आज की तारीख में इलाज बेहद महंगा हो गया है. कभी भी, कोई भी गंभीर रूप से बीमार हो सकता है और उसे महंगे इलाज की कीमत चुकानी पड़ सकती है. ऐसे में यह जरूरी है कि हर आदमी खुद के और परिवार के सदस्यों के इलाज के लिए स्वास्थ्य बीमा की पॉलिसी ले ले, ताकि ऐसे वक्त में उसे मुसीबत का सामना न करना पड़े.
प्रवीण मुरारका
निदेशक, पूनम सिक्युरिटीज,
pravinmurarka5@gmail.com
बेहतर स्वास्थ्य पाने की लालसा हर किसी में होती है. इसके लिए वह तरह-तरह के उपाय अपनाता है और उसके लिए खर्च भी करता है. स्वास्थ्य के लिए सजग लोगों के बीच जिम जाने का प्रचलन तेजी से बढ़ा है. रोगमुक्त, स्वस्थ व संगठित शरीर पाने के पीछे हर महीने लगातार खर्च किया जा रहा है. कुछ लोग तो योग और व्यायाम करते हुए अपने स्वास्थ्य की देखभाल कर रहे हैं. वहीं कुछ डायटीशियन की मदद ले रहे हैं.
कुल मिलाकर देखें तो सुबह-सुबह पैदल चलना, योगासन व व्यायाम करना, ग्रीन टी, अंकुरित चने का सेवन, जिम जाना आदि कई तरह से शरीर को रोगमुक्त रखने का प्रयास किया जाता है, लेकिन इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि कौन-सी बीमारी कब होगी या सड़क पर कब दुर्घटना घट जाये और अस्पताल में इलाज करवाना पड़े. अनिश्चित जीवन में बीमारियों का आना भी अनिश्चित होता है.
और जब बीमारी हो जाती है तो उपचार में होनेवाला खर्च दिन प्रतिदिन महंगा होते जा रहा है. यानी जब आपकी उम्र अधिक हो जायेगी तो इलाज का खर्च और भी अधिक हो जायेगा. महंगे इलाज में आपकी जीवनभर की जमा-पूंजी भी खर्च होने लगेगी.
अगर कैंसर या हृदय, किडनी, लिवर से जुड़ी बीमारी हो जाये तो सारी जमा-पूंजी इलाज में खर्च हो जायेगी. ये देखते हुए आज सरकार के साथ-साथ कई सरकारी व प्राइवेट कंपनियों ने स्वास्थ्य बीमा पॉलिसी को शुरू किया है. अपने जीवनभर की जमा-पूंजी को बचाये रखने और भविष्य में होनेवाली बीमारियों के इलाज के खर्च को पूरा करने के लिए सबसे जरूरी है अपने और परिवार के लिए स्वास्थ्य बीमा लेना.
स्वास्थ्य बीमा लेने का समय
जब आप पूरी तरह स्वस्थ और रोगमुक्त हैं, उसी समय स्वास्थ्य बीमा लेना चाहिए, क्योंकि लगभग 20-25 रोग ऐसे हैं, जिनका कवरेज बीमा लेने के दो साल के बाद शुरू होता है. इसलिए आसानी से उन बीमारियों का कवरेज भी पा सकेंगे.
अगर आप किसी जगह नौकरी कर रहे हैं और वहां कंपनी द्वारा ग्रुप इंश्योरेंस के तहत आपको व आपके परिवार को मेडिकल इंश्योरेंस की सुविधा मिल रही है, तो भी आपको अपने परिवार के लिए मेडिकल इंश्योरेंस अलग से लेनी चाहिए. इसके दो फायदे हैं
पहला, जब आप रिटायर करते हैं तो उस समय कंपनी द्वारा दी जा रही यह सुविधा समाप्त हो जाती है. और यही वह उम्र होती है जब बीमारियाें के होने का अंदेशा अधिक होता है. ऐसे में इलाज के खर्च के लिए कोई बीमा उपलब्ध नहीं रहेगा.दूसरा, जब आप नौकरी बदलते हैं, तो नयी नौकरी में जाने से पहले और पुरानी कंपनी को छोड़ने के बीच के समय में कोई बीमा उपलब्ध नहीं रहता है.
पुरानी बीमा पॉलिसी नयी कंपनी में ट्रांसफर भी नहीं होती. जबकि आपकी अपनी अलग से ली गयी बीमा पॉलिसी हमेशा आपके साथ बनी रहेगी. कंपनी द्वारा दी जा रही ग्रुप इंश्योरेंस में कैपिंग होती है यानी कवरेज की सीमा निर्धारित रहती है. इसलिए सरकारी या गैरसरकारी कर्मचारियों व अधिकारियों को भी अपने व परिवार की सेहत को ध्यान में रखते हुए पहले ही पॉलिसी लेनी चाहिए. 12-20 बीमारियों का कवरेज पॉलिसी लेने के दो वर्ष के बाद मिलता है. जैसे यूटरस, घुटने, पत्थरी से जुड़ी बीमारियां.
कैशलेस की सुविधा
आज स्वास्थ्य बीमा देने वाली लगभग सभी कंपनी कैशलेस की सुविधा दे रही है. यानी जब कभी भी आप बीमार होते हैं तो इलाज के लिए अस्पताल में कैश जमा करने की जरूरत नहीं होती. कंपनी द्वारा दिये गये कैशलेस कार्ड को सूचीबद्ध अस्पताल में दिखाने पर वे बिना समय गंवाये इलाज शुरू कर देते हैं. इसका प्रीमियम पर कोई असर नहीं होता है.
पोर्टिबिलिटी की सुविधा
आज जिस तरह मोबाइल नेटवर्क को बदलने की सुविधा यानी मोबाइल पोर्टिबिलिटी उपलब्ध है, उसी प्रकार स्वास्थ्य बीमा के क्षेत्र में भी पोर्टिबिलिटी की सुविधा मिलती है. दूसरी कंपनी के बेहतर ऑफर को देखते हुए आप दो – तीन साल बाद कंपनी को बदल सकते हैं जिसमें नयी कंपनी आपके पुराने प्रीमियम भुगतान व कवरेज को मान्यता प्रदान कर देती है और आप उस नयी कंपनी से पूरा लाभ प्राप्त कर सकते हैं.
ओपीडी की सुविधा
कुछ कंपनियों की पॉलिसियों में ओपीडी व जांच कराने की सुविधा भी दी गयी है. पर यह कैशलेस नहीं होता है.
बीमा लेते समय इन बातों का रखें ध्यान
बेहतर हॉस्पिटल नेटवर्क हो
हमेशा उस कंपनी से बीमा लेना चाहिए जिसका हॉस्पिटल नेटवर्क मजबूत हो यानी अधिक से अधिक हॉस्पिटल वह इलाज की सुविधा प्रदान कर रहा हो. साथ ही यह देखना चाहिए कि उस बीमा कंपनी का क्लेम सेटलमेंट बेहतर हो. इसकी जानकारी के लिए आपको विशेष सलाहकार की जरूरत होगी.
कवरेज की कैपिंग नहीं हो
पॉलिसी लेने से पहले यह सुनिश्चित कर लें कि बीमा पॉलिसी के तहत दिये जा रहे कवरेज की कोई कैपिंग न हो. इसका मतलब की बीमारियों के हिसाब से उसके इलाज की राशि पूर्व निर्धारित न हो.
को-पेमेंट की शर्त नहीं हो
यह जांच लें कि पॉलिसी में को-पेमेंट की शर्त न हो. को-पेमेंट मतलब कि इलाज के बाद सेटलमेंट के समय कुल खर्च का 20-40 प्रतिशत हिस्सा व्यक्ति को देना हो और शेष हिस्सा बीमा कंपनी देगी. जैसे मान लिया कि बीमारी के इलाज में पांच लाख की राशि लगी. तो बीमा कराने वाले को पांच लाख का 30 प्रतिशत यानी 1.5 लाख खुद देना होगा और शेष 3.5 लाख ही कंपनी देगी. सामान्यतया यह जानकारी पॉलिसी डॉक्यूमेंट में लिखी होती है. पूछने पर एजेंट इस विषय में पूरी जानकारी देने से कतराते हैं.
कभी भी ऑनलाइन न लें
कभी भी स्वास्थ्य बीमा पॉलिसी को ऑनलाइन नहीं खरीदना चाहिए. ऑनलाइन में काफी बातें स्पष्ट नहीं होती. और जब आप बीमार पड़ते हैं और इलाज के लिए हॉस्पिटल में भर्ती होते हैं, तब जाकर आपको अपनी गलती का एहसास होता है, क्योंकि तब बहुत सारी बातें हॉस्पिटल के माध्यम से आपको मिलती है.
पुराने व स्थापित एजेंट के मार्फत ही लें पॉलिसी
हमेशा किसी पूर्व स्थापित एजेंट के माध्यम से ही स्वास्थ्य बीमा लेना चाहिए जिससे कि वे आपके सारे सवालों का पूरा जवाब दे सके और आपको विभिन्न प्रकार की स्वास्थ्य बीमा पॉलिसी का तुलनात्मक स्वरूप पेश कर सके. जिससे जरूरत के समय आप ठगा सा महसूस नहीं कर सकेंगे.
किस उम्र तक ले सकते हैं बीमा
स्वास्थ्य बीमा की बढ़ती मांग व लोकप्रियता को देखते हुए विभिन्न कंपनियों ने पॉलिसी लेनेवाले की उम्र को बढ़ा दिया है. अब कुछ कंपनियों में 70 वर्ष की उम्र के लोगों को भी स्वास्थ्य बीमा की पॉलिसी दी जा रही है. हां, एक बात जरूर है कि जितनी अधिक उम्र में पॉलिसी लेंगे, उतना ही अधिक प्रीमियम का भुगतान करना पड़ेगा.