।।पकंजकुमारपाठक,प्रभातखबर.कॉम।।
रांची में स्थित चेशायर होम में कई विकलांग बच्चेउज्जवल भविष्य के सपनों के साथ पढ़ाई कर रहे है. चेशायर होम में कई लोग इन बच्चों के साथ खुशियां बांटने आते जाते रहते है. इन बच्चों की आंखों में आने वाले कल को अपनी मुट्ठी में करने के सपने साफ दिखते है. आज भले ही इनके पास सुविधाओं की कमी है लेकिन यहां के बच्चे संभावना की तलाश करते रहते है. किसी ने कहा है कि ऊपर वाला जब किसी से कुछ छिन लेता है तो उसमें कुछ न कुछ गुण दे जाता है. इन बच्चों में आत्मविश्वास और सफलता पाने की एक अजीब सी ललक साफ दिखाई देती है. इनमें कोई सिविल सर्विस में अपना भविष्य देखता है तो कोई बैंक पीओ बनना चाहता है.
एनआइबीएम कर रहा है बच्चों की मदद
प्रतियोगिता परीक्षा में बैठनें का आया साहस
एनआइबीएम में चार विकलांग बच्चे प्रतियोगिता परीक्षा की तैयारी कर रहे है जिनमें वीणा कुमारी वर्मा, सिमोन टिंकू तिर्की, जॉन किशोर रूंडा और धमेन्द्र राम इन चार बच्चों के मन में सरकारी नौकरी पाने की ललक साफ नजर आती है. इन बच्चों का बचपन आसान नहीं था. सिमोन के माता- पिता का निधन बचपन में हो गया. एक बहन है जो सिमोन का ध्यान रखती है. उनकी बहन की शादी रांची में हुई है. सिमोन कहते है: मैं उन पर बोझ बनकर नहीं रहता. अपना खर्च उठा लेता हूं. बच्चों को पढ़ाता हूं और कुछ पैसे अपने खर्च के लिए जमा कर लेता हूं. वीणा सिलाई -कढ़ाई जानती है इसके अलावा उन्हें बच्चों का पढ़ाना भी बेहद पसंद है. धमेन्द्र राम कम्पयूटर में फोटोशॉप की अच्छी जानकारी रखते है. जॉन कम्पूयर हाडवेयर का ज्ञान रखते है. जीवन चलाने के लिए उनके पास हुनर की कमी नहीं है लेकिन चारो बच्चे एक साथ कहते है कि अगर हमें पहले मौका मिलता तो शायद अबतक तक हमें सरकारी नौकरी मिल गयी होती. अब हममें धीरे- धीरे आत्मविश्वास आ रहा है. वीणा और सिमोन पहले भी प्रतियोगिता परीक्षा दे चुके है लेकिन दोनों कहते है: उस वक्त हमें पता नहीं था कि किस तरह का सवाल पूछे जाते है लेकिन अब हम समझ गये है. इस बार मौका मिले, तो बेहतर कर सकते है. हम किसी कोचिंग क्लास का खर्च नहीं उठा सकते थे. ऐसे में अगर एनआईबीएम हमारी मदद कर रहा है, तो हम उनकी उम्मीदों पर खरा उतरेंगे.
संतोष के जज्बे ने दिलायी नौकरी
संतोष कुमार शर्मा सुनने और बोलने में अक्षम है लेकिन आज एक बैंक में अच्छे पद पर कार्यरत है. उन्होंने एनआइबीएम से बैंक पीओ की तैयारी की है. एमके गुप्ता कहते है: उनमें सफलता को अपने कदमों में झुकाने का जज्बा था. आज अगर संतोष को सफलता मिली है तो इसमें उनकी दिन रात की मेहनत शामिल है. लेकिन एक वक्त था जब संतोष भी निराश हो गये थे. आपको खुद पर भरोसा तभी होता है जब दूसरे भी आप पर भरोसा दिखाते है. उनके परिवार वालों ने संतोष पर से भरोसा खो दिया था. संतोष पूरी तैयारी के बाद भी किसी प्रतियोगिता परीक्षा में सफल नहीं हो रहे थे लेकिन संतोष एक बार फिर तैयारी करना चाहते थे. संतोष की अंग्रेजी थोड़ी कमजोर थी. इस कारण उन्हें परेशानी हो रही थी.एनआइबीएम ने उन्हें एक बार फिर अपने यहां तैयारी करने का मौका दिया. कुछ महीनों की तैयारी के बाद संतोष की नौकरी बैंक ऑफ इंडिया में हो गयी.