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इतिहास को दे नयी पहचान

आर्कियोलॉजी यानी प्राचीन शिल्प विद्या आज के दौर का एक विषय है, जिसमें प्राचीन धरोहरों की पढ़ाई होती है. धरोहरों को सहेजने के प्रति सरकार व लोगों के बढ़ते रुझान के कारण इस क्षेत्र ने काफी विस्तार किया है. जानें कैसा है यह क्षेत्र.. आर्कियोलॉजी शुरुआत से आज तक के विकास को दर्शाता है. इसके […]

आर्कियोलॉजी यानी प्राचीन शिल्प विद्या आज के दौर का एक विषय है, जिसमें प्राचीन धरोहरों की पढ़ाई होती है. धरोहरों को सहेजने के प्रति सरकार व लोगों के बढ़ते रुझान के कारण इस क्षेत्र ने काफी विस्तार किया है. जानें कैसा है यह क्षेत्र..

आर्कियोलॉजी शुरुआत से आज तक के विकास को दर्शाता है. इसके माध्यम से सामाजिक संस्कृति को समझा जाता है. इसके लिए सर्वे, खुदाई, और खोज जैसे जरिये का इस्तेमाल होता है. बस इतना ही नहीं, जब खुदाई के दौरान या अन्य किन्हीं परिस्थितियों के कारण प्राचीन कलाकृति और स्मारक सामने आते हैं, तो आर्कियोलॉजी क्षेत्र के पेशेवर इनका विश्लेषण करते हैं, उनका प्रमाण प्रस्तुत करते हैं और इन्हें भविष्य के लिए संरक्षित करते हैं. और तो और, टूटे हुए मिट्टी के बर्तन के छोटे-छोटे टुकड़े या इनसानी हड्डियां भी आर्कियोलॉजी से संबंधित बहुत सी जानकारियां दे सकती हैं. कई बार आर्कियोलॉजिकल खोज के दौरान ऐसी चीजें ज्ञात होती हैं, जिससे धरोहरों से संबंधित नये आयामों का पता चल जाता है. आजकल आर्कियोलॉजिस्ट स्टेट ऑफ द आर्ट रिसर्च टेक्निक का उपयोग जेनेटिक स्टीज, रेडियोकार्बन डेटिंग, थर्मोग्राफी, सेटेलाइट इमेजिंग, मैग्नेटिक रिजोनेंस इमेजिंग (एमआरआइ) आदि में करते हैं.

वैसे आर्कियोलॉजी विषय एंथ्रोपोलॉजी, आर्ट हिस्ट्री, केमिस्ट्री, क्लासिकल लिटरेचर, एथनोलॉजी, जिओलॉजी, हिस्ट्री, इन्फॉर्मेशन टेक्नोलॉजी, लिंग्विस्टिक्स, पैलिऑनटोलॉजी, स्टेटिस्टिक्स, फिजिक्स आदि से संबंधित क्षेत्र है. कुल मिला कर देखें, तो यह क्षेत्र चुनौतीपूर्ण, प्रेरक और संतोषजनक है.

कैसे होगी शुरुआत
आमतौर पर भारत में इस विषय की पढ़ाई पोस्ट ग्रेजुएशन स्तर पर होती है. इस ओर रुख करने के लिए किसी भी स्ट्रीम में स्नातक होना जरूरी है. स्नातक डिग्री हिस्ट्री, सोशलॉजी, एंथ्रोपोलॉजी में की हो, तो आर्कियोलॉजी से संबंधित चीजों को समझने में आसानी होती है.

उपलब्ध कोर्स व संस्थान
देश में कुछ संस्थान ऐसे हैं, जो बैचलर स्तर पर भी इस विषय के कोर्स कराते हैं. जैसे महाराजा सयाजीराव यूनिवर्सिटी ऑफ बड़ौदा- इंडियन हिस्ट्री, कल्चर और आर्कियोलॉजी में तीन वर्षीय डिग्री कोर्स. बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में तीन वर्षीय एंशिएंट इंडियन हिस्ट्री, कल्चर और आर्कियोलॉजी में स्नातक डिग्री और तीन वर्ष का म्यूजिओलॉजी और आर्कियोलॉजी में वोकेशनल कोर्स. इंस्टीट्यूट ऑफ आर्कियोलॉजी (आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया, नयी दिल्ली के अंतर्गत चलाया जाता है) में आर्कियोलॉजी में दो वर्षीय डिप्लोमा कराया जाता है. इसके लिए आवेदकों के पास एंशिएंट या मेडिवल इंडियन हिस्ट्री, एंथ्रोपोलॉजी, आर्कियोलॉजी से मास्टर्स डिग्री होनी चाहिए.

संभावनाएं हैं अपार
राष्ट्रीय और राज्य स्तरीय स्तर पर आर्कियोलॉजिस्ट को सबसे ज्यादा आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया (एएसआइ) द्वारा नौकरियां प्रदान की जाती हैं. योग्य उम्मीदवार यूपीएससी और स्टेट पब्लिक सर्विस कमशीन द्वारा आयोजित परीक्षाओं में हिस्सा ले सकते हैं. जिनके पास आर्कियोलॉजी में पोस्ट ग्रेजुएट डिग्री है, वे विवि में लेक्चररशिप के लिए आवेदन कर सकते हैं. इसके लिए उन्हें यूजीसी द्वारा आयोजित नेट या जेआरएफ लेक्चररशिप परीक्षा पास करनी होगी. इस क्षेत्र में अधिकतर नौकरियां सरकार या सरकार द्वारा चलायी जानेवाली एजेंसियों या प्राइवेट म्यूजियम में उपलब्ध हैं.

किन क्षेत्रों पर कर सकते हैं काम
आर्कियोलॉजी के क्षेत्र में कैरियर बनाने के इच्छुक युवानिम्न क्षेत्रों में काम कर सकते हैं. आर्कियोबॉटनी, आर्कियोमेट्री, आर्कियोजूलॉजी, बैटलफील्ड आर्कियोलॉजी, एथनो आर्कियोलॉजी, एक्सपेरिमेंटल आर्कियोलॉजी, जिओआर्कियोलॉजी, मैरीन आर्कियोलॉजी, पेलेऑनटोलॉजी, प्रीहिस्टोरिक आर्कियोलॉजी, अर्बन आर्कियोलॉजी.

वेतनमान
आर्कियोलॉजी के छात्रों को लेक्चररशिप की शुरुआत में तय वेतनमान के हिसाब से वेतन मिलता है. जबकि प्रोफेसर पद पर इससे काफी ज्यादा वेतन प्राप्त किया जा सकता है. एएसआइ में असिस्टेंट आर्कियोलॉजिस्ट की शुरुआत सम्मानजनक वेतन से होती है. इस क्षेत्र में डॉक्टोरल डिग्री हासिल कर ऊंचा मुकाम और अच्छा पैसा, दोनों प्राप्त किया जा सकता है.

मुख्य संस्थान

इंस्टीट्यूट ऑफ आर्कियोलॉजी, दिल्ली

वेबसाइट : www.asi.nic.in

बनारस हिंदू विश्वविद्यालय, वाराणसी

वेबसाइट : www.bhu.ac.in

महाराजा सयाजीराव यूनिवर्सिटी ऑफ बड़ौदा

वेबसाइट : www.msubaroda.ac.in

रांची यूनिवर्सिटी, झारखंड

वेबसाइट : www.ranchiuniversity.org.in

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