अब से पहले भी सबसे बड़े बादशाह के एक बड़े मंत्री ने अच्छे दिनों का वादा किया था, जो पूरा नहीं हुआ.
दरबारी कवि और मंत्री ने सलाह दी थी कि चुप बैठिए, जब अच्छे दिन आएँगे तो अपने आप सब काम बन जाएँगे.
रहिमन चुप होए बैठिए देख दिनन के फेर।
जब नीके दिन आइहें बनत न लगिहें देर।।
लोग चुप होकर नहीं बैठ रहे, तब भी नहीं बैठते होंगे इसीलिए बादशाह अकबर के नौरत्नों (कैबिनेट) में से एक, अब्दुर्रहीम ख़ानख़ाना ने ये हिदायत दी थी.
अच्छे दिनों के वादे से लदा साल गुज़र गया, इस दौरान रहीम के दोहे एक-एक करके याद आते रहे. जैसे कि ये-
तरुवर फल नहिं खात है, सरवर पियहि न पान।
कहि रहीम पर काज हित, संपति सँचहि सुजान।।
न खाऊँगा, न खाने दूँगा, इसी का मॉर्डन वर्ज़न है, इसमें कवि रहीम कहते हैं कि पेड़ फल नहीं खाता, तालाब अपना पानी नहीं पीता, अच्छे लोग दूसरों के हितों के लिए ही संपत्ति का संचय करते हैं.
अब तक की जानकारी के आधार पर कहा जा सकता है कि तरुवर फल नहीं खा रहा, सरोवर पानी नहीं पी रहा, दूसरों के हितों के लिए धन का संचय करने की रहीम की सलाह मानी जा रही है.
दुनिया में तेल सस्ता होने के बाद भी देश में दाम न घटाना, सफ़ाई के लिए आधा फ़ीसदी का सेस लगाना, ये दूसरों के हितों के लिए ही धन संचय का काम है. कुछ लोग अंबानी-अडानी को भी याद कर सकते हैं.
छिमा बड़न को चाहिये, छोटन को उतपात।
रहीम हरि का घट्यौ, जो भृगु मारी लात।।
बड़े लोगों को चाहिए कि वे छोटे लोगों के उत्पात को क्षमा कर दें, शत्रुघ्न सिन्हा ने ट्विटर पर इतना उत्पात मचाया, जैसे भृगु के लात मारने से हरि का कुछ नहीं बिगड़ा वैसा ही इस मामले में भी हुआ.
हरि की बात और है, यह दोहा सब पर लागू नहीं होता. जब कीर्ति आज़ाद ने उत्पात मचाया तो उन्हें बताया गया कि नौरत्नों की कीर्ति को कलंकित करने के लिए वे आज़ाद नहीं हैं.
मोदी जी ने बिहार के डीएनए, अमित शाह ने गाय और भगवत जी ने आरक्षण पर बोलकर जो बात बिगाड़ दी, उसके बाद सैकड़ों रैलियाँ करके बिहार को मथा गया लेकिन माखन नहीं निकला.
रहीम पहले ही कह गए हैं-
बिगरी बात बने नहीं, लाख करो किन कोय।
रहिमन बिगरे दूध को, मथे न माखन होय।।
गाय की बात करने वाले भूल गए थे दूध, दही और मक्खन से बढ़कर होती है राबड़ी, जिनके पति से उनकी टक्कर थी.
खीरा सिर ते काटिये, मलियत लोन लगाय।
रहिमन कड़वे मुखन को, चहियत यही उपाय।।
कड़वे मुख वाले साल भर बोलते रहे, किसी को कुत्ता, किसी को देशद्रोही, किसी को फ़लाँज़ादे, किसी को चिलाँज़ादे, लोग गुहार लगाते रहे कि ऐसे खीरों के मुँह पर नमक रगड़ा जाए.
बहुत बार ‘मन की बात’ हुई, लेकिन शायद मन की बात कहने से पहले उन्हें रहीम याद आ गए जिन्होंने मन की व्यथा को ‘मन की बात’ में कहने से मना किया है-
रहिमन निज मन की व्यथा मन ही राखो गोय।
सुन इठलहैं लोग सबे बाँट न लइहें कोए।।
कई शुभचिंतकों ने आगाह किया कि कुछ तो बोलिए, आपके आस-पास जो बुरे लोग हैं उनकी वजह से आपकी साख गिर रही है, विकास की आपकी बातें इन लोगों की वजह से उठे शोर में डूब गई हैं.
राष्ट्रपति बार-बार बोले, लेकिन कुसंग में फँसे मोदीजी नहीं बोले, शायद इसीलिए कि उन्हें पता है कि कुछ बुरे लोगों की संगति से उनका कुछ नहीं बिगड़ सकता, आख़िर रहीम कह गए हैं-
जो रहीम उत्तम प्रकृति, का करि सकत कुसंग।
चन्दन विष व्यापत नहीं, लपटे रहत भुजंग।।
अपनी प्रकृति के उत्तम होने में नीतीश कुमार को भी संदेह नहीं था, न मोदीजी को है. भुजंग (साँप) किसको बोला, बार-बार मत पूछिए, कुछ तो समझिए.
दुश्मन से दुश्मन की भाषा में बात करने की सीख रहीम ने कभी नहीं दी, साल के पहले नौ महीने रहीम की सीख भुला देने के बाद, पैंतीस हज़ार फ़ीट की ऊँचाई पर रहीम का दोहा याद आया और 12 साल बाद लैंडिंग इन लाहौर.
ज़रूर वो दोहा ये रहा होगा–
रूठे सुजन मनाइए, जो रूठे सौ बार।
रहिमन फिरि फिरि पिरोइए जो टूटे मुक्ताहार।।
सुजन का मतलब होता है शरीफ़.
उन्हें लगा कि प्रेम का धागा चटका कर नहीं तोड़ना चाहिए, सो उतर गए लाहौर में, अच्छा ही किया जो कवि रहीम की बात मान ली, बर्थडे का केक मिला सो अलग.
अमरीका, इंग्लैंड, फ्रांस जैसे बड़े देशों के दौरे में वे इतने व्यस्त रहे कि पड़ोसी नेपाल का ख़याल दिमाग़ से निकल गया जहाँ हाहाकार मच गया.
अगर रहीम के एक दोहे को याद रखते तो बात इतनी न बिगड़ती, ये वाला-
रहिमन देख बड़ेन को, लघु न दीजै डारि।
जहाँ काम आवे सुई, कहा करै तरवारि।।
कुछ उधड़ते ही सुई की ज़रूरत समझ में आती है, मधेसियों को शांत करने और नेपाल से रिश्ते ठीक करने की कोशिशें शुरू होती दिख रही हैं.
रहीम का दसवाँ और अंतिम दोहा, जिसका मतलब आप ख़ुद ही सोचें और समझें.
जो रहीम ओछो बढ़ै, तौ अति ही इतराय।
प्यादे सों फरजी भयो, टेढ़ो टेढ़ो ही जाय।।
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