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हाइटेक वस्तुओं के निर्यात में लंबी छलांग, जापान से आगे निकला चीन

कन्हैया झा तकनीकी प्रगति के साथ हाइ-टेक वस्तुओं के निर्माण पर भारत में भी पिछले कुछ वर्षों में भले ही विशेष ध्यान दिया गया हो, लेकिन पूर्वी देशों में जापान और चीन ने इसकी महत्ता को सबसे पहले समझा और अब जापान को पीछे छोड़ते हुए चीन एशिया में इनका सबसे बड़ा निर्यातक बन चुका […]

कन्हैया झा
तकनीकी प्रगति के साथ हाइ-टेक वस्तुओं के निर्माण पर भारत में भी पिछले कुछ वर्षों में भले ही विशेष ध्यान दिया गया हो, लेकिन पूर्वी देशों में जापान और चीन ने इसकी महत्ता को सबसे पहले समझा और अब जापान को पीछे छोड़ते हुए चीन एशिया में इनका सबसे बड़ा निर्यातक बन चुका है.
इस मामले में चीन के शिखर तक पहुंचने के सफर के साथ, हाइ-टेक वस्तुओं के वैश्विक कारोबार से संबंधित महत्वपूर्ण तथ्यों पर नजर डाल रहा है आज का नॉलेज…
दिल्ली : पिछले कुछ दशकों से भारत समेत दुनिया के अनेक देशों में तकनीकी उपकरणों के निर्माण, इस्तेमाल व निर्यात आदि पर जोर दिया जा रहा है. एशिया में अब तक हाइ-टेक्नोलाॅजी एक्सपोर्ट यानी उच्च-तकनीकवाली वस्तुओं का निर्यात सबसे ज्यादा जापान से होता रहा है, लेकिन अब चीन ने जापान की इस बादशाहत को खत्म करते हुए इस पर अपना कब्जा जमा लिया है.
‘एशियन डेवलपमेंट बैंक’ (एडीबी) के सहयोग से तैयार की गयी हालिया रिपोर्ट के मुताबिक, एशिया से होनेवाले मेडिकल उपकरणों, एयरक्राफ्ट और टेलीकम्युनिकेशन उपकरणों समेत तमाम हाइ-टेक्नोलाॅजी एक्सपोर्ट में चीन का योगदान वर्ष 2000 में 9.4 फीसदी था, जो वर्ष 2014 में बढ़ कर 43.7 फीसदी तक पहुंच गया है.
इतना ही नहीं, जापान इस मामले में काफी नीचे आ गया है. वर्ष 2000 में एशिया से होेनेवाले हाइ-टेक्नोलाॅजी एक्सपोर्ट में जापान का योगदान 25.5 फीसदी था, जो वर्ष 2014 में महज 7.7 फीसदी रह गया. मलयेशिया और फिलीपींस जैसे दक्षिण-पूर्वी एशियाइ देशों की हिस्सेदारी भी इस लिहाज से घट गयी है.
दरअसल, पिछले डेढ़-दो दशकों के दौरान चीन में इनोवेशन और तकनीक को काफी ज्यादा तवज्जो दी गयी है. चीन की अर्थव्यवस्था में तेजी लाने में भी इनका व्यापक योगदान है. मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में प्रगति के पथ पर आगे बढ़ते हुए चीन ने हाल के दशकों में कई तकनीकी विधाओं में महारत हासिल की है और अब जापान को भी पीछे छोड़ दिया. ‘एशियन इकोनाॅमिक इंटेग्रेशन रिपोर्ट- 2015’ के मुताबिक, लो-टेक गुड्स यानी निम्न-तकनीक वाली वस्तुओं के निर्यात में पिछले वर्ष यानी 2014 में चीन की हिस्सेदारी 28 फीसदी रही, जो वर्ष 2000 में 41 फीसदी थी.
हांगकांग में एचएसबीसी होल्डिंग्स पीएलसी में एशियन इकोनाॅमिक रिसर्च के उप-प्रमुख फ्रेडरिक न्यूमान का कहना है,‘हाइ-टेक मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में चीन तेजी से आगे बढ़ रहा है. हालांकि, इनके अनेक कंपोनेंट्स को वह अब भी अन्य देशों से ही आयात करता है.’
उनका कहना है कि यह सेक्टर दिनोंदिन ज्यादा प्रतिस्पर्धी होता जा रहा है. चीन में रिसर्च और डेवलपमेंट से जुड़े कार्यों में लगातार वृद्धि हो रही है. साथ ही यहां उच्च कौशल वाले श्रमिकों की मांग भी तेजी से बढ़ रही है.
लो-टेक गुड्स के निर्यात में भी आगे
हालांकि लो-टेक गुड्स के निर्यात में भी चीन बहुत पीछे नहीं है और टेक्सटाइल्स, खाद्य एवं पेय पदार्थों, वुड, पल्प और पेपर प्रोडक्ट्स के निर्यात में बहुत आगे है. वर्ष 2014 में इन चीजों में उसकी कुल हिस्सेदारी 55.4 फीसदी थी, जबकि भारत की हिस्सेदारी इन चीजों में महज 9.4 फीसदी थी.
रिपोर्ट में कहा गया है कि तमाम औद्योगिक वस्तुओं के पार्ट-पुर्जों के निर्माण से लेकर उनके अंतिम रूप से एसेंबल करने के कारोबार में चीन काफी तेजी से आगे बढ़ा है. क्राॅस-बाॅर्डर प्रोडक्शन नेटवर्क में विस्तार होने से विभिन्न एशियाइ देशों के बीच आपसी कारोबार में वृद्धि हुई. इस कारण वर्ष 2000 से लेकर 2011 के बीच एशिया के इंट्रारिजनल ग्रोस एक्सपोर्ट में करीब 3.6 गुना की वृद्धि हुई है.
अगले 15 वर्षों तक हाइ-टेक वस्तुओं में ज्यादा ग्रोथ
अगले 15 वर्षों के दौरान अन्य सभी वस्तुओं के मुकाबले हाइ-टेक वस्तुओं का निर्यात सबसे ज्यादा तेजी से बढ़ेगा. इसका प्रमुख कारण एशिया में कम लागत में उच्च-तकनीकवाली वस्तुओं का निर्माण होने से मुमकिन होगा.
एचएसबीसी की रिपोर्ट में बताया गया है कि एशिया में अब तक कम कीमतवाली वस्तुओं का निर्माण होता रहा है, लेकिन पिछले एक दशक के दौरान इन देशों में उच्च-तकनीकवाली वस्तुओं का निर्माण तेजी से बढ़ा है, जिससे आनेवाले समय में इस क्षेत्र में व्यापक बदलाव आने की उम्मीद जतायी जा रही है.
एचएसबीसी की हालिया ग्लोबल ट्रेड रिपोर्ट के मुताबिक, वर्ष2030 तक 25 फीसदी से ज्यादा वस्तुएं हाइ-टेक गुड्स की श्रेणी में शामिल हो जायेंगी. वर्ष 2014 से 2030 तक ग्लोबल गुड्स ट्रेड की वैल्यू में औसतन आठ फीसदी सालाना की दर से वृद्धि होने की उम्मीद है. जबकि हाइ-टेक गुड्स में तकरीबन नौ फीसदी की दर से वृद्धि हो सकती है. खनिज तेलों में एक साल में करीब पांच फीसदी और राॅ मैटेरियल्स में करीब छह फीसदी की वृद्धि होगी.
विश्व व्यापार संगठन के आंकड़े दर्शाते हैं कि वर्ष 2009 से 2012 के बीच खनिज तेल और माइनिंग उत्पाद सर्वाधिक तेजी से बढ़नेवाले निर्यात की श्रेणी में शामिल रहे थे. इसके बाद कृषि उत्पादों का स्थान रहा था. हालांकि, इस दौरान आॅफिस व कम्युनिकेशन उपकरणों के निर्यात में 27 फीसदी से भी ज्यादा की वृद्धि हुई थी.
2030 तक दुनिया में सबसे बड़ा निर्यातक बन जायेगा चीन
रिपोर्ट में कहा गया है कि भविष्य में हाइ-टेक कारोबार में होेनेवाली वृद्धि का प्रमुख सूत्रधार सप्लाइ चेन्स का अंतरराष्ट्रीयकरण होगा और अनेक देश इस सिस्टम में शामिल होंगे.
इसमें ऐसे हाइ-टेक पार्ट्स शामिल होंगे, जो किसी खास प्रोडक्ट के निर्माण के चरण में राष्ट्रीय सीमाओं को पार करते हों. इस रिपोर्ट में तो यहां तक अनुमान लगाया गया है कि वर्ष 2030 तक चीन दुनिया में हाइ-टेक वस्तुओं का सबसे बड़ा निर्यातक हो जायेगा और उसकी वैश्विक हिस्सेदारी 50 फीसदी से भी ज्यादा हो जायेगी.
इस तरह हाइ-टेक वस्तुओं के वैश्विक कारोबार में बड़ा उलटफेर हो सकता है. हांगकांग और अमेरिका की हिस्सेदारी इस लिहाज से कम हो जायेगी और ये दोनों ही देश दूसरे और तीसरे नंबर पर खिसक सकते हैं. साथ ही कोरिया चौथे स्थान पर आ जायेगा, जहां आज दुनिया के चौथे सबसे बड़े हाइ-टेक गुड्स निर्यातक के रूप में सिंगापुर है. चीन आज दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा स्मार्टफोन निर्माता देश है.
खत्म होगी अमेरिका की बादशाहत
अब तक तकनीक की दुनिया का बादशाह अमेरिका रहा है. लेकिन, अब चीन के अलावा भारत और इंडोनेशिया में भी तकनीकी कंपनियां तेजी से उभर रही हैं. अपनी इस खास संपदा की सुरक्षा के लिए अमेरिका ने कंपनियों के इंटेलेक्चुअल प्रॉपर्टी राइट्स के सहारे तमाम देशों में निगरानी शुरू कर दी है. इस लिहाज से चीन और भारत पर अमेरिका खास नजर बनाये हुए है.
दरअसल, अमेरिका और यूरोपियन यूनियन के साथ 16 वर्ष पहले चीन का हाइ-टेक प्रोडक्ट्स के संबंध में एक समझौता हुआ था. हाइ-टेक प्रोडक्ट्स की लिस्ट को विस्तार देने के लिए चीन पर अब ये दोनों ही देश दबाव बना रहे हैं. इससे पर्सनल कंप्यूटर, लैपटाॅप और टेलीफोन समेत अन्य हाइ-टेक वस्तुओं पर चीन को कम कर चुकाना होता है, जिससे इन देशों के हित प्रभावित होते हैं. वर्ष 2000 में दुनिया में तकनीकी वस्तुओं का सबसे बड़ा निर्यातक अमेरिका था और उसकी हिस्सेदारी 29.2 फीसदी थी, लेकिन वर्ष 2013 में वह तीसरे पायदान तक आ चुका था और उसकी हिस्सेदारी घट कर महज 9.6 फीसदी पर आ गयी थी.
साथ ही चीन 2013 में ही 36.5 फीसदी हिस्सेदारी के साथ पहले नंबर पर और हांगकांग 13 फीसदी के साथ दूसरे नंबर पर आ गया था. हाइ-टेक वस्तुओं की घरेलू मांग को पूरा करने के लिए अमेरिकी कंपनियां उत्पादन की आउटसोर्सिंग करती हैं. इसका मतलब हुआ कि अमेरिकी कंपनियां व्यापक पैमाने पर उन एसेंबल्ड प्रोडक्ट्स का आयात करती हैं, जिनका डिजाइन खुद उन्होंने ही तैयार किया है.
भारत में निर्माण सेक्टर को गति दे सकता है हाइ-टेक एक्सपोर्ट
भारत के सीएजीआर यानी कंपाउंड एनुअल ग्रोथ रेट में वर्ष 2007 से 2011 के दौरान हाइ-टेक एक्सपोर्ट का योगदान करीब 26 फीसदी रहा. ‘एग्जिम बैंक’ द्वारा किये गये एक अध्ययन के मुताबिक, इसमें सर्वाधिक योगदान इलेक्ट्राॅनिक्स गुड्स और फार्मास्यूटिकल्स सेक्टर का रहा है.
केंद्र सरकार के वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय के वाणिज्य सचिव ने पिछले साल ‘इंडियाज हाइ-टेक एक्सपोर्ट्स : पोटेंशियल मार्केट्स एंड की पाॅलिसी इनवेन्शंस’ शीर्षक से अध्ययन रिपोर्ट जारी की थी. इस रिपोर्ट में भारत में हाइ-टेक वस्तुओं के निर्माण और उनके निर्यात के संबंध में व्यापक संभावनाएं जतायी गयी है.
रोबोट निर्माण में भी अगुआ चीन
रोबोट बनाने और उसके इस्तेमाल के मामले में भी चीन तेजी से आगे बढ़ रहा है. जापान को पछाड़ते हुए चीन इंडस्ट्रियल रोबोट का सबसे बड़ा बाजार बन चुका है. दुनियाभर में बिकनेवाले प्रत्येक चार में से एक रोबोट चीन में बिकता है. शंघाई में आइएचएस टेक्नोलॉजी से जुड़े ऑटोमेशन के विशेषज्ञ जेन झांग का कहना है कि बढ़ रही निर्माण लागत और कम हो रहे मुनाफे से चीन के निर्माता श्रमिकों से संबंधित कार्यप्रणाली में बदलाव ला रहे हैं.
उन्हें यह समझ आ रहा है कि ऑटोमेशन को प्रोत्साहित करते हुए ही वे अगले कुछ सालों तक बेहतर उत्पादन करने में सक्षम हो सकते हैं. चीन में इस्तेमाल होने वाले इंडस्ट्रियल रोबोट की संख्या वर्ष 2017 तक मौजूदा संख्या से करीब दोगुना हो जाने की उम्मीद है.
उस वक्त इनकी संख्या के चार लाख तक पहुंच जाने का अनुमान है. इंडस्ट्रियल रोबोट से अनेक सेक्टर में उत्पादन का काम किया जा रहा है, ताकि चीन की अर्थव्यवस्था में मौजूदा विकास दर को कायम रखा जा सके. वहां के उद्यमियों को इस बात का भरोसा हो चुका है कि इंडस्ट्रियल रोबोट की मदद से हाइ-टेक वस्तुओं के उत्पादन और उनके निर्यात से इस लक्ष्य को आसानी से हासिल किया जा सकता है.
चीन निर्मित हाइ-टेक गुड्स की मांग
चीन द्वारा बनाये गये ड्रोन्स, स्मार्टफोन्स और यहां तक कि हाइ-स्पीड ट्रेन आज दुनियाभर में लोकप्रिय हैं और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अन्य कंपनियों को कड़ी टककर दे रहे हैं. ‘ब्लूमबर्ग’ की एक रिपोर्ट के मुताबिक, कुछ उद्योगों में इसके अच्छे संकेत दिख रहे हैं.
एडीबी में मुख्य अर्थशास्त्री शांग-जिन वेइ का कहना है कि चीन में हाइ-टेक मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर से जुड़े उद्यमों की संख्या पिछले डेढ़ दशक में बढ़ कर तीन गुना ज्यादा हो गयी है. वर्ष 2000 में जहां इनकी संख्या 10,000 से कम थी, वहीं अब इनकी संख्या 30,000 से भी ज्यादा हो चुकी है.
हालांकि उनका कहना है कि कुछ उद्योगों में कामयाबी के संकेत जरूर दिख रहे हैं, लेकिन चीन अब भी अमेरिका या जर्मनी की तरह ग्लोबल टेक्नोलाॅजी लीडर नहीं बना है. फिलहाल जो दिख रहा है, वह यह कि ‘स्टैंडर्ड टेक्नोलाॅजी’ प्रोडक्ट्स को चीन बड़ी तेजी से अपनी गिरफ्त में ले रहा है और अपने बूते अनेक इनोवेशन को अंजाम दे रहा है.
स्पेशल इकोनामिक जोन्स से कामयाबी
चीन को तकनीक का महारथी बनाने में स्पेशल इकोनाॅमिक जोन्स का भी व्यापक योगदान रहा है.चीन में कुछ खास महानगरों का विस्तार इसी मकसद से किया गया और वहां इसे बढ़ावा देने के लिए सभी प्रकार की सहुलियतें मुहैया करायी गयी हैं. रिपोर्ट में कहा गया है कि स्पेशल इकोनाॅमिक जोन्स के निर्माण से एशिया में व्यापार, निवेश और आर्थिक सुधारों को ऐसे समय में ज्यादा तेजी मिल सकती है, जब इस क्षेत्र में मंदी महसूस की जा रही है.
एडीबी का कहना है कि सही कारोबारी माहौल और नीतियों से नयी प्रकार की चुनौतियों से निबटा जा सकता है. विकासशील एशिया में स्पेशल इकोनाॅमिक जोन्स वाले देशों में उल्लेखनीय रूप से ज्यादा एफडीआइ यानी प्रत्यक्ष विदेशी निवेश हो रहा है.

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