“मैं एक फिलॉसफर हूं, केवल सप्ताहांत में उपन्यास लिखता हूं.” कहने वाले अम्बर्टो इको 84 साल की पकी उम्र में 19 फरवरी 2016 को गुजर गये. उन्होंने बहुत कुछ लिखा, कई विधाओं में लिखा, लेकिन सामान्य पाठक के लिए वे मात्र ‘इन द नेम ऑफ द रोज’ के लेखक थे. एक यही उपन्यास उन्हें अमर करने के लिए काफी था. इस पर 1986 में इसी नाम से एक प्रसिद्ध फिल्म बनी. इस फिल्म में प्रसिद्ध स्कॉटिश अभिनेता शॉन कोनरी ने लाजवाब अभिनय किया है.
फिल्म के कई दृश्य फिल्म विधा की थाती हैं. अपने इस पहले उपन्यास में अम्बर्टो इको कहानी को 1327 में स्थापित करते हैं. इसका लोकेशन इटली का एक धार्मिक मठ है. इस मठ में एक आत्महत्या होती है, जो वास्तव में एक हत्या है. जैसे-जैसे कहानी आगे बढ़ती है, मठ के कई अन्य सदस्यों की रहस्यमय तरीके से मौत होती है.
इस ऐतिहासिक हत्या की गुत्थी सुलझाने के साथ-साथ इको इस उपन्यास में बिब्लिकल विश्लेषण, मध्यकालीन यूरोप में अध्ययन-अध्यापन की परंपरा, हंसने की कीमत तथा साहित्यिक सिद्धांतों को भी विस्तार से स्थान देते हैं. इसमें पुस्तकालय में भीषण आग लगने और कुछ लोगों का किताब बचाने का प्रयास करते हुए होम होने का भी चित्रण है. यह पुस्तकालय मात्र पुस्तकालय न होकर अपने आप में एक भूलभुलैया था.
‘इन द नेम ऑफ द रोज’ के अलावा इको ने ‘फूकोज पेंडुलम’, ‘द मिस्टीरियस फ्लेम ऑफ क्वीन लोअना’, ‘द प्राग सिमेट्री’, ‘द ओपन वर्क’, ‘ऑन अगलीनेस’ और कई अन्य किताबें लिखीं. साहित्यिक आलोचना के लिए इको खासतौर पर जाने जाते हैं. यूरोप के बौद्धिक जगत का यह अनोखा सदस्य बच्चों के लिए भी लिखता था.
विश्व की तीस भाषाओं में उनके काम का अनुवाद उपलब्ध है. इस विशिष्ट विद्वान के पास एक ओर जहां अतीत की खास समझ थी, वहीं भविष्य देखने की अकूत क्षमता भी थी. इको ने पिछली सदी के अस्सी के दशक में यूनिवर्सिटी ऑफ सैन मैरिनो में कम्यूनिकेशन विभाग की स्थापना की. वे जितनी आसानी से यूरोप के मध्यकालीन इतिहास पर बोल सकते थे उतने ही उत्साह से जेम्स बॉन्ड की फिल्म पर भी बात कार सकते थे.
उनका जन्म 5 जनवरी 1932 को उत्तरी इटली के एलेसैन्ड्रिया में हुआ था. इको का मानना था कि किताबें सदैव दूसरी किताबों के बारे में बोलती हैं और कहानी वह कहती है जो पहले कहा जा चुका है.