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बिरसा और बिरसावाद
शैलेंद्र महतो बिरसा मुंडा, झारखंड ही नहीं पूरे भारत के आैर विश्व के अग्रगण्य क्रांतिकारी थे. उन्हाेंने शाेषण उत्पीड़न आैर अन्याय का तात्कालिक विराेध मात्र नहीं किया, बल्कि प्रतिक्रियावाद से ऊपर उठकर एक गहन राजनीतिक सांस्कृतिक एवं आध्यात्मिक चिंतन-दर्शन का सूत्रपात किया. यह कहना अतिशयाेक्ति नहीं हाेगी. बिरसा मुंडा सिर्फ क्रांतिकारी ही नहीं, बल्कि वह […]
शैलेंद्र महतो
बिरसा मुंडा, झारखंड ही नहीं पूरे भारत के आैर विश्व के अग्रगण्य क्रांतिकारी थे. उन्हाेंने शाेषण उत्पीड़न आैर अन्याय का तात्कालिक विराेध मात्र नहीं किया, बल्कि प्रतिक्रियावाद से ऊपर उठकर एक गहन राजनीतिक सांस्कृतिक एवं आध्यात्मिक चिंतन-दर्शन का सूत्रपात किया. यह कहना अतिशयाेक्ति नहीं हाेगी. बिरसा मुंडा सिर्फ क्रांतिकारी ही नहीं, बल्कि वह एक विचारक भी थे. विश्व राजनीति में राजनीतिक चिंतन की विभिन्न प्रचलित विचारधाराआें में झारखंड ही नहीं, समस्त विश्व के शाेषित, पीड़ित, पददलित समाज के लिए सबसे पुरातन आैर व्यावहारिक प्रेरणादायक काेई वाद अगर है, ताे वह है- बिरसावाद.
बिरसा मुंडा ने झारखंड की धरती पर क्रांति के जाे बीज बाेये, उसके अंकुरण से समाज, राष्ट्र एवं विश्व के विभिन्न आंदाेलनाें काे विचारधारा, संगठनात्मक काैशल तथा ध्येय-सिद्धि हेतु आवश्यक प्रेरक तत्वाें की प्राप्ति हुई. हर आंदाेलन प्रथमत: स्थूल वस्तु जैसे-जल, जंगल, जमीन के आधिपत्य आैर स्वामित्व के संघर्ष से शुरू हाेता है.
किसी भी राष्ट्र का स्वतंत्रता आंदाेलन हाे, उसकी पहली शुरूआत उस देश की जमीन पर अन्य देश से आये लाेगाें के कब्जे से उत्पन्न संघर्ष से ही शुरू हाेती है, किंतु सामूहिकता का बाेध पैदा कर उसके कब्जे के विराेध के निमित्त एक व्यापक आंदाेलन खड़ा करने के लिए जन भावनाआें का ध्रुवीकरण एवं एकत्रीकरण आवश्यक है, जाे समान भाव से उस भूमि से प्रेम एवं भक्ति रखते हाे. आंदाेलन के लिए सांस्कृतिक विशिष्टता काे अक्षुण्ण रखने आैर धार्मिक, आध्यात्मिक माैलिकता काे संरक्षित एवं संवर्धित रखने की उत्कृष्ट इच्छा उस स्थूल विराेध काे एक वैचारिक संजीवनी प्रदान करता है, जा कालांतर में राजनीतिक रूप से परिवर्तित हाेता है.
समस्त संघर्ष अंतत: सत्ता के ईद-गिर्द ही सृजित हाेता है आैर सत्ता राजनीति से नियंत्रित हाेती है. बिरसा मुंडा ने अपने आंदाेलन में इन तमाम पहलुआें की गवेषणा की आैर एक ठाेस वैचारिक, सांस्कृतिक, धार्मिक, आर्थिक आैर राजनीतिक तत्वाें से परिपूर्ण एवं सर्वग्राही, सर्वप्रभावी आंदाेलन का सूत्रपात किया, जाे बाद के आंदाेलनाें के लिए प्रेरणास्रोत बने रहे.
आदिवासियाें की भूमि व्यवस्था में यह प्रावधान था कि पूरी भूमि कबीला या समाज की हाेती थी आैर उसकी रक्षा का दायित्व उसकी उपज का उपयाेग तथा उस भूमि का उपयोग का निर्णय सामूहिकता के सिद्धांत पर आधारित समस्त कबीला या गांव का हाेता था.
जनजातीय संगठन का मूलभूत कारक यही था. व्यवसाय, व्यापारी, जमींदार आैर महाजन ये सारे शब्द झारखंड के संदर्भ में विजातीय हैं, क्याेंकि ये झारखंड की संस्कृति आैर सभ्यता में यहां की अर्थव्यवस्था आैर शासन प्रणाली मे इनका दखल बाहर से अाये हुए लाेगाें की वजह से हुआ. इन लाेगाें ने झारखंड की भूमि व्यवस्था काे अपने निहित स्वार्थाें के लिए तहस-नहस कर उस पर अपना अाधिपत्य जमाना शुरू किया.
इतना ही नहीं, अपने शाेषण आैर उत्पीड़न की शृंखला काे स्थायित्व प्रदान करने के लिए इन लाेगाें द्वारा झारखंड की सांस्कृतिक आैर धार्मिक अस्मिता पर ही प्रहार शुरू कर दिये गये, जाे इनकी विशिष्टता काे समूल नष्ट कर उन पर आर्थिक अाैर राजनीतिक स्वामित्व का दृढ़ से दृढ़तर कर सके. बिरसा मुंडा ने झारखंड की भूमि पर अति गंभीरता से सूक्ष्मातिसूक्ष्म विश्लेषण किया. इसके विराेध में विभिन्न पहलुआें के निराकरण के लिए जीवन के समस्त अंगाें काे छूते हुए बिरसा ने जाे विचारधारा प्रतिपादित की, उसे बिरसावाद कहते हैं. लेखक, चिंतक, विचारक, इतिहासकार, विद्वतजनाें ने बिरसा अांदाेलन के मात्र स्थूल पक्ष का लेखन, वर्णन किया. बिरसा की लड़ाई की शुरुआत विशुद्ध वैयक्तिक कारक तत्वाें की खाेज से शुरू हुई. बिरसा साेचते थे कि हम गरीब क्याें हैं?
हमारी गरीबी का कारण क्या है ?
बिरसा, आंदाेलनाें में शाेषकाें, अत्याचारियाें के विराेध में जाे एक उग्रवाद प्रदर्शित था, वह आदिवासियाें की पीड़ा, वेदना आैर उद्वेलन से संपाेषित था. बिरसा ने जब इस विपन्नता का कारण खाेजने का प्रयास किया ताे पता चला कि इसकी वजह दिकूआें (शाेषक) द्वारा उनके जल, जंगल, जमीन पर अधिकार जमाकर उनसे ही मालगुजारी वसूल कर उन्हें विपन्न से विपन्नतर बनाने की दिकू व्यवस्था ही है, जाे झारखंड की परंपरागत सामूहिक भूमि व्यवस्था काे नष्ट कर बनायी गयी है.
इसी का समाधान ढूंढने के क्रम में बिरसा ईसाई धर्म के संपर्क में आये. गाेरे ईसाइयाें ने भी उन्हें प्रलाेभन का रास्ता दिखाया आैर आंदाेलन त्यागने की धमकी दी. बिरसा ने ईसाई धर्म काे ग्रहण किया, किंतु कुछ अवधि के बाद उनका माेहभंग हाे आैर उन्हाेने ईसाई धर्म काे त्याग दिया.
उन्हाेंने अंतत: स्वधर्म (सरना) की ही शरण में आकर समस्त आदिवासियाें काे यह संदेश दिया कि अपना घर झाेंपड़ी ही क्याें न हाे, वह अपना है, प्यारा है आैर स्वाभिमान प्रदान करनेवाला है. उनके दिलाेदिमाग में अंग्रेज शासकाें एवं शाेषकाें के खिलाफ विद्राेह की भावना पनप रही थी. अपनी अस्मिता अाैर जल, जंगल, जमीन काे लेकर उन्हाेंने उलुगुलान की घाेषणा कर दी.
ब्रिटिश शासन ने बिरसा मुंडा काे जेल में डालकर क्रांति काे बंद करने की काेशिश की, किंतु आंदाेलन न गिरफ्तार हाेता है, न क्रांति काे कठघरे में कैद किया जा सकता है. उलगुलान की चिनगारी ज्वाला बन चुकी थी.
वह चिनगारी जाे बिरसा ने जलायी, वह इंकलाब की ज्वाला बनकर न सिर्फ झारखंड बल्कि समस्त भारत में अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ आजादी का संदेश दिया.
(लेखक पूर्व सांसद, सह झारखंड आंदोलनकारी हैं.)
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