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व्यवस्था से नहीं मिल पाता सहयोग

हकीकत भारतीय मूल के एक पत्रकार ने किताब की शक्ल में पेश की महिलाओं की व्यथा कनाडा में रह रहे भारतीय मूल के एक पत्रकार का दावा है कि भारत में हिंसा की शिकार महिलाओं को कानून लागू करने वाली एजेंसियों से सहयोग मिलना तो दूर की बात है, उल्टे उन्हें उपेक्षापूर्ण प्रतिक्रिया मिलती है. […]

हकीकत भारतीय मूल के एक पत्रकार ने किताब की शक्ल में पेश की महिलाओं की व्यथा

कनाडा में रह रहे भारतीय मूल के एक पत्रकार का दावा है कि भारत में हिंसा की शिकार महिलाओं को कानून लागू करने वाली एजेंसियों से सहयोग मिलना तो दूर की बात है, उल्टे उन्हें उपेक्षापूर्ण प्रतिक्रिया मिलती है. अजित जैन की किताब वॉयलेन्स अगेन्स्ट वूमन .. ऑल परवेडिंगमें इस मुद्दे पर शीर्ष शिक्षाविदों, सामाजिक कार्यकर्ताओं और राजनीतिक नेताओं के विचार दिये गये हैं. यह किताब टोरंटो के एल्स्पेथ हेवर्द सेंटर फॉर वूमनने पेश की है.

केवल भारत में नहीं है ऐसा: हिंसक घटनाओं की पीड़ितों को समर्पित यह किताब नयी दिल्ली में 16 दिसंबर 2012 को चलती बस में हुई सामूहिक बलात्कार की घटना के बाद टोरंटो में हुई एक गोष्ठी के पश्चात तैयार की गयी है. लेखक ने महिलाओं के खिलाफ हिंसा को वैश्विक स्तर पर व्याप्त खतरा बताया है. उन्होंने बताया, दिल्ली में 16 दिसंबर 2012 को हुई सामूहिक बलात्कार की घटना अत्यंत व्यथित करने वाली थी.

लेकिन तब, जो कुछ हो रहा है, उसे मैंने पढ़ना शुरू किया. क्या महिलाओं के खिलाफ हिंसा सिर्फ भारत में ही हो रही है, जैसा कि अंतरराष्ट्रीय मीडिया की मुख्य खबरों के चलते लोगों को लगता है. तब मैंने पाया कि महिलाओं के खिलाफ हिंसा केवल भारत में ही नहीं है. संयुक्त राष्ट्र के अध्ययन बताते हैं कि हर तीन में से एक महिला अपने जीवनकाल में कम से कम एक बार बलात्कार, क्रूरता और हमले की शिकार होती है.

पीड़िता की मदद को आगे आये व्यवस्था : कुछ आंकड़ों का हवाला देते हुए जैन ने कहा कि कनाडा में आये दिन महिलाएं अपने करीबी साझीदार के हाथों मौत की शिकार होती हैं. उन्होंने कहा, वर्ष 2009 में 67 महिलाओं की हत्या या तो वर्तमान अथवा पूर्व पति या उसके पुरुष मित्र ने की. लेखक का कहना है कि अगर कोई महिला हिंसा की शिकार होती है तो उसका साथ देने के लिए एक व्यवस्था होनी चाहिए जो उसकी मदद करे और उसे पुलिस में शिकायत दर्ज कराने के लिए प्रेरित करे.

मामले की गंभीरता नहीं समझी पुलिस

उन्होंने कहा, दुखद बात यह है कि भारत जैसे देश में पुलिस कथित तौर पर भ्रष्ट है. पुरुषों (पिता, भाई, पति, पुरुष मित्र और पड़ोसी) के खिलाफ महिलाओं की शिकायत को पुलिस आसानी से नहीं लेती. वह उन पर हंसती है और बिना वजह उनसे थाने के चक्कर लगवाती है. जैन के अनुसार, इसीलिए लोगों में यह धारणा बन गयी है कि उनकी (महिलाओं की) शिकायत को पुलिस गंभीरता से नहीं लेती इसलिए वह शिकायत दर्ज कराने के लिए वह थाने नहीं जातीं.

किताब में अन्य विचारकों का योगदान

किताब में जैन के अलावा टोरंटो पुलिस सेवा बोर्ड के अध्यक्ष आलोक मुखर्जी, एल्प्सपेथ हेवुड सेंटर फॉर वीमेनके महानिदेशक सुंदर सिंह, पत्रकार एस निहाल सिंह और रामी छाबड़ा, तथा टोरंटो के सेंट माइकल्स हॉस्पिटल में स्थित सेंटर फॉर ग्लोबल हेल्थ रिसर्च’’ सहित अन्य लोगों के विचार भी हैं. जैन के अनुसार, भारत में ग्रामीण, शहरी इलाकों, मझोले शहरों में, शिक्षित और कम शिक्षित परिवारों में महिलाओं को पुरुषों से कमतर माना जाता है.

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