इस्लामाबाद : पाकिस्तान में सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बावजूद सांसदों में राजनीतिक इच्छाशक्ति के अभाव के कारण हिंदू विवाह विधेयक को पारित नहीं हो पाया है. यहां के एक प्रमुख अखबार ने अल्पसंख्यकों खासकर हिंदू महिलाओं के अधिकारों को लेकर सरकार की प्रतिबद्धता पर सवाल खड़े किये हैं. समाचार पत्र ‘डॉन’ ने एक संपादकीय में कहा है कि पाकिस्तान में कई नेता अल्पसंख्यकों के अधिकार के बारे में बहुत तेजी से बयान जारी करते हैं लेकिन जब इन अधिकारों को सुरक्षित करने के लिए राजनीतिक कदम उठाने की बात आती है तो दिखाने के लिए बहुत कम चीजें हैं.
उसने कहा कि इस अजीबो-गरीब विरोधाभास का मुख्य उदाहरण हिंदू विवाह से संबंधित कानून का दशकों पुराना मुद्दा है. हिंदू विवाह से संबंधित विधेयक साल 2014 में पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी के नेता रमेश लाल और पाकिस्तान मुस्लिम लीग-नवाज के नेता दर्शन ने पेश किया था। इसी तरह का एक विधेयक मार्च, 2015 में कानून मंत्री परवेज राशिद ने संसद में पेश किया. अखबार का कहना है कि हिंदू महिलाओं को अधिकारियों से काम के दौरान अपने शादीशुदा संबंधों को साबित करने में समस्या का सामना करना पड़ता है, जबकि जिन महिलाओं के पतियों की मौत हो जाती है उनको भी नुकसान उठाना पड़ता है तथा इसकी असल वजह कानून का नहीं होना है.