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48 घंटे में धान के पैसे किसानों के खाते में

बिहार और झारखंड की तरह छत्तीसगढ़ राज्य में भी धान की खरीद पैक्स के जरिये ही होती है. मगर छत्तीसगढ़ सरकार ने 2007-8 के दौरान वहां की धान खरीद व्यवस्था में ऐसे जरूरी बदलाव किये कि आज वहां का किसान उस व्यवस्था में सुकून महसूस कर रहा है. वह अब आराम से इन केंद्रों में […]

बिहार और झारखंड की तरह छत्तीसगढ़ राज्य में भी धान की खरीद पैक्स के जरिये ही होती है. मगर छत्तीसगढ़ सरकार ने 2007-8 के दौरान वहां की धान खरीद व्यवस्था में ऐसे जरूरी बदलाव किये कि आज वहां का किसान उस व्यवस्था में सुकून महसूस कर रहा है. वह अब आराम से इन केंद्रों में धान बेच पा रहा है और महज 48 घंटों के अंदर उसकी उपज की पूरी कीमत उसके खाते में स्वत: चली आ रही है. इतना ही नहीं इस व्यवस्था के जरिये किसानों के धान को चावल मिलों को बेचने और उनसे तैयार चावल खरीदकर राशन दुकानों के जरिये ग्रामीणों तक पहुंचाने की प्रक्रिया भी चाक-चौबंद हो गयी है. यह सकारात्मक और जनोपयोगी परिवर्तन सूचना तकनीक के उपयोग और सरकारी तंत्र की तत्परता के कारण मुमकिन हुआ है.

किसानों के लिए धान उगाने से अधिक कष्टकारक है अपनी पैदावार को समय से सही कीमत पर बेचना और अपनी उपज की कीमत सही समय पर हासिल कर लेना. मगर दुर्भाग्यवश देश के अधिकांश हिस्सों में किसानों के लिए आज यह एक सपना ही है. सरकारें न्यूनतम समर्थन मूल्य और बोनस की घोषणा करती है. मगर एक तो किसानों के लिए धान बिक्री केंद्र जाकर अपनी फसल को बेच पाना मुश्किल हो जाता है. तिस पर से अगर फसल बिक भी गयी तो फसल के दाम पाने के लिए महीनों इंतजार करना पड़ता है. कई दफा तो किसान इस लालच में कि पैसा तो तत्काल मिल जायेगा अपनी फसल को न्यूनतम समर्थन मूल्य से काफी कम कीमत में साहूकारों और व्यापारियों को बेच देते हैं. बिहार और झारखंड में कमोबेस यही हालात हैं. ऐसे में छत्तीसगढ़ सरकार ने धान खरीद का बेहतरीन मॉडल विकसित अपने यहां के धान उत्पादक किसानों को बड़ी राहत दी है. अब वहां न बिक्री केंद्रों पर आपाधापी है और न कीमत पाने के लिए इंतजार.

आइसीटी मॉडल का कमाल
छत्तीसगढ़ की धान खरीद व्यवस्था भी पहले बिहार और झारखंड की तरह भीषण भ्रष्टाचार का शिकार थी. मगर तकनीक का इस्तेमाल करते हुए वहां की सरकार ने पुरानी लुंज-पुंज व्यवस्था को कारगर बना डाला है. इसके लिए सरकार द्वारा अपनाये गये मॉडल को आइसीटी मॉडल का नाम दिया गया है और यह नेशनल इंफार्मेशन सेंटर की मदद से तैयार किया गया है और संचालित हो रहा है. इसके तहत अनाज की खरीद से लेकर राशन दुकानों में लोगों को अनाज दिये जाने तक की पूरी प्रक्रिया को कंप्यूटराइज्ड और वेबबेस्ड कर लिया गया है.

क्या है प्रक्रिया
छत्तीसगढ़ में 1532 धान क्रय केंद्र हैं जो पैक्स और सेंट्रल कोऑपरेटिव बैंकों द्वारा संचालित होते हैं. इसके अलावा मार्कफेड के 50 संग्रह केंद्र, 100 सिविल सप्लाय कोऑपरेशन डिस्ट्रीब्यूशन सेंटर और एफसीआइ के 35 धान प्राप्ति केंद्र हैं. इन सबों को एनआइसी के छत्तीसगढ़ केंद्र स्थित पांच सर्वरों से जोड़ा गया है.

इस प्रक्रिया के तहत धान बेचने वाले किसानों का ऑनलाइन पंजीकरण होता है और धान की खरीद के बाद उन्हें कंप्यूटर से निकली पर्ची प्राप्ति रसीद के रूप में दी जाती है. पहले जब किसानों को चेक से अदायगी की जाती थी तो किसानों का चेक और उसके धान को मार्कफेड और एफसीआइ के गोदाम तक पहुंचाने का डिलिवरी आदेश एक साथ तैयार होता था. यानी किसानों को ऑन द स्पॉट चेक मिल जाया करता था. अब भुगतान सीधे किसानों के खाते में भेजने की व्यवस्था लागू हो गयी है. इसके जरिये 48 घंटे के भीतर किसानों के खाते में पैसा भेज दिया जाता है.

इस योजना को और अधिक कारगर बनाने के लिए सरकार ने सभी 1532 धान क्रय केंद्रों पर एक-एक डाटा एंट्री ऑपरेटर की बहाली की है और उन्हें 15 दिनों का प्रशिक्षण दिया गया है. इन ऑपरेटरों का काम खरीद से संबंधित आंकड़ों को तत्काल पोर्टल पर डाल देना है. हालांकि कई धान बिक्री केंद्रों पर नेटवर्क की समस्या होती है और तत्काल ऐसा कर पाना मुमकिन नहीं होता है, इसे ध्यान में रखते हुए धान खरीद के सीजन में 250 मोटरसाइकिल सवार किराये पर रखे जाते हैं. उनका काम जगह-जगह से आंकड़ों को प्रखंड मुख्यालयों तक लाना होता है, जहां उन आंकड़ों को केंद्रीय सर्वर में डाला जाता है.

मिलों का पंजीकरण और आंकड़े ऑनलाइन
धान खरीद के बाद मिलों को उनके आवंटन में काफी भ्रष्टाचार हुआ करता है, इसे ध्यान में रखते हुए व्यवस्था की गयी है कि धान प्राप्ति की सभी रसीदों को और उन्हें किस गोदाम में या मिल में भेजा गया है इस सूचना को भी वेबसाइट पर डाल दिया जाए ताकि इसे कोई भी जब जी चाहे देख सके. इसके अलावा खाद्य विभाग ने मिलों के पंजीकरण की भी व्यवस्था की है, उन्हें ऑनलाइन पंजीकरण करना पड़ता है. इसके बाद जिला प्रशासन उस मिल का भौतिक सत्यापन करता है. तब जाकर उसे धान प्राप्त करने की अनुमति दी जाती है. भौतिक सत्यापन की रिपोर्ट और अनुमति पत्र को भी ऑनलाइन किया जाता है. इससे किसी फरजी मिल के प्रक्रिया में शामिल होने की संभावना खत्म हो जाती है.

इसके अलावा जब उन मिलों से छत्तीसगढ़ राज्य सिविल सप्लाय कारपोरेशन और एफसीआइ द्वारा तैयार चावल खरीदा जाता है तो खरीदे गये चावल की रसीद मिल मालिकों के लिए सिक्योरिटी की तरह काम करती है. इसे भी ऑनलाइन रखा जाता है.

जनवितरण प्रणाली में भी बदलावइस कंप्यूटरीकरण की प्रक्रिया सबसे बड़ा लाभ जनवितरण में व्याप्त कुव्यवस्था को मिटाने में हुआ. इसके तहत सबसे पहले सरकार ने 2007 में सभी पुराने राशन कार्ड को रद कर दिया और नये सिरे से कंप्यूटरीकृत राशन कार्ड बनवाये. इन राशन कार्डो में दो कोड होते हैं, एक नंबर वाले कोड और एक बार कोड. नये कार्ड में परिवार से संबंधित सभी जानकारियां, परिवार के मुखिया का नाम, पता, उसकी जाति वगैर सबका जिक्र होता है. ये जानकारियां वेबसाइट पर भी मौजूद रहती हैं.इन जानकारियों के जरिये ही दुकानों के लिए जरूरी आवंटन का भी जिक्र वेबसाइट पर मौजूद रहता है.

जीपीएस सिस्टम वाले ट्रक
जनवितरण प्रणाली का अनाज ढोने वाले ट्रकों के बारे में भी वहां नियमकायदे हैं. जीपीएस सिस्टम के जरिये राशन ढोने वाले ट्रकों की निगरानी वेयरहाउस में बैठेबैठे की जाती है. इन ट्रकों में भी जीपीएस लगा रहता है. अगर कोई ट्रक निर्धारित रास्ते से अलग रूट अपनाता है या किसी जगह जरूरत से अधिक समय के लिए ठहर जाता है तो इसकी सूचना एसएमएस के जरिये संबंधित अधिकारी के पास तत्काल चली जाती है. इसके अलावा पीडीएस का अनाज ढोने वाले ट्रक पीले रंग में रंगे होते हैं, ऐसा सरकारी निर्देश है, ताकि उन पर ठीक तरीके से निगरानी रखी जा सके.

जांच भी हाइटेक
राशन दुकानों की जांच के लिए साफ्टवेयर एक तिहाई दुकानों का चयन बारीबारी से करता है. इन चयनित दुकानों का भौतिक सत्यापन जिला और राज्य स्तर पर किया जाता है. इसके बाद जांच की रिपोर्ट को वेब पर डाल दिया जाता है.

जन भागीदारी
इस प्रक्रिया में आम लोगों की भागीदारी की भी गुंजाइश बनायी गयी है ताकि जनता भी इस पूरी प्रक्रिया पर नजर रख सके. इसके लिए सिटिजन इंटरफेस के नाम से एक वेबसाइट तैयार किया गया है. इस वेबसाइट पर इस योजना से संबंधित तमाम जानकारियां मौजूद रहती हैं. कोई भी व्यक्ति किसी भी जानकारी को देखपरख सकता है और गलत पाये जाने पर शिकायत कर सकता है. जैसे अगर किसी किसान ने सरकार को 2 क्विंटल धान बेचा है और साइट पर मौजूद विवरण में यह 3 क्विंटल या कुछ और दिख रहा है तो वह व्यक्ति अपनी रसीद के साथ संबंधित जानकारी पर आपत्ति दर्ज करा सकता है. यह जनवितरण प्रणाली के संबंध में भी किया जा सकता है. जनता के शिकायतों का समाधान भी ऑनलाइन किया जाता है और इस संबंध में समय सीमा निर्धारित होती है. एक टोल फ्री नंबर भी है जिस पर सुबह आठ बजे से रात के 10 बजे तक शिकायत दर्ज करायी जा सकती है. शिकायत का निबटारा होने के कारण मेल, एसएमएस, फोन या चिट्ठी के जरिये शिकायतकर्ता को समाधान की सूचना भी दी जाती है.

(वन वर्ल्ड फाउंडेशन इंडिया द्वारा तैयार रिपोर्ट पर आधारित)

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