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गरमी में चुनाव

सात, नौ, दस, बारह, सत्रह, चौबीस, तीस, सात, बारह. जी नहीं, ये वीरेंद्र सहवाग या गौतम गंभीर की पिछली नौ पारियों का स्कोर नहीं, बल्कि चुनाव की तारीखें हैं. तारीखें भी अप्रैल और मई की. चुनाव आयोग को तारीखों की घोषणा करनी थी, सो कर दी. लेकिन नौ चरणों वाले इस चुनाव के बारे में […]

सात, नौ, दस, बारह, सत्रह, चौबीस, तीस, सात, बारह. जी नहीं, ये वीरेंद्र सहवाग या गौतम गंभीर की पिछली नौ पारियों का स्कोर नहीं, बल्कि चुनाव की तारीखें हैं. तारीखें भी अप्रैल और मई की. चुनाव आयोग को तारीखों की घोषणा करनी थी, सो कर दी. लेकिन नौ चरणों वाले इस चुनाव के बारे में सोच कर नेताओं के अभी से पसीने छूट रहे हैं. ऐसे ही एक नेताजी से अपन टकरा गये और पत्रकार होने के नाते चंद सवाल पूछ लिये.

नेताजी! इस चुनाव में क्या आप अपनी पार्टी के शीर्ष नेताओं के साथ प्रचार के लिए जायेंगे?

यहां अपना प्रचार ही खटाई में पड़ा है. गली के लड़कों तक ने मेरे प्रचार में जाने से इनकार कर दिया है. मुहल्ले के लड़कों की डिमांड है कि एसी वाली इनोवा चाहिए. और हर जगह एसी गेस्ट हाउस में ही रुकेंगे.

अच्छा, अपने मतदाताओं को आप वोट डालने के लिए कैसे प्रेरित करेंगे?

मई की लू-लपट में बंदा खुद खड़ा हो, तो खुद को वोट डालने ना जाये. हम किस मुंह से लोगों से कहें कि हमें वोट डालने आओ. फिर भी सोच रहा हूं कि हर वोटर के लिए फ्री कोल्ड ड्रिंक का इंतजाम कराया जाये. इसके लिए स्पॉन्सर ढूंढ रहा हूं. चुनाव आयोग ने खर्च की सीमा जरूर बढ़ा दी है, लेकिन इतनी सख्ती है कि हर बात का हिसाब मांगा जायेगा.

आपको नहीं लगता कि पार्टियों को विरोध जताना चाहिए था कि चुनाव अभी नहीं होने चाहिए?

सही कहा. चुनाव होने चाहिए गुलाबी मौसम में. ना सर्दी-ना धूप-ना बरसात. कैडिंडेट प्रचार में निकले, तो मदमस्त हाथी की तरह. कभी इस मुहल्ले-कभी उस गली. कभी इस द्वार-कभी सिर्फ बार. लेकिन, किस्मत का क्या कीजियेगा? रही बात पार्टियों की, तो अब चुनाव आयोग के सामने उनकी कहां चलती है. टीएन शेषन के जमाने के बाद से अचानक चुनाव आयोग नाम की निरीह संस्था शेर सी बलवती हो गयी है. जब चाहे पंजे में पार्टियों को दबोचने को तैयार. वैसे, ऑफ द रिकॉर्ड बताऊं, तो बड़ी पार्टियों के बड़े नेताओं को चिंता क्या? हेलीकॉप्टर में निकल लिये सैर करने. बिल भी पार्टी दे. यहां हम जैसे नेताओं की आफत है. शरीर का तेल दो, कार का तेल दो और फिर पूरा हिसाब किताब दो. हद है!

गर्मी में चुनाव हैं, तो पार्टी की तरफ से कुछ सपोर्ट तो मिल रहा होगा ना?

खाक सपोर्ट मिल रहा है. अत्याचार हो रहा है. चुनाव आयोग सभी उम्मीदवारों की संपत्ति का प्रमाणपत्र मांग रहा है, तो पार्टी आलाकमान फिटनेस प्रमाणपत्र. पार्टी का कहना है कि कोई भी नेता गरमी ङोलने लायक स्थिति में नहीं हुआ, तो उसे टिकट नहीं दिया जायेगा. अब बताइए, सालों की मेहनत से ठेके-कमीशन हासिल करके जो कुछ पाया, वो सब तन को ही तो लगा था. एक पल में कैसे उतर जायेगा.

चलिए आखिरी सवाल. फिलहाल गरमी को देखते हुए आपकी रणनीति क्या है?

रोज सुबह पांच किलोमीटर की दौड़ लगाने की कोशिश कर रहा हूं. मैं नहीं चाहता कि प्रचार करते-करते बेहोश हो जाऊं. बड़ी नगेटिव पब्लिसिटी होती है भाई. नितिन गडकरी दिल्ली में अप्रैल की रैली में बेहोश हो गये थे-उस वक्त हमने देखा था कि कैसे छीछा-लेदर हुई थी.

भीषण गरमी में चुनाव को लेकर नेताजी के इंटरव्यू से स्पष्ट था कि इस बार नेताओं का प्रचार के वक्त तेल के साथ वह सब कुछ निकल जायेगा, जो निकल सकता है. वैसे, यह खाकसार नेताओं को कुछ सुझाव देना चाहता है.

1- जान है तो चुनाव है. मतलब पानी बहुत पीएं. बेल का शरबत जहां मिले, गटक जाएं.

2- नेकी कर चुनाव में डाल. मतलब-अपने साथियों को खूब खिलाएं-पिलाएं और फिट रखें. उनकी सुविधाओं में कोई कमी ना रखें.

3- तीसरी और आखिरी बात यह है कि यूं तो भीषण गरमी या भीषण सर्दी से कभी किसी नेता के मरने की खबर नहीं सुनी. नेताओं पर यमराज की स्पेशल कृपा होती है. या हो सकता है कि नेताओं से यमराज डरते हैं. मतलब यह कि नेता कुल में जन्म लिया है, तो कम-से-कम गरमी-सरदी से नहीं मरेंगे. अलबत्ता फिर भी इस चुनाव में लू-लपट परेशान करे, तो अपने सभी साथियों के साथ मिल कर संसद में बैठ कर संविधान में एक संशोधन पास करें कि चुनाव सिर्फ गुलाबी सरदी के मौसम में होने चाहिए. यह हम सब जानते हैं कि जब बात नेताओं के हित की होती है, तो संसद में कभी हंगामा नहीं होता. यकीन जानिये, यह संशोधन एक मिनट से भी कम वक्त में पास हो जायेगा.

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