हमने मन की आवश्यकताओं के लिए कुछ नहीं किया, इसलिए मन रोगी हो गया है. मनुष्य को नहीं मालूम कि क्या सोचना चाहिए, क्या अनुभव करना चाहिए. मन ऐसी गाड़ी बन गया है, जो इत्तफाक से ही गंतव्य तक पहुंच सकती है. उसमें दुर्घटना की आशंका अधिक होती है. इसलिए मन के नियंत्रण की विधि का ज्ञान अति आवश्यक है. यही योग का मुख्य विषय है.
आधुनिक युग में लोग स्वास्थ्य के लिए भोजन, औषधि, व्यायाम आदि के विषय पर बहुत ध्यान देते हैं, किं तु वे भूलते जा रहे हैं कि शारीरिक स्वास्थ्य ही मनुष्य के जीवन का लक्ष्य नहीं, वह तो आंतरिक व्यक्तित्व है, जो सुगठित मानव को निर्मित करता है. आधुनिक सभ्यता के पूर्व लोग माता, छोटी माता, हैजा, पीत ज्वर, महामारी आदि अनेक संक्रामक रोगों के शिकार हो जाते थे. हम सदा से इन रोगों व इनके प्रभाव से बचते आ रहे हैं.
इतिहास को पलट कर कर देखो, तो पाओगे कि ऐसी-ऐसी भयंकर परिस्थितियां और ऐसे-ऐसे भयंकर रोग जो नगर के नगर उजाड़ कर रख दें, कभी साध्य नहीं हुए थे. इन प्रकोपों से मानवता का उद्धार करने और उसे स्वास्थ्य प्रदान करने के लिए बहुत सोचा गया. अनेकों प्रयोग किये गये. हमें सोचना पड़ा कि क्या ऐसा कोई साधन है, जिससे पूर्ण स्वास्थ्य प्राप्त किया जा सके? गत कु छ वर्षो से हम इस निर्णय पर पहुंचे हैं कि इस प्रश्न का उत्तर केवल योग के पास है.
मन की सफाई भी जरूरी
आप प्रतिदिन स्नान क्यों करते हैं, अपने रसोई घर की सफाई क्यों करते हैं? इसलिए कि आप सोचते हैं कि शारीरिक स्वास्थ्य के लिए बाह्य स्वच्छता अति आवश्यक है. उसी प्रकार क्या आपने कभी सोचा कि मन से किसी विशेष विचार को बाहर निकाल फेंकना जरूरी है. आप अपने रसोई घर और अपने शौचालय को दिन में दो बार साफ करते हैं, परंतु मन का क्या हाल है? जब आपके मन में भय, अधीरता, चिंता, दु:ख या निराशा का विचार उठता है, तो आप क्या करते हैं? आप उसी के साथ चले जाते हैं.
आप उसे मन से निकालने का प्रयत्न भी नहीं करते. इसलिए आप क्रोध, नैराश्य, उदासीनता, भय और चिड़चिड़ेपन के शिकार हो जाते हैं. ये विचार आपके मन पर आघात पहुंचा रहे हैं. शरीर में प्रवेश करने वाले रोगाणुओं की तरह ये आपके मन में घर कर गये हैं. मगर ये विचार इन रोगाणुओं से भी अधिक शक्तिशाली और खतरनाक होते हैं. जब रोगाणु शरीर में प्रवेश करते हैं, तब विशेष औषधियों के द्वारा उन्हें नष्ट करने का उपाय किया जाता है. किंतु जब भय या वासना का कोई विचार आपके मन में घर कर जाता है, क्या आप जानते हैं कि उसका प्रभाव मन में कितनी गहराई में जाकर पड़ता है? जब हम स्वास्थ्य की बातें करते हैं तो हमें पहले मानसिक स्वास्थ्य का ज्ञान होना चाहिए, क्योंकि यही स्वास्थ्य की कुंजी है. यही योग का मुख्य विषय है. योग शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक स्वास्थ्य की एक सुव्यवस्थित प्रणाली है.
आंतरिक व्यक्तित्व पर सोचे
हम अपने शारीरिक स्वास्थ्य को बनाने के लिए नाना उपाय योग के पास है. पोषक तत्वों की आवश्यकता पूर्ति के लिए हम विटामिनों व खनिज पदार्थो को जुटाते रहे हैं. अब थोड़ी देर के लिए हम आंतरिक व्यक्तित्व पर सोचे. आपके मन की क्या अवस्था है? हमने अपने मन की आवश्यकताओं के लिए कुछ नहीं किया, इसलिए मनुष्य का मन रोगी हो गया है. वह नहीं जानता कि किस प्रकार सोचें या क्यों सोचे. मनुष्य को नहीं मालूम कि क्या सोचना चाहिए, क्या अनुभव करना चाहिए. उसे नहीं मालूम कि अनुभव क्यों करे. वह एक शताब्दी से चलायी जा रही मोटरगाड़ी बन गया है.
ऐसी गाड़ी इत्तफाक से ही अपने गंतव्य तक पहुंच सकती है. उसमें किसी दुर्घटना के शिकार होने की संभावना ही अधिक होती है. इसलिए मन के नियंत्रण की विधि का ज्ञान होना अति आवश्यक है. इसके द्वारा हम मानसिक स्वास्थ्य व गुणों को बढ़ा सकते हैं.
स्वामी सत्यानंद सरस्वती
योगविद्या