मिसाल : साइकिल से घूम-घूम कर गरीब और बेसहारा बच्चों को पढ़ाते हैं आदित्य कुमार
‘साइकिल टीचर’ के नाम से मशहूर लखनऊ के आदित्य कुमार को जहां भी बच्चे मिलते हैं, उनकी साइकिल उन बच्चों को पढ़ाने के लिए वहीं पर रुक जाती है. पिछले 23 वर्षों से साइकिल से घूम-घूम कर गरीब और बेसहारा बच्चों को पढ़ा रहे आदित्य की गिनती उन लोगों में होती है, जो अपने लिए नहीं, बल्कि समाज के लिए जीते हैं.
उत्तर प्रदेश के फर्रूखाबाद में जन्मे आदित्य कुमार ने तमाम आर्थिक परेशानियों के बावजूद कानपुर से जीव विज्ञान में स्नातक की डिग्री ली. इसके बाद वे कानपुर में ही गरीब बच्चों को पढ़ाने का काम करने लगे, इसके लिए वे उन बच्चों से कोई पैसा नहीं लेते थे. परिवार की माली हालत ठीक नहीं थी, इसलिए घरवाले चाहते थे कि आदित्य जल्द से जल्द कोई नौकरी-चाकरी पकड़ ले, लेकिन आदित्य पर इसका कोई असर नहीं होता था. उन्हें तो गरीब और बेसहारा बच्चों तक शिक्षा की रोशनी पहुंचाने में ही खुशी मिलती थी.
पैसे कमाने के लिए घरवाले आदित्य पर दबाव डालते थे, इसलिए उन्होंने एक दिन अपना घर छोड़ दिया. वे लखनऊ चले गये. वहां जाकर अब वह आजाद थे और अपने मन के मुताबिक काम कर सकते थे.
लखनऊ पहुंच कर कुछ समय तक वह चारबाग रेलवे स्टेशन पर रहे. शुरुआत में उन्होंने स्टेशन पर भीख मांगने वाले बच्चों को पढ़ाने का काम किया. धीरे-धीरे उन्हें कुछ ट्यूशंस मिल गये, जिससे उनका खर्चा चलने लगा. इसके बाद वे पार्कों, चौराहों और सड़क किनारे ऐसे बच्चों को पढ़ाने लगे, जो किन्हीं वजहों से स्कूल नहीं जा पाते थे.
आदित्य पिछले 23 वर्षों से गरीब बच्चों को मुफ्त शिक्षा दे रहे हैं. इसके लिए वे अपनी साइकिल पर सवार होकर विभिन्न झुग्गी बस्तियों में जाते हैं और वहां पर अनपढ़ बच्चों को पढ़ाने का काम करते हैं.
इस काम में उनके कुछ सहयोगी भी उनकी मदद करते हैं. धीरे-धीरे लोगों ने उन्हें पहचाना और उनके काम की सराहना करते हुए प्रोत्साहित करना शुरू किया. 12 जनवरी 2015 को आदित्य कुमार जेब में मात्र 500 रुपये लेकर ‘आओ भारत को साक्षर बनाएं’ साइकिल अभियान पर निकले. इसके तहत वह गांव और शहरों में जा-जाकर गरीब बच्चों को शिक्षित करने में लगे हुए हैं. आदित्य कहते हैं कि शुरुआत में उन्हें यात्रा के दौरान तमाम मुश्किलों का सामना करना पड़ा. घंटों भूखे रहना, खुले आसमान के नीचे फुटपाथ पर सो जाना आम बात थी. बाद में सुधि लोगों के सहयोग से मेरा आज भी चल रहा है.
शिक्षा की रोशनी को देशभर में फैलाने की मुहिम में जुटे आदित्य साइकिल के जरिये देश के अलग-अलग राज्यों की यात्रा कर रहे हैं. वह कहते हैं, मैं अकेले पूरे देश को तो नहीं पढ़ा सकता, लेकिन अपनी साइकिल के जरिये हर उस क्षेत्र में पहुंचने की कोशिश करता हूं, जहां पर मेरी जरूरत होती है.
आदित्य अपने इस काम को एक अभियान तक सीमित नहीं रखते, वह इसे अपना फर्ज समझते हैं. लखनऊ में वह करीब छह हजार बच्चों को अब तक नि:शुल्क पढ़ा चुके हैं. इसके लिए वे ट्यूशन से मिलनेवाले पैसे से बच्चों के लिए किताबें व दूसरी सामग्री खरीदते हैं. आज उनके पढ़ाये हुए बच्चे ऊंचे पदों पर पहुंच गये हैं.
वे गर्व के साथ बताते हैं, आज मेरा पढ़ाया कोई बच्चा वकील बन गया है, तो कुछ को सरकारी नौकरी मिल गयी है और कोई सफलतापूर्वक अपना कारोबार चला रहा है.
आदित्य कुमार देशभर में शिक्षा का उजियारा फैलाना चाहते हैं और इस कोशिश में वह जी-जान से जुटे हुए हैं. उनकी इन कोशिशों के कारण ही उनका नाम लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड्स में दर्ज है. इसके अलावा उन्हें कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय सम्मानों से भी नवाजा जा चुका है.
आदित्य को शिकायत बस इतनी है कि 23 वर्षों से शिक्षा के क्षेत्र में काम करने के बावजूद सरकार ने कभी उनकी सुधि नहीं ली. लेकिन, आदित्य के इरादे मजबूत हैं और उनका मानना है कि कोई उनकी मदद करे या ना करे, लेकिन जब तक उनके शरीर में जान है, तब तक उन बच्चों को शिक्षित करने की उनकी कोशिश जारी रहेगी, जिनके लिए स्कूल आज भी एक सपना है.