अखिल भारत हिंदू महासभा ने मंगलवार को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से अपील की है, वह नाथू राम गोडसे को अपना कार्यकर्ता मान ले. हिंदू महासभा के मुताबिक नाथू राम गोडसे हिंदू महासभा और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ से जुड़े राष्ट्रवादी हिंदू लेखक थे.
हिंदू महासभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष चंद्र प्रकाश कौशिक एवं राष्ट्रीय महासचिव मुन्ना कुमार शर्मा ने संयुक्त वक्तव्य जारी करके कहा है, “संघ का यह कहना कि गोडसे से कोई लेना देना नहीं था, यह ग़लत है. संघ को यह स्वीकार कर लेना चाहिए कि गोडसे संघ से जुड़ा था.”
वहीं दूसरी ओर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रवक्ता राकेश सिन्हा ने बीबीसी से बातचीत में कहा कि गोडसे और गोडसे परिवार का संघ से कोई लेना देना नहीं था, ना ही मानसिक स्तर पर ना ही भौतिक स्तर पर.
क्यों मांगे राहुल गांधी माफ़ी?उन्होंने कहा, “संघ से अगर गोडसे का कोई संबंध था भी, तो वे संघ के आलोचक थे. वे संघ के आलोचक 1925 से थे. इसके प्रमाण भारतीय अभिलेखागार में मौजूद है. उन्होंने वीर सावरकर को लिखे एक पत्र में कहा था- संघ हिंदू युवाओं की ऊर्जा को बर्बाद कर रहा है, इससे कोई आशा नहीं की जा सकती. वे सावरकर जी के विचारों के प्रसार के लिए अग्रणी हिंदू राष्ट्र नाम का अख़बार निकालते थे.”
‘राहुल गांधी के माफ़ी मांगने का सवाल ही नहीं उठता’हालांकि हिंदू महासभा के वक्तव्य पर राकेश सिन्हा ने कहा कि कोई संस्था क्या कह रही है, या फिर गोपाल गोडसे ने क्या कहा था, मैं उसमें नहीं पड़ना चाहता. उन्होंने ये भी कहा कि ये ऐतिहासिक तथ्य है कि संघ का गोडसे से कोई लेना देना नहीं था.
उन्होंने कहा, “गांधी की हत्या के बाद चले मुकदमे के दौरान तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने संघ पर आरोप लगाया था, जो अदालत में साबित नहीं हो पाया. इसके बाद 1965 में इंदिरा गांधी ने जस्टिस जीवन लाल कपूर की अध्यक्षता में समिति बनाई थी, चार साल के जांच में भी ये बात साबित नहीं हो सकी.”
उधर सुप्रीम कोर्ट ने कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी को गांधी की हत्या का आरोप आरएसएस पर मढ़ने के एक मामले में माफ़ी मांगने को या फिर मुक़दमे का सामना करने को कहा है.
‘राहुल खेद जताएँ या मुक़दमे का सामना करें’इस पर राकेश सिन्हा ने कहा, “नेहरू गांधी परिवार चार पीढ़ियों से संघ के बारे में दुष्प्रचार करता रहा है. उन्हें पता होना चाहिए कि सीताराम केसरी को ऐसे ही एक मामले में दस हज़ार रुपये का बांड भरकर जमानत लेनी पड़ी थी. प्रसिद्ध कॉलमनिस्ट एजी नूरानी को द स्टैटसमैन अख़बार के लेख के लिए माफी मांगनी पड़ी थी. बिना शर्त माफ़ी नहीं मांगने पर राहुल गांधी को मुक़दमे के लिए तैयार रहना चाहिए.”
दरअसल राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ एक कैडर आधारित संगठन तो है, लेकिन संगठन में कार्यकर्ताओं का कोई रिकार्ड नहीं होता, कोई मेंबरशिप नहीं दी जाती. इसका एक फ़ायदा तो यह है कि संगठन जब चाहे किसी कार्यकर्ता से पल्ला झाड़ सकता है.
इसका एक उदाहरण पिछले 18 अक्टूबर, 2015 को भी मिला था, जब संघ ने आधिकारिक तौर पर अपनी पत्रिकाओं पांचजन्य और आर्गेनाइज़र को माउथ पीस मानने से इनकार कर दिया था.
ये भी दिलचस्प है कि संघ की राजनीतिक पार्टी भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह, वीर सावरकर की आदमकद प्रतिमा को अपने कमरे में लगाते हैं, उसके नीचे तस्वीर खिंचवाते हैं. लेकिन संघ उस सावरकार के शिष्य को अपना मानने से इनकार कर देता है.
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