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खुद की मरम्मत कर लेंगी सड़कें
नेमकुमार बांथिया की खास तकनीक बढ़ायेगी सड़कों की उम्र कर्नाटक में बेंगलुरु से लगभग 90 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है थोंडेबावी गांव. इस गांव में प्रोफेसर नेमकुमार बांथिया सड़कों के निर्माण के एक ऐसे प्रोजेक्ट पर काम कर रहे हैं, जो बनने के कुछ ही महीनों में टूट कर गड्ढों में तब्दील होती सड़कों […]
नेमकुमार बांथिया की खास तकनीक बढ़ायेगी सड़कों की उम्र
कर्नाटक में बेंगलुरु से लगभग 90 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है थोंडेबावी गांव. इस गांव में प्रोफेसर नेमकुमार बांथिया सड़कों के निर्माण के एक ऐसे प्रोजेक्ट पर काम कर रहे हैं, जो बनने के कुछ ही महीनों में टूट कर गड्ढों में तब्दील होती सड़कों की नयी कहानी लिखेगा.
कनाडा-इंडिया रिसर्च सेंटर ऑफ एक्सिलेंस के तहत बतौर साइंटिफिक डायरेक्टर काम कर रहे प्रोफेसर नेमकुमार ने भारतीय सड़कों को नयी जिंदगी देने का तरीका ईजाद किया है. ये सड़कें काफी किफायती हैं. इनके निर्माण में सीमेंट की खपत आम सड़कों की तुलना में लगभग 60 प्रतिशत है और उसकी जगह पर फ्लाई-ऐश का इस्तेमाल हुआ है.
मूल रूप से महाराष्ट्र के नागपुर के रहनेवाले प्रोफेसर नेमकुमार आइआइटी दिल्ली से इंजीनियरिंग की डिग्री लेने के बाद 35 वर्ष पहले कनाडा पहुंचे और तब से ही बेहतर सड़कों की उनकी खोज शुरू हो गयी. वह बताते हैं कि आम तौर पर बनायी जानेवाली कंक्रीट की सड़कों में जहां सीमेंट मुख्य भूमिका निभाता है, वहीं हमारी बनायी इस सड़क में 60 प्रतिशत फ्लाई-ऐश और 40 प्रतिशत सीमेंट का इस्तेमाल होता है.
प्रोफेसर नेमकुमार आगे बताते हैं, इन सड़कों को बनाने में कोई अतिरिक्त लागत भी नहीं आती.
आधुनिक मटीरियल और तकनीक के इस्तेमाल से हमने ऐसी सड़कें बनायी हैं, जो खुद को रिपेयर कर सकती हैं और जो किफायती होने के साथ-साथ टिकाऊ भी हैं. वह कहते हैं, हमारा प्रोजेक्ट पिछले साल अक्तूबर में पूरा हुआ और अब तक पूरे चार मौसम झेल चुका है. मौसम की मार से बेअसर सड़क के इस प्रोजेक्ट को अब कामयाब कहा जा सकता है.
इन सड़कों की मोटाई आम भारतीय सड़कों की मोटाई से 60 प्रतिशत कम है. यानी इसमें लगे मटीरियल में भी कमी आयी है और जाहिर तौर पर निर्माण की लागत भी एक-तिहाई घट गयी है. सड़कों की सेल्फ-रिपेयरिंग तकनीक ईजाद करनेवाले प्रोफेसर नेमकुमार बताते हैं, हाइड्रोफिलिक नैनो-कोटिंग और आधुनिक तकनीकों की वजह से सड़क खुद ही अपनी मरम्मत में सक्षम है. यानी इसमें पड़नेवाली दरारें अपने आप भर जायेंगी. तकनीक यह है कि यह सड़क पानी को सोख लेती है और सतह को सूखा बनाये रखती है.
प्रोफेसर नेमकुमार के अनुसार, ये सड़कें कम से कम 15 वर्षों तक खराब नहीं होंगी. यह भारतीय सड़कों की औसत उम्र से कहीं ज्यादा है. प्रोफेसर नेमकुमार कहते हैं, इस तकनीक की कामयाबी के बाद इसे अलग-अलग राज्यों में शुरू किया जायेगा. कर्नाटक के बाद इस तकनीक का इस्तेमाल हरियाणा और महाराष्ट्र में होने वाला है. यही नहीं, प्रोफेसर नेमकुमार अपनी इस तकनीक के जरिये कनाडा की सड़कों की भी उम्र लंबी करने की तैयारी कर रहे हैं.
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