-एलिट वर्ग की मरजी, असली हकदारों को भारतरत्न क्यों नहीं
।। राज लक्ष्मी सहाय।।
लाल बहादुर शास्त्री ने जय जवान, जय किसान का नारा दिया. जवान और किसान देश की रीढ़. तब किसी ने नहीं सोचा था कि ऐसी अनहोनी होगी कि भारत की माटी की सोंधी सुगंध विलुप्त हो जायेगी. पुरवइया पर पश्चिम की हवा भारी पड़ेगी. तभी तो भारत-रत्न की सूची में सचिन तेंदुलकर जुड़ गये. सचमुच यह नयी पीढ़ी का चमत्कार ही है. क्या कभी किसी किसान को भारतरत्न की उपाधि मिल सकती है? कभी कोई जवान देश की रक्षा के लिए अपना सर कटा कर भी भारत रत्न की उपाधि से गौरवान्वित हो सकता है.
ऐसे सवाल पर मीडिया और सरकार हंसेगी. चैनलों के विेषक मजाक उड़ाएंगे. दरअसल ऐसा इसलिए कि भारत की सत्ता और मीडिया पर जिस वर्ग का कब्जा है, उस पर पश्चिमी संस्कृति का प्रभाव है. इस वर्ग की नयी पीढ़ी तो देश को भारत के नाम से पुकारने में हिचकती है- इंडिया कहती है. इसी वजह से क्रिकेट, गोल्फ, बिलियर्ड, लान टेनिस, स्कवायश, खबरों में छाए रहते हैं. कबड्डी, गिल्ली-डंडा, खोखो, कुश्ती और राष्ट्रीय खेल का तमगा टांगे हॉकी भूतकाल में समाने लगा है. सचिन, युवराज, धौनी, सानिया मिर्जा को भगवान की उपाधि और सावित्री पूर्ति सुखबीर सिंह सनावर (कबड्डी) जैसे खिलाड़ी गुमनामी के अंधेरे में पड़े रहते हैं. एलिट वर्ग की मर्जी-जिसे चाहे उसे थमा दे भारतरत्न की उपाधि. सचिन मन भाया सो थमा दिया भारत रत्न. चुनने का अपना मापदंड-उपलब्धि की अपनी परिभाषा, सचिन ने सौ शतक लगाये है.
हॉकी के जादूगर ध्यानचंद ने गुलाम भारत में 1928, 1932 और 1936 के ओलिपिंक खेलों में लगातार तीन बार हॉकी से स्वर्ण पदक दिलाया. लेकिन सचिन के सामने कोई बिसात नहीं. ध्यानचंद का घर अब भी खपरैल का है, जबकि सचिन अरबों के मालिक हैं. वह किसान जो हर साल सौ टन अनाज उपजाता है, वह इस दौड़ में पीछे क्यों? वह जवान जो बर्फीली सर्द हवाओं के बीच सौ दुश्मनों को मारकर देश की रक्षा करता है उसे भारत रत्न क्यों नहीं. वह डॉक्टर जो हर महीने सौ मरीजों की जान बचाता है, वह सचिन से पीछे क्यों? वह मास्टर जो सौ विद्यार्थियों को भारत रत्न पाने के काबिल बनाता है, वह गुमनामी के अंधेरे में क्यों? वह कवि साहित्यकार जिसकी सौ से अधिक रचनाएं और उपन्यास लाखों करोड़ों के हृदय को उद्वेलित करती है-मार्ग दर्शन करती है उसे क्यों नहीं भारत रत्न की उपाधि? मोहम्मद रफी, मुकेश, किशोर कुमार के हजारों नगमे 50 सालों से पूरे भारत की फिजाओं में गूंज रहे हैं. वे भारत रत्न के हकदार क्यों नहीं.
कवि प्रदीप, साहिर, मिल्खा सिंह, प्रेमचंद, निराला, दिनकर, पंत, एक से बढ़कर एक रत्न, लेकिन सरकारी दस्तावेजों के भारत रत्न से मीलों दूर. एलिट वर्ग का मन चाहा तो नेल्सन मंडेला को दे दिया. अब भला नेल्सन मंडेला ने भारत का नाम कैसे रोशन किया- कौन कैसे समझाएं. अब तो चौकों-छक्कों से रोशन होता है देश.
भारत रत्न उसी को मिलना चाहिए जिसने अपने कार्यक्षेत्र में सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन के बाद पूरे देश के लिए योगदान दिया हो.वेलेंटाइन बाबा को भारत में स्थापित करने में अपार सफलता हासिल की है. भोले बाबा की सुध नहीं है. हैरी पॉटर ने बालक प्रहलाद और श्रवण कुमार को निगल लिया. बच्चों के कॉमिक्स टिनटिन, आर्चीज ने चंदामामा, नंदन, पराग की लुटिया डुबो दी. यह वर्ग समलैंगिकता और लिव इन रिलेशनशिप को भारत में कानूनी मान्यता दिलाने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगा रहा है. जान लीजिए कि भारत बचेगा तब तो मिलेगा भारत रत्न. इंडिया ज्वेल चमकेगा. दुष्यंत की पंक्तियां काबिले गौर है-
इस तरह टूटे हुए चेहरे नहीं हैं
जिस तरह टूटे हुए ये आइने हैं..