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अल्पसंख्यक अपनी जरूरतें और समस्याएं हमें बतायें, हम मदद करेंगे : डॉ शाहिद

झारखंड में अल्पसंख्यकों की सामाजिक, आर्थिक व शैक्षणिक स्थिति अच्छी नहीं है. उनके पास शिक्षा व रोजगार के अवसर कम हैं. गरीबी एक बड़ा कारण है, जो उन्हें शिक्षा के अवसरों से वंचित करता है. जब शिक्षा व रोजगार में वे पिछड़े रह जाते हैं, तो उनकी सामाजिक स्थिति भी स्वत: कमजोर हो जाती है. […]

झारखंड में अल्पसंख्यकों की सामाजिक, आर्थिक व शैक्षणिक स्थिति अच्छी नहीं है. उनके पास शिक्षा व रोजगार के अवसर कम हैं. गरीबी एक बड़ा कारण है, जो उन्हें शिक्षा के अवसरों से वंचित करता है. जब शिक्षा व रोजगार में वे पिछड़े रह जाते हैं, तो उनकी सामाजिक स्थिति भी स्वत: कमजोर हो जाती है. हालांकि केंद्र व राज्य सरकार द्वारा प्रायोजित कई योजनाएं उनके लिए संचालित की जा रही हैं.

उनके शैक्षणिक व आर्थिक पिछड़ेपन को दूर करने के लिए सरकार व विभिन्न राजनीतिक दल तरह-तरह के दावे कर रही है. झारखंड राज्य अल्पसंख्यक आयोग अल्पसंख्यक समुदाय के मुद्दों, उनकी जरूरतों की सुनवाई करने वाला व केंद्र व राज्य सरकार के पास उसकी पैरोकारी करने वाली महत्वपूर्ण संस्था है. झारखंड राज्य अल्पसंख्यक आयोग के अध्यक्ष डॉ शाहिद अख्तर से अल्पसंख्यकों से जुड़े विभिन्न मुद्दों पर पंचायतनामा के लिए राहुल सिंह ने विस्तृत बातचीत की. डॉ शाहिद मानते हैं कि देश की तरक्की के लिए यह जरूरी है कि इसके हर समुदाय को तरक्की और आगे बढ़ने का समान अवसर मिले. पेश है प्रमुख अंश :

अल्पसंख्यकों की मौजूदा सामाजिक स्थिति क्या है. इसके लिए क्या कोशिश हुई है?
अल्पसंख्यक आयोग ने झारखंड सरकार को अल्पसंख्यकों की सामाजिक, आर्थिक और शैक्षणिक स्थिति का आकलन कराने के लिए पत्र लिखा है. हमने सरकार से कहा है कि इन बिंदुओं पर इनकी स्थिति का आकलन कराना बहुत जरूरी है. ताकि उनकी उन्नति व बेहतरी के लिए सरकार द्वारा उठाये जाने वाले कदम को और प्रभावी बनाया जा सके. हमने आइआइएम, रांची के निदेशक से भी बात की कि अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों की शैक्षणिक स्थिति कैसे बेहतर हो, उन्हें कैसे रोजगार में भागीदारी दी जाये. इसके लिए सर्वे चल रहा है. पूर्व में जब जेवियर साहब निदेशक थे, तो उनसे विशेष रूप से इसके लिए कहा था.

उनकी सामाजिक, शैक्षणिक और आर्थिक स्थिति में सुधार कैसे होगा?
यूएनओ (संयुक्त राष्ट्र संघ) ने कहा है कि किसी भी समाज की खुशहाली का आकलन करना है, तो वहां के अल्पसंख्यकों की स्थिति को देखिए. इसलिए किसी भी राज्य में खुशहाली का सही आकलन वहां के अल्पसंख्यक समुदाय की खुशहाली से हो सकती है. उनको आगे आने से रोका जा रहा है. उसके लिए मानसिकता में बदलाव लाने की जरूरत है. इनकी स्थिति तो ठीक करने के लिए समाज के सभी वर्ग को आगे आना होगा. लोग मदद करें, ताकि इनकी सामाजिक-आर्थिक व शैक्षणिक स्थिति बढ़िया हो. देश व राज्य की तरक्की के लिए यह जरूरी है कि सभी वर्गो व समुदायों का विकास हो.

राजनीतिक पार्टियां अल्पसंख्यकों के मुद्दों पर कितनी संवेदनशील हैं? उनसे क्या उम्मीद है? उन्हें मुख्यधारा से अलग क्यों मान लिया जाता है?
राजनीतिक पार्टियां से बहुत-सी अपेक्षाएं हैं. उनके लिए स्कीमें बहुत-सी हैं. उन स्कीमों को लागू किया जाना चाहिए. अब तक राज्य में अल्पसंख्यक निदेशालय नहीं बना है. जिलों में अल्पसंख्यक मामलों के अधिकारी नहीं हैं. जिसके कारण यहां अल्पसंख्यक हित की योजनाओं का क्रियान्वयन नहीं हो पा रहा है. बिहार में स्कीमों पर कार्यान्वयन हो रहा है, क्योंकि वहां जिला स्तर पर अल्पसंख्यक मामलों के अधिकारी तैनात किये गये हैं. अल्पसंख्यक-बहुसंख्यक में बांट कर वोट लेने की जरूरत नहीं है. अल्पसंख्यक सिर्फ वोट नहीं हैं. उन्हें समाज की मुख्यधारा से जोड़ने की कोशिश होनी चाहिए. उनका केवल राजनीतिक प्रयोग नहीं करें. अल्पसंख्यक वर्ग के लोगों को भी आमलोगों की तरह ही देखें. उन्हें भी सामाजिक-राजनीतिक रूप आगे आने का अवसर मिले. उन्हें राजनीति से सिर्फ जोड़ कर देखेंगे, तो यह देश के लिए सबसे बड़ी बाधा होगी.

झारखंड में अल्पसंख्यक समुदाय के लोग हस्तशिल्प से जुड़े काम में कुशल रहे हैं या फिर वे वनोपज आधारित जीवन जीते रहे हैं. फिर वे क्यों औद्योगिक राज्यों व बड़े नगरों की ओर रोजगार के लिए पलायन करने को मजबूत होते हैं?
झारखंड में आजीविका मिशन को 50 हजार लोगों को रोजगार स संबंधी प्रशिक्षण देना है और उन्हें रोजगार उपलब्ध करवाने में भी मदद करनी है. इसमें 15 प्रतिशत यानी साढ़े सात हजार संख्या अल्पसंख्यकों की होनी चाहिए. इसी महीने से इसके लिए प्रशिक्षण शुरू हो गया है. जिलों में प्रोजेक्ट इंप्लीमेंटेशन एजेंसी (पीआइए) का चयन किया गया है. वे 18 से 35 वर्ष आयु वर्ग के युवाओं को तीन से छह महीने का प्रशिक्षण देंगी. कौशल प्रशिक्षण के साथ रहने व खाने का भी खर्च सरकार वहन करेगी. एजेंसी इन्हें कम से कम छह हजार रुपये का रोजगार उपलब्ध करायेगी. जिन अल्पसंख्यक युवाओं को इस तरह के रोजगार प्रशिक्षण से जुड़ना है, वे मुखिया के माध्यम से लिस्ट बना कर जिला स्तर के संबंधित अधिकारियों को दें. अगर उन्हें इसमें कोई दिक्कत होती हो तो हमारे कार्यालय में फोन से या लिखित रूप से सीधे संपर्क करें. हमारे इ-मेल पर मेल कर भी अपनी बात-शिकायतें बता सकते हैं. हम उनकी मदद करेंगे. हमें गांव से लोग अपनी ओर से लिस्ट बना कर भी भेज सकते हैं. हम उसे ग्रामीण विकास विभाग के विशेष सचिव को भेज कर क्रियान्वित करायेंगे.

इसके अलावा केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्रलय की एक रोशनी स्कीम भी है. इसके माध्यम से अति उग्रवाद प्रभावित जिलों के 22 हजार युवाओं को रोजगार से जुड़ा प्रशिक्षण देना है. झारखंड के छह जिले चतरा, गुमला, लातेहार, गढ़वा, पलामू, पश्चिमी सिंहभूम जिलों का इसके लिए चयन किया गया है. प्रशिक्षण पाने वालों में आधी महिलाएं होंगी. इस योजना से भी ग्रामीण इलाकों के अल्पसंख्यक लाभान्वित हो सकते हैं. इस योजना के तहत लोगों को उनके गांव व क्षेत्र में रोजगार उपलब्ध कराया जा सकता है. जैसे, बीड़ी बनाने वाली महिलाओं को गांव में ही ट्रेनिंग दी जाये. आयोग कोशिश करेगा कि जो जिस क्षेत्र में रहता है उसे वहीं रोजगार उपलब्ध कराया जाये. इसके लिए वहां ट्रेनिंग कैंप भी लगाया जाये.

अल्पसंख्यकों के शैक्षणिक संस्थानों की स्थिति अच्छी नहीं है. वहां संसाधनों की कमी है?
शैक्षणिक संस्थाओं को दी जाने वाली आर्थिक सहायता की स्थिति ठीक कर दी गयी है. पर, वे अब भी बदहाल हैं. सरकार से हमने उसकी स्थिति सुधारने के लिए आइडीएमआइ (इन्फ्रास्ट्रर डेवलपमेंट फॉर माइनोरिटी इंस्टीटय़ूट) से सिफारिश की है. इस स्कीम को अल्पसंख्यक स्कूलों की स्थिति सुधारने के लिए बनाया गया है. हालांकि सरकारी अधिकारियों के कारण ठीक से यह लागू नहीं हो पा रहा है. हमने इसका संज्ञान लिया है और इस कमी को दूर करने की कोशिश की जा रही है.

हम सरकार से भी अनुशंसा कर रहे हैं. राज्य में जितने प्रखंड हैं, वहां अल्पसंख्यक आवासीय स्कूल खोले जाने चाहिए. जैसे, कस्तूरबा आवासीय विद्यालय, या फिर अनुसूचित जनजाति-जाति व पिछड़े वर्ग के लिए स्कूल खोले गये हैं. हालांकि 12 वीं पंचवर्षीय योजना में भी इस तरह की योजना का उल्लेख किया गया है. दिल्ली में प्रधानमंत्री की उपस्थिति में होने वाले अल्पसंख्यकों के मुद्दे पर सालाना कान्फ्रेंस में देश भर में 1400 आवासीय स्कूल खोले जाने की बात कही गयी है. इसमें लगभग 180 स्कूल झारखंड में खोले जाने हैं. इनके खुलने से अल्पसंख्यकों की शैक्षणिक स्थिति को सुधारने में मदद मिलेगी. हमने अल्पसंख्यकों की शैक्षणिक संस्थाओं के संदर्भ में दो-तीन बार केंद्रीय अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री को पत्र भी लिखा. प्रधानमंत्री ने सालाना कान्फ्रेंस में भरोसा दिलाया है. हम जिला स्तर पर अल्पसंख्यक लड़कियों के लिए इंटर स्तरीय विद्यालय खुलवाने के लिए भी प्रयास कर रहे हैं.

केंद्र या राज्य के अल्पसंख्यक कार्य मंत्रलय की योजनाएं लोगों के लिए कितनी मददगार साबित हो रही हैं?
देखिए, केंद्र या राज्य के स्तर पर अल्पसंख्यकों के लिए कई अच्छी योजनाएं हैं. पर, झारखंड में इनका लाभ नहीं पहुंच पा रहा है. जिस तरह अनुसूचित जाति-जनजाति या पिछड़े वर्ग की योजनाओं पर अमल होता है, उसकी तुलना में अल्पसंख्यकों की योजनाएं पीछे छूट जा रही हैं. हमने राज्यपाल व मुख्यमंत्री से मिल कर इस बारे में अवगत कराया. राज्य में स्थिति यह है कि अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री सिर्फ नाम के मंत्री हैं. न तो यहां अल्पसंख्यक विभाग है और न ही अल्पसंख्यक निदेशालय है. हमने राज्यपाल-मुख्यमंत्री से इसके गठन की मांग की है. अल्पसंख्यक बच्चों की शिक्षा के लिए अगर कोई ग्रामीण इलाकों में या फिर प्रखंड व जिले में सरकारी सहायता से संचालित होने वाला कोचिंग खोलना चाहे तो हमसे संपर्क करें, हम उनकी हर संभव मदद करेंगे.

डॉ शाहिद अख्तर

अध्यक्ष, झारखंड राज्य अल्पसंख्यक आयोग

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