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मां सरस्वती की पूजा आज, तैयारी हुई पूरी

सुबह 10.20 बजे तक पूजा का उत्तम मुहूर्त रांची : सरस्वती पूजा शनिवार को है. शनिवार को दिन के 10.20 बजे तक ही पंचमी है. इसलिए पूजा उक्त समय तक हो जाये, तो अति उत्तम होगा. हालांकि उदया तिथी में पंचमी मिलने के कारण सारा दिन पंचमी मान्य होगा. डॉ सुनील बर्म्मन ने कहा कि […]

सुबह 10.20 बजे तक पूजा का उत्तम मुहूर्त
रांची : सरस्वती पूजा शनिवार को है. शनिवार को दिन के 10.20 बजे तक ही पंचमी है. इसलिए पूजा उक्त समय तक हो जाये, तो अति उत्तम होगा. हालांकि उदया तिथी में पंचमी मिलने के कारण सारा दिन पंचमी मान्य होगा. डॉ सुनील बर्म्मन ने कहा कि इस दिन रवि योग मिल रहा है. इस दिन किया गया कोई शुभ कार्य फलदायी माना जाता है. मां सरस्वती की आराधना के लिए प्रात: काल का समय सबसे उपयुक्त माना गया है.
शिक्षण संस्थानों व मुहल्लों में विशेष तैयारी
विद्या की देवी की आराधना के लिए स्कूल-कॉलेजों व मुहल्लों में विशेष तैयारी की गयी है. यहां पिछले कई दिनों से तैयारी चल रही है. वहीं संगीत केंद्र से लेकर अन्य शिक्षण संस्थानों में भी तैयारी पूरी कर ली गयी है. शहर में कई जगहों पर बड़े -बड़े पंडाल भी बनाये जा रहे हैं. कई जगहों पर छात्र स्वयं ही पंडाल बना रहे हैं अौर उसकी साज सजावट भी खुद से कर रहे हैं.
सौ रुपये से लेकर 10 हजार रुपये तक की प्रतिमा
सरस्वती माता की प्रतिमा की खरीदारी हुई. दुकानों में 50 रुपये से लेकर हजार रुपये तक, वहीं मूर्तिकार के यहां 100 से लेकर दस हजार से भी अधिक रुपये की प्रतिमा बिकी़ कई संस्थानों ने बड़ी बड़ी प्रतिमा तैयार करवायी है, जो देखने में काफी भव्य है. वहीं कई क्लब व संस्था बंगाल से मूर्ति लेकर आये हैं.
फल की दुकानों पर भीड़
पूजा को लेकर फलों से बाजार सज गये हैं. शुक्रवार को फलों की दुकानों में काफी भीड़ थी. सेब 80 से लेकर 150 रुपये किलो तक बिक रहा है. इसके अलावा केला, देशी बेर, हाइब्रिड बैर, गाजर सहित अन्य फल बाजार में बिक रहे हैं. पीला केला 35 से 40 रुपये दर्जन, नारियल 20 से 30 रुपये पीस, देशी बेर 20 रुपये किलो, हाइब्रिड बेर 40 से 50 रुपये किलो की दर से बिका़
वर दे वीणा वादिनी वर दे
रिम्स : रिम्स में सरस्वती पूजा धूमधाम से मनाने की तैयारी है़ 13 फरवरी की सुबह 10 बजे से पूजा होगी़ संध्या सात बजे से माता का जागरण होगा़ 14 फरवरी को सुबह 10 बजे पुष्पांजलि और संध्या चार बजे मूर्ति विसर्जन किया जायेगा़
यूनियन क्लब : यूनियन क्लब आॅफ लाइब्रेरी में सरस्वती पूजा मनायी जायेगी़ प्रात: दस बजे पूजा अर्चना के बाद संध्या सात बजे से रंगारंग कार्यक्रम होगा़ जिला स्कूल : जिला स्कूल में पिछले तीस वर्षों से अधिक समय से सरस्वती पूजा हो रही है. इसकी तैयारी पूरी कर ली गयी है. प्रात: 10.30 बजे विधि विधान के अनुसार पूजा की जायेगी और प्रसाद का वितरण किया जायेगा.
बदले पंडाल, घटते गये संस्कार
सरिता चंद्रा
ऋतुराज बसंत का आगमन और प्रकृति की देवी माता सरस्वती की आराधना संग-संग सदियों से होती आयी है. माघ शुक्ल की पंचमी तिथि को आदिकाल से ही मां शारदा की पूजा का विधान है. साहित्य संगीत कला की देवी विचारण, भावना संवेदना की त्रिविध शक्ति प्रदान करती है. महाकवि कालीदास, वरदाराचार्य ने उनकी सात्विक उपासना से ही अपनी शिथिल बुद्धि में तेज पायी थी. अत: सभी शास्त्रीय विधि विधान से पूजा संपादित कर इनकी कृपा की आस लगाये रहते हैं.
हर विद्यार्थी की यही इष्ट देवी रही है. सुर में माधुर्य और रज से युक्त होने के कारण इनका नाम सरस्वती पड़ा. इनकी कृपा से ही प्रथम नाद की उत्पत्ति हुई और बेजान सृष्टि में ध्वनियों की अनुगूंज सुनाई दी. केवल मानव ही देवी की उपासना नहीं करते, देवताओं और असुरों ने भी बुद्धि ज्ञान के लिए इनकी आराधना की थी. सुर-असुर मानव सभी बुद्धि ज्ञान, स्वर शब्द की पूर्णता के लिए इनके ही शरण में नतमस्तक होते हैं. कुंभकरण का त्रेता युग में सोते रह जाना मां सरस्वती की ही इच्छा थी. अर्थात किसे विवेकी बना कर जगत कल्याण में लगाना है और किसकी बुद्धि का हरण कर लेना है यह मां के ही हाथों से संचालित होता है.
प्राचीनकाल से ही हर विद्यार्थी देवी सरस्वती की आराधना को उत्सुक रहा है, क्योंकि वही एक मात्र विद्या, कला और संस्कारों की दात्री है. गुरुकुल में गुरु के शरण में रहने वाले शिष्य पूरे वेद शास्त्र के अनुसार ही देवी की प्राण- प्रतिष्ठा करते थे. मां की असीम कृपा प्राप्त करने के लिए सभी नियमों, साधनाओं, रीतियों का पालन किया जाता था, जिससे देवी की असीम कृपा उन पर बनी रहे.
वह बिना विघ्न-बाधाओं के अपनी शिक्षा-दीक्षा पूरा कर अपनी कलाओं में दक्षता प्राप्त कर सके. लगभग हर विद्यालयों, मुहल्लों में सामुदायिक पूजा का विधान था. यही वह आयोजन था जिसमें हर छात्र-छात्राओं को उनकी प्रतिका के अनुरूप काम सौंपा जाता था. मूर्तियां लाने, सजाने, पूजा संपन्न कराने, प्रसाद वितरण और संध्या आरती सभी कार्य कुशलता पूर्वक छात्रों द्वारा ही संपन्न करवाया जाता था. वह पूजा के माध्यम से कुशल प्रबंधन का ज्ञान प्राप्त करते थे. शंख, घंटे के साथ वैदिक मंत्रों को दोहराते थे. छात्र भक्तिमय वातावरण में डूब जाते थे.
सभी अपने कर्तव्यों को तत्परता और शुद्धता से निभाते थे, ताकि मां रूठ ना जाये. सामुदायिक एकता, निष्ठा और एकजुटता की झलक इस तरह के पूजा आयोजन में साफ दिखायी देती थी. विद्यालयों में शिक्षक इस पूजा को धर्म से नहीं, बल्कि कर्म समझ कर संपादित करवाते थे.
पर जैसे-जैसे समय बदला देवी की पूजा का विधान ही बदल गया. महीनों पहले से चंदे की उगाही खौफ का कारण बनने लगी. हर गली, नुक्कड़, चौराहे पर एक सरस्वती बैठायी जाने लगी है.
न शास्त्रों का विधान, न समय का ज्ञान. जब पंड़ित मिल जाये तभी पूजा कर लिया. पूजन सामग्री उपलब्ध हो न हो, अबीर-गुलाल और फटाके जरूर मिल जाने चाहिए. मां को चढ़ाये गये फल का सेवन करें न करें, लेकिन हर पंडाल के आगे चाऊमिन या चाट-पकौड़ी के ठेले पर लोग खाते अवश्य दिख जायेंगे. पूजा, पूजा न होकर एक और मनोरंजन का साधन मात्र रह गयी है.
इतना ही नहीं किसी तरह पूजा संपन्न भी हो जाये, तो विसर्जन का महूर्त कब निकलेगा पता नहीं. मां को पंडालों में बैठाकर दो-तीन दिनों तक हंगामा चलता ही रहता है. ऐसा लगता है कि माता सरस्वती इन कलयुगी भक्तों से रूठ कर विलुप्त ही न हो जाये.
कुंभकरण की तरह इन्हें भी विवेक खो कर लंबी निद्रा का अभिशाप न दे दे. आज अपने खाेते संस्कार को ढूंढने की जरूरत है. पूजा को सात्विकता और गरिमा बनाये रखने के लिए यह जरूरी है कि शिक्षक, अभिभावक, प्रशासन सभी बच्चों को सही मार्गदर्शन दे, तभी पूजा की शुद्धता, सार्थकता और संस्कारों को पुन: स्थापित किया जा सकेगा.
लेखिका एसएस डोरंडा प्लस टू विद्यालय, रांची में शिक्षिका हैं

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