मंगलवार को न्यूयॉर्क में डेमोक्रेट्स और रिपब्लिकंस अपने-अपने उम्मीदवार चुनने के लिए मतदान करने जा रहे हैं.
इस चुनाव को ‘न्यूयॉर्क की जंग’ का नाम दिया जा रहा है, क्योंकि बरसों के बाद किसी प्राइमरी मुक़ाबले में यहां ऐसी टक्कर देखने को मिल रही है.
डेमोक्रेटिक उम्मीदवार हिलेरी क्लिंटन और बर्नी सैंडर्स, और रिपब्लिकन रेस में आगे चल रहे डोनल्ड ट्रंप तीनों ही ख़ुद को न्यूयॉर्कर कहते हैं और अपने-अपने तरीकों से ये साबित करने की भी कोशिश कर रहे हैं.
क्लिंटन सबवे ट्रेन पर सफ़र कर रही हैं, सैंडर्स ब्रूकलिन ब्रिज पर चहलकदमी कर लोगों को याद दिला रहे हैं कि वो इसी इलाके में पैदा हुए हैं और ट्रंप शहर में फैले अपने कारोबार का ढिंढोरा पीट रहे हैं.
ब्रूकलिन, ब्रॉन्क्स, क्वींस या फिर न्यूयॉर्क के दूर दराज़ के इलाके, उम्मीदवारों ने हर कोना छूने की कोशिश की है.
ब्रूकलिन के कोनी आईलैंड का लिटिल पाकिस्तान कहलाने वाले इलाक़े में ज़्यादातर लोग हिलेरी के समर्थन में खड़े नज़र आए.
वहां रहने वाले पाकस्तानी मूल के सलीम अकबर का कहना है कि ये मुक़ाबला उनके और उनके बच्चों के भविष्य का मामला है.
उनका कहना था, "मैं हिलेरी को वोट दूंगा. लेकिन वो किसी वजह से नहीं जीत पाईं तो उस उम्मीदवार के साथ खड़ा हो जाऊंगा जो डोनल्ड ट्रंप को हरा सके."
इस इलाक़े में से कुछ को बर्नी सैंडर्स का नाम भी नहीं पता था. लेकिन शहर के दूसरे हिस्सों में सैंडर्स की रैलियों में भारी भीड़ जुट रही है.
वहीं शहर में हर दूसरे दिन डोनल्ड ट्रंप के ख़िलाफ़ लग रहे नारों को सुनकर लग सकता है कि वो यहां कामयाब नहीं होंगे. लेकिन हक़ीक़त ये है कि वो अब भी नंबर वन पर हैं. उनके चाहने वालों में अब सिर्फ़ गोरे, इसाई अमरीकी नहीं, बल्कि कई नए रंग शामिल होने लगे हैं.
भारतीय मूल के वकील आनंद आहूजा का कहना है कि ट्रंप न सिर्फ़ अमरीका के लिए बल्कि भारत और अमरीका के रिश्तों के लिए भी बेहतर होंगे.
आप्रवासन हो, सुरक्षा हो या फिर अर्थव्यवस्था, इस चुनाव के सभी अहम मुद्दे न्यूयॉर्क के लिए अहम हैं और उम्मीद की जा रही है कि वोटर भारी तादाद में घर से निकलेंगे.
हिलेरी क्लिंटन दो बार न्यूयॉर्क की सीनेटर रह चुकी हैं और अगर यहां नहीं जीतती हैं तो उनकी उम्मीदवारी पर एक बहुत बड़ा सवालिया निशान लग जाएगा और सैंडर्स की गाड़ी चल निकलेगी.
चुनाव पूर्व सर्वेक्षणों में वो सैंडर्स से क़रीब 14 अंकों से आगे हैं लेकिन सैंडर्स की रैलियों की भीड़ देखकर कहा जा सकता है कि मामला कांटे का होगा.
वहीं डोनल्ड ट्रंप के लिए ये ‘करो या मरो’ का वक़्त है. न्यूयॉर्क के क़ानून के मुतिबक़ अगर वो 50 फ़ीसद से ज़्यादा मत हासिल करते हैं तो इस राज्य के सभी 95 डेलिगेट्स उनके खाते में चले जाएंगे और उनकी उम्मीदवारी को ज़बरदस्त बल मिलेगा. लेकिन अगर उससे कम मत मिले तो डेलिगेट्स का बंटवारा दूसरे और तीसरे उम्मीदवार के साथ होगा.
रिपब्लिकन उम्मीदवारी के लिए कुल 1237 डेलीगेट्स की ज़रूरत है.
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