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राहुल गांधी को खत्म करती कांग्रेस!

-सत्ता से अलग हो खुद को बदले कांग्रेस- ।।दर्शक।।कल (28 दिसंबर) को कांग्रेस का 128 वां स्थापना दिवस था. सोनिया गांधी ने भ्रष्टाचार पर चिंता जतायी. राहुल गांधी ने भी दो दिन पहले कांग्रेस शासित राज्यों के मुख्यमंत्री की बैठक में आदर्श घोटाले में न्यायिक आयोग की जांच रिपोर्ट पर फिर से विचार करने को […]

-सत्ता से अलग हो खुद को बदले कांग्रेस-

।।दर्शक।।
कल (28 दिसंबर) को कांग्रेस का 128 वां स्थापना दिवस था. सोनिया गांधी ने भ्रष्टाचार पर चिंता जतायी. राहुल गांधी ने भी दो दिन पहले कांग्रेस शासित राज्यों के मुख्यमंत्री की बैठक में आदर्श घोटाले में न्यायिक आयोग की जांच रिपोर्ट पर फिर से विचार करने को कहा. हकीकत यह है कि भ्रष्टाचार की संस्कृति की जन्मदाता कांग्रेस है. राहुल गांधी कांग्रेस पार्टी में नयी जान फूंकना चाहते हैं, मगर उनकी राह में अवरोध ही अवरोध हैं. क्या हैं वो अवरोध. प्रस्तुत है इसकी पड़ताल करती यह टिप्पणी.

कांग्रेस ही राहुल गांधी को उभरने नहीं देना चाहती. राहुल गांधी में राजनीतिक चतुराई या राजनीतिक गंठजोड़ या दावं-पेच की महारत नहीं है. न उनमें पंडित नेहरू के व्यक्तित्व की झलक है, न दृष्टि है, न पैशन. न इंदिरा जी का साहस है, न राजीव गांधी जैसा कुछ नया करने की बेचैनी. फिर भी राजनीति, आज जिस धूर्तता, पाखंड और छल-छद्म का व्यवसाय है, वह राहुल गांधी में नहीं है. बाहर से वह सीधे, सहज, सरल इनसान लगते हैं. किसी बड़े टीकाकार ने सही टिप्पणी की है कि वह एनजीओ चलानेवाले इनसान दिखते हैं. नहीं पता कि उनमें क्या खूबियां हैं और क्या कमियां, पर वह कभी-कभार साहसिक और सही बात करते हैं, तो कांग्रेस संगठन ही उनकी जड़ को निमरूल या कमजोर करने की भूमिका में सबसे आगे रहता है. मसलन ताजा प्रसंग है.त्न 22 दिसंबर, 2013 को राहुल गांधी ने दिल्ली में फिक्की की आमसभा में साहसिक बयान दिया. उनके बयान से लगा कि वह स्थापित राजनीतिक संस्कृति (जिसकी स्रोत खुद कांग्रेस है) से हट कर कुछ अलग करने को बेचैन हैं. उन्होंने कहा, लोगों का खून चूस रहा है भ्रष्टाचार.

उन्होंने यह भी कहा कि अनियंत्रित शक्तियां, परियोजनाओं की मंजूरी में विलंब के लिए जिम्मेदार हैं. साफ है, वह अपनी ही सरकार पर टिप्पणी कर रहे थे. उसी दिन पर्यावरण मंत्री जयंती नटराजन को केंद्रीय मंत्रिपरिषद से हटाया गया (सूचना है कि प्रधानमंत्री ने उनसे इस्तीफा मांगा. क्योंकि उनके विभाग में कई हजार परियोजनाओं की मंजूरी के प्रस्ताव लंबित थे. हालांकि कांग्रेस ने मंत्री के हटाने को रंग दिया कि वह संगठन का बड़ा काम करेंगी. अगर कांग्रेस साफ कहती कि उनकी अकर्मण्यता या काम न करने के कारण उन्हें हटाया गया, तो देश में बेहतर संदेश जाता). इसी भाषण में राहुल गांधी ने कहा कि भ्रष्टाचार देश के लोगों पर एक अस्वीकार्य बोझ है. हमें अपनी पूरी ताकत और पक्के इरादे के साथ इससे लड़ना होगा. यूपीए सरकार ने भ्रष्टाचार का मुकाबला करने के लिए किसी भी दूसरी सरकार से ज्यादा काम किया है, यह राहुल गांधी का दावा था.

जिस दिन राहुल गांधी का यह बयान आया, उसी दिन कांग्रेस के ताकतवर लोगों के काम और बयान क्या थे? यह प्रमाण है कि कांग्रेसी नेता कैसे कांग्रेस व राहुल को खत्म कर रहे हैं.आदर्श हाउसिंग घोटाला देश में हर जुबान पर रहा है. जन-दबाव में इसकी जांच के लिए दो सदस्यीय न्यायिक आयोग बना. याद रखिए, आरोप लगा था कि करगिल के शहीदों के परिवारों के लिए बननेवाले फ्लैटों में कांग्रेसी नेताओं ने अपने लिए बेनामी फ्लैट लिये. मुंबई के सबसे महंगे व पाश इलाके कोलाबा में बने इन फ्लैटों की कीमत करोड़ों में है. इस आयोग ने अपनी रिपोर्ट में महाराष्ट्र के चार कांग्रेसी पूर्व मुख्यमंत्रियों पर प्रतिकूल टिप्पणी की है. पहले, अशोक चह्वाण (पूर्व मुख्यमंत्री), दूसरे विलासराव देशमुख (पूर्व मुख्यमंत्री और पूर्व केंद्रीय मंत्री), तीसरे सुशील कुमार शिंदे (पूर्व मुख्यमंत्री और मौजूदा गृहमंत्री) और चौथे, शिवाजीराव निलंगेकर पाटील (जो 1984 में कम समय के लिए मुख्यमंत्री थे). ये सभी बड़े कांग्रेसी नेता हैं. अशोक चह्वाण पर न्यायिक आयोग का आरोप है कि ‘आदर्श को-ऑपरेटिव हाउसिंग सोसाइटी’ (जिसने मुंबई के कोलाबा में 31 मंजिला बिल्डिंग बनायी) से निजी लाभ लिया. बिल्डिंग बनाने के नियम के तहत 15 फीसदी जमीन, खेल-कूद का मैदान बनाने के लिए रखनी थी, पर इस नियम को उन्होंने अमान्य कर दिया.

आदर्श को काम खत्म होने का प्रमाणपत्र दिलाने में मदद की, बिना काम खत्म किये. इसके बदले उनकी ससुराल पक्ष के तीन लोगों को आदर्श में फ्लैट मिले. विलासराव देशमुख के मंत्रिमंडल में राजस्व मंत्री के रूप में अशोक चह्वाण ने आदर्श सोसाइटी को भूमि आवंटन का पत्र भी जारी किया. पूर्व मुख्यमंत्री विलासराव देशमुख ने आदर्श प्लाट आवंटन की अनुशंसा के बदले में गैरकानूनी रूप से अधिक मंजिल बनाने की अनुमति दी. हालांकि जांच आयोग को यह पता नहीं चला है कि उन्होंने क्या तात्कालिक लाभ लिया? इसी तरह पूर्व मुख्यमंत्री और मौजूदा गृह मंत्री सुशील कुमार शिंदे ने महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री के रूप में वित्तीय वर्ष 2003-04 में जमीन आवंटन का पत्र आदर्श सोसाइटी को दिया. इन्होंने भी क्या कोई तात्कालिक लाभ लिया, यह आयोग को पता नहीं चल सका. पूर्व मुख्यमंत्री शिवाजीराव निलंगेकर पाटील को, सुशील कुमार शिंदे (जो 2003-04 में मुख्यमंत्री थे) के राजस्व मंत्री के रूप में आदर्श को भूमि आवंटन का दोषी पाया गया है. आयोग ने यह भी पाया कि पूर्व राज्य नगर विकास मंत्री राजेश टोप्पो और सुनील तत्करे (अब जल संसाधन मंत्री) ने बिना किसी अधिकार के आदर्श की फाइल में हस्तक्षेप किया. उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश जे पाटील और पूर्व मुख्य सचिव पी सुब्रह्मण्यम ने जांच रिपोर्ट तैयार की है.

इस घोटाले में यह भी पाया गया कि 12 आइएएस अफसरों ने गलत ढंग से अतिरिक्त मंजिल बनाने के लिए इस फाइल को क्लीयरेंस दिया. इनमें से छह आइएएस ने इस गलत काम के बदले आदर्श में फ्लैट लिये. याद होगा, 2010 में जब इस भ्रष्टाचार का भंड़ाफोड़ हुआ, तो कहा गया कि करगिल के शहीदों के परिवारों के लिए यह भूखंड था, पर बड़े-बड़े राजनेताओं, नौकरशाहों और सेना के रिटायर्ड बड़े अफसरों ने इसे हड़प लिया. आयोग ने पाया कि यह करगिल के विधवाओं के लिए आवंटित जमीन नहीं थी. पर नियमत: इस पर कोई निर्माण कार्य होना नहीं था. आयोग ने इसमें गंभीर गलत चीजें पायीं. आयोग ने पाया कि उस जगह पर निर्माण ही प्रतिबंधित था. क्योंकि आसपास में कई प्रमुख रक्षा प्रतिष्ठान हैं. यह जगह समुद्र के ऊंचे ज्वार से पांच सौ मीटर ही दूर है. इसलिए यहां निर्माण पर कानूनी प्रतिबंध था. न्यायिक आयोग ने पाया कि निजी फायदे के लिए कांग्रेसी सरकारों ने इसे प्रतिबंधमुक्त किया. नगर निर्माण योजना से संबंधित जो कानून हैं, उन्हें तोड़ा गया. समुद्र के किनारे होने के बाद भी केंद्रीय पर्यावरण मंत्रलय तथा अन्य मंत्रलयों से आवश्यक अनुमति नहीं ली गयी. 25 अयोग्य लोगों को इसमें फ्लैट दिये गये (जो नियम के तहत इसे पाने के हकदार नहीं थे). इसमें भाई-भतीजावाद और भ्रष्टाचार की गुंजाइश रखी गयी. 22 बेनामी फ्लैटों का लेन-देन, 102 फ्लैटों की इस बिल्डिंग में हुआ. सीबीआइ ने पूर्व मुख्यमंत्री अशोक चह्वाण समेत ग्यारह नौकरशाहों को इस मामले में चाजर्शीट किया है. सेना के तीन प्रमुख लोगों ने भी आदर्श में फ्लैट लिये. सेना की जांच अदालत ने सेना के पूर्व प्रमुखों दीपक कपूर व एनसी विज समेत चार लेफ्टिनेंट जनरलों और तीन मेजर जनरलों को मार्च, 2011 में दोषी पाया. कहा कि प्रथम द्रष्टया इसमें हेरफेर है.

इस स्तब्धकारी भ्रष्टाचार की न्यायिक जांच रिपोर्ट को खारिज करने की कांग्रेसी मंत्रियों ने मिल कर मुंबई में योजना बनायी. 22.12.2013 को ही. जिस दिन राहुल गांधी, दिल्ली में देश के उद्योग जगत के नेताओं के साथ भ्रष्टाचार पर यूपीए के उठाये कदमों-प्रयासों का गुणगान कर रहे थे, उसी दिन, उसी तारीख और उसी समय, देश की आर्थिक राजधानी मुंबई में उनकी ही सरकार आदर्श के महाघोटाले की न्यायिक जांच रिपोर्ट को खारिज कर रही थी. यह है, कांग्रेस का एक ही विषय पर दो चेहरा. वह भी दबा-छुपा नहीं. खुलेआम. इस तरह के परस्पर विरोधी चेहरों-काम ने कांग्रेस की यह गति कर दी है. कांग्रेस के दिग्गज नेता और पूर्व मुख्यमंत्री अशोक चह्वाण के तीन रिश्तेदारों को इस आदर्श बिल्डिंग में फ्लैट मिले हैं. 891 पेज की इस न्यायिक जांच रिपोर्ट में यह भी दर्ज है कि उनके अंकल मदन लाल शर्मा को बेनामी फ्लैट तो मिला ही, इसके लिए धन भी मालव शाह नाम के एक बिल्डर ने दिया. यह बिल्डर मुंबई के मशहूर बिल्डर जयंत शाह के सुपुत्र हैं. जयंत शाह, अशोक चह्वाण के सबसे करीबी हैं. सीबीआइ ने गवर्नर से अशोक चह्वाण के खिलाफ आगे की कानूनी कार्रवाई के लिए अनुमति मांगी थी, जिसे गवर्नर ने अस्वीकार कर दिया. साफ है कि गवर्नर ने किसके इशारे पर काम किया होगा? फिर भी राहुल गांधी कहते हैं कि कांग्रेस ने भ्रष्टाचार खत्म करने के लिए ऐतिहासिक कदम उठाये हैं. पहले भी कांग्रेस भ्रष्ट मुख्यमंत्रियों को ऐसे ही संरक्षण देती थी. पुख्ता सबूत होने के बावजूद राज्यपाल, कानूनी कार्रवाई की स्वीकृति नहीं देते थे. स्पष्ट है कि जैसे हालत पहले थे, वैसे अब भी हैं.

इससे भी बड़ा आपराधिक काम कांग्रेस सरकार ने यह किया कि जब जांच आयोग ने बताया कि इस बिल्डिंग में दो दर्जन के आसपास बेनामी फ्लैट हैं, जो किनके हैं, यह पता नहीं, तो महाराष्ट्र की कांग्रेस सरकार ने आगे जांच न कराने का फैसला किया है? इस तरह साफ है कि कांग्रेस सार्वजनिक जीवन में भ्रष्टाचारियों, चोरों और अपराधियों (जो सरकार और समाज का पैसा लूट कर शहंशाह बने हैं) को खुलेआम बचा रही है. जानकारों का कहना है कि अगर गहराई से इसकी जांच हो, तो पता चलेगा कि किन बड़े-बड़े नेताओं ने इन फ्लैटों में बेनामी धन लगाये हैं? अब आप गौर करें कि राहुल गांधी की ईमानदार बेचैनी और उनकी पार्टी के असल और प्रत्यक्ष काम के बीच क्या संबंध है? यही नहीं इस फ्लैट में देवयानी खोबरागड़े का भी फ्लैट है. अमेरिका में भारत की चर्चित राजनयिक. वह भारतीय विदेश सेवा में हैं. नियमत: उन्हें सरकार को गलत सूचना देने के लिए अपनी नौकरी खो देनी चाहिए. पर आदर्श में फ्लैट लेने के लिए उन्होंने शपथपत्र (एफिडेविट) दायर कर इसी साल (28.12.13) केंद्र सरकार को गलत सूचना दी. कहा कि आदर्श सोसायटी मुंबई में उनके पास एक हजार वर्ग फुट का फ्लैट है. अपनी स्थायी संपत्ति का विवरण देते हुए उन्होंने कहा कि 90 लाख में खरीदा गया यह फ्लैट, मुंबई के ओसीवारा इलाके में अपना पुराना फ्लैट बेच कर लिया गया है. यह जानकारी एक सरकारी अफसर के तौर पर उन्होंने भारत सरकार को दी. पर जो न्यायिक आयोग आदर्श घोटाले की जांच कर रहा था, उसने पाया कि 2005 में देवयानी ने इस फ्लैट की कीमत एक करोड़ दस लाख रुपये चुकायी है. देवयानी का दावा था कि उन्होंने इसे 90 लाख रुपये में खरीदा है. यानी इस फ्लैट को खरीदने में उन्होंने जो लिखित दावा किया था, शपथपत्र में, उससे 20 लाख रुपये अधिक कीमत चुकायी है. इस तरह की गलत सूचना देने पर नौकरी से बर्खास्त किये जाने का प्रावधान है. पर देवयानी जानती हैं कि उनका कुछ नहीं होगा. क्योंकि वह भारत के शासकवर्ग से हैं. मायावती भले ही उन्हें दलित कहें, पर भारत के नये शासकवर्ग (जिसमें हर समुदाय-जाति के नेता, अफसर, उद्योगपति और प्रभावशाली लोग हैं) का कुछ नहीं बिगड़ता. यह पूरा आदर्श घोटाला, भारत के शासकवर्ग का आदर्श नमूना है. मुंबई में बमुश्किल दो माह पहले टाइम्स आफ इंडिया में खबर आयी कि कैसे एक केंद्रीय मंत्री को कुछेक हजार में सौ करोड़ से अधिक का भूखंड, जुहू इलाके में दिया गया. राज्य सरकार द्वारा. खबर का भंडाफोड़ होने के बाद मंत्री ने कहा, अब वह यह भूखंड नहीं लेंगे. विरोध देख कर. इस भूखंड की फाइल पर महाराष्ट्र के पूर्व कांग्रेसी मुख्यमंत्री ने किस रफ्तार से काम किया, वह भी हतप्रभ करनेवाला है. यह है, कांग्रेस.

दरअसल, हम दूर बैठे लोगों को राहुल गांधी, इनोसेंट (भोलेभाले) लगते हैं. उन्हें कांग्रेसी राजनीति के धुरंधर खिलाड़ियों का असल चरित्र नहीं मालूम. जिस दिन दिल्ली विधानसभा का चुनाव परिणाम आया, उस दिन उन्होंने एक ईमानदार व्यक्ति की तरह कहा कि हम कांग्रेस को उस हद तक बदल देंगे, जहां तक कोई उम्मीद नहीं कर सकता. यह एक ईमानदार प्रतिक्रिया लगी. पर जिस दिन राहुल गांधी, दिल्ली में भ्रष्टाचार उन्मूलन अभियान में कांग्रेस का यशगान कर रहे थे, उसी दिन कांग्रेस संगठन से और दो खबरें आयीं. पहली खबर कि कांग्रेस, चुनावों में राजद यानी लालू प्रसाद से समझौता करेगी. दूसरी खबर कि झारखंड में भी कांग्रेस मधु कोड़ा और गीता कोड़ा को अपनी पार्टी में लेगी. कांग्रेस संगठन के लोग जिस व्यक्ति यानी राहुल गांधी में अपना भविष्य देखते हैं, उनकी अंतरात्मा की ईमानदार आवाज जिस दिन दिल्ली में गूंज रही थी कि भ्रष्टाचार, खून चूस रहा है, कम-से-कम उस दिन कांग्रेस को यह तीन फैसले नहीं करने चाहिए थे. आदर्श घोटाला न्यायिक जांच की रिपोर्ट को खारिज करना, राजद या लालू प्रसाद से समझौता करना और कोड़ा समूह से राजनीतिक संबंध कायम करना.

कांग्रेस देश की एक महान पार्टी रही है. अपने आरंभिक दिनों में उसने सार्वजनिक और सामाजिक जीवन के बड़े और महान उद्देश्यों को तय किया है. उसके एक से एक बड़े नेता हुए हैं, जिनकी स्मृति आज भी भारत को ताकत देती है. पर उस कांग्रेस की राजनीति अलग थी. उसकी कथनी और करनी में फर्क कम था. वह चरित्र को तवज्जो देती थी. भ्रष्टाचार के आरोपी लोगों के पीछे खड़े होकर भ्रष्टाचार मिटाने का हुंकार नहीं भरती थी. अब राजनीति बदल गयी है. इस बदलाव का सबसे प्रत्यक्ष प्रतीक ‘आप’ (आम आदमी पार्टी) है. ‘आप’ ने साबित किया है कि एक शासक को अब सामान्य आदमी की तरह रहना होगा. लाल-पीली-नीली बत्ती लगा कर, हूटर या सायरन लगा कर लोगों को सड़कों पर डराते-धमकाते चलनेवाले राजनेता अब जाति-धर्म के नाम पर अपनी ही जाति और धर्म के लोगों को ठग नहीं सकेंगे. अपराधियों को, भ्रष्टाचारियों को या विधायकों को खरीद कर सरकार बनाने या कमीशन और लूट की बदौलत होनेवाली राजनीति को आधार बना कर, राजनीति करने के दिन धीरे-धीरे जा रहे हैं. दिल्ली में ‘आप’ का उदय इसका संकेत है. जिस दिन दिल्ली में ये सब बातें हुईं, उसी दिन बिहार से खबर थी कि लोजपा ने राजद से संबंध तोड़ने की धमकी दी. विवाद का कारण था कि राजद के एक बड़े नेता ने लोजपा के 2009 के लोकसभा प्रत्याशियों के बारे में सवाल उठा दिया. उन्होंने कहा कि लोजपा ने तब एक माफिया डान की पत्नी को टिकट दिया था. लोजपा ने जवाब में कहा कि राजद ने भी सीवान से जाने-माने माफिया सरदार की पत्नी को टिकट दिया था. इस तरह राजनीति में जाने-अनजाने अब सवाल उठने लगे हैं कि राजनीति में उतरनेवाले लोग कौन हैं? उनकी पृष्ठभूमि क्या है? उनका अतीत कैसा है? उनका चरित्र क्या है? ‘आप’ जैसी पार्टी का उदय इसी सामाजिक जागरूकता की देन है. मुलायम सिंह यादव ने अपनी पार्टी के लोगों से कहा कि वे गुंडई छोड़ें. ‘आप’ से सीखें. जनता को अब गुंडई पसंद नहीं है. धीरे-धीरे ही सही, पर जातिवाद की बात करनेवाले लोग, अब अपनी जाति-धर्म या बिरादरी के चरित्रवान और बेहतर लोगों को टिकट पाते देखना चाहते हैं. अब युवा समझते हैं कि देश, समाज या राज्य आगे नहीं बढ़ा, तो उनका भविष्य नहीं है. अगर भ्रष्ट, अपराधी और गलत आचरण के लोग राजनीति में रहेंगे, तो देश, समाज और राज्य को तोड़ या नष्ट कर डालेंगे. ‘आप’ ने राजनीति में नये ढंग से सोचने की फिजा बनायी है. कांग्रेस को सबसे पहले अपने उद्धार के लिए इस नयी फिजा को समझना होगा और अपनी कथनी और करनी का फर्क मिटाना होगा. अब ऐसा नहीं चलेगा कि एक तरफ राहुल गांधी भ्रष्टाचार उन्मूलन का शंखनाद करें और दूसरी तरफ उनकी पार्टी हाल के वर्षो के बड़े भ्रष्टाचार की न्यायिक रिपोर्ट के सच को खारिज करे या शार्टकट राजनीति के लिए भ्रष्टाचार के आरोपियों से राजनीतिक समझौता कर, 2014 के चुनाव में वैतरणी पार करने का काम करे.

कांग्रेस कुछ वर्षो के लिए सत्ता से अलग रहने का फैसला क्यों नहीं करती? वह सत्ता से अधिक, सिद्धांत को अपनाये. पार्टी संगठन को ग्रासरूट (जमीनी स्तर) से लेकर ऊपर तक सुधारे. हर स्तर पर पार्टी के अंदर लोकतांत्रिक बोध पैदा करे. नीचे से ऊपर तक कांग्रेस की हर पार्टी इकाई का वार्षिक अधिवेशन हो. सही फैसले हों. जमीन से जुड़े नेता चुन कर ऊपर जायें. कुछ महीनों पहले जयपुर की कांग्रेस बैठक में राहुल गांधी ने कहा भी कहा था कि वह कांग्रेस में ऐसे 50-60 नेता खड़ा कर देना चाहते हैं, जो मुख्यमंत्री पद के योग्य हों या बड़े नेता बनने लायक हों. कांग्रेस, बड़े और चरित्रवान नेताओं के निकलने का केंद्र थी. वही कांग्रेस यह संदेश दे रही है कि वह सत्ता के बिना रह नहीं सकती? कांग्रेस अगर सिद्धांत पर चले, तो सत्ता फिर उसके पास आयेगी. कांग्रेस का मजबूत होना देश के लिए जरूरी है. क्योंकि इसका उद्गम मध्यमार्गी विचारधारा में है. सब को साथ लेकर चलने में है. इसके पास एक अखिल भारतीय सपना रहा है. इसलिए कांग्रेस का कायाकल्प देशहित में जरूरी है. पर क्या कांग्रेस का कोई नेता आज यह समझ या सुन रहा है? देश में जितने क्षेत्रीय दल हैं, उनके नेताओं के पास आज क्या सपने हैं? आज किसी बड़े दल में साहस नहीं कि वह इन क्षेत्रीय छत्रपों से यह पूछे? क्यों इन दलों के नेता पहले खुद के लिए सोचते हैं, फिर अपने परिवार के लिए, फिर अपनी पार्टी के लिए, फिर अपनी जाति-धर्म या गोत्र या सामाजिक वर्गो के लिए? इनके पास क्या बड़े सपने हैं? इनके सपने में भारत कहां है? अगर भारत नहीं बचा, तो ये क्षेत्रीय छत्रप नेता क्या करेंगे? आज सबसे अधिक संकट ‘भारत की अवधारणा’ को लेकर है. देश किसी के जेहन में नहीं है. हर क्षेत्रीय दल, सीमित सपनों-लक्ष्यों से बंधा है. यही अवसर है कि कांग्रेस, देश-समाज और हर धर्म को लेकर एक बड़े सपने के साथ चलने का राष्ट्रीय सपना दिखा कर अपना कायाकल्प कर सकती है. यह अवसर भाजपा के पास भी है. राहुल गांधी जिस दिन दिल्ली में भ्रष्टाचार उन्मूलन की बात कह रहे थे, उसके ठीक दो दिनों बाद (यानी 24.12.13 को) मुंबई में हाउसिंग डेवलपमेंट फाइनेंस कारपोरेशन (एचडीएफसी) के चेयनमैन दीपक पारीख ने कहा कि अगर हाउसिंग क्षेत्र में भ्रष्टाचार खत्म कर दिया जाये, तो घरों या फ्लैटों की कीमत में सीधे बीस फीसदी की गिरावट होगी. दीपक पारीख हमारे समय के जाने-माने ईमानदार बैंकरों में से हैं. अभी वह भारत के जिस संस्थान के प्रमुख हैं, वह सबसे बड़ा मॉर्गेज लेंडर (बंधक पर ऋण देनेवाला) है. उन्होंने साफ-साफ इस भ्रष्टाचार का आरोप नौकरशाही व गलत सरकारी नीतियों पर लगाया. क्या राहुल गांधी या कांग्रेस की निगाह में ऐसी चीजें हैं? फर्ज करिए, कांग्रेस की केंद्रीय सरकार अगर तुल जाये कि हमारी सरकार रहे या जाये, हाउसिंग सेक्टर में, जमीन खरीद-बिक्री के धंधे में भ्रष्टचार खत्म कर देंगे, तो इससे देश में कितना बड़ा संदेश जायेगा? क्योंकि घर तो हर आदमी को चाहिए? आज जमीन खरीदना या बेचना हो, तो आपके ईमानदार होते हुए भी व्यवस्था आपको विवश कर बेईमान बनाती है. क्या यह शासकों को पता नहीं? देश के बड़े संस्थानों के जानेमाने लोग (दीपक पारीख जैसे) अगर खुलेआम कहते हैं कि इस तरह की स्थिति है, तो सरकार को किस आंदोलन की प्रतीक्षा है, इसे रोकने के लिए? क्या कोई आम आदमी पार्टी आकर इसको खत्म करेगी? या कांग्रेस उस आम आदमी पार्टी की प्रतीक्षा में है, जो आकर इन चीजों पर आंदोलन चलाये? अगर कांग्रेस की संस्कृति को बदलना है, तो उसे इस स्तर पर काम करना होगा. आज क्या हालत है, कांग्रेस की? आंध्र प्रदेश में कांग्रेस के मुख्यमंत्री किरण कुमार रेड्डी ही अपने आलाकमान के खिलाफ विद्रोह का झंडा उठाये हुए हैं. आंध्र कांग्रेस के सांसद ही कांग्रेस का जनाजा निकालने को तैयार हैं. नरेंद्र मोदी, सरदार पटेल के नाम पर जो स्मारक बनवा रहे हैं, उसे कांग्रेस ने सांप्रदायिक कदम कहा. पर केरल में केरल कांग्रेस या यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट के मुख्य सचेतक पीसी जाजर्, नरेंद्र मोदी द्वारा आयोजित ‘रन फॉर यूनिटी’ के मैराथन में दौड़े. वह केरल कांग्रेस (मणि ग्रुप) से हैं. राज्य में कांग्रेस की सरकार की मुख्य सहयोगी पार्टी. पीसी जार्ज ने ईसाई बहुल इलाके के शहर कोट्टयम में मैराथन दौड़ शुरू करने की झंडी दिखायी. वह टी-शर्ट भी बांटा, जिस पर नरेंद्र मोदी की तस्वीर थी. जब उनकी आलोचना हुई, तो उन्होंने कहा कि सरदार पटेल का सम्मान करना कहां से गलत है? उन्होंने कहा कि ऐसा काम वह बार-बार करेंगे. अब कांग्रेस हतप्रभ है.

कांग्रेस को सोचना चाहिए कि क्यों आज, समाज में आदर्श और प्रेरणा का वह माध्यम नहीं रह गयी? केरल में ही मजबूत आर्थोडॉक्स सीरियन चर्च के प्रमुख ने 24.12.13 को नरेंद्र मोदी को समर्थन देने की बात की और उनके गुणों की प्रशंसा की. उन्होंने यह भी कहा, जो लोग देश में बदलाव देखना चाहते हैं, वो मोदी को सपोर्ट करें. कुछ मुस्लिम नेता भी पहले इस तरह का बयान दे चुके हैं. कांग्रेस को आत्ममंथन करना चाहिए कि क्यों ऐसे हालात बन रहे हैं कि लोग उससे बिदक रहे हैं और मोदी की प्रशंसा कर रहे हैं? अब कांग्रेस को नयी राजनीति के सूत्र गढ़ने के लिए कोशिश करनी चाहिए. संभव हो, तो सत्ता की दुनिया से कुछेक वर्षो तक बाहर रह कर आदर्श की राजनीति, सिद्धांत की राजनीति की पुरानी राह पर लौट कर, नेहरू, कामराज, लाल बहादुर शास्त्री वगैरह के रास्ते पर लौट कर अपना कायाकल्प करना चाहिए. पापों का प्रायश्चित भी. हर प्रायश्चित करने से शुद्धता आती है. पर क्या कांग्रेस नेतृत्व अपने इस हाल को समझ रहा है?

दरअसल, उदारीकरण के बाद और शिक्षा के प्रसार-प्रभाव से पुराना भारतीय मानस बदला है, पर कांग्रेस पुरानी राह पर ही है. खबर आयी कि लोकसभा अध्यक्ष मीरा कुमार ने अपना सरकारी बंगला और 25 साल तक के लिए आवंटित करा लिया है (26.12.13 को टाइम्स ऑफ इंडिया की वेबसाइट पर प्रकाशित). यह आवंटन उनके पिता बाबू जगजीवन राम के नाम पर बने फाउंडेशन को किया गया है. पूर्व मुख्यमंत्रियों के नाम पर सुविधाएं, पूर्व प्रधानमंत्रियों के नाम पर सुविधाएं, पूर्व मंत्रियों-सांसदों-विधायकों के नाम पर अपार सुविधाएं, यह सामंती संस्कृति का प्रतीक है. क्यों लोकतंत्र में सेवा करने के नाम पर विशेष रियायत या सुविधाएं शासकवर्ग को मिले? जब तक आप सत्ता में हैं, न्यूनतम सुविधाओं की बात समझ में आती है, पर एक-एक अफसर, मंत्री या सांसद के आसपास जितनी संख्या में गाड़ियां चलती हैं या सुरक्षा होती है, वह भी पूरी तरह सरकारी खर्चे पर, इससे अब लोगों को ऊबकाई आ रही है. पर कांग्रेस इसे समझ नहीं पा रही है. अन्य दल तो कांग्रेस की ही प्रदूषित कापी हैं. इसलिए वे भी उसी राह पर हैं. पर ‘आप’ के उदय के पीछे का मानस समझना चाहिए. ‘आप’ ने इन्हीं चीजों को पकड़ा है. ‘आप’ के लोग इन तौर-तरीकों से न रहेंगे, न चलेंगे और न राजकोष के नाम पर शहंशाह की जिंदगी व्यतीत करेंगे. यही फर्क भारतीय राजनीति में एक बड़ा कारण बननेवाला है. उत्तर प्रदेश से (दिनांक 26.12.13 को) एक खबर है कि यहां के मुख्यमंत्री ने एक आइएएस अफसर को निलंबित किया है. क्योंकि मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के गांव, सैफई में स्विमिंग पूल (दो सौ करोड़ की लागत से) बनने का फंड देर से रिलीज हुआ. वह मुख्यमंत्री का गांव है, इसलिए वहां ‘सैफई महोत्सव’ मनाया जाता है. पता चला कि पूल के निर्माण में ठेकेदार कुछ गड़बड़ी कर रहे थे, तो फंड जारी करने पर रोक लगा दी गयी. इसलिए वह आइएएस अफसर हटा दिये गये. यह राजनीति, कांग्रेसी संस्कृति का नमूना है. कोई अफसर जनता का काम न करे, भ्रष्टाचार करे, तब उसे आप निलंबित करें, यह बात समझ में आती है. पर अपने गांव में सरकारी कोष से बड़ा आयोजन या निर्माण करें, उसमें हो रही गड़बड़ी पर कोई अफसर रोक लगाये और उस अफसर को आप सस्पेंड करें, यह मानसिकता अब नहीं चलनेवाली.

कांग्रेस बदले की भावना से काम करती है. हालांकि इसका प्रतिफल वह बार-बार भुगत चुकी है, फिर भी सीखने को तैयार नहीं. इमरजेंसी में चुन-चुन कर उसने बदले की भावना से काम किया, जनता ने सजा दी. जेपी ने तब कहा ‘विनाशकाले विपरीत बुद्धि’. फिर भी कांग्रेस उसी राह पर है. जब तक बाबा रामदेव कांग्रेस के साथ थे, उन पर एक मामला नहीं हुआ. जब वह खिलाफ बोलने लगे, तो उन पर सौ मामले लाद दिये गये. अर्थसंकट गहरा रहा है. पर कांग्रेस कई बड़े नीतिगत फैसले नहीं कर रही है. कहती है कि चुनाव सिर पर है. लेकिन बदले की भावना से दूसरे दलों को वह तंग कर रही है. मसलन, ‘आप’ को मिले विदेशी चंदे की जांच की घोषणा. क्या यह जांच तीन-चार महीनों में पूरी हो जायेगी? क्योंकि उसके बाद चुनाव के गर्भ से कौन-सी सरकार निकलेगी, कोई नहीं जानता? अभी एक अंतरराष्ट्रीय रिपोर्ट जारी हुई. इस रिपार्ट में बताया गया कि पिछले कुछेक वर्षो में भारत से 15 लाख करोड़ रुपये, ब्लैकमनी के रूप में बाहर गये. इस पर कहीं चर्चा तक नहीं हुई. 2जी, कामनवेल्थ, कोलगेट जैसे बड़े घोटालों की जांच वर्षो से चल रही है, इनके परिणाम जल्दी आयें, इसके लिए सरकार कोई प्रयास नहीं कर रही. लेकिन ‘आप’ के विदेशी चंदे की जांच ताबड़तोड़ करने की बेचैनी है. याद रखिए, देश के सबसे बड़े घोटाले, आदर्श घोटाले की जांच रिपोर्ट आ गयी है. इसमें कांग्रेस के चार पूर्व मुख्यमंत्री दोषी पाये गये हैं. 22 बेनामी फ्लैट किनके हैं, इस जांच को भी कांग्रेस ने रोक दिया. कांग्रेस के एक पूर्व मुख्यमंत्री ने गलत फेवर के बदले आदर्श सोसाइटी में कई फ्लैट लिये, जिनके पैसे भी उनके बिल्डर मित्रों ने चुकाये.. रंगे हाथ सब पकड़े गये हैं, न्यायिक रिपोर्ट में अनेक प्रमाण-सबूत हैं, पर कांग्रेस ने राज्यपाल से अपने पूर्व मुख्यमंत्री के खिलाफ कानूनी कार्रवाई के सीबीआइ के प्रस्ताव को अस्वीकृत करा दिया. न्यायिक रिपोर्ट ही खारिज कर दी. यानी जो चोर पकड़ लिये गये हैं, उनको आप (कांग्रेस) बचा रहे हैं, और ‘आप’ के लोग, जो अपना हिसाब खुलेआम दिखा रहे हैं, उनके ऊपर जांच बैठा रहे हैं.

इसी तरह नरेंद्र मोदी का मामला है. एसआइटी की रिपोर्ट पर सुनवाई के लिए सुप्रीम कोर्ट ने नीचे की अदालत में भेजा. गुजरात दंगों व एहसान जाफरी के प्रसंग में. अदालत ने नरेंद्र मोदी को निर्दोषपाया. इसके पहले सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त विशेष जांच दल यानी एसआइटी ने काफी गहराई व बारीकी से गहन जांच की. इसजांच टीम के प्रमुख, सीबीआइ के पूर्व प्रमुख राघवन थे. माना जाता है कि सेवा में आने से पहले वह मार्क्‍सवादी थे. नरेंद्र मोदी को बारह घंटे तक लगातार अपनी सफाई देनी पड़ी. जिस दिन उस मामले में अदालत ने नरेंद्र मोदी को बरी किया (नरेंद्र मोदी विरोधियों की पूरी नजर इस मामले पर थी), उसी दिन कांग्रेस ने एक महिला की जासूसी के प्रकरण में नरेंद्र मोदी पर जांच आयोग बैठा दिया. इस जांच का अंतिम प्रतिफल क्या होनेवाला है? अगर बात सौ फीसदी सही निकली, तो सुप्रीम कोर्ट के अवकाश प्राप्त जज यही रिपोर्ट देंगे कि नरेंद्र मोदी की कोई महिला मित्र है या नहीं? अगर महिला मित्र है, तो इससे क्या साबित होनेवाला है? असल खबर तो इस मामले की यही है कि जिस कुलदीप शर्मा और प्रदीप शर्मा बंधुओं (ये दोनों भाई हैं. एक आइपीएस, दूसरा आइएएस, पर दोनों के ऊपर गंभीर आरोप हैं. केंद्र सरकार उन्हें नरेंद्र मोदी के खिलाफ इस्तेमाल कर रही है) के भरोसे वह इस मामले में भी आगे बढ़ रही है, वे खुद अविश्वसनीय और गलत हैं. यह मामला भी अंतत: नरेंद्र मोदी के पक्ष में जानेवाला है. क्योंकि इस मामले का पूरा सच अभी तक सार्वजनिक नहीं हुआ है. जानकार बताते हैं कि इसमें कांग्रेस फंसनेवाली है. ठीक वैसे ही, जैसे आइपीएस संजीव भट्ट ने जो आरोप लगाये थे, वे झूठे निकले. भट्ट का अतीत और काम भी बहुत विवादास्पद रहा है. कांग्रेस ने उन्हें भी नरेंद्र मोदी के खिलाफ इस्तेमाल किया. कांग्रेस समझ नहीं पा रही कि वह झूठे और अस्थिर अफसरों के भरोसे नरेंद्र मोदी को शहीद बना रही है. नरेंद्र मोदी के मामले की इसी मिसहैंडलिंग के कारण आज नरेंद्र मोदी, केंद्र सरकार के लिए सबसे बड़ी चुनौती हैं. दरअसल, यह राजनीतिक लड़ाई है. राजनीतिक तौर-तरीकों से नरेंद्र मोदी को परास्त करने की कोशिश कांग्रेस करे. जिन अफसरों के कैरियर दागदार रहे, जो खुद अनेक गंभीर आरोपों से घिरे हैं, उनके झूठ के भरोसे आप नरेंद्र मोदी को घेरने चले हैं. इससे नरेंद्र मोदी के पक्ष में सहानुभूति की लहर पैदा होगी. राबर्ट वडेरा पर आरोप लगता है, तो जांच नहीं होती. उनके खिलाफ रिपोर्ट देनेवाले अफसर अशोक खेमका पर तुरंत कार्रवाई हो जाती है. इसका क्या लोक संदेश है? यह समझना होगा? राहुल गांधी, कांग्रेस के इस चेहरे को बदलना चाहते हैं, लेकिन पग-पग पर घाघ कांग्रेसी उन्हें अपदस्थ करने में लगे हैं.

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