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आय गेलैं करम: भाई-बहन के प्रेम का उत्सव है करम
गिरिधारी राम गोंझू गिरिराज वर्षा ऋतु मूलत: कृषि कर्म का मौसम है. आषाढ़ के चढ़ते ही वर्षा आरंभ हो जाती है. सावन की रिमझिम बारिश में धान की रोपनी होती है. भादो में रोपे गये धान हरे-भरे हो जाते हैं. भादो के एकादशी शुक्ल पक्ष में करम का पर्व मनाया जाता है. डॉ रामदयाल मुंडा […]
गिरिधारी राम गोंझू गिरिराज
वर्षा ऋतु मूलत: कृषि कर्म का मौसम है. आषाढ़ के चढ़ते ही वर्षा आरंभ हो जाती है. सावन की रिमझिम बारिश में धान की रोपनी होती है. भादो में रोपे गये धान हरे-भरे हो जाते हैं. भादो के एकादशी शुक्ल पक्ष में करम का पर्व मनाया जाता है. डॉ रामदयाल मुंडा के अनुसार करम विशुद्ध रूप से कृषि (बीजावपन-अंकुरण-संवर्धन) का पर्व है.
(आदि धर्म पृष्ठ 19)
धान की रोपनी अौर टांढ़ की खेती की निकौनी के कठिन परिश्रम के उपरांत किसानों को थोड़ा सा विश्राम मिलता है. इसी फुर्सत में करम उत्सव मनाया जाता है. इस फुर्सत में एक खुशी अौर होती है गोड़ा गोंदली का पक जाना अौर नये अनाज का घर आ जाना. अर्थात पेट भरने का अन्न प्राप्त होना. इसी आनंद में करम पर्व के दूसरे दिन नये अन्नग्रहण करने का नवाखानी पर्व भी मनाया जाता है. (सहनी उपेंद्रपाल नहन के साक्षात्कार से)
करम पर्व भाई-बहन के प्रेम का उत्सव है. इसमें बहनें भाई के सुख व समृद्धि के लिए पूजा-पाठ अौर नृत्य-संगीत का आयोजन करती है. करम विवाह योग्य बहनों एवं नवविवाहित बहनों का उत्सव है. ससुराल गयी नवविवाहिता बहनों को भाई करम पर्व के लिए विदा करा लाता है. इसके लिए बहन भी भाई के आने की प्रतीक्षा करती है. भाई उपवास कर बहन की पूजा के लिए जंगल से करम पेड़ की तीन डाली काट कर ला देता है.
आंगन या अखरा में उन तीन डालियों को भाई स्थापित कर देता है. पूजा के उपरांत बहनों के नृत्य-संगीत में भाई मांदर बजा कर आनंद को चौगुना कर देता है. (पद्मश्री मुकुंद नायक के साक्षात्कार से)
धान की खेती को रोग मुक्त करने के लिए करम पर्व की तीनों डालियों के विसर्जन के उपरांत धान के खेतों के बीच भेलवा अौर साल की टहनियां गाड़ी जाती हैं. इस मान्यता अौर विश्वास के साथ कि कृषि को इस देवता (करम देव, करम गोसाईं, करम राजा से सुरक्षा मिलेगी : पद्मश्री डॉ रामदयाल मुंडा -आदि धर्म पृष्ठ 20)
कर्म के साथ धर्म का संबंध बनाये रखने के लिए करमा-धरमा की कथा सुनायी जाती है पूजन के साथ. कर्म ही धर्म है, कर्म ही पूजा है, कर्म ही आनंद है, कर्म ही जीवन है कि कहावत सार्थक होती है. भारतीय दर्शन में तथा गीता में कर्म की प्रधानता पर बल दिया गया है. नागपुरी समाज में भी कर्म को अधिक महत्व दिया गया है. उदाहरणार्थ-क, ख, ग व घ तब रहबे चंगा अर्थात क से कमाअो, ख से खाअो, ग से गाअो, घ से घूमो फिरो तब तुम चंगा रहोगे. कइर के जीत कइह के ना जीत अर्थात जो तुम कह रहे हो उसे बोलो मत कर के दिखा दो.
काम नुनू की चाम नुनू अर्थात कर्म सुंदर होता है कि चर्म? इसी तरह काम कर अंग लगाये के डहर चल संग लगाये के अर्थात कोई भी काम करो तो पूरे मन से करो अौर रास्ता पर चलो तो मित्र के साथ चलो. (डॉ कुमारी बासंती नागपुरी लोक गीत गोछा पृष्ठ 190) लोक गीतों में करम का महत्व सुनाई पड़ता है. करम पर्व की रात बहनें नृत्य व संगीत की आस लगाये रहती हैं.
आइलो भादोर मास, मोर तो लागिलो आस
कतइ दिने सखि मन पूरे भास गो कतइ दिने
जाए दे अंधरिया आवे दे इंजोरिया
करम राति सखि पूरा करण आस गो करम राति
(डॉ बीपी केसरी-नागपुरी लोक गीत पृष्ठ 53)
करम पर्व के आगमन की बात सोचते ही रसिक युवा के आनंद उमंग (रीझ रंग) का क्या कहना-
आए गेलैं भादो अंगना में कादो, भाइ रीझ लागे
झुमइर खेले में आगे भाइ रीझ लागे.
(गिरिराज ऋतु रे रंग : मांदर के संग पृष्ठ 94)
करम लोक गीतों का सौंदर्य प्रकृति अौर हृदय का आह्लाद एकाकार हो जाता है
फूटलो कांसी दादा-बहिनी के लागत आस
मोर दादा आवी लेगे उकर ले राखमू खंसी जोगाए
आउरो राखमू छोटकी ननदी के जोगाए
करम कथाअों में सात भाई सात बहन जो एक दूसरे की गोतनी बन गयी हैं. ये सभी मिल कर करम की सेवा, पूजा अौर नृत्य संगीत से करम देव करम गोसाइ करम राजा को कितना सम्मान देती हैं-
सातो भइया करम करैं सातो करम गाड़ै
भइया जे मांदर टांगे बहिनी गे चांवर बांधे
कर्म अौर धर्म में समन्वय रखना सिखाता है करमा
झारखंडी संस्कृति विश्वव्यापी कल्याण की कामना करने वाली संस्कृति है. अौर करमा इस संस्कृति का प्रमुख पर्व है. करमा पर्व के आदि से लेकर अंत तक के नियम की अोर हम गौर करें तो ये नियम सर्वशक्तिमान भगवान की ही याद दिलाते हैं. कर्म, ज्ञान को मानव समाज में युग युगांतर तक अटूट रखने का स्मरण भी यह पर्व कराता है. इसके उदाहरण हमें लोक्तोक्तियों एवं पर्व के रीति-रिवाजों में मिलते हैं.
इस पर्व में प्रतीक स्वरूप एक करमडाला (टोकरी) होती है. इस डाला पर निर्धारित पर्व तिथि के दिन उपासकों के द्वारा नौ प्रकार के अनाजों के बीजों को मिट्टी-बालू देकर बो दिया जाता है. उन बीजों को सूर्य देव को अर्पित कर देने का नियम है. सूर्य के साथ पवन-आकाश, पानी अौर मिट्टी पंच भूत के रूप में अर्पित करते हैं. इस प्रकृति रूपी ईश्वर को जानने के लिए तसवीर, प्रतिमा, मंदिर की जरूरत नहीं पड़ती. इस सांस्कृतिक नियम के द्वारा यही समझा जाता है कि सीधा प्रकृति का जो रूप हमें देखने को मिलता है वही ईश्वर का सही रूप है. यह पर्व हम सबों को याद दिलाता है कि पूरा विश्व ईश्वर का रूप है. साथ ही कर्म ही सर्वश्रेष्ठ पूजा है. इस पर्व को भाई बहन का पर्व भी कहा जाता है.
निष्काम कर्मों का ख्याल रखने हेतु भाई अपनी बहनों को इस पर्व में हर संभव सहयोग दिया करते हैं. बहन भी निष्ठा भाव के साथ अपने भाइयों के लिए भक्ति-भाव से प्राकृतिक महाशक्ति से प्रार्थना करती है कि मेरा भाई संपूर्ण शक्तियों एवं गुणों से विभूषित होकर दीर्घायु बने तथा करम पर श्रद्धा रखकर समाज का उत्थान करे. भाई-बहन का संबंध स्नेह से भरा अौर पवित्र होता है. इस पर्व में एक प्रचलित कहानी सुनायी जाती है जिसे करम-धरम की कहानी कही जाती है.
इस कथन को गौर से विश्लेषण करने पर एक उन्नत आध्यात्मिक तत्व सामने आता है. यह करम अौर धरम की संसार लीला को दर्शाता है. करम अौर धरम दो भाई हैं जो कर्म अौर धर्म को इंगित करते हैं. करम धरम को नहीं छोड़ सकता है अौर धरम भी करम छोड़कर नहीं जी सकता है.
अर्थात करम विहीन धर्म नहीं अौर धर्म विहीन करम भी नहीं होता. कुरमाली लोक गीतों में जितने प्रकार के नेग विधि होते हैं उतने तरह के गीत भी मिलते हैं. कुरमियों के करम गीत इस तरह के हैं. जावा उठाने के गीत, जावा जगाने का गीत, करम काटने के गीत, करम गाड़ने के गीत, फूल तोड़ने का गीत, विदाई के गीत, विसर्जन के गीत. जवा गीत- इति, इति जाउआ किआ किआ जाउआ.
जाउआ जाइगल माय दान रे बउआ.जवा जगाने का गीत इस प्रकार है- बांका रे बांके कुरथि, भुंजे बसल छटकी ननद, भुजइते भुजइते ननद पड़ी गेल, जले हुए गेला ससुराल…, इसी तरह करम काटने के गीत भी हैं-कांहांहि कांदसे लर-लर बांस दइया अहरे, कहारे कांदे कांहा कांदने पिठेकर बहिन.., करम गाड़ने का गीत ऐसा है- डिंबु ने डिंबु तरे लेखेट बका.., डाइरे छाड़ी अगे फेड़े परे झांपा डाइरे छाड़ी.., फूल लोढ़ने का गीत-धान से भजरए- डाला के समान, जे बु प्रभु राम भइया बड़े सैया के समानविदाई गीत-कनह बने भाई रे चिमटी पिंपड़ी अहरे, सेह रे बने सेह बने भइया चलि जाये.., विसर्जन गीत-जाहू जाहू करम राजा/एहो छहो, मास आअोतो भरद मास आना.., करमा प्रकृति की रक्षा अौर संरक्षण का पर्व है. यह पर्व गीतों से शुरू होता है अौर गीतों के एक सुंदर सिलसिले के साथ खत्म होता है. इनके बोल प्रकृति की सृजनशीलता, उसका सौंदर्य, उसका धर्म अौर क्रोध तक को विवेचित करता है. ये गीत पहाड़ों अौर जंगलों की शाश्वत आवाज है.
कर्म और धर्म का समावेश है करम पूजा
अभिषेक
चंद्र उरांव
आदिवासी समाज के लगभग सभी त्योहार प्रकृति से किसी न किसी रूप में जुड़े होते हैं. झारखंड के आदिवासी प्रकृति को किसी न किसी रूप में पूजते हैं. सरहुल में साल पेड़ की पूजा की जाती है और करम पर्व में करम डालियों की पूजा की जाती है. करम पर्व उरांव जनजाति का दूसरा प्रमुख पर्व है.
पहला प्रमुख पर्व खद्दी (सरहुल) है. करम पर्व झारखंड का काफी लोकप्रिय पर्व है, जिसे आदिवासी समाज और सदान समाज काफी धूमधाम से मनाते हैं. यह पर्व भादो माह की एकादशी को मनाया जाता है. मूलत: यह पर्व बहनें अपने भाइयों की सुख-समृद्धि और दीर्घ आयु के लिए करती हैं. झारखंड के लोगों की परंपरा रही है कि धान की रोपाई (रोपा) हो जाने के बाद यह पर्व मनाया जाता रहा है. धरती अपनी हरियाली की चादर फैला लेती है और करम पर्व मनाने का रौनक और आनंद चार गुणा बढ़ जाता है.
करम पर्व के अनेक रूप हैं. करम, बूढ़ी करम, दसई करम, जितिया, राइज (राजी) करम, इंद करम आदि ये पर्व अलग-अलग समय के अनुसार गांवों में मनाया जाता है. परंतु राइज (राजी) करम सभी स्थानों (गांवों) में एक साथ एक निश्चित तिथि को रखा जाता है. भाद्र पद की एकादशी के दिन इसे मनाया जाता है. भादो एकादशी (करम पूजा) से नौ या सात दिन पहले से ही टोकरी में जावा उगाने की प्रक्रिया शुरू की जाती है.
सबसे पहले किसी बर्त्तन में जौ, मकई, धान, सरगुजा जैसे अनाजों को पानी में फुला कर रखा जाता है. बहनें स्नान करने के बाद पास के नदी, तलाब (ढोड़हा) से बांस की टोकरी में बालू लेकर आती है. बालू को घर में लाने के बाद बर्तन में भीगो कर रखे गये अनाजों को बोया जाता है. उसके ऊपर थोड़ा और बालू देकर उसे सारु के पत्तों से ढंक दिया जाता है. पूजा में बैठनेवाली बहनें रोज सुबह स्नान करने के बाद टोकरी में बोये गये अनाजों को पानी देती है और उसे गीतों के माध्यम से जगाती है.
जावा जब अंकुरित होती है, तो उस पर हल्दी रंगा हुआ पानी का छिड़काव करना होता है, इससे जावा हल्दी के रंग जैसा पीला दिखायी पड़ता है. अखरा में पूजा के समय जावा फूल को करम राजा पर चढ़ाया जाता है. इस पूरी प्रक्रिया के दौरान पवित्रता का काफी ख्याल रखा जाता है तथा शुद्ध शाकाहारी भोजन किया जाता है. करम पूजा के दिन भाई करम की तीन डालियां को बिना किसी स्थान पर रखे ही तालाब या अखरा के स्थान तक पहुंचाते हैं.
इस दिन जो भाई करम डाल लाने जाते हैं, इन भाईयों को उपवास रखना पड़ता है. करम पेड़ के समीप जाकर पाहन या अधिकृत व्यक्ति सबसे पहले करम पेड़ पर पानी डाल कर उसे धोकर पवित्र करते हैं तथा करम देवता को याद करते हैं. पेड़ पर अरवा सूता को तीन बार लपेटा जाता है. तीन या पांच बार सिंदूर की टीका लगाते हैं, अरवा चावल का अक्षत छिड़कते हैं और अगरबत्ती दिखाकर श्रद्धा के साथ प्रार्थना करते हुए पूजा पूरी की जाती है. इसके बाद डाल काटे जाते हैं तथा उस डाल को जमीन पर गिरने से पहले ही पकड़ लिया जाता है.
तीन करम डाल काटा जाता है और एक बार में ही पूरी एक डाली कटी जाती है. इसके बाद उसे लाकर विधिपूर्वक पूजा वाले दिन लिपाई किये गये अखड़ा स्थल पर गाजे-बाजे (मांदर, नगाड़ों) के साथ काफी धूमधाम से लाया जाता है तथा अखरा की परिक्रमा की जाती है. करम डाल को गाड़ने वाले लोटे में पानी, सब्बल, दीया-बत्ती, घी तथा दूध लेकर आता है. गड्ढा खोदकर तीनों डालियों में एक साथ सात चक्कर सूत (धागा) लपेटकर डाल को जमीन में गाड़ दिया जाता है. बहनें पूजा सामग्री के साथ डाल के चारों ओर बैठ जाती हैं.
इस दिन पूरे अखरा को सजाया जाता है. रात में पाहन करमदेव की पूजा करते हैं, पूजा पूरी होने के बाद करमा और धरमा दो भाईयों की कहानी सुनाई जाती है. पूजा के दौरान फल-फूल, चूड़ा और जावा फूल करमदेव को चढ़ाया जाता है. इसके बाद प्रसाद वितरण होता है. करम स्थल अखड़ा में ही करम गीतों और ढोल-मांदर-नगाड़ों के साथ नृत्य का कार्यक्रम चलता रहता है. इस दिन मांदर और नगाड़े की थाप पर पूरा गांव झूम उठता है और पूरे अखरा में उमंग और उत्साह का महौल बन जाता है.
नृत्य के समय मांदर की थाप में करम पर्व प्रकृति प्रेम को दर्शाता है साथ ही बुरे करमों को त्याग कर अच्छे करमों को करने की प्रेरणा भी देता है. इस पर्व में बहनों, पाहनों के साथ-साथ अदिवासी/मूलवासी समाज अच्छी फसल, समाज के लोगों के बीच सुख-शांति बनाये रखने की कामना करते हैं. दूसरे दिन करम राजा (करम डाइर) के विसर्जन की तैयारी की जाती है. जावा फूल वितरित कर फुलखोसी की जाती है और पूरे गांव में घुमाकर करम डाल को करम गीत गाते हुए नदी या तालाब में विसर्जित किया जाता है.
ये पर्व धरती में हरियाली और रिश्तों में मिठास लाता है. करम पर्व अपसी मेल-मिलाप और सामाजिक समरसता का परिचायक है. प्रकति के साथ कभी खिलवाड़ नहीं करना चाहिए अपितु इसका सम्मान करना चाहिए. प्रकृति के गोद में ही हमारा जीवन फल-फूल सकता है. यह पर्व सतत कर्म करते रहने और धर्म अर्थात नैतिक मूल्यों के साथ जीवन जीने का संदेश देता है.
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