यूजीसी के दफ़्तर के बाहर एक छोटे से तंबू के नीचे रातें काट रहे छात्र क़रीब तीन महीने से सरकार के जवाब का इंतज़ार कर रहे हैं.
मुद्दा है एम.फिल. की पढ़ाई के लिए हर महीने मिलनेवाले 5,000 रुपए और पीएच.डी के लिए 8,000 रुपए का.
भारत में उच्च शिक्षा की देखरेख के संस्थान, यूनिवर्सिटी ग्रांट्स कमिशन (यूजीसी) की 2013 की एक रिपोर्ट के मुताबिक़ 55,000 से ज़्यादा छात्र इस नॉन-नेट फ़ेलोशिप की मदद से पढ़ाई कर रहे हैं.
अक्तूबर में फ़ेलोशिप के तौर पर मिलने वाली ये छोटी सी मदद यूजीसी ने बंद करने का ऐलान किया. इसके विरोध में छात्रों ने ‘ऑक्युपाय यूजीसी’ नाम से मुहिम शुरू की. यूजीसी दफ़्तर के बाहर ‘ऑक्युपाय’ यानी ‘डेरा’ डाल लिया.
छात्रों के दबाव के चलते मानव संसाधन विकास मंत्री स्मृति ईरानी ने फ़ेलोशिप वापस लेने के फ़ैसले पर अंतरिम रोक लगाकर इस मुद्दे पर विचार के लिए पांच सदस्यों की रिव्यू-समिति का गठन किया. समिति को दिसंबर में अपनी सिफ़ारिशें देनी थीं पर यूजीसी के मुताबिक़ इसमें अभी और समय लगेगा.
समिति की सिफ़ारिशों के इंतज़ार में यहां बैठे छात्रों में से एक हैं अंबेडकर विश्वविद्यालय से एम.फिल. की पढ़ाई कर रहीं चैतन्या.
‘ऑक्युपाय’ यानि ‘डेरा’ डालने का मतलब है 24 घंटे का पहरा, यानी पढ़ाई-लिखाई छोड़ छात्र हर व़क्त वहां रहते हैं. जैसे-जैसे दिन बढ़ रहे हैं, छात्रों को ऐसे विरोध से जोड़े रखना मुश्किल हो रहा है.
चैतन्या बताती हैं कि शुरुआती दिनों में तो सिर्फ़ एक गद्दे और चादर से काम चला लिया गया, पर ठंड बढ़ने के बाद खुले में रात गुज़ारना बहुत मुश्किल था.
उन्होंने कहा, “ठंड हुई तो रात में ओस गिरने लगी और हमें पैसे इकट्ठा कर तंबू लगाना पड़ा, फिर सबसे बड़ी दिक़्क़त शौचालय की थी, पर पास की एक मस्जिद ने हमारी बहुत मदद की, वर्ना और ज़्यादा दिक़्क़त होती.”
चैतन्या के मुताबिक़ फ़ेलोशिप की मौजूदा राशि कम सही पर वो ऐसे कई छात्रों को उच्च शिक्षा जारी रखने का मौक़ा देती है जिनके परिवार इसके लिए राज़ी नहीं.
वह कहती हैं, “एक उम्र के बाद लड़कियों पर शादी का दबाव बनाया जाता है. फिर जो छात्र ग़रीब तबके के परिवारों से हैं या दलित-आदिवासी समुदायों से हैं, वो चाहते हैं कि वो जल्द कमाने लगें या फिर उनकी पढ़ाई के ख़र्च का बोझ परिवार पर न पड़े.”
वर्ष 2006 में शुरू की गई ये फ़ेलोशिप क़रीब 50 केंद्रीय विश्वविद्यालयों और शिक्षण संस्थानों के उन छात्रों को मिलती है, जो यूनिवर्सिटी में अध्यापक बनने के लिए ज़रूरी ‘नेट’ परीक्षा में ज़रूरी नंबर नहीं ला पाते.
वर्ष 2008 में यूजीसी के चेयरमैन रह चुके प्रोफ़ेसर यशपाल की अध्यक्षता में शिक्षा मंत्रालय ने देश में उच्चशिक्षा पर एक समिति बनाई थी.
समिति ने अपनी रिपोर्ट में शोध की अहमियत रेखांकित करते हुए कहा था, “सभी शोध संस्थानों के लिए यह ज़रूरी होना चाहिए कि वे अपने इलाके के विश्वविद्यालयों से जुड़कर पढ़ाने के आयाम बनाएं और सभी विश्वविद्यालयों को पढ़ाने और शोध वाली यूनिवर्सिटी का समागम होना चाहिए.”
उस वक़्त इस समिति के सदस्य रहे डॉ. कृष्ण कुमार स्कूली पाठ्यक्रम को तैयार करनेवाली संस्था एनसीआरटी के निदेशक भी रह चुके हैं.
उनके मुताबिक़ भारत में उच्चशिक्षा बहुत गहरे संकट में है और छात्रों से शोध के लिए दी जा रही मदद वापस लेने के विचार सकारात्मक कतई नहीं है.
बीबीसी से बातचीत में उन्होंने कहा, “ऐसी तमाम फ़ेलोशिप दरअसल छात्रों के बेहद पढ़े-लिखे वर्ग में बढ़ती बेरोज़गारी ढांपने का काम करती है. मूल दिक़्क़त के बारे में सोचा नहीं जा रहा है.”
डॉ. कुमार के मुताबिक़, “उच्च शिक्षा में अध्यापकों की नियुक्ति और शोध में जो निवेश होना चाहिए, वह नहीं किया जा रहा. इतने कम पैसे होने के बावजूद अगर छात्र इस फ़ेलोशिप के लिए आंदोलन कर रहे हैं, ये अपने आप बताता है कि उच्च शिक्षा की इस व़क्त क्या कीमत है.”
‘ऑक्युपाय यूजीसी’ के तहत वाम विचारधारा रखने वाले छात्र संगठन, आइसा और एआईएसएफ़ समेत देश के कई विश्वविद्यालयों के छात्र निजी तौर पर साथ आए और कई अब भी इस ‘डेरे’ में रह रहे हैं. एक रोस्टर के तहत रोज़ कुछ छात्र यहां 24 घंटे बिताते हैं.
वर्धा विश्वविद्यालय से आए देवेश बताते हैं कि छात्र न सिर्फ़ फेलोशिप को बरक़रार रखवाना चाहते हैं, बल्कि उसके तहत दिए जाने वाली राशि बढ़वाना चाहते हैं.
साथ ही उनकी मांग है कि योजना में केंद्रीय विश्वविद्यालयों के साथ अब राज्य के विश्वविद्यालयों को भी शामिल किया जाए.
दुनिया के मुक़ाबले भारत में शिक्षा के क्षेत्र में बेहद कम निवेश और ख़र्च किया जाता है. साल 2010 के विश्व बैंक के आंकड़ों के मुताबिक़ वैश्विक स्तर पर सकल घरेलू उत्पात (जीडीपी) का 4.9% शिक्षा के लिए रेखांकित किया गया था पर भारत में जीडीपी का 3.3% ही.
पिछले बजट में वित्त मंत्री अरुण जेटली ने शिक्षा के खर्च में 16 प्रतिशत और कटौती की घोषणा की थी. हालांकि मानव संसाधन विकास मंत्री स्मृति ईरानी ने छात्रों को भरोसा दिलाया है कि फ़ेलोशिप में कटौती या उसे बंद करने का आख़िरी फ़ैसला लेने से पहले उनकी मांगों को संज्ञान में लिया जाएगा.
(यदि आप बीबीसी हिन्दी के एंड्रॉएड ऐप का इस्तेमाल करना चाहते हैं तो यहां क्लिक करें. फ़ेसबुक और ट्विटर पर फ़ॉलो करने के लिए इस लिंक पर जाएं.)