तुर्की में पुलिस ने विपक्ष के अख़बार ज़मन के दफ़्तरों पर छापे मारे हैं.
शुक्रवार को एक अदालत ने इस अख़बार को सरकार के अधीन करने का फ़ैसला सुनाया था.
यह फ़ैसला आने के कुछ घंटे बाद ही पुलिस ने इस्तांबुल में अख़बार के दफ़्तर में घुसी. ज़मन के समर्थक बड़ी तादाद में दफ़्तर के बाहर जमा हो गए और प्रदर्शन किया. पुलिस ने उन्हें तितर-बितर करने के लिए आंसू गैस के गोले छोड़े.
अमरीका में बसे इस्लामी धर्मगुरु फ़तउल्ला गुलन के हिज़मत आंदोलन से इस अख़बार का नज़दीकी रिश्ता है.
तुर्की सरकार हिज़मत को ‘चरमपंथी’ गुट मानती है, जिसका मक़सद राष्ट्रपति रीचेप तैयप एर्दोआन की सरकार को उखाड़ फ़ेंकना है.
गुलन किसी समय एर्दोआन के सहयोगी थी, पर बाद में उनके रास्ते अलग-अलग हो गए.
पत्रकारों के साथ सलूक को लेकर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर तुर्की सरकार की काफ़ी आलोचना होती रही है.
पत्रकार इमरे सोनकैन ने ट्वीट किया, "तुर्की सरकार ने देश की अंतिम विरोधी आवाज़ ज़मन पर क़ब्ज़ा कर लिया है. यह लोकतंत्र का अंत है."
उनके सहयोगी अब्दुल्लाह आयसुन ने भी ट्वीट किया, "दंगाविरोधी पुलिस ज़मन के दफ़्तर के अंदर है. उन्होंने मुझे बाहर निकाल दिया."
पुलिस ने पिछले साल नवंबर में जम्हूरियत अख़बार के लिए काम करने वाले पत्रकार कैन दंदर और इरदम गुल को हिरासत में लिया था.
उन्होंने एक ख़बर छापी थी जिसमें आरोप लगाया गया था कि तुर्की सरकार ने सीरिया के इस्लामी कट्टरपंथियों को हथियार भेजने की कोशिश की थी.
उनके मुकदमे की सुनवाई 25 मार्च को होनी है और उन्हें आजीवन कारावास की सज़ा हो सकती है.
रिपोर्टर्स बिदआउट बॉर्डर्स के मुताबिक़, प्रेस की आज़ादी के लिहाज़ से बनी 180 देशों की सूची में तुर्की 149वें स्थान पर है.
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