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फादर ऑफ इम्यूनोलॉजी

चेचक के टीके के आविष्कारक जेनर बचपन से ही मेधावी थे. उनके कार्यो की वजह से लोग उन्हें फादर ऑफ इम्यूनोलॉजी भी कहते हैं. उनकी सबसे बड़ी उपलब्धि यह है कि उन्होंने चेचक के टीके के आविष्कार करके दुनिया को चेचक मुक्त करने में सहयोग दिया. कल्पना कीजिए कि अगर उन्होंने चेचक के टीके के […]

चेचक के टीके के आविष्कारक जेनर बचपन से ही मेधावी थे. उनके कार्यो की वजह से लोग उन्हें फादर ऑफ इम्यूनोलॉजी भी कहते हैं. उनकी सबसे बड़ी उपलब्धि यह है कि उन्होंने चेचक के टीके के आविष्कार करके दुनिया को चेचक मुक्त करने में सहयोग दिया. कल्पना कीजिए कि अगर उन्होंने चेचक के टीके के आविष्कार नहीं किया होता, तो आज हम जो इस महामारी पर लगभग काबू पा लिये हैं, वह संभव नहीं होता.

यही कारण है कि जेनर अपनी उपलब्धि से सदा के लिए अमर हो गये. इनका जन्म 17 मई, 1749 को इंगलैंड के बर्कले में हुआ था. प्रारंभिक शिक्षा समाप्त करने के उपरांत ये सन 1770 में लंदन गये और 1792 में ऐंड्रयूज कॉलेज से एमडी की उपाधि प्राप्त की. इसके बाद भी उन्होंने साइंस पर रिसर्च करना जारी रखा और 1822 में कुछ रोगों में कृत्रिम विस्फोटन का प्रभाव पर उनका निबंध प्रकाशित हुआ. 26 जनवरी, 1823 को बर्कले में उनका देहांत हो गया.

समुद्री यात्रा से मिला ज्ञान
अपने अध्ययन काल में ही इन्होंने समुद्री यात्रा से प्राप्त प्राणिशास्त्रीय नमूनों को व्यवस्थित किया. सन 1775 में इन्होंने सिद्ध किया कि गोमसूरी (cowpox)में दो विभिन्न प्रकार की बीमारियां सम्मिलित हैं, जिनमें से केवल एक चेचक से रक्षा करती है. इन्होंने यह भी निश्चित किया कि गोमसूरी, चेचक और घोड़े के पैर की ग्रीज नामक बीमारियां अनुषंगी हैं. सन1798 में इन्होंने चेचक के टीके के कारणों और प्रभावों पर एक निबंध प्रकाशित किया. 1803 में चेचक के टीके के प्रसार के लिए रॉयल जेनेरियन संस्था स्थापित हुई. इनके कार्यों व उपलब्धियों से प्रभावित होकर ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय ने एमडी की उपाधि दी.

एडवर्ड जेनर (आविष्कारक)
जीवनकाल (1749-1823), इंग्लैंड

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