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बचपन में शादी माने जीवन बरबाद

शिकोह अलबदरझारखंड के बरहू ग्राम की प्रमिला देवी ने बहुत पहले ही यह वचन ले लिया था कि वह अपनी बेटी के बचपन को उससे कभी अलग नहीं करेंगी, जैसा की बचपन में उनके साथ हुआ था. उनकी शादी बचपन में ही कर दी गई थी. इसी तरह 19 वर्षीय सनिता ने भी शादी के […]

शिकोह अलबदर
झारखंड के बरहू ग्राम की प्रमिला देवी ने बहुत पहले ही यह वचन ले लिया था कि वह अपनी बेटी के बचपन को उससे कभी अलग नहीं करेंगी, जैसा की बचपन में उनके साथ हुआ था. उनकी शादी बचपन में ही कर दी गई थी. इसी तरह 19 वर्षीय सनिता ने भी शादी के दबाव को रोकने के लिए भूख हड़ताल कर दिया जिसके प्रभाव से उसके माता पिता ने उसकी शादी का प्रस्ताव रोक लिया और आज सनिता उच्च शिक्षा अजिर्त कर रहीं हैं.

ये कुछ ऐसे उदाहरण हैं जिन्होंने बाल विवाह को रोकने के लिए ठोस कदम उठाये. झारखंड तथा बिहार में बाल विवाह का प्रचलन अधिक है और यह बात भी सामने आयी कि इसके नकारात्मक परिणाम की जानकारी होने के बाद भी बाल विवाह को गंभीरता से नहीं लिया जाता. देश बनाम बाल विवाह के नाम से हाल ही में आयोजित एक कार्यक्रम में स्वयं सेवी संस्था ब्रेकथ्रु ने झारखंड के रांची व हजारीबाग एवं बिहार के गया जिला के 280 ग्राम पंचायतों के 5483 लोगों के बीच बाल विवाह पर सर्वेक्षण में प्राप्त इस तथ्य को सामने लाया कि 60 प्रतिशत लड़कियों की शादी 18 वर्ष से पहले कर दी जाती है.

सामाजिक दबाव व असुरक्षा की भावना मुख्य कारण
समाज में व्याप्त रूढ़िवादी सोच तथा परंपरा एवं संस्कृति, लड़कियों को बोझ समझा जाना और लड़कों को अधिक महत्व दिया जाना आदि बाल विवाह के मुख्य कारणो के रूप में सामने आये हैं. कम उम्र की लड़कियों की शादी कम दान दहेज दे कर कर दिया जाता है. लड़कियों की शिक्षा उसी समय तक जारी रखते हैं जब तक सरकार नि:शुल्क शिक्षा मुहैया कराती है. इसके बाद माता-पिता सामान्यत: लड़कियों की शादी कर देते हैं. विद्यालय की घर से दूरी भी इस बात को तय करती है कि लड़की को स्कूल भेजा जाये अथवा नहीं.

लड़कियों को सुरक्षा की दृष्टिकोण से स्कूल नहीं जाने दिया जाता. बेटे की चाह में अगली संतान लड़कियां हो जाने और दहेज के बोझ से बचने के लिए भी लड़कियों की शादी कम उम्र में कर दी जाती है. स्वयं सवी संस्था ब्रेकथु के देश बनाम बाल विवाह के नाम से आयोजित एक कार्यक्रम में इन बातों की जानकारी ब्रेकथ्रु के कार्यक्रम प्रबंधक चद्रनाथ मिश्र बताते हैं कि समाज में लड़कियों की इज्जत को माता-पिता तथा परिवार अपनी प्रतिष्ठा को कायम रखने व इसे बढ़ाने के तौर पर देखते हैं व इसके साथ किसी प्रकार की अनहोनी का भय उन्हें सताता है. इस कारण अपनी व अपने परिवार के सम्मान को बरकरार रखने के भय के कारण माता-पिता लड़कियों की शादी कम उम्र में कर देते हैं. लड़कियों का बाल्यावस्था से किशोरावस्था में जाने को प्राय: समाज लड़कियों को वयस्क होना मान लेता है. इस उम्र में हो रहे शारीरिक संरचना में बदलाव बाल विवाह का एक मुख्य कारण है.

यह वह समय होता है जब परिवार के बड़े बुजुर्ग एक सामाजिक दबाव महसूस करते हैं और अपनी मान मर्यादा को सुरक्षित रखने के लिए लड़कियों का विवाह अल्पायु में ही कर देते हैं. ब्रेकथ्रु के सर्वे में शामिल किये गये महिलाओं में से 50 प्रतिशत का जवाब था कि उनकी शादी 13 से 18 साल की उम्र में हो चूकी थी. लड़कियों की शादी कम उम्र में महज सामाजिक दबाव के कारण कर दिया जाता है. रोजगार के विकल्प की कमी के कारण भी लड़कियों का विवाह छोटी आयु में हो जाता है. लड़कियों से उनके विवाह के संबंध में उनकी सहमति लिये जाने को आवश्यक नहीं समझना अथवा इससे संबंधित किसी प्रकार की सूचना का साझा नहीं किये जाने के कारण बाल विवाह के मामले में सामने आते हैं.

गर्भवती की मृत्यु और यौन रोग है बाल विवाह के दुष्परिणाम
बाल विवाह के कारण प्रसव के दौरान ही मां अथवा गर्भस्थ या दोनों की ही मृत्यु हो जाने की संभावना बढ़ जाती है. शरीर का पूरी तरह विकसित नहीं होना इसका मुख्य कारण है. लड़कियों के छोटी आयु में विवाह किये जाने से उनके प्रति हिंसा को बढ़ावा देता है , क्योंकि इस समय उनका मानसिक विकास पूरी तरह नहीं होने से वे किसी प्रकार का विरोध नहीं जता पाती हैं. छोटी उम्र में शादी होने के कारण यौन रोग होने की भी अधिक संभावना होती है क्योंकि लड़के लड़कियों को यौन आचरण (मासिक चक्र के दरम्यान यौन संबंध न करना और अन्य स्वच्छता संबंधी बातों) की पूरी जानकारी नहीं होती.

जागरूकता से ही रोका जा सकता है बाल विवाह
बाल विवाह को रोका जाना समाज के प्रत्येक व्यक्ति की सामाजिक जिम्मेदारी है और इसके प्रति समुदाय में मानसिक बदलाव लाना जरूरी है. शिक्षा को प्राथमिकता देनी ही होगी. महिलाएं तथा छोटी आयु की लड़कियां बाल विवाह को रोकने के लिए अहम भूमिका निभा सकती हैं. पंचायत की महिला मुखिया बाल विवाह पर रोक लगाने में महत्वपूर्ण दायित्व का निर्वाह कर सकती हैं. सरकारी कार्यक्रम के तहत शैक्षणिक सुविधाएं तथा आर्थिक सहायता देकर बाल विवाह उन्मूलन का काम किया जा रहा है. गैर-सरकारी संस्थाएं भी समुदाय तथा महिला संगठनों के बीच बाल विवाह के नकारात्मक परिणामों के प्रति जागरूकता अभियान ला रहीं है. यदि पंचायतों में स्वयं सहायता समूह की महिलाओं को बाल विवाह के मुद्दे पर क्षमता संवर्धन का काम किया जाये तथा इन समूह के माध्यम से यौनिकता, यौन हिंसा, शोषण तथा महिलाओं के अधिकार से जुड़े सभी मुद्दों पर परिवार में जानकारी दी जाये तो इसके सकारात्मक परिणाम सामने आ सकते हैं.

बाल विवाह रोकने के लिए लें कानूनी मदद
बाल विवाह अधिनियम के तहत यदि लड़की की उम्र 18 वर्ष से कम तथा लड़के की उम्र 18 से अधिक हो तो लड़के को सजा हो सकती है. बाल विवाह अधिनियम के तहत माता पिता तथा संरक्षक को भी सजा दिये जाने का प्रावधान है. बाल विवाह का शिकार हुआ लड़का या लड़की अपनी शादी रद्द करवा सकता है ऐसा उसे कानूनी अधिकार दिया गया है. बाल विवाह रोकने या शिकायत दर्ज करने के लिए बाल विवाह निषेध अधिकारी जो राज्य सरकार द्वारा नियुक्त किया जाता है,जिला उपायुक्त तथा पुलिस पदाधिकारी को सूचना दी जा सकती है. बाल विवाह निषेध अधिकारी स्थानीय पंचायत या गैर सरकारी संस्थान के ऐसे सदस्य को गांव या प्रखंड स्तर पर नियुक्त कर सकता है जो इस संबंध में उसे सूचना दे सके.

बाल विवाह को रोकने के लिए सरकारी योजनाएं भी हैं जिसमें मुख्यमंत्री लक्ष्मी लाडली योजना प्रमुख है. इस योजना से वह परिवार लाभ उठा सकता है जिसमें दो ही बच्च है. योजना के तहत नवजात लड़की की उम्र 5 साल की होने तक राज्य सरकार उसके डाक घर बचत खाते में 6000 रुपया वार्षिक जमा करती है. शिक्षा के लिए उसे छठी कक्षा में 2000 रुपये, नौवीं कक्षा में 4000 रुपये और ग्यारहवीं कक्षा में 7,500 मिलते हैं वहीं बाहरवीं कक्षा में पहुंचने पर 200 रुपये प्रति माह वजीफा दिया जाता है. लड़की की शादी के समय सरकार परिवार को 60,000 रुपये देती है तथा योजना के परिपक्व होने पर जब लड़की की उम्र 21 वर्ष हो जाती है वह 1.08 रुपये की हकदार होती है.

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