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महिलाएं ही नहीं, पुरुष भी होते हैं पीड़ित
यह भी जानें : देश भर में कई संगठन ऐसे, जो उठाते हैं पीड़ित पुरुषों के हक की आवाज हमारे देश में अधिकारों की बात अक्सर महिलाओं से जोड़ कर ही की जाती है. यहां महिलाओं के लिए महिला थाना, राज्य और राष्ट्रीय महिला है, लेकिन अगर पुरुष को प्रताड़ना सहनी पड़े, तो उसके पास […]
यह भी जानें : देश भर में कई संगठन ऐसे, जो उठाते हैं पीड़ित पुरुषों के हक की आवाज
हमारे देश में अधिकारों की बात अक्सर महिलाओं से जोड़ कर ही की जाती है. यहां महिलाओं के लिए महिला थाना, राज्य और राष्ट्रीय महिला है, लेकिन अगर पुरुष को प्रताड़ना सहनी पड़े, तो उसके पास ऐसा कोई दरवाजा नहीं, जहां वे न्याय मांग सकें. ऐसे पीड़ित पुरुषों की आवाज को सशक्त करने के लिए एक संगठन काम करता है, नाम है- सेव इंडियन फैमिली़ इसने विभिन्न गैर-सरकारी संस्थाओं के साथ मिल कर महिला आयोग की ही तर्ज पर राष्ट्रीय स्तर पर पुरुष आयोग के गठन की मांग को लेकर आंदोलन छेड़ रखा है. इसके लिए देश भर के विभिन्न संस्थाओं के साथ मिल कर पुरुषों के साथ होनेवाली मानसिक और शारीरिक प्रताड़ना के मामलों का रिकॉर्ड तैयार किया जा रहा है.
आम तौर पर ‘पत्नी पीड़ित संघ’ जैसे संगठनों के नाम सुन कर चेहरे पर बरबस हंसी तैर जाती है, लेकिन यह आज समय की जरूरत है़ इस बारे में पुरुषों के अधिकारों की रक्षा के लिए आवाज उठानेवाले संगठन, ‘सेव इंडियन फैमिली’ के संस्थापक सदस्य नीलाद्रि शेखर दास कहते हैं कि वर्तमान कानून पुरुषों के साथ लैंगिक भेदभाव करते हैं और महिलाएं इनका दुरुपयोग करती हैं.
वह आगे कहते हैं, भारत में दहेज और दुष्कर्म से संबंधित कानून महिलाओं के पक्ष में झुके हुए हैं. न्याय का तकाजा होता है कि कोई व्यक्ति तब तक निर्दोष है तब तक वह दोषी साबित न हो जाए लेकिन हमारी न्याय व्यवस्था का बुनियादी विचार ही इससे उलट है और महिलाएं पुरुषों के खिलाफ इस तरह के कानूनों का दुरुपयोग करती हैं.
हम बस यह चाहते हैं कि कानून लिंग के आधार पर भेदभाव न करे. संस्था ने भारत के कई शहरों में अपनी हेल्पलाइन सर्विस भी शुरू की है, जिसके जरिये पीड़ित पुरुष जरूरी कानूनी मदद ले सकते हैं. मानसिक रूप से परेशान पुरुषों की काउंसलिंग भी इसके माध्यम से की जाती है.
इस हेल्पलाइन पर ज्यादातर लोग यौन शोषण के आरोप में गलत तरीके से फंसा दिये जाने, दुष्कर्म, घरेलू हिंसा और संतान संरक्षण अधिकार से जुड़े मामलों में उनके साथ हुई पक्षपाती कार्रवाई की शिकायत करते हैं. संस्था का दावा है कि शादीशुदा पुरुषों में महिलाओं के मुकाबले आत्महत्या के मामले ज्यादा हैं.
पुरुषों को समाज की पितृसत्तात्मक सोच का शिकार बताते हुए नीलाद्रि कहते हैं कि पुरुषों को उनके परिवार के लिए एटीएम बना दिया जाता है और जब वे अपनी पत्नी को सुरक्षा या सहूलियतें देने में चूकते हैं तो उन पर बुरा बरताव करने का आरोप लगा दिया जाता है.
लगभग 10 वर्ष पहले एक याहू ग्रुप के तौर पर शुरू हुआ यह संगठन, पुरुष अधिकारों की आवाज उठानेवाला कोई इकलौता मंच नहीं है. देश भर में ऐसे बीसियों समूह और संगठन हैं जो अपने-अपने क्षेत्र में पुरुषों के हक, हित और हिफाजत की बात करते हैं. दरअसल, इस अभियान की शुरुआत वर्ष 1988 में सुप्रीम कोर्ट के वकील राम प्रकाश चुग ने ‘सोसाइटी फॉर प्रिवेंशन ऑफ क्रुएल्टी टू हस्बंड्स’ के नाम से की. इसकी वजह बना उन पर चला दहेज प्रताड़ना का झूठा मामला़ अब 70 वर्ष के बुजुर्ग हो चले राम प्रकाश, आज भी पीड़ित पुरुषों के मुकदमे लड़ते हैं.
वह कहते हैं, जब मैंने पीड़ित पुरुषों के संगठन की शुरुआत की तो लोगों ने मेरा मजाक उड़ाया़ वे यह मानने को तैयार ही नहीं थे कि पुरुष भी पीड़ित होते हैं.
‘द वीक’ में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक ऐसे समूहों की शुरुआत करनेवाले और उसके स्वयंसेवक प्राय: ऐसे लोग होते हैं जो किसी न किसी रूप में किसी महिला की यातना के शिकार हैं. इसी क्रम में बेंगलुरु के संतोष पाटिल का उल्लेख किया गया है, जो पेशे से डिजाइन इंजीनियर हैं.
41 वर्षीय संतोष ने पुरुष अधिकार केंद्र की शुरुआत की है. उन्हें अपनी पत्नी से शिकायत है, जिसने उन्हें अपनी बेटी से मिलने पर रोक लगा रखी है़ संतोष कहते हैं, हमारे देश में महिलाओं के हितों की रक्षा करनेवाले कई संगठन हैं, लेकिन पुरुषों की मदद के लिए कोई व्यवस्था नहीं है. वह कहते हैं कि हमारी हेल्पलाइन पर हर दिन लगभग 15-20 लोग अपनी शिकायत दर्ज कराते हैं. इनमें दहेज प्रताड़ना से लेकर यौन हिंसा और घरेलू हिंसा के आरोपी होते हैं, जिनमें लगभग 70 प्रतिशत मामले आधारहीन और झूठे होते हैं.
सेव इंडियन फैमिली के स्वयंसेवक डीएस राव की कहानी भी कुछ ऐसी ही है. 48 वर्ष के राव, कोलकाता में व्यवसायी हैं. उनकी पत्नी ने उनके खिलाफ धारा 498 ए के तहत दहेज प्रताड़ना का झूठा मामला वर्ष 2005 में दायर किया था़ पांच वर्ष तक चले इस मुकदमे के बाद राव को सभी आरोपों से बरी कर दिया गया़ उन दिनों को याद करते हुए राव कहते हैं, निर्दोष होते हुए भी मुझे जेल में 18 दिन बिताने पड़े.
इस सदमे से मेरे पिता का देहांत हो गया़ मेरा व्यवसाय बुरी तरह प्रभावित हुआ़ बदनामी के चलते मोहल्ले में हमारा रहना मुश्किल हो गया था़ मैं जानता हूं कि मेरे बीते हुए वे दिन वापस नहीं लौटेंगे, लेकिन मैं इस बात की कोशिश करता हूं कि जितना मैंने झेला, किसी और को न झेलना पड़े.
सेव इंडियन फैमिली के अनुसार पुरुषों को होने वाली मुख्य समस्याएं कुछ इस प्रकार हैं- फैमिली कोर्ट में पुरुषों को भेदभाव का शिकार होना, तलाक के 90 प्रतिशत मामलों में बच्चे पुरुषों को नहीं बल्कि महिलाओं को सौंप दिये जाना, सरकार या न्यायालयों ने ऐसी कोई व्यवस्था नहीं बनायी है जिससे शादीशुदा पुरुषों को आत्महत्या करने से बचाया जा सके, यदि कोई महिला किसी पुरुष से दुर्व्यवहार करे तो भी समाज उस महिला को दंडित नहीं करता, एक पुरुष अपने परिवार के लिए जितने भी त्याग करता है
उन्हें कभी मान्यता नहीं मिलती और न ही समाज में पुरुषों को होने वाली समस्याओं को गंभीरता से समझा जाता है. संस्था की मानें, तो आज न्याय व्यवस्था से लेकर लोगों का सामाजिक नजरिया तक पुरुष विरोधी हो चुका है, जिसे बदलना बेहद जरूरी है.
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