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जनवरी से ही नया साल क्यों

दिसंबर खत्म होने को है और नया साल आनेवाला है. क्या तुमने कभी सोचा कि नया साल जनवरी में ही क्यों आता है और दिसंबर में ही खत्म क्यों होता है? नहीं न! तो आज इसी की जानकारी हासिल करते हैं. मार्च से होती थी साल की शुरूआत जनवरी और फरवरी माह उस समय नहीं […]

दिसंबर खत्म होने को है और नया साल आनेवाला है. क्या तुमने कभी सोचा कि नया साल जनवरी में ही क्यों आता है और दिसंबर में ही खत्म क्यों होता है? नहीं न! तो आज इसी की जानकारी हासिल करते हैं.

मार्च से होती थी साल की शुरूआत

जनवरी और फरवरी माह उस समय नहीं हुआ करता था. साल की शुरुआत मार्च से शुरू होकर दिसंबर में खत्म हो जाता था. उस समय रोम में धार्मिक मान्यताएं बहुत ज्यादा हुआ करती थी इसलिए ज्यादातर महीनों के नाम वहां के देवी-देवताओं के नाम पर ही था. मार्च महीने का नाम एक रोमन देवता ‘मार्स’ के नाम पर पड़ा.

दरअसल, मार्स युद्ध के देवता हैं और वहां के लोगों की मान्यता थी कि मार्स से युद्ध में आगे बढ़ने के लिए प्रेरणाश्रोत थे और मार्च की शुरुआत से ही साल भी आगे की ओर बढ़ जाता है. मार्च के बाद अप्रैल आता था जिसका अर्थ उद्घाटन करना होता है. उस समय वसंत अप्रैल में ही आता था और उसी महीने में प्रकृति भी अपनी पुरानी छालों और पत्ताें को त्याग नए रूप का उद्घाटन करते हैं. वसंत में ही सबसे ज्यादा फूलों के प्रभेद खिलते है. प्रकृति नयी-नवेली दुल्हन की तरह सज जाती है.

इसी तरह मई महीने का नाम रोमन देवी ‘माइया’ के नाम पर पड़ा, तो जून महीना ‘जूनो’ देवी के नाम पर पड़ा. जून के बाद के पांच से दसवें महीनों के नाम उसके अर्थ के नाम पर पड़ा, क्ंिवटिलिस(पांचवा), सेक्सटिलिस (छठा), सितंबर(सातवां), अक्टूबर(आठवां), नवंबर(नवां) और दिसंबर (दसवां).

700 ई.पू में साल हुआ 12 महीने का
लोकोक्तियों के अनुसार 700 ई.पू. में कैलेंडर में दो और महीने जनवरी और फरवरी जोड़े गये. जनवरी का नाम जेनस देवता के नाम पर, तो फरवरी का नाम फेब्रुआ देवी के नाम पर पड़ा. साल में 12 माह होने के बाद इसे चंद्रमासों के जगह 365 दिनों के सौर वर्ष को आधार माना गया. उस कैलेंडर में दूसरा(अप्रैल), चौथा(जून), सातवां (सितंबर) और नौवां (नवंबर) महीना 30 दिन का जबकि वर्ष के अंतिम माह फरवरी को छोड़कर बाकी महीने 31 दिन के बनाये गये. साल का अंतिम माह होने के कारण फरवरी को बचे हुए 28 दिन मिले.

46 ई. पू में हुए और सुधार
प्रसिद्ध रोमन योद्धा जूलियस सीजर ने एक यूनानी खगोल-शास्त्री सोसीजीनस के साथ मिलकर उस कैलेंडर में सुधार किए. 46 ई.पू. में यह सुधार किया गया जिसे जूलियस के नाम पर ही ‘जूलियन रिफार्म्स’ के जाना गया.

साल की शुरुआत जनवरी से
जूलियस सीजर द्वारा कराये गये कैलेंडर रिफार्म में ही सबसे पहले जनवरी वर्ष की शुरुआत की गयी. जनवरी माह का नाम जेनस देवता के नाम पर पड़ा, जिनके दो सिर हैं, एक आगे की ओर जो आगे बढ़ने का संकेत माना गया, जबकि दूसरा अपने अतीत के आईने की तरह समझा गया.

लीप इयर की शुरुआत
‘जूलियन रिफार्म्स’ के अंतर्गत ही यह माना गया कि सौर वर्ष में 365 दिन और 6 घंटे होते हैं. इसलिए हर चौथे वर्ष में 674=24 घंटों का पूरा एक दिन बना जिसे 4 साल में एक बार फरवरी के माह में जोड़ा गया. सितंबर से दिसंबर तक सातवां, आठवां, नवां और दसवां होते हैं पर उसके नाम या स्थान नही बदले गये.

45 ई.पू मे तैयार हुआ नया कैलेंडर
46 ई.पू. में सभी सुधारों को करने के बाद 1 जनवरी 45 ई.पू से नये कैलेंडर की शुरुआत की गयी. कुछ समय बाद नये कैलेंडर के सातवें महीने क्विंटिलिस का नाम जूलियस सीजर के नाम पर जुलाई रखा गया. अगस्त महीने का नाम रोमन सम्राट आगस्टस सीजर के नाम पर पड़ा. 1582 ईसवी में ग्रेगोरी पोप 13वें ने वर्ष को 365.2422 दिन का बताया. इसीलिए आज के कैलेंडर को ग्रेगोरियन कैलेंडर कहा जाता है. उम्मीद है तुम्हें कैलेंडर की यह कहानी पसंद आयी होगी.

Prabhat Khabar Digital Desk
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