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मोदी का मिशन दिल्ली

भारतीय जनता पार्टी की तरफ से प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी का मिशन दिल्ली पूरी आक्रामता के साथ चल रहा है. इसे हाइटेक अंदाज में अंजाम दिया जा रहा है. मोदी को यकीन है कि जिस तरह अमेरिका के राष्ट्रपति बराक ओबामा ने तकनीकी रूप से बेहतर चुनाव प्रचार की बदौलत अमेरिकी चुनावों में […]

भारतीय जनता पार्टी की तरफ से प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी का मिशन दिल्ली पूरी आक्रामता के साथ चल रहा है. इसे हाइटेक अंदाज में अंजाम दिया जा रहा है.

मोदी को यकीन है कि जिस तरह अमेरिका के राष्ट्रपति बराक ओबामा ने तकनीकी रूप से बेहतर चुनाव प्रचार की बदौलत अमेरिकी चुनावों में सफलता हासिल की थी, वैसा ही कोई कारनामा वे भारत में भी कर सकते हैं. रैली-दर-रैली नरेंद्र मोदी की तैयारी सामने आती जा रही है. मोदी की खास चुनावी रणनीति और उसके पीछे छिपे चेहरों के बीच ले जाता आज का समय..

मिशन 272+ और तकनीक
भाजपा मिशन 272+ के लिए सूचना तकनीक का बड़े पैमाने पर प्रयोग कर रही है. पार्टी का मानना है कि 2014 के आम चुनाव के समय देश में 14 करोड़ मोबाइल इंटरनेट उपभोक्ता हो जायेंगे. पार्टी की नजर इस वर्ग पर है. इसके लिए विभिन्न स्तरों पर आइटी सेल बनाये गये हैं. पार्टी की एक बैठक में मोदी ने 2014 का चुनाव जीतने के लिए इस वर्ग पर फोकस करने की बात कही थी. पार्टी का मानना है कि देश में 165 लोकसभा सीटें ऐसी हैं, जहां की हार-जीत में सोशल मीडिया एक प्रभावी भूमिका निभा सकता है.

इसे अमली जामा पहनाने के लिए पार्टी ने राज्यसभा सांसद पीयूष गोयल की अध्यक्षता में सूचना और प्रसार उप प्रकोष्ठ का गठन किया है. इस उप प्रकोष्ठ को पार्टी की आइटी सेल मदद मुहैया कराती है. आइटी सेल के संयोजक आइआइटी-बीएचयू के पूर्व छात्र अरविंद गुप्ता हैं और संवाद सेल की जिम्मेदारी इंडियन इंस्टीटय़ूट ऑफ फॉरेन ट्रेड से एमबीए की डिग्री हासिल कर चुके अनुपम त्रिवेदी के कंधों पर है.

गुप्ता की टीम डिजिटल और सोशल मीडिया देखती है, जबकि त्रिवेदी की टीम कंटेंट पर फोकस करती है. इसके अलावा पार्टी फोरम से अलग एक अलग सेल आइआइटी मुंबई के छात्र रह चुके आइटी उद्यमी राजेश जैन के नेतृत्व में काम करती है. जैन और उनके साथी आइटी संबंधित चुनाव प्रबंधन का काम बूथ स्तर पर देखते हैं. भाजपा केंद्रीय पदाधिकारियों, राज्य के भाजपा अध्यक्षों और संगठन सचिवों की बैठक में जैन ने बूथ प्रबंधन में तकनीक के प्रयोग के बारे में विस्तार से जानकारी दी थी. जैन ने उदाहरण के तौर पर एक भाजपा नेता का चयन किया.

फिर सॉफ्टवेयर के जरिये चुनाव आयोग के मतदाता सूची से इस नेता का नाम खोजा और उनके बूथ का पता लगाया. उसके बाद मतदाता सूची में उनके परिवार के सदस्यों के बारे में बताया. जैन ने पार्टी के सदस्यों को भाजपा नेता के परिवार के सदस्यों के जरिये अन्य मतदाताओं को पार्टी के पक्ष में वोट देने के लिए प्रेरित करने के बारे में भी बताया. जैन ने सॉफ्टवेयर के जरिये सभी बूथों पर भाजपा समर्थकों की पहचान कर अनिश्चय वाले मतदाताओं को पार्टी के पक्ष में लामबंद करने का सुझाव दिया. जैन फ्रेंड्स ऑफ बीजेपी के राष्ट्रीय संयोजक हैं. इसके अलावा पार्टी ने 10 लाख ऑनलाइन वोलंटियर बनाने की योजना बनायी है. ये न सिर्फ मुद्दों पर नजर रखेंगे, बल्कि पार्टी को जमीनी हकीकत की जानकारी देंगे. जैन और अन्य टीमों ने ही मिशन 272+ की रूपरेखा तैयार की है.

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प्रवासी भारतीय करेंगे प्रचार
मोदी 2014 के लिए सिर्फ तकनीक का ही सहारा नहीं ले रहे हैं, बल्कि उनके चुनाव अभियान में शामिल होने के लिए अमेरिका, ब्रिटेन, दक्षिण पूर्व एशिया, यूरोप के हजारों प्रवासी भारतीय मोदी के लिए प्रचार करेंगे. एक अनुमान के मुताबिक लगभग 10 हजार प्रवासी भारतीय चुनाव में मोदी का प्रचार करेंगे. कई शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में भाजपा के लिए काम करेंगे, तो कई मोदी की टीम के साथ जुड़ेंगे. यही नहीं दिल्ली, राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ में हो रहे विधानसभा चुनावों में भी प्रवासी भारतीय, भाजपा के पक्ष में काम करेंगे. ओवरसीज फ्रेंड्स ऑफ बीजेपी के मुताबिक अमेरिका से ही 5 हजार प्रवासी भारतीयों ने मोदी के पक्ष में प्रचार करने की हामी भरी है. यही नहीं, यह टीम अमेरिका में रह रहे भारतीयों को मतदाता सूची में नाम जोड़ने के लिए प्रेरित कर रही है, ताकि वे चुनाव के समय भारत आकर अपना मत डाल सकें.

सोशल मीडिया में बढ़त जीत की गारंटी नहीं है
विपुल मुद्गल
सीनियर फेलो, सीएसडीएस

किसी भी व्यक्ति के विचार को गढ़ने में, विचारों के संचरण में मीडिया का रोल काफी अहम है. विचारों के प्रसार में सोशल मीडिया का भी अपना महत्व है, जिसका प्रयोग कर विभिन्न राजनीतिक दल अपनी ताकत को बढ़ाने की कोशिश कर रहे हैं. इसके जरिये न सिर्फ वाद-विवाद को जन्म दिया जाता है, बल्कि अपनी नीतियों, अपने कार्यो, अपने नेताओं के बारे में जानकारी भी जनता तक पहुंचायी जाती है.

भाजपा ने अटल बिहारी वाजपेयी के शासनकाल में ही व्यापक स्तर पर तकनीक का प्रयोग करना शुरू किया था. तब मोबाइल पर अटल बिहारी वाजपेयी की आवाज गूंजती थी कि ‘मैं अटल बिहारी वाजपेयी बोल रहा हूं.’ 2014 के आम चुनाव से मोबाइल के अलावा सोशल मीडिया का प्रयोग पहले की तुलना में बढ़ता हुआ दिख रहा है. अब राजनीतिक दल अपनी बैठकों में वर्चुअल माध्यमों और तकनीकी का प्रयोग व्यापक तौर पर कर रहे हैं. पिछले चुनावों में एसएमएस के जरिये मतदाताओं तक संदेश भेजा जाता था, जबकि अब वीडियों क्लिपिंग्स आदि के जरिये भी अपनी बात पहुंचाये जाने की शुरूआत हो गयी है.

भाजपा ने ब्रांडिंग और मोदी की बातों को अधिक से अधिक लोगों तक पहुंचाने के लिए कम्युनिकेशन टीम को काफी तरजीह दी है. इसमें बड़ी संख्या में इंजीनियरिंग, मैनेजमेंट के छात्र शामिल हैं, जो मोदी और भाजपा की ब्रांडिंग में लगे हुए हैं. आइआइटी और आइएमएम जैसे संस्थानों से पढ़े ये छात्र फेसबुक और ट्विटर का प्रयोग धड़ल्ले से करते हैं. यही नहीं, देश में मोबाइल पर इंटरनेट का प्रयोग करनेवालों की संख्या 14 करोड़ के आसपास है. भाजपा इस वर्ग के बीच अपनी पैठ बढ़ाने की कवायद कर रही है. यही कारण है कि मोदी सोशल मीडिया पर काफी सक्रिय रहते हैं. इस माध्यम के जरिये उनका तार अपने समर्थकों के साथ लगातार जुड़ा रहता है, और विरोधियों पर भी इसके जरिये वे तीखा हमला बोलते हैं. लेकिन सोशल मीडिया का अपना दायरा है.

सोशल मीडिया किसी व्यक्ति की ताकत को बढ़ाता है, लेकिन यह शून्य में काम नहीं करता. सोशल मीडिया का सबसे ज्यादा प्रभाव मध्य वर्ग में होता है. यह भी कहा जा सकता है कि लोअर मिडिल क्लास भी इसका प्रयोग कुछ हद तक करता है. यह मध्यम वर्ग ओपिनियन मेकर होता है, विभिन्न मुद्दों पर चर्चा करता है, और उनकी बातें आम लोगों तक भी किसी न किसी तरीके से पहुंचाता है. इसलिए आम आदमी सोशल मीडिया का प्रयोग भले ही न कर रहा हो, लेकिन इन ओपिनियन मेकर के जरिये सूचना के संचरण से बहुत प्रभावित होता है. वैसे भी भारत में युवाओं की संख्या ज्यादा है, और इस चुनाव में ऐसी उम्मीद की जाती है कि युवा मतदाता बढ़-चढ़ कर चुनाव में अपनी जनतांत्रिक जवाबदेही निभायेंगे. यह वर्ग मीडिया के अन्य माध्यमों के साथ सोशल मीडिया का प्रयोग भी धड़ल्ले से करता है, और इसी मतदाता वर्ग को भाजपा एवं अन्य राजनीतिक दल लक्षित कर रहा है.

लेकिन यहां हमें समझना होगा कि सोशल मीडिया आपकी ब्रांडिंग कर सकता है, लेकिन ब्रांड के रूप में आप खुद को तभी भुना पायेंगे, जब आपकी सक्रियता धरातल पर होगी. सोशल मीडिया आपकी मजबूती, आपकी उपस्थिति, आपके दायरे को और बढ़ा सकता है, लेकिन शून्य में आपके लिए काम नहीं कर सकता है. अगर आपके पास पैर है, पैरों के नीचे जमीन है, तभी वह आपके भागने में और तेज दौड़ लगाने में आपकी मदद करेगा.

इसलिए यह भी नहीं कहा जा सकता कि मोदी सिर्फ सोशल मीडिया की उपज हैं, या सिर्फ सोशल मीडिया ने या अन्य मीडिया माध्यमों की बदौलत मोदी खड़े हुए हैं. मोदी खुद की बदौलत खड़े हुए हैं, और उनके पीछे भाजपा और उसके कार्यकर्ताओं की ताकत है. और यही कार्यकर्ता और पार्टी और यहां तक की खुद मोदी सोशल मीडिया का प्रयोग कर तेज दौड़ लगाने की कोशिश कर रहे हैं. ऐसा नहीं है कि सोशल मीडिया का प्रयोग अन्य दल नहीं कर रहे हैं. उदाहरण के लिए अगर पिछले साल हुए अन्ना के आंदोलन को देखें, तो इस आंदोलन में सोशल मीडिया ने ही अहम भूमिका निभायी थी.

यहां तक कि अरविंद केजरीवाल की पार्टी ‘आप’ भी सोशल मीडिया का प्रयोग धड़ल्ले से करती है. लेकिन यह माध्यम उनके लिए उतना उपयोगी नहीं हो पा रहा है, जितना स्थापित राजनीतिक दल (भाजपा जैसे दल) के लिए. क्योंकि बिना अपनी उपस्थिति दर्ज कराये, कार्यकर्ताओं की लंबी श्रृंखला तैयार किये बगैर चुनावी जीत हासिल नहीं हो सकती. अमेरिका के चुनावों में सोशल मीडिया का प्रयोग बड़े पैमाने पर होता रहा है. भारत में मध्यवर्ग और युवाओं की बढ़ती संख्या और तकनीक के इस्तेमाल के प्रति इनके लगाव को देखते हुए मोदी ने अपने ट्विटर संदेश 12 भाषाओं में प्रेषित करते हैं. मोदी सोशल मीडिया के साथ ही जमीनी स्तर पर भी काम कर रहे हैं.
बातचीत: संतोष कुमार सिंह

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