-पिछले आयोजन की गलती फिर न हो
-दिन–रात काम करता है पूरा अमला
।।कमलेश कुमार सिंह, नयी दिल्ली।।
भाजपा के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी की हर नयी रैली पिछली रैलियों से भिन्न दिखती है. खुद मोदी नये अंदाज में हैं, चाहे उनकी वेश-भूषा हो या भाषण का अंदाज. रैलियों में जुटनेवाली भीड़ की संख्या पर विवाद हो सकता है, लेकिन कार्यकर्ताओं की सक्रियता से इनकार कैसे किया जा सकता है. हरेक रैली को सफल बनाने के लिए पार्टी जी-जान से जुटी है.
प्रत्येक चीज पर बारीक नजर रखी जाती है. यहां तक कि टेंट, कुर्सियों, पंखों पर भी. रैली का क्या नाम हो, इस पर भी ‘‘ नमो ‘‘ टीम मंथन करती है. जैसे कानपुर रैली का नाम ‘‘ विजय शंखनाद ‘‘ , तो दिल्ली का ‘‘ दिल्ली विजय ‘‘ . पार्टी प्रवक्ता मीनाक्षी लेखी कहती हैं, इन नामों से जाहिर होता है कि हम गुड गवर्नेस के मुद्दे पर चुनाव जीतना चाहते हैं. रैलियों के नाम स्थानीय इकाई तय करती है.
पटना की हुंकार रैली का नाम मोदी के पीएम प्रत्याशी बनने से पहले ही तय कर लिया गया था. पुरानी रैली के व्यवस्था संबंधी अनुभव के आधार पर नयी की तैयारियों के लिए आयोजक को पार्टी इकाई सलाह देती है. कभी-कभी रैली संबंधी सलाह पेशेवर ग्रुप द्वारा भी दी जाती है. भाजपा राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य जयप्रकाश अग्रवाल के एनजीओ ‘‘ सूर्या फाउंडेशन ‘‘ की इसमें महत्वपूर्ण भूमिका है. एनजीओ के सदस्य चंद्र मोहन नेगी ने बताया कि हमारा संगठन रैली को सुव्यवस्थित बनाने के लिए सलाह देता है.पूर्व में आयोजित रैलियों के मूल्यांकन के बाद नयी रैलियों के लिए व्यवस्था संबंधी सलाह दी जाती है. व्यवस्था पर पैनी नजर होती है, इसका एक उदाहरण देखिए. एक सभा में मोदी दीप प्रज्ज्वलित करने गये, लेकिन माचिस गीली थी. इससे सबक सीखते हुए आगे की रैलियों में अच्छी माचिस, मोमबत्ती व बत्तियों पर कपूर लगा कर रखने की सलाह दी गयी. वहीं भोपाल की रैली में देशभक्ति गीतों पर लोग झूमते देखे गये. न्यूज चैनलों और अखबारों में इस दृश्य को तरजीह दी गयी. इसके बाद सलाह दी गयी कि आगे की रैलियों में भी ऐसी व्यवस्था हो. अन्य सुझावों में टैंट की गुणवत्ता व परदों की सफाई तक शामिल हैं.
मोदी की रैलियों में बड़े-बड़े डिसप्ले स्क्रीन लगाये जाते हैं. पटना के गांधी मैदान में भी ऐसे कई डिसप्ले स्क्रीन लगाये जा रहे हैं. एनजीओ सूर्या फाउंडेशन ने सलाह दी है कि सभी डिसप्ले स्क्रीन पर एक तकनीकी व्यक्ति की तैनाती सुनश्चित की जाये. दरअसल, एक रैली में डिसप्ले स्क्रीन पर मोदी के वीडियो और ऑडियो में फर्क के कारण उनके संवाद और हाव-भाव मेल नहीं खा रहे थे.
आयोजन में मोदी का खास ख्याल रखा जाता है. मसलन एक रैली में कम पंखों की व्यवस्था की गयी थी और मोदी पसीना-पसीना हो गये. अब मंच के ऊपर व सभागार में पंखे बगैर आवाज वाले लगाये जाते हैं.
पटना में होनेवाली हुंकार रैली के मीडिया कवरेज को लेकर विशेष व्यवस्था करने की हिदायत पहले ही आयोजकों को दी गयी है. मीडिया के लिए स्टेज भी इस तरह बनाने को कहा गया है कि भीड़ का फिल्मांकन बेहतर तरीके से हो सके. रैली में आमंत्रित वीआइपी का खास ख्याल रखने को कहा गया है. आमंत्रण कार्ड के हिसाब से कुरसी की व्यवस्था करने के निर्देश दिये गये हैं.
छोटी-छोटी बातों का ख्याल
-भोपाल में भाषण से पहले देशभक्ति गीत बजाये गये. इस पर लोग झूमे. इसे लोकप्रियता भी मिली. इसके बाद सभी रैलियों में देशभक्ति गीतों की व्यवस्था.
-एक सभा में अंतिम पंक्ति में बैठे लोगों को मोदी की आवाज स्पष्ट सुनायी नहीं पड़ रही थी. सबक लेते हुए अब साउंड सिस्टम की व्यवस्था पर ऐसी कंपनी को सौंपी जा रही है, जिसे बड़े कार्यक्रमों का अनुभव है.
– एक सभा में 2000 वीआइपी कार्ड बांटे गये और मात्र एक हजार कुर्सियां ही लगायी गयीं.अधिकतर वीआइपी खड़े रहे. इसके बाद आमंत्रण के हिसाब से कुर्सियों की व्यवस्था.
– एक रैली में मोदी के सामने वाले पंडाल का टैंट नीचा था. मंच काफी ऊंचा था, जिससे जनता मोदी को दिखायी नहीं दे रहे थे. बाद के सभी रैलियों में इस पर ध्यान देने के निर्देश.
-मीडिया का स्टेज कुछ सभाओं में ग्राउंड लेवल पर था. इससे वे जनता को देख नहीं पा रहे थे. इसके बाद व्यवस्था की गयी कि मीडिया का स्टेज, मंच के साइड में होगा और जमीन से तीनफुट ऊंचा.
‘‘ रैली के नाम से लेकर टेंट, कुर्सियां, पंखे तक पर नजर रखी जा रही है. पिछले अनुभवों के आधार पर नये के लिए सुझाव दिये जाते हैं.
चंद्र मोहन नेगी, सदस्य, सूर्या फाउंडेशन