सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को एक याचिका पर सुनवाई करते हुए असम में कथित तौर पर गायब हुए 300 करोड़ रुपए नगद, 300 किलो सोना और दो एके-47 राइफल से जुड़े मामले में केंद्र और असम सरकार से जवाब मांगा है.
इस मामले में सीबीआई जांच की मांग की गई थी, ऐसे में कोर्ट ने केंद्र सरकार को अपना जवाब देने को कहा है.
मुख्य न्यायाधीश टी एस ठाकुर की अध्यक्षता वाली पीठ ने मामले में सुनवाई के बाद केंद्र और असम सरकार सहित प्रदेश के डीजीपी को नोटिश जारी कर छह सप्ताह के भीतर अदालत में जवाब दाख़िल करने का निर्देश दिया है.
इस मामले में 13 अप्रैल को हुई पहली सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल मनिंदर सिंह से याचिका की जांच करने और मामले की सीबीआई जांच के लिए याचिकाकर्ता की तरफ से की गई मांग पर सरकार का जवाब मांगा था.
दरअसल सेना के खुफ़िया विभाग (एमआई) से अवकाश प्राप्त अधिकारी मनोज कुमार कौशल द्वारा दायर याचिका में यह दावा किया गया है कि उन्हें मई 2014 में अपने एक ख़बरी से यह जानकारी मिली थी कि कामरूप जिले के हवाई अड्डे के पास रानी चाय बाग़ान के काली मंदिर में 300 करोड़ नगद, 300 किलो सोना और दो एके-47 राइफ्ल छिपाकर रखा गया है.
पूर्व सैन्य अधिकारी कौशल ने बीबीसी से कहा कि सेना में रहते हुए जिस समय वह असम में (2006 से 2009) नियुक्त थे, उस दौरान विभिन्न खुफ़िया जानकारी हासिल करने के लिए कई युवकों को बतौर सूत्र काम करवाते थे.
उनके मुताबिक़ उन्हीं में से एक युवक ने मई 2014 में रानी चाय बाग़ान के काली मंदिर के नीचे 300 किलो सोना, 300 करोड़ नगद और दो एके-47 छिपाकर रखने की जानकारी दी थी.
इस युवक ने अपने दो-तीन साथियों के साथ सोना और रोकड़ निकालने के लिए सेना की मदद मांगी थी ताकि बरामद धन का 10 फ़ीसदी उन्हें मिल सकें.
लेकिन बाद में एक साज़िश के तहत इन युवकों ने पुलिस और कुछ आपराधिक दिमाग वाले लोगों के साथ मिलकर पैसा और सोना निकाल लिया.
कौशल का यह भी दावा है कि रानी चाय बाग़ान का मालिक मृदुल भट्टाचार्य चरमपंथी संगठन उल्फ़ा को वसूली देने के लिए अन्य चाय बाग़ानों के मालिकों से पैसे इकट्ठा करता था और यह काफ़ी बड़ी रकम हुआ करती थी.
उनका दावा है कि भट्टाचार्य ने बर्मा से तस्करी के तहत आने वाला काफ़ी सोना भी ख़रीद रखा था.
जबकि भट्टाचार्य और उनकी पत्नी की 2012 में उनके ही तिनसुकिया स्थित चाय बाग़ान में संदिग्ध परिस्थितियों में हत्या कर दी गई थी.
याचिकाकर्ता कौशल कहते है कि इस खज़ाने की जानकारी केवल मृदुल भट्टाचार्य को थी.
लेकिन उनकी मौत के बाद कुछ लोगों के हाथ भट्टाचार्य की व्यक्तिगत डायरी लग गई जिसमें इन सारी बातों का उल्लेख है.
कौशल ने कहा कि इस करोड़ों के खजाने को लूटने के पीछे 13 व्यक्तियों की साजिश है जिन्होंने सेना की तलाशी के एक दिन पहले अर्थात 31 मई, 2014 को यह खजाना लूट लिया.
जबकि वह इस मामले में उनके पास पर्याप्त सबूत होने के भी दावे कर रहें हैं.
कौशल का आरोप है कि कुछ लोगों ने साज़िश कर पूरा खजाना निकाल लिया और इसमें कई बड़े पुलिस अधिकारी भी शामिल है.
यही वजह रही कि इस मामले के लेकर केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह के साथ मुलाकात करने के बाद भी किसी तरह की ठोस जांच शुरू नहीं हुई.
असम पुलिस के अधिकारियों से भी मदद नहीं मिली. उसने मामले की सीबीआई जांच करवाने के लिए प्रधानमंत्री को भी पत्र लिखा था.
आख़िर में उन्होंने कोर्ट का दरवाजा खटखटाया हैं और वह इस खजाने के लिए लंबी कानूनी लड़ाई लड़ने को तैयार है ताकि ये पैसा और सोना भारत सरकार के खजाने में जमा हो सके.
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