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इंसानियत के गुनहगार : बांग्लादेश पर पसरता आतंकी साया

राजधानी ढाका में हुए जघन्य आतंकी हमले, जिसमें विदेशी नागरिकों सहित 22 लोगों की जान चली गयी, के लिए बांग्लादेश सरकार ने ‘जमात-उल-मुजाहिदीन बांग्लादेश’ नामक आतंकी संगठन को जिम्मेवार ठहराया है. साथ ही बताया है कि इसे पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आइएसआइ से मदद मिल रही है. यह आतंकी संगठन बांग्लादेश में बीते दो दशकों […]

राजधानी ढाका में हुए जघन्य आतंकी हमले, जिसमें विदेशी नागरिकों सहित 22 लोगों की जान चली गयी, के लिए बांग्लादेश सरकार ने ‘जमात-उल-मुजाहिदीन बांग्लादेश’ नामक आतंकी संगठन को जिम्मेवार ठहराया है. साथ ही बताया है कि इसे पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आइएसआइ से मदद मिल रही है.

यह आतंकी संगठन बांग्लादेश में बीते दो दशकों से सक्रिय है और इस दौरान कई खूनी वारदातों को अंजाम दे चुका है. पड़ोसी देश होने के कारण भारत भी बांग्लादेश के बिगड़ते हालात और इस आतंकी संगठन की बढ़ती गतिविधियों से चिंतित है. हाल में ऐसे सबूत मिल चुके हैं कि इस संगठन के आतंकी सीमा पार कर असम और पश्चिम बंगाल में भी सुरक्षित ठिकानों और आसान निशानों की तलाश में रहते हैं. ऐसे में बांग्लादेश के भीतर चल रही नापाक हरकतों से वाकिफ होना जरूरी हो जाता है. बांग्लादेश में दहशत फैला रहे ‘जमात-उल-मुजाहिदीन बांग्लादेश’ के साथ-साथ कुछ अन्य आतंकी संगठनों के बारे में विस्तार से बता रहा है आज का ‘इन डेप्थ’…

क्रूरता की हदें पार कर रहा है जमात-उल-मुजाहिदीन बांग्लादेश

बांग्लादेश में सक्रिय इसलामिक चरमपंथी संगठन जमात-उल-मुजाहिदीन बांग्लादेश की स्थापना 1998 में ढाका क्षेत्र में स्थित पालमपुर में मौलाना अब्दुर रहमान द्वारा की गयी थी. अब्दुर रहमान और इस संगठन के एक अन्य शीर्ष नेता सिद्दिकुल इसलाम उर्फ बांग्ला भाई को अन्य जमाती नेताओं के साथ 2007 में फांसी दे दी गयी. इस गुट की गतिविधियों के बारे में जानकारी दिनाजपुर जिले के पारबतीपुर में 2001 में मिले दस्तावेजों और हथियारों के बाद हुई थी. बांग्लादेश सरकार ने स्वैच्छिक संस्थाओं पर हुए हमलों के बाद फरवरी, 2005 में इस पर पाबंदी लगा दी थी, लेकिन अगस्त, 2005 में इस गिरोह ने देश के 300 स्थानों पर 500 बम लगाकर अपनी ताकत का इजहार कर दिया था. बाद के वर्षों में यह जमात अपना प्रभाव क्षेत्र बढ़ाता रहा और इस साल उत्तरी बांग्लादेश में धर्मनिरपेक्ष लोगों पर दिनदहाड़े कई हमले कर इसने पूरे देश को थर्रा दिया है.

बड़ा नेटवर्क, व्यापक संपर्क

माना जाता है कि जमात-उल-मुजाहिदीन के सदस्यों की संख्या कम-से-कम दस हजार है और इसका नेटवर्क बहुत बड़ा है. बांग्लादेश के वैध इसलामी संगठनों से भी इसके संबंध जगजाहिर हैं. 2005 में रैपिड एक्शन बटालियन ने इसके छह शीर्ष नेताओं को गिरफ्तार किया था, जिनमें से चार को 29 मार्च, 2007 को फांसी दे दी गयी थी. इन पर दो जजों की हत्या तथा 2005 के बम हमलों का आरोप था.

पाकिस्तान से आर्थिक मदद!

पिछले साल दो अलग-अलग घटनाओं में यह आरोप लगा था कि जमात को ढाका स्थित पाकिस्तानी उच्चायोग के अधिकारियों से आर्थिक मदद मिल रही है. उच्चायोग के वीजा अधिकारी को अप्रैल, 2015 में जमात के एक सदस्य से मिलते हुए रंगे हाथ पकड़ा गया था. जमात के सदस्य ने बताया था कि वे लोग भारत के पश्चिम बंगाल और असम में नकली नोट भेजने के काम में लिप्त थे. दिसंबर, 2015 में एक शीर्ष पाकिस्तानी अधिकारी फरीना अरशद को बांग्लादेश से निष्कासित कर दिया गया था. जमात के एक अन्य सदस्य ने अरशद से 30 हजार टका लेने की बात स्वीकारी थी.

कई देशों से मिले चंदे!

जमात ने कथित तौर पर कुवैत, संयुक्त अरब अमीरात, बहरीन, पाकिस्तान, सऊदी अरब और लीबिया से विभिन्न लोगों से चंदा हासिल किया है. कुछ रिपोर्टों में यह भी दावा किया गया है कि कुवैत स्थित अंतरराष्ट्रीय स्वयंसेवी संस्था सोसाइटी ऑफ द रिवाइवल ऑफ इसलामिक हेरिटेज और दौलतुल कुवैत, सऊदी अरब स्थित अल हरमाइन इसलामिक इंस्टीट्यूट और रबिता अल आलम अल इसलामी, कतर चैरिटेबल सोसाइटी और संयुक्त अरब अमीरात की अल फौजाइरा तथा खैरुल अंसार अल खैरिया ने भी जमात को आर्थिक सहयोग दिया है.

वैध राजनीतिक पार्टी का छद्म रूप

आतंकी समूहों की गतिविधियों पर नजर रखनेवाले साउथ एशियन टेररिस्ट पोर्टल, द कोलंबिया वर्ल्ड डिक्शनरी ऑफ इसलामिज्म तथा डिफेंड डेमोक्रेसी डॉट ऑर्ग के अनुसार, जमात अहिंसक और वैध इसलामिक समूहों से जुड़ा हुआ प्रतीत होता है.

डिफेंड डेमोक्रेसी का अनुमान है कि वैध राजनीतिक पार्टी जमाते-इसलामी बांग्लादेश ने छद्म रूप से इस संगठन को स्थापित किया है, ताकि राजनीतिक विमर्श को चरमपंथी इसलामिज्म की ओर मोड़ा जा सके और जमाते-इसलामी को अपेक्षाकृत उदार छवि दिया जा सके. साउथ एशियन पोर्टल के अनुसार, दोनों संगठनों के अनेक सदस्य इसलामी छात्र शिविर संगठन के सदस्य रहे हैं, जो जमाते-इसलामी की छात्र इकाई है. जमाते-इसलामी खालिदा जिया की बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी सरकार में भी शामिल रहा था, जो 2001 में सत्तारूढ़ हुई थी.

मकसद : शरिया शासन की स्थापना

जमात-उल-मुजाहिदीन का उद्देश्य बांग्लादेश की मौजूदा शासन-प्रणाली की जगह शरिया आधारित इसलामिक शासन स्थापित करना है. अपने लक्ष्य के बारे में उसने अनेक दफा घोषणाएं की है.

एक बयान में इस गिरोह ने कहा था कि उसका मकसद ‘पवित्र कुरान और हदीस में उल्लिखित इसलामिक मॉडल पर आधारित समाज बनाना है’. अब्दुर रहमान ने 2004 में एक साक्षात्कार में कहा था कि ‘हमारे मॉडल में इसलाम के कई नेताओं और विद्वानों के विचार शामिल हैं. लेकिन हम जरूरत के लिहाज से तालिबान से भी सीख ले सकते हैं’.

लोकतंत्र और समाजवाद विरोधी

जमात लोकतंत्र को शरिया के विरुद्ध मानता है. इसका विरोध समाजवाद से भी है तथा पूर्ब बांग्लार कम्युनिस्ट पार्टी के काडरों और अन्य वामपंथी कार्यकर्ताओं को मारने का इसका घोषित लक्ष्य है.

जमात सांस्कृतिक कार्यक्रमों, सिनेमाघरों, मजारों तथा स्वयंसेवी संगठनों का विरोध भी करता है. एक परचे में इसने कुरान-आधारित कानूनों की मांग करते हुए कहा है कि मनुष्यों द्वारा बनाये गये कानून जारी नहीं रह सकते और सिर्फ अल्लाह का कानून ही बचेगा.

सांगठनिक ढांचा

– जमात की स्थापना के बाद से ही इसका नेतृत्व मौलाना अब्दुर रहमान के हाथ में था, जिसे संगठन के अन्य शीर्ष नेताओं के साथ 2007 में मौत की सजा दे दी गयी. तीन स्तरों पर जमात का ढांचा काम करता है. पहले स्तर पर सक्रिय कार्यकर्ता होते हैं, जिन्हें एहसार कहा जाता है. इनकी नियुक्ति पूर्णकालिक होती है और ये शीर्ष नेताओं के अंतर्गत काम करते हैं.

– दूसरे स्तर पर गायेरी एहसार होते हैं जिनकी संख्या एक लाख से अधिक है. इनकी सक्रियता अंशकालिक होती है. तीसरे स्तर पर वे लोग हैं जो अप्रत्यक्ष रूप से जमात की मदद करते हैं.

– रिपोर्टों के अनुसार, जमात ने पूरे बांग्लादेश को नौ भागों में बांटा है. खुलना, बरिसाल, सिल्हट और चट्टगांव में एक-एक मंडल कार्यालय हैं, जबकि ढाका में दो और राजशाही में तीन मंडल कार्यालय हैं. हर गांव में भी इसकी

कमिटियां बनी हुई हैं.

असम और पश्चिम बंगाल पर भी नजर

बीते दो सालों में इस गुट ने बांग्लादेश से सटे असम और बंगाल जैसे भारतीय राज्यों में भी कुछ गतिविधियों को अंजाम दिया है. बर्दवान मामले की जांच में जुटी नेशनल इंवेस्टिगेशन एजेंसी ने जमात पर मुख्य रूप से फोकस किया है.

पिछले साल असम में उसके दो प्रशिक्षण शिविरों को भी ध्वस्त किया गया था. इस हमले के बाद जमात ने भी अपने तौर-तरीके में बदलाव किया है तथा अब उसके निशाने पर मुख्य रूप से विदेशी, विभिन्न सहयोगी कार्यक्रमों में काम कर रहे लोग, ब्लॉगर और अल्पसंख्यक समुदाय के लोग हैं.

जमात 2014 में बना इसलामिक स्टेट

कुछ रिपोर्टों के अनुसार, जमात-उल-मुजाहिदीन ने 2014 में खुद को इसलामिक स्टेट के रूप में रिब्रांड किया था. नाम बदलने के पीछे संगठन का उद्देश्य अपने लक्ष्य से दुनिया को आगाह करना था.

अनेक हमलों की ली जिम्मेवारी

अनेक हिंसक हमलों और बम धमाकों की जिम्मेवारी लेनेवाले जमात ने 2005 में एक परचे में लिखा है- ‘हम अल्लाह के सिपाही हैं. सदियों से पैगंबर, उनके सहयोगियों तथा बहादुर मुजाहिदीनों की तरह अल्लाह के कानून को लागू करने के लिए हमने भी हथियार उठाया है.

यदि इस तीसरी चेतावनी के बाद भी सरकार ने इसलामी कानून नहीं लागू किया और इस मांग के लिए किसी मुसलमान को हिरासत में लिया, तो जमात-उल-मुजाहिदीन भी जवाबी कार्रवाई करेगा.’जमात के अनेक गिरफ्तार सदस्यों ने दावा किया है कि इनके निशाने पर पारंपरिक बांग्लादेशी सांस्कृतिक और गैर-सरकारी संगठन हैं. कहा जाता है कि इसके नेता अब्दुर रहमान ने अपने अनुयायियों को सिखाया है कि ऐसे संगठनों से धन लूटना गुनाह नहीं है, क्योंकि वे औरतों को बुरका न पहनने के लिए प्रोत्साहित करते हैं.

मुजाहिदीन की गतिविधियां

– 20 मई, 2001 को दिनाजपुर जिले के पारबतीपुर से जमात के आठ सदस्यों को गिरफ्तार किया गया और उनके पास से 25 पेट्रोल बम तथा अनेक दस्तावेज बरामद किये गये. ऐसी आशंका व्यक्त की जाती है कि 13 फरवरी, 2003 को इसके एक ठिकाने पर सात बम फटे थे, जिन्हें अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस के अवसर पर उत्तरी बांग्लादेश के शहरों में हमले के लिए तैयार किया जा रहा था.

– 17 अगस्त, 2005 को जमात ने बांग्लादेश के 50 शहरों में 300 जगहों पर 500 छोटे बम धमाके किये. तीस मिनट की अवधि में हुए इन धमाकों के निशाने पर ढाका अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा, सरकारी भवन और बड़े होटल थे. इन हमलों में दो लोग मारे गये थे और 50 लोग घायल हुए थे. लेकिन, बाद के धमाके अधिक खतरनाक साबित हुए.

– 14 नवंबर, 2005 को जमात ने बांग्लादेश के दक्षिणी हिस्से में स्थित झालाकाठी में बम से दो जजों की हत्या कर दी.

– 2005 के सितंबर और दिसंबर महीने के बीच 55 से अधिक पत्रकारों को जमात की ओर से धमकियां दी गयीं. मुसलिम और गैर-मुसलिम औरतों को बुरका पहनने का आदेश भी इस गिरोह द्वारा दिया जाता रहा है.

– कार्यक्षेत्र : जमात-उल-मुजाहिदीन के मुख्य प्रभाव क्षेत्र हैं-

– राजशाही डिवीजन : बोगरा, सिराजगंज, दिनाजपुर, जैपुरहाट, गायबंधा, नावगांव, नातोर, राजशाही, रंगपुर, ताहकुरगांव

– खुलना डिवीजन : बगेरहाट, जेसोर, खुलना, मेहरपुर, सतखीरा

– ढाका डिवीजन : जमालपुर, मेमनसिंह, नेत्रोकोना, तंगैल

– चट्टगांव : चांदपुर, लक्ष्मीपुर, चट्टगांव

बांग्लादेश में सक्रिय अन्य आतंकी संगठन

हालांकि, आइएसआइएस ने ढाका हमले को अंजाम देने का दावा किया है, लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि इसके पीछे भारतीय उप-महाद्वीप में अपने नेटवर्क का विस्तार कर रह संगठन अल कायदा का हाथ है. इसका बड़ा कारण यह माना जा रहा है कि इस क्षेत्र में अपना वर्चस्व कायम करने के इरादे से अनेक आतंकी संगठन सक्रिय हैं और उनमें से कई ऐसे हैं, जो एक-दूसरे से आगे निकलने की होड़ में हैं.

इस मुसलिम बहुल देश में आतंकवाद को व्यापक रूप से दो समूहों में बांटा जा सकता है. इसमें जमातुल मुजाहिदीन बांग्लादेश यानी जेएमबी एक लोकल आइएसअाइएस एफिलिएट के रूप में है, जबकि अलकायदा को मानने वाली अंसारुल्लाह बांग्ला टीम यानी एबीटी जैसे बांग्लादेशी अतिवादी समूह के रूप में शामिल हैं.

आइएसआइएस ने ली है ढाका हमले की जिम्मेवारी

आइएसआइएस ने अपनी न्यूज एजेंसी ‘अमक’ के जरिये ढाका हमले की जिम्मेवारी ली है. लेकिन, अमेरिकी अधिकारियों ने इसमें संदेह जताया है. इस तरह की घटनाओं के पीछे विशेषज्ञ छोटे आतंकी समूहों की भूमिका करार दे चुके हैं. हालांकि हाल ही में इस समूह ने यह घोषणा की थी कि रमजान के पवित्र माह में वह दुनियाभर में आतंकी घटनाओं को अंजाम देगा. बीते 21 मई को आइएसआइएस के प्रवक्ता अबू मोहम्मद अल अदनानी ने एक ऑडियो रिकॉर्डिंग जारी किया था, जिसमें रमजान के दौरान अमेरिका और यूरोप में आतंकी घटनाओं को अंजाम देने की बात कही गयी थी.

‘सीएनएन’ की एक रिपोर्ट में आतंकवाद मामलों के विशेषज्ञ सज्जन गाेहिल ने कहा है कि आइएसआइएस ने जिस तरीके से इस हमले की जिम्मेवारी ली है, उसे देखते हुए यह लगता है कि उसका मकसद यहां अपना प्लेटफॉर्म तैयार करना हो सकता है. फिलहाल यह कहना मुश्किल है कि इस घटना की योजना इस समूह के सेंट्रल लीडरशिप की ओर से बनायी गयी थी या फिर इसे महज आइएसआइएस से प्रेरित होकर अंजाम दिया गया.

‘द न्यू यॉर्कर’ की एक रिपोर्ट में बताया गया है कि यहां सबसे महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि आइएसआइएस ने इस हमले की जिम्मेवारी ली है, जबकि वे ऐसी किसी घटना की जिम्मेवारी नहीं लेते हैं, जिसे उन्होंने अंजाम नहीं दिया हो. लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि अबू बकर अल-बगदादी ने ढाका में आतंकियों से बात की हो और उन्हें कहा हो कि क्या करना है.

इसका मतलब यह नहीं कि यह लड़ाके सीधे तौर पर टॉप लीडरशिप के संपर्क में थे या उनसे इन्हें धन मिल रहा था. लेकिन यह तो कहा ही जा सकता है कि उनके बीच कोई लिंक जरूर जुड़ा है. उनके बीच पनप रहा असंतोष या नाराजगी भले ही स्थानीय हो, लेकिन उनकी आपसी निष्ठा अब वैश्विक होती जा रही है.

भारतीय उप-महाद्वीप में अलकायदा

पिछले हमलों के आधार पर इस बात की भी संभावना है कि ढाका में किया गया आतंकी हमला भारतीय उप-महाद्वीप में सक्रिय अल कायदा यानी एक्यूआइएस द्वारा किया गया है. हालांकि अब तक हासिल सूचनाओं के आधार पर यह भले ही एक अारंभिक मूल्यांकन हो सकता है.

लेकिन, अधिकारियों का कहना है कि पिछले कई महीनों से ढाका में आइएसआइएस के मुकाबले एक्यूआइएस की मौजूदगी को ज्यादा क्षमता में पाया गया है. इस समूह द्वारा अब तक किये गये सभी हमले बांग्लादेश की राजधानी में ही किये गये हैं.

हालिया ढाका हमले के संदर्भ में सज्जन गोहिल का कहना है, ‘यह देखना दिलचस्प होगा कि आइएसआइएस द्वारा किये गये दावे पर एक्यूआइएस कैसी प्रतिक्रिया व्यक्त करेगा. जैसा कि यमन में देखा जा रहा है कि दोनों में आपस में इस बात की होड़ लगी है कि कौन ज्यादा लोगों को मार सकता है.’

एक्यूआइएस का मकसद : माना जाता है कि एक्यूआइएस भारतीय उप-महाद्वीप में जिहाद आधारित एक संगठन है. इस इसलामिस्ट मिलिटेंट संगठन का मकसद इसलामिक स्टेट कायम करने के लिए पाकिस्तान, भारत, म्यांमार और बांग्लादेश की सरकारों के साथ लड़ना है. समझा जाता है कि भारतीय उप-महाद्वीप में मौजूद अमेरिकी ठिकाने इसके निशाने पर हैं.

एक्यूआइएस के पहले : एक्यूआइएस से पहले पाकिस्तान, भारत और अफगानिस्तान में अनेक जिहादी गुट अपनी गतिविधियों को अंजाम दे रहे थे. इनमें से एक गुट का संचालन पाकिस्तान के कराची से होता था और शहर में हुए अनेक हमलों के लिए इस समूह को जिम्मेवार माना गया था. 11 दिसंबर, 2014 को एक्यूआइएस ने उस समय के हमलों के संदर्भ में व्यापक रिपोर्ट जारी की थी. इन हमलों में स्थानीय पुलिस, एक प्रोफेसर और एक ब्लॉगर को निशाना बनाया गया था.

अंसारुल्ला बांग्ला टीम है अलकायदा का सहायक संगठन

अंसारुल्ला बांग्ला टीम यानी एबीटी बांग्लादेश में अल कायदा का सहायक संगठन है. यही वही संगठन है, जिसने अपनी हिट लिस्ट में अनेक ब्लॉगर्स को शामिल कर रखा है और अविजित रॉय जैसे

लेखकों की हत्या कर चुका है. अनेक उदार और धर्मनिरपेक्ष आवाजों को इसने हमेशा के लिए कुचल दिया. साउथ एशिया टेरर पोर्टल के रिसर्च फेलो डॉक्टर अजीत कुमार सिंह के हवाले से ‘सीएनएन’ की एक रिपोर्ट में बताया गया है कि हाल के दिनों में एबीटी एक नये आतंकी समूह के रूप में उभरा है. आम तौर पर इसे अंसार बांग्ला के रूप में जाना जाता है. ऐसा माना जाता है कि इसके तार एक्यूआइएस से जुड़े हैं. डॉक्टर अजीत कुमार सिंह का कहना है कि अंसार बांग्ला अब बांग्लादेश में सर्वाधिक सक्रिय आतंकी समूह बन गया है. सरकार ने इस संगठन पर पाबंदी लगा दी है.

इंसानियत के मददगार

मौत का डर भी सिद्धांतों से नहीं डिगा सका इशरत को

ढाका के कैफे में मारे गये लोगों में दो बांग्लादेशी महिलाएं- अबिंता कबीर और इशरत अखोंड- भी शामिल थीं. अपने परिवार और दोस्तों द्वारा नीला नाम से बुलायी जानेवाली 45 वर्षीया इशरत बांग्लादेश की एक बड़ी वस्त्र कंपनी में उच्चाधिकारी थीं. शुक्रवार रात वे दो इटालवी डिजाइनरों के साथ खाना खाने कैफे गयी हुई थीं. कैफे में घुस आये हत्यारे वहां मौजूद लोगों से कुरान की आयतें पढ़ने के लिए कह रहे थे. इशरत ने हिजाब भी नहीं पहना हुआ था और उसने आतंकियों की बात मानने से मना कर दिया.

विदेशों में शिक्षित इशरत कलाकर्मियों की समर्थक और सहयोगी थीं. उनको जाननेवालों ने मीडिया को बताया है कि वे साहसी महिला थीं. बांग्लादेश वस्त्र उद्योग में बाल मजदूरी की समस्या के खिलाफ उनका संघर्ष उल्लेखनीय माना जाता है. उस भयावह रात भी मौत के सामने खड़ी इशरत ने वहशी आतंकियों के आदेश का पालन करने से इनकार कर अपने साहस और सिद्धांतों के प्रति समर्पण का द्वितीय उदाहरण पेश किया है. अगर वह चाहतीं, तो अपनी जान बचा सकती थीं, पर उन्होंने हत्यारों के सामने झुकना स्वीकार नहीं किया.

…और अपने दोस्तों को बचाने के इरादे से फराज ने दे दी जान

हथियारबंद हत्यारों के सामने 20 वर्षीय फराज अयाज हुसैन ने भी इशरत अखोंड की तरह ही अदम्य साहस और मानवीय आदर्श का परिचय दिया है. आतंकियों के कहने पर कुरान की आयतें सुना चुके हुसैन के सामने कैफे से जीवित चले जाने का विकल्प था. लेकिन, उसने अपनी मित्रों- 18 वर्षीया तारिषी जैन और 19 वर्षीया अबिंता कबीर- के साथ बंधक बने रहने को चुना.

फराज का परिवार बांग्लादेश के दो बड़े अखबारों का मालिक है और ये दोनों अखबार लोकतांत्रिक मूल्यों के साथ खड़े होते रहे हैं. फराज ने कबीर को अमेरिकी बता कर उसे हत्यारों से बचाने की कोशिश भी की. बांग्लादेश की नागरिक कबीर पश्चिमी ढंग के कपड़े पहने हुए थे.

इस हमले में मारी गयी तारिषी जैन भारतीय नागरिक थी. ये तीनों युवा ढाका के अमेरिकन स्कूल के पूर्व छात्र थे और फिलहाल अमेरिका में उच्च शिक्षा प्राप्त कर रहे थे. तारिषी जैन के पिता का कारोबार ढाका में है, जबकि अबिंता कबीर के माता-पिता भी व्यवसायी हैं.

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