-त्वरित टिप्पणी-
।। अनुज कुमार सिन्हा ।।
झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने अपनी सरकार के ताकतवर मंत्री चंद्रशेखर दुबे को बरखास्त कर दिया है. यह बड़ा और कड़ा फैसला है. कभी बाबूलाल मरांडी ने अपने मंत्री मधु सिंह को ऐसे ही बरखास्त किया था. एक साल पहले हेमंत सोरेन ने मुंडा सरकार से समर्थन वापस लिया था. उसके बाद का यह सबसे कठोर निर्णय है. चंद्रशेखर दुबे कांग्रेस के हैं.
झारखंड में हेमंत सोरेन की सरकार कांग्रेस और राजद के सहारे चल रही है. इसलिए यह निर्णय आसान नहीं था. एक ओर कुआं तो दूसरी ओर खाई. बरखास्त नहीं करें, तो गयी इज्जत. और बरखास्त कर दिया, तो चंद्रशेखर दुबे के आरोपों को ङोलना होगा. मुख्यमंत्री ने दूसरा रास्ता चुना. सही है कि बगैर कांग्रेस आलाकमान के यह संभव नहीं था. उनकी सहमति मिलने के बाद ही यह कार्रवाई की गयी, लेकिन अब आगे का रास्ता जोखिम भरा होगा. चंद्रशेखर दुबे पूरे झारखंड को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रुप से यह बताने का प्रयास करेंगे कि हेमंत सोरेन ट्राइबल कार्ड खेल रहे हैं. गैर-आदिवासी अफसरों-कर्मचारियों को हटा रहे हैं.
किनारे कर रहे हैं. ऐसे मौके पर मुख्यमंत्री को एक-एक कदम फूंक कर रखना होगा. अपने निर्णयों से यह साबित करना होगा कि हर जाति, हर धर्म, हर समुदाय उनके लिए बराबर है. यह सिर्फ बोलने से नहीं, बल्कि काम करने के तरीके से होगा. इसका मुख्यमंत्री को ख्याल करना होगा. बरखास्तगी के एक निर्णय से हेमंत सोरेन ने यह बताने का प्रयास किया है कि झामुमो या खुद उन्हें (हेमंत सोरेन को) कमजोर न समङो. हाल के दिनों में मुख्यमंत्री पर लगातार उनके सहयोगी दल के हमले हो रहे थे. यह बढ़ता ही जा रहा था.
कुछ दिन पहले झामुमो के ही तीन विधायकों ने दबाव बनाया था. राज्यसभा चुनाव में राजद ने धमकाया था. सभी की बात मान ली गयी थी. इससे यह संदेश जा रहा था कि हेमंत सोरेन कमजोर मुख्यमंत्री हैं और कुरसी के लोभ में कुछ भी सहने-सुनने को तैयार हैं. मंत्री को बरखास्त कर हेमंत सोरेन ने यह संदेश दिया है कि अनुशासन तोड़नेवाले को नहीं छोड़ेंगे, चाहे वह कितना भी प्रभावशाली क्यों न हो. अब उनकी जगह कौन मंत्री बनेगा, इस पर निगाहें होंगी. दागी और विवादित को अगर मंत्री बनाया, तो हमले और बढ़ेंगे. यानी मुख्यमंत्री की असली परीक्षा तो अब होगी.
लोकसभा चुनाव सामने है. चुनाव परिणाम आने के बाद झारखंड के राजनीतिक हालात क्या होंगे, कोई नहीं बता सकता. झामुमो भी इस बात को महसूस कर रहा है. उसके पास समय कम है. अभी तक झामुमो के पास कोई ऐसा मुद्दा नहीं है, जिसे लेकर वह चुनाव (जब भी विधानसभा चुनाव हो) में जाये. चुनावी आचार संहिता किसी भी दिन लग सकती है. ऐसे में झामुमो जल्द से जल्द अपनी छवि सुधारना चाहता है, वैसा काम करना चाहता है, जिससे चुनाव में उसे लाभ मिले. मुख्यमंत्री यह जानते हैं कि राज्य में बहाली नहीं हो रही है. लोगों में नाराजगी है.
भ्रष्टाचार है. तबादले में गड़बड़ी हो रही है. ठेके में पक्षपात हो रहा है. ये सारे सवाल उठेंगे. गुवा के शहीदों के परिजनों को हेमंत सोरेन ने नौकरी दी. झारखंड के शहीदों-आंदोलनकारियों के लिए आयोग बना है. हो सकता है कि शहीदों के परिजनों को जल्द ही नौकरी की घोषणा की जाये, ताकि झामुमो को इसका श्रेय मिल सके . हेमंत सोरेन को पूरी ताकत राज्य सरकार की छवि सुधारने में लगानी होगी. काम कर दिखाने होंगे. कुछ वैसे फैसले लेने होंगे, जिनसे राज्य के विकास का रास्ता खुले.