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बुजुर्गो के अनुभव से लाभ उठाने की जरूरत

समाज व सरकार दोनों को वृद्ध के प्रति जागरूक और कुछ करने की जरूरत है. इससे एक-दूसरे के विचारों का आदान-प्रदान होगा. वृद्धजनों को लाभ होगा. वे मजबूत होंगे, तो समाज व राष्ट्र शक्तिशाली होगा. उनके अनुभवों का लाभ सभी को मिलेगा. बुजुर्गो की अहमियत को कभी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता. उनकी उपेक्षा अपनी […]

समाज व सरकार दोनों को वृद्ध के प्रति जागरूक और कुछ करने की जरूरत है. इससे एक-दूसरे के विचारों का आदान-प्रदान होगा. वृद्धजनों को लाभ होगा. वे मजबूत होंगे, तो समाज व राष्ट्र शक्तिशाली होगा. उनके अनुभवों का लाभ सभी को मिलेगा.

बुजुर्गो की अहमियत को कभी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता. उनकी उपेक्षा अपनी जड़ को खुद ही काटने जैसा है. जिस घर में बुजुर्ग नहीं होते, वहां का संस्कार, जीने की आदर्श शैली, सब कुछ मिटने लगता है. नैतिक मूल्यों का ह्रास होने लगता है. वहां तथाकथित स्वच्छंदता की जगह अनुशासनहीनता व स्वार्थ पनपने लगता है.

रिश्तों में मिठास लाने के लिए आज सोच को बदलने की जरूरत है. इससे दूरियां खुद-ब-खुद कम हो जाएंगी. वैसे वृद्ध, जिन्हें ओल्ड एज होम भेज दिया जाता है, उनके अकेलेपन को कम करने के लिए ओल्ड एज होम में स्कूल, अस्पताल व इंटरटेनमेंट की व्यवस्था होनी चाहिए. स्कूल में उन वृद्ध व रिटायर्ड लोगों को पढ़ाने का काम दिया जाये. इससे दोनों पीढ़ियों का आपस में संपर्क बनेगा. वृद्ध जब स्कूलों में पढ़ाने का काम करेंगे, तो उनका खालीपन दूर होगा. जितने भी रिटायर्ड टीचर हैं, वे अगर स्कूल में पढ़ायेंगे, तो बच्चों में नैतिक मूल्यों, बड़ों का आदर करना, संस्कार व संस्कृति का आदान-प्रदान होगा.

कहा गया है-‘किसी अनुभवी व्यक्ति की मृत्यु हो जाये, तो एक लाइब्रेरी की मृत्यु की जाती है.’ कहने का तात्पर्य यह कि वृद्ध के न रहने से उनका अनुभव, संस्कार, संस्कृति, नैतिक मूल्य सब की क्षति हो जाती है. अपने बुजुर्गो के अनुभवों का लाभ उठाना हमारा कर्तव्य है. गांधी जी ने कहा है-‘अच्छी किताब मिले, तो नरक भी स्वर्ग हो सकता है.’ इसलिए मेरा मानना है कि सभी को किताबों से जरूर दोस्ती करनी चाहिए.

वृद्धावस्था में सबसे ज्यादा परेशानी स्वास्थ्य की होती है. मैं सरकारी नौकरी में था, तो मेरी दवा का सारा खर्च सरकार उठाती थी, लेकिन वे लोग जो रिटायर्ड हो गये हैं या जो गरीब हैं, उनके इलाज का खर्च कौन उठायेगा? इसके लिए सरकार को आगे आने की जरूरत है. सरकार उदासीन है.

उनको इसकी व्यवस्था करनी चाहिए. खास कर वैसे पैरेंट्स, जिनके बच्चे बाहर रहने चले जाते हैं, उन्हें एक सहारे की जरूरत होती है. जब उन्हें कोई सहारा नहीं मिलता, तो वे अपने को बेबस व लाचार समझने लगते हैं. युवाओं की परेशानी है कि वे शॉटकर्ट का रास्ता चाहते हैं. उनका उद्देश्य कर्म, सेवा व साधना प्रधान नहीं है. धन की लालसा करते हैं. समाज और सरकार दोनों को वृद्ध के प्रति जागरूक और कुछ करने की जरूरत है. इससे एक-दूसरे के विचारों का आदान-प्रदान होगा. वृद्धजनों को लाभ होगा. वे मजबूत होंगे, तो समाज व राष्ट्र शक्तिशाली होगा. उनके अनुभवों का लाभ सभी को मिलेगा. (अलमास फातमी से बातचीत पर आधारित)

डॉ आइसी कुमार
सेवानिवृत्त आइएएस, पूर्व कुलपति

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