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काबुल में एक महिला बनीं पुलिस प्रमुख अफगानिस्तान का एक नया चेहरा!

अरसे से तालिबानी फरमानों, संगीनों और बारूदों के साये में जी रहे अफगानी समाज की इन दिनों एक अलहदा तसवीर दुनिया के सामने आ रही है. अफगानिस्तान की राजधानी काबुल में पहली बार एक महिला पुलिस अधिकारी की तैनाती को बदलाव की दस्तक के रूप में देखा जा सकता है. हालांकि पुलिस सेवा में आनेवाली […]

अरसे से तालिबानी फरमानों, संगीनों और बारूदों के साये में जी रहे अफगानी समाज की इन दिनों एक अलहदा तसवीर दुनिया के सामने आ रही है. अफगानिस्तान की राजधानी काबुल में पहली बार एक महिला पुलिस अधिकारी की तैनाती को बदलाव की दस्तक के रूप में देखा जा सकता है. हालांकि पुलिस सेवा में आनेवाली महिलाओं के सिर पर जान का जोखिम अब भी बना हुआ है, लेकिन अफगानी महिलाएं बेहतर कल की ओर देखने लगी हैं.

अफगानिस्तान से आनेवाली खबरें अमूमन आत्मघाती हमलों, अमेरिकी फौज को हटाने, तालिबान या अलकायदा की कारगुजारियों के इर्द-गिर्द केंद्रित होती हैं. हाल में वहां से आयी एक खबर न सिर्फ जरा हट कर और स्त्री सशक्तीकरण के लिहाज से खास है, बल्कि यकीन से परे भी लगती है. अफगानिस्तान की राजधानी काबुल में पहली बार किसी महिला पुलिस अधिकारी की तैनाती की गयी है. वह भी जिला प्रमुख के तौर पर. इस मुकाम तक पहुंचनेवाली महिला हैं कर्नल जमीला बयाज. जमीला तीस साल पहले सेना में शामिल हुई थीं. फिलहाल उन्हें काबुल के सबसे व्यस्त बाजारवाले इलाके में बतौर पुलिस प्रमुख तैनात किया गया है. अफगानिस्तान में महिलाओं की हालत को देखते हुए उनकी यह तैनाती असाधारण ही नहीं, जोखिम भरी भी है. इसके बावजूद बयाज ने उम्मीद जतायी है कि उनकी तैनाती मामूली स्तर पर ही सही, तालिबानी साये में जी रही अफगानी महिलाओं को प्रेरित करेगी. वैसे बड़े पैमाने पर पुलिस में महिलाओं की भरती के लिए प्रचार किया जा रहा है.

अफगानिस्तान में एक महिला का पुलिस फोर्स में जाना बहादुरी का, लेकिन बेहद जोखिम भरा कदम है. ऐसे समाज में जहां रूढ़ियों के चलते स्त्रीविरोधी माहौल है, महिलाओं को अपरिचित पुरुषों के साथ काम करना होता है. ऐसे में कई बार महिलाओं को साथी पुरुषकर्मियों के अनुचित व्यवहार का भी सामना करना पड़ता है. आमतौर पर पुरुष पुलिस अधिकारी को दो सुरक्षाकर्मी दिये जाते हैं, लेकिन बयाज की सुरक्षा पर खतरे के मद्देनजर उन्हें चार सुरक्षाकर्मियों के साथ बख्तरबंद कार दी गयी है.

बयाज इस बात से वाकिफ हैं कि उनका काम किस तरह खतरों से भरा है लेकिन इस बात के लिए चिंतित होने की बजाय उनका पूरा ध्यान अपने काम को बेहतर ढंग से करते हुए हालात को सुधारने की ओर है. बयाज की तैनाती को 2001 में तालिबान को पीछे धकेलने के बाद अमेरिकी नेतृत्ववाले सैन्य गठंबंधन की ओर से महिला पुलिस बल बना कर स्त्री-पुरुष समानता की दिशा में किये गये प्रयास की बड़ी सफलता के तौर पर देखा जा सकता है. अफगानिस्तान जैसे देश में जहां कुछ वर्ष पहले तालिबानी कट्टरपंथियों ने महिलाओं को बुरका पहनने, स्कूल न जाने, घर की चहारदीवारी में रहने के आदेश देकर उनकी स्वतंत्रता का गला घोंट रखा था, बयाज की पुलिस प्रमुख के तौर पर तैनाती को वहां बदलाव लाने की दिशा में की गयी एक बड़ी कोशिश माना जा सकता है.

तालिबान के फतवों के साये में जी रही अफगानी महिलाओं के लिए बयाज एक प्रेरणा की तरह हैं. इससे परे एक कड़वी हकीकत यह भी है कि अफगानिस्तान में पुलिसकर्मी के रूप में काम करनेवाली महिलाओं को इसकी बड़ी कीमत भी चुकानी पड़ रही है. उन्हें बाकी चीजों के साथ-साथ सामाजिक तिरस्कार का सामना करना पड़ रहा है. तालिबानियों की गोलियों के निशाने पर तो वे हैं ही. कहीं-कहीं तो उनके अपने परिजन ही पुलिसकर्मी में रूप में उनकी नौकरी के फैसले के चलते उनकी जान के दुश्मन बन बैठे हैं. दक्षिणी हेलमंद प्रांत में पिछले साल सेना की सबसे वरिष्ठ महिला अधिकारी को मार दिया गया. उनसे एक ओहदे नीचे काम कर रही पुलिस अधिकारी का हश्र भी ऐसा ही हुआ. फिलहाल अफगानिस्तान में राष्ट्रपति चुनाव कराने के लिए महिला पुलिसकर्मियों की जरूरत महसूस की जा रही है. अफगानिस्तान में पुलिस स्टेशन मर्दाना और जनाना के आधार पर बंटे हुए हैं. आधिकारिक अनुमानों के मुताबिक अफगानिस्तान में महिलाओं की तलाशी लेने के लिए 12,000 महिला पुलिस अधिकारियों की जरूरत है. लेकिन अभी इनकी संख्या 2000 से भी कम है.

इससे पहले बयाज क्रिमिनल जस्टिस टास्क फोर्स में कार्यरत थीं और तस्करों को खोजने का काम करती थीं. वहां ज्यादातर महिला अधिकारियों की तरह वह भी वर्दी की बाजाय सामान्य कपड़े पहनती थीं, अवांछित व्यक्तियों की नजर से बचने का यह उनका तरीका था. अब उन्हें चमकदार बैजवाली हरी वर्दी में देखा जा सकता है. 1980 के दशक में अफगानी समाज के लिए यह एक खलबली मचानेवाली खबर होती. 1980 के दशक से अब तक अफगानिस्तान लगातार आंतरिक युद्धों और विदेशी सैन्य हस्तक्षेपों के साये में जी रहा है. बयाज अफगानिस्तान पर सोवियत अधिकार वाले दशक में काबुल एयरपोर्ट पर कार्यरत थीं. बयाज बताती हैं, वह काम आज की जिम्मेवारी से कहीं आासान था. तालिबान के शासनकाल में उन्होंने अपने घर पर पांच बच्चों की परवरिश की. ऐसे मे जबकि अमेरिकी सेना अफगानिस्तान छोड़ने को तैयार है, बयाज का परिवार उनकी सुरक्षा को लेकर फिक्रमंद है. हालांकि, उनके इस सफर में परिवार ने उनका पूरा सहयोग किया है. बयाज कहती हैं, महिलाओं के प्रति लोगों की सोच में काफी बदलाव आया है. मेरे पति और मेरे बच्चे मेरे काम के कारण मेरी चिंता करते हैं, लेकिन मैं अपनी नौकरी सिर्फ इसलिए नहीं छोड़ सकती, क्योंकि वे ऐसा कहते हैं.

त्न(स्नेत : द डॉन)

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