि भारतीय लोग अपनी रोजमर्रा की जिंदगी में डिजिटल लेन-देन के मामले में इस तरह की वैमनस्यता की दशा में उच्च रूप से सहनशील होते हैं. ऑनलाइन गतिविधियों में भारतीयों में उच्च स्तर की सहनशीलता पायी गयी है, लेकिन सुरक्षा, जवाबदेही और निजता के मामले में उनका रवैया बेहद लचर है.
डिजिटल गतिविधियों को समृद्ध बनाने की जरूरत
भारतीयों में डिजिटल अनुभव को समृद्ध बनाने में इस प्रकार की उच्च स्तर की नियमित वैमनस्यता भारत की डिजिटल अर्थव्यवस्था में लेन-देन की लागत को कम करने में एक बड़ी बाधा है. और भारत जैसे व्यापक यूजर्स वाले देश में इसके विकसित होने के साथ बेहतरी आ सकती है.
वहीं दूसरी ओर, डेटा लिक्स और ऑनलाइन बैंकिंग डेटा और इस तरह की चीजों में सेंधमारी जैसी डिजिटल परिघटनाओं से विश्वास के इस रिश्ते में कमी आती है. यही वह जगह है, जहां डिजिटल पकड़ को सामान्य बनाने में इस विश्वास की महती भूमिका हो सकती है. लेकिन, इसमें कितना समय लगेगा और भारत में इस दिशा में कब तक उन्नति होगी, इस बारे में कहना बहुत मुश्किल है. चक्रवर्ती का मानना है कि उपरोक्त तथ्यों के संदर्भ में भारत वर्ष 2024 तक उस मुकाम तक पहुंच सकता है, जहां चीन अब तक पहुंच चुका है.
भरोसे का निर्माण
इसमें भारत के संदर्भ में यदि देखें, तो जहां ग्रोथ में वृद्धि के लिए मांग एक मजबूत फैक्टर बना हुआ है, वहीं सप्लाई में गैप से डिजिटल गति में कमी आने का जोखिम बना रहता है. डिजिटल इवोलुशन का विश्लेषण सार्वजनिक और निजी दोनों ही क्षेत्रों के लिए कई तरह के मायने रखता है, क्योंकि इससे दुनियाभर में डिजिटल अर्थव्यवस्था की अवस्था को बढ़ाने के तरीकों के बारे में जानकारी मिलती है. मूलभूत रूप से, डिजिटल भरोसे का निर्माण होना ही इस पूरी कवायद के केंद्र में है.
डिजिटल वैमनस्यता
डिजिटल दुनिया में भरोसे की गारंटी देनेवाले इस डिजिटल ट्रस्ट को कैसे परिभाषित करते हैं, यह बड़ा मसला है. इन चीजों में थोड़ा सा भी संदेह पैदा होने की दशा में भरोसा प्राप्त करनेवाले और इसकी गारंटी देनेवालों के बीच वैमनस्यता आती है. यह वैमनस्यता कई प्रारूपों में हो सकती है और इंफ्रास्ट्रक्चर से लेकर बदतर डिजाइन और डेटा सुरक्षा की माप के संदर्भ में इसके संचालन या वैधानिक जरूरतों से जुड़ी हो सकती है.
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