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…ताकि परिंदों का भरता रहे पेट

खुद भूखे रह पक्षियों के लिए खेत में ही छोड़ दी खड़ी फसल पर्यावरण संरक्षण को लेकर बड़े-बड़े आयाेजनों के बीच छोटे स्तर पर भी कई पहल होते हैं. यह बात दीगर है कि नामी-गिरामी हस्तियों के आगे उनकी चमक लुप्त हो जाती है, पर उनके कर्म यादगार रहते हैं. ऐसे ही हैं महाराष्ट्र के […]

खुद भूखे रह पक्षियों के लिए खेत में ही छोड़ दी खड़ी फसल
पर्यावरण संरक्षण को लेकर बड़े-बड़े आयाेजनों के बीच छोटे स्तर पर भी कई पहल होते हैं. यह बात दीगर है कि नामी-गिरामी हस्तियों के आगे उनकी चमक लुप्त हो जाती है, पर उनके कर्म यादगार रहते हैं. ऐसे ही हैं महाराष्ट्र के कोल्हापुर जिले के किसान अशोक सोनुले. खुद भूखे रह अपनी पूरी फसल परिंदों का पेट भरने के लिए खेत में ही छोड़ दिया. इससे जहां क्षेत्र में पर्यावरण संतुलन कायम रहा, वहीं परिंदों का पेट भी भरता रहा.
अशोक सोनुले महाराष्ट्र के कोल्हापुर जिले से करीब 15 किलोमीटर दूर गडमुदशिंगी गांव के किसान हैं. उनके दो बेटे प्रकाश और विलास समेत पूरा परिवार दूसरे के खेत में मजदूरी करता है. इससे होनेवाली आमदनी से उनके 12 सदस्यीय परिवार का पेट भरता है. हालात यह है कि इस परिवार को मुश्किल से दो जून की रोटी मयस्सर हो पाती है. मौसम की मार से इस समय कोल्हापुर जिला स्थित उनके गांव के आसपास के इलाके सूखे की चपेट में आ गये हैं. यहां के किसानों के खेत खाली पड़े हैं. लेकिन अशोक का खेत ज्वार की फसल से लहलहा रहा है.
पर इस फसल को उन्होंने पैसे कमाने के लिए नहीं बोया है, बोया है परिंदों के लिए. खाने के लाले अौर आसपास में सूखे की कहर के बाद भी उन्होंने अपने खेत के बाजरों की रक्षा के लिए न तो कोई पुलता लगाया अौर न ही पहरेदारी की, बल्कि जब फसल लग गयी, तो उसे परिंदों को चुगने के लिए खेतों में ही छोड़ दिया है. यार-दोस्तों अौर संबंधियों ने समझाया, पर उनका कहना था अपने लिए सब जीते हैं, पर दूसरों के लिए कौन आगे आयेगा.
अशोक के पास है बंजर जमीन : छोटे किसान अशोक सोनुले के परिवार के पास कुल 0.25 एकड़ जमीन है. इससे इतनी उपज नहीं होती कि परिवार का खर्च चल सके. सबको भरपेट खाना भी नसीब नहीं होता. उनकी जमीन के आसपास के खेत भी बंजर हैं. हर साल की तरह इस साल भी अशोक ने अपनी बंजर जमीन पर ज्वार की फसल बोयी. एक तो सूखे की मार और दूसरी बंजर जमीन. लिहाजा, इलाके के खेत में फसल नहीं बोये गये. कई किसानों ने अपने खेतों को खाली छोड़ दिया. ऐसे में अशोक सोनुल के दिमाग में एक बात आयी कि आखिर खेत को खाली छोड़ने के बाद भी कुछ हासिल होनेवाला नहीं है.क्यों न इस पर ज्वार की फसल लगा कर किस्मत आजमायी जाये.
मन में यह बात आते ही अशोक ने अपने खेत में ज्वार की फसल उगाने के लिए मेहनत शुरू कर दी. इसे कुदरत का करिश्मा कहिये या फिर उनकी मेहनत का प्रतिफल, कुछ ही महीनों में अशोक के खेत में ज्वार की फसल लहलहाने लगी.
बबूल के पेड़ से मिली प्रेरणा : ज्वार की फसल पक गयी. उन्होंने उसे काटने की सोची. पर इसमें आड़े आयी खेत के बीचोबीच स्थित बबूल का पेड़. उसके कारण खेती अौर अन्य काम में बाधा आ रही थी. उन्होंने सोचा कि बबूल का पेड़ ही काट दिया जाये. मन में यह बात आते ही वे उसे काटने को तैयार हो गये. लेकिन जब वे पेड़ के नीचे गये, तो देखा कि उस पर परिंदों का बसेरा है. यह भी देखा कि परिंदे रहते तो हैं बबूल के पेड़ पर, मगर उनका पेट उनके खेत में लगी ज्वार की फसल से ही भरती है. यह देख कर उनके मन में एक नयी भावना पैदा हुई.
उन्होंने बबूल के पेड़ को काटने का विचार त्याग दिया. इसी दौरान उनके मन में आया कि सभी खेत बंजर हैं, पर उनके खेत में फसल कैसे. इसी दौरान उनको ख्याल आया कि शायद परिंदों के पेट भरने के लिए ही उनकी फसल लहलहा रही है. इसी बीच खुद के घर के हालात ने भी उन्हें विचलित किया. पर तत्काल उन्होंने निर्णय किया कि उनकी फसल पक्षियों के काम ही आयेगी.
परिंदों को देख मन हो जाता है गदगद : अब उनके खेत के बीच स्थित बबूल पर पक्षियों की संख्या बढ़ गयी है. जब भी वह परिंदों का कलरव सुनते हैं, तो उनका मन खुशियों से झूम उठता है. उन परिंदों को देख उन्हें खुद की गरीबी भी याद नहीं रहती. इतना ही नहीं उन्होंने खेत में परिंदों के लिए कई घड़े भी रखें हैं अौर उसमें रोज पानी भी भरते हैं.
इस काम में उनका परिवार भी शामिल होता है. ऐसा उन्होंने क्यों किया यह पूछने पर कहते हैं कि अपने लिए तो सब जीते हैं पर दूसरों के लिए कोई तो सोचे. पर्यावरण संकट का मर्म बहुत नहीं जानते, पर कहते हैं कि बड़ी-बड़ी बातों से नहीं, बल्कि छोटी-छोटी पहल से ही चीजें ठीक होंगी.

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