खेलों की दुनिया में भारत
अभिषेक दुबे
वरिष्ठ खेल पत्रकार
अलविदा 2015 की कड़ी में आज जानें खेलों की दुनिया के बारे में. उपलब्धियाें के इस साल में हैं सबक और संकेत भी.साल 2015 जाते-जाते दो यादगार संकेत दे गया. पहला, हरियाणा के एक छोटे किसान का बेटा बारिंदर सिंह शरण जब अपने गांव से भिवानी आया, तो वह विजेंदर सिंह की तरह बॉक्सर बनना चाहता था. लेकिन, नियति को कुछ और मंजूर था. विजेंदर की जगह एमएस धौनी उसके रोल मॉडल बन गये. शरण मुक्केबाज के बजाय क्रिकेटर बन गये और अब वह 2016 की शुरुआत में ऑस्ट्रेलिया में माही के साथ ड्रेसिंग रूम में होंगे. वहीं गुगल के सीइओ सुंदर पिचाई भी आज भारत के युवा पीढ़ी के रोल मॉडल हैं, लेकिन बचपन में उनकी तमन्ना क्रिकेटर बनने की थी.
सुनील गावस्कर और सचिन तेंडुलकर उनके पसंदीदा क्रिकेटर हैं. पिचाई टेस्ट क्रिकेट को मौजूदा टी-20 पर तवज्जो देते हैं, लेकिन धौनी की शांत और प्रभावी लीडरशिप के वे कायल हैं. अगर क्रिकेट सचमुच अधिकतर भारतीयों की रगों में दौड़ता है, तो सचिन के दौर के बाद धौनी इसके प्रतीक बन गये हैं.
साल 2015 वह साल रहा, जब कप्तान धौनी ने वर्ल्ड कप से ठीक पहले टेस्ट क्रिकेट को अलविदा कह दिया. धौनी बाकी लोगों से अलग हैं. उन्होंने अपने कैरियर की स्क्रिप्ट को खुद अपने हिसाब से लिखी और अपने टेस्ट कैरियर पर परदा भी अपनी शर्तों पर गिराया. भारतीय क्रिकेट में विराट युग दस्तक दे चुका है, लेकिन धौनी 2016 में अपनी नीली जर्सी को एक नया मायने देना चाहेंगे. भारत में खेला जानेवाला टी-20 वर्ल्ड कप इसकी अग्निपरीक्षा होगी.
साल 2015 की विदाई संकेत भले ही क्रिकेट और धौनी से जुड़े हों, लेकिन गेंद-बल्ले पर दूसरे खेल पूरे साल हावी रहे. भारत की बेटी सानिया मिर्जा इस साल महिला टेनिस डबल्स में वर्ल्ड चैंपियन रही. विम्बल्डन और यूएस ओपंस समेत सानिया ने 2015 में 10 डब्ल्यूटीए खिताब जीते, जिसमें से 9 खिताब में मार्टिना हिंगिस उनकी जोड़ीदार रहीं वर्ल्ड टेनिस फेडरेशन ने इस जोड़ी को वर्ल्ड चैंपियन घोषित किया. सानिया के विजयरथ ने जहां वर्ल्ड टेनिस में भारत को एक नयी पहचान दी है, वहीं लिएंडर पेस ने एक बार फिर से साबित किया कि उम्र सिर्फ एक नंबर है. विश्वनाथन आनंद, लिएंडर पेस, सचिन तेंडुलकर का कैरियर कमोबेश एक साथ परवान चढ़ा. सचिन क्रिकेट को अलविदा कह चुके हैं, आनंद अब शतरंज के बादशाह नहीं रहे, लेकिन लिएंडर अब भी अपनी बढ़ती उम्र से पंगा लेते रहते हैं. अमेरिकी ओपन में मिश्रित युगल का खिताब उन्होंने 42 साल की उम्र में जीता, जो एक वर्ल्ड रिकॉर्ड है. दरअसल, मार्टिना हिंगिस के साथ मिल कर उन्होंने इस साल तीन ग्रैंड स्लैम खिताब जीते और 1997 के बाद से कोई एक ऐसा साल नहीं रहा, जब उन्होंने कम-से-कम एक खिताब नहीं जीता हो. पेस अगर भारतीय खेल जगत के सदाबहार हीरो हैं, तो दूसरी तरफ सायना नेहवाल भी उसी रास्ते पर मजबूती से बढ़ रही हैं.
साल 2014 में एक दौर ऐसा भी आया, जब बैडमिंटन क्वीन सायना नेहवाल डिप्रेशन की वजह से खेल से तौबा करने का मन बना रही थीं. 2015 में वह वर्ल्ड रैंकिंग में पहले नंबर पर पहुंचनेवाली पहली भारतीय बैडमिंटन खिलाड़ी बनीं. साल की शुरुआत सायना ने विश्व की नंबर एक खिलाड़ी करोलाइना मरीन को सैयद मोदी ग्रांप्री के फाइनल में हरा कर किया. ऑल इंग्लैंड चैंपियनशिप के फाइनल में सायना पहुंचीं और उन्होंने इंडियन ओपन सुपर सीरीज में जीत के बाद नंबर वन रैंकिंग अपने नाम कर लिया. जकार्ता में वर्ल्ड चैंपियनशिप में नेहवाल ने सिल्वर मेडल जीता. रियो ओलिम्पिक्स 2016 में भारतीय खेल प्रेमी सदाबहार हीरो लिएंडर पेस और मौजूदा क्वीन सायना नेहवाल से मेडल की उम्मीद कर रहे हैं. अहम बात यह है, कि दोनों ही अपने कैरियर में भारत को ओलिम्पिक्स में मेडल दिला चुके हैं. अगर बीते दौर की बात करें, तो 1940 और 1950 के दशक में भारतीयों के बारे में एक ब्रिटिश लेखक ने लिखा था- ‘हिंदुस्तानी तीन पांव लेकर जन्म लेते हैं. हमारी तरह से दो पांव और हॉकी स्टिक के तौर पर तीसरा पांव. हिंदुस्तानी हॉकी के स्वाभाविक बेताज बादशाह हैं.’ लेकिन, हॉकी में हम शिखर से सिफर पर आ गये… हैं. हालांकि, साल 2015 जाते-जाते भारतीय हॉकी के वापस पटरी पर आने के संकेत दे गया है.
सुल्तान अजलान शाह कप में भारत ने ब्रॉन्ज मेडल जीता. अहम यह रहा कि भारतीय टीम ने ऑस्ट्रेलिया को हराया. 2014-2015 वर्ल्ड हॉकी लीग में भारत ने ब्रॉन्ज मेडल जीत कर रियो ओलिम्पिक्स से पहले शुभ संकेत दिये हैं. यह सच है कि वर्ल्ड हॉकी लीग में बड़ी टीम ने अपने धुरंधर खिलाड़ियों को नहीं उतारा और 2016 रियो ओलिम्पिक्स में भारत को मुश्किल पूल मिला है. लेकिन, जिस तरह से टीम संगठित होकर खेल रही है, उससे आनेवाले दिनों के लिए उम्मीदें जगती हैं. अच्छी बात यह है कि 36 साल बाद भारतीय महिला हॉकी टीम ने भी ओलिम्पिक्स के लिए क्वाॅलिफाइ कर लिया है.
बीते साल ने विजेंदर सिंह को पेशेवर बॉक्सर के तौर पर दो रोमांचक जंग जीतते देखा, तो शशांक मनोहर की अगुवाई में बीसीसीआइ की सफाई अभियान का भी गवाह बना. सचिन तेंडुलकर और शेन वॉर्न ने मिल कर अमेरिका में क्रिकेट का वह विश्व मेला लगाया, जैसा किसी दौर में पेले ने अमेरिका में फुटबॉल खिलाड़ियों का जमघट लगाया था. सतनाम सिंह एनबीए ड्राॅफ्ट में जगह बनानेवाले पहले भारतीय बने, तो अदिति चौहान ने इंगलिश प्रिमियर लीग में हिस्सा लेकर हर भारतीय को गौरवान्वित किया. कामयाबी और नाकामी की भागमभाग से दूर, क्रिकेट का मैदान एक नयी करवट ले रहा है. धौनी भारतीय क्रिकेट में लीडरशिप का बीता कल बनते जा रहे हैं, तो विराट कोहली आनेवाला कल. श्रीलंका और दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ कोहली की कप्तानी और जीत ने भरोसा दिया है कि टेस्ट क्रिकेट में टीम इंडिया के अच्छे दिन आनेवाले हैं.