क्या आप भी कार चलाते हैं या आने वाले दिनों में कार खरीदने की मंशा रखते हैं?
अगर आप दिल्ली-एनसीआर में रहते हैं तब भी और किसी दूसरे ‘वायु-प्रदूषित’ शहर में हैं तब भी इस ख़बर पर गौर करें.
क्योंकि एक जनवरी, 2016 से अगले 15 दिन तक दिल्ली में ऑड-ईवन यानी नंबरप्लेटों के आख़िरी नंबर और महीने के दिनों से मेल खाती ही निजी गाड़ियां सड़कों पर चल सकेंगी.
दूसरे शहर वालों की दिलचस्पी बनी रहे इसलिए आपको बताते चलें कि इससे मिलते-जुलते फ़ॉर्मूले दुनिया के पांच और शहरों में आज़माए जा चुके हैं.
बहरहाल, अगर आप दिल्ली में गाड़ी चलाते हैं या गाड़ी में चलते हैं तो अगले दो हफ़्तों में ये पांच नुस्खे आपके काम आ सकते हैं:
कार-पूल
अगर आपके पड़ोस या इलाक़े में कोई ऐसा मित्र या सहयोगी है, जिसकी कार रजिस्ट्रेशन नंबर का आखिरी अंक वो नहीं, जो आपका है, तो तुरंत उनसे संपर्क साध लें.
हो सकता है वो भी आपसे बात करने के उतने ही इच्छुक मिलें, जितने आप, लेकिन कार शेयर करने की हिचक रोड़ा बन रही हो.
अगर उनके दफ़्तर जाने-आने का समय आपसे मिलता है तो क्या बात है और अगर-पास हैं, तब तो सोने पर सुहागा.
अगर इससे भी बात न बने तो एक नए मित्र या सहयोगी की तलाश करें जिनके साथ आप और कई लोग कार पूल कर सकें.
टैक्सी ऐप
तमाम टैक्सी सेवाओं ने दिल्ली में इस प्रयोग के चलते ऐसी योजनाएं शुरू कर दीं हैं जिसके तहत आप टैक्सियों के ज़रिए भी कार शेयर कर सकते हैं.
आपको बस अपने स्मार्टफ़ोन पर इन कंपनियों के ऐप डाउनलोड करने होंगे.
जब भी आप किसी टैक्सी की बुकिंग करेंगे, तो ये ऐप खुद ही आपसे शेयर करने के ऑप्शन के बारे में पूछेगा.
इस सवाल के जवाब में कि इससे आपको क्या फ़ायदा होगा तो अगर आप शेयर करते हैं तो किराया भी कम देना होगा और दो के बजाय एक कार से वायु प्रदूषण भी कम होगा.
पब्लिक ट्रांसपोर्ट
मुमकिन है कि आप या आपके परिवार के सदस्य रोज़मर्रा की ज़िंदगी में सिर्फ़ कारों का ही इस्तेमाल करते हों.
संभव है कि आपने पहले कभी सार्वजनिक परिवहन इस्तेमाल करने की पहल की हो, लेकिन आपका अनुभव खट्टा रहा हो.
यह भी संभव है कि आपके काम पर आने-जाने का समय सार्वजनिक परिवहन की उपलब्धता से मेल न खाता हो.
लेकिन इसके बावजूद, बेतहाशा बढ़ती कारों से होने वाला वायु प्रदूषण कम करने का भागीदार बनने के लिए बस, मेट्रो या लोकल ट्रेनों का सहारा लेना पड़ सकता है.
वैसे दिल्ली सरकार ने भी सार्वजनिक परिवहन में सुधार की बात मानते हुए कहा है कि दिल्ली में 3000 सार्वजनिक बसें और बढ़ाई जाएंगी.
साथ ही दिल्ली सरकार ने यह भी कहा है कि मेट्रो की संख्या में भी 33% का इज़ाफ़ा होगा.
यानी सार्वजनिक ट्रांसपोर्ट से जितनी जल्दी दोस्ती, उतना आराम!
वर्क फ़्रॉम होम
आईटी, फाइनेंस और ई-कॉमर्स जगत में इस बात पर बहस तेज़ हो रही है कि कुछ कर्मचारियों को वर्क फ़्रॉम होम का विकल्प दिया जाए.
यानि जिन्हें पब्लिक डीलिंग का काम रोज़ नहीं करना पड़ता, वे बारी-बारी से घरों से इंटरनेट के माध्यम से काम कर सकते हैं.
भारत के ही बंगलौर और हैदराबाद शहरों में आईटी क्षेत्र में कर्मचारियों की खासी संख्या घरों से काम करती है.
पश्चिमी देशों में भी कई जगहों पर वर्क फ्रॉम होम का ज़बर्दस्त चलन है.
दफ़्तरों-स्कूलों के समय में बदलाव
दिल्ली में ऑड-ईवन प्रयोग की सफलता-असफलता राज्य से सटे एनसीआर क्षेत्रों में जागरूकता से भी जुड़ी है.
जहां एक तरफ़ दिल्ली-एनसीआर में लोग काम और पढाई के सिलसिले में आते-जाते हैं, वहीं दिल्ली, नोएडा, गुड़गांव और फ़रीदाबाद में रोज़ लाखों वाहनों की भी आवाजाही होती है.
शायद इसी वजह से नोएडा-ग्रेटर नोएडा प्रशासन ने पहली जनवरी, 2016 से सभी औद्योगिक इकाइयों, दुकानों और बाज़ारों से अपने खुलने और बंद होने के समय में बदलाव को कहा है.
भीड़भाड़ और प्रदूषण कम करने के लिए बताई गई मुहिम के तहत बाज़ारों के बंद रहने के दिन भी बदलेंगे.
नोएडा के कुछ स्कूलों ने भी प्रशासन के समक्ष स्कूल खुलने और बंद होने के समय में बदलाव का प्रस्ताव रखा है और जानकारों के अनुसार ऐसी पहल फ़रीदाबाद और गुड़गांव में भी जल्द होने वाली है.
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