दुनिया में सिवाए भारत और पाकिस्तान के कोई देश ऐसा नहीं कर सकता है.
तेरह और चौदह अगस्त की रात कश्मीर में भारत और पाकिस्तान के बीच लाइन ऑफ़ कंट्रोल पर पुंछ सेक्टर में दोनों देशों के सैनिकों ने एक दूसरे पर भारी हथियारों से साढ़े छह घंटे सीधी सीधी फ़ायरिंग की है.
और 14 अगस्त की सुबह वाघा-अटारी बॉर्डर पर पाकिस्तान रेंजर्स के कमांडर शौकत अली ने पाकिस्तान के स्वतंत्रता दिवस की ख़ुशी में भारतीय बॉर्डर सिक्यूरिटी फोर्स के कमांडर सुदीप को मिठाई खिलाई और दोनों ने झप्पी भी डाली.
ये काम भी भारत और पाकिस्तान के सिवा कोई नहीं कर सकता कि ब्लूचिस्तान के शहर क्वेटा में आठ अगस्त को एक सिविल अस्पताल में हुए आत्मघाती हमले के दस मिनट के बाद सूबे के मुख्यमंत्री को पता चल गया कि ये काम भारतीय खुफिया एजेंसी रॉ के एजेंटों का है.
उसके अगले ही दिन दिल्ली सरकार ने भी खोज लिया कि भारतीय कश्मीर में बुरहान वाणी की मौत के बाद पैदा होने वाली बेचैनी का कारण लोकल नहीं, पाकिस्तानी है.
ये काम भी दोनों देशों की लीडरशिप के अलावा कोई नहीं कर सकता कि पहले एक दूसरे के साथ गालम गलौच करो, फिर झप्पियां डालो. फिर बातचीत का न्यौता भेजो और फिर गाली देकर झप्पी डालकर वार्तालाप का प्रस्ताव रख दो.
कई मनोचिकित्सक ऐसी कैफ़ियत को पागलपन कहते हैं और देश हो कि मनुष्य, दोनों को किसी अच्छे से डॉक्टर के इलाज़ का मशविरा देते हैं. पर क्या आपने कभी ऐसा पागल देखा है, जो ख़ुद से मान ले कि वो पागल है?
लोग कहते हैं कि फलाँ फलाँ विवाद का निपटारा हो जाए तो दोनों देशों के संबंध सामान्य हो जाएंगे….पहले मेरा भी ऐसा ही ख़्याल था कि ऐसा हो जाए तो वैसा हो जाएगा.
लेकिन आपने दो असामान्य लोगों के बीच सामान्य संबंध देखें हैं? ऐसों को तो दुश्मनी के लिए भी किसी कारण की जरूरत नहीं होती. इनमें से कोई दूसरे को फूल भी पेश करे तो अगला समझता है कि देखो मुझे बेवकूफ समझता है, जैसे मैं इसकी बातों में आ जाऊंगा.
ये नफ़रत आज में नहीं, गुजरे कल में गढ़ी है और हर गुजरने वाला पल, गुजरने वाले कल का हिस्सा बनता जा रहा है. जौहर में एक कनस्तर साफ़ पानी का डाल दिया जाए तो जौहर तो साफ़ नहीं होता, अलबत्ता गंदे पानी की मात्रा और बढ़ जाती है.
जिन्हें यही नहीं मालूम कि वे 14 अगस्त को आज़ाद हुए या 15 अगस्त को, उन्हें एक दूसरे के बारे में और क्या मालूम होगा? मुक्ति बाहर से नहीं, अंदर से आज़ाद होने का नाम है. पर ये बात इस विश्व के शरीफ़ों और मोदियों को समझाई भी तो नहीं जा सकती.
(ये लेखक के निजी विचार हैं)
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