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भारत-अफ्रीका फोरम का तीसरा सम्मेलन : संबंधों का नया दौर
भारत-अफ्रीका फोरम के तीसरे शिखर सम्मेलन से दोनों पक्षों की व्यापक उम्मीदें जुड़ी हैं. इस आयोजन के जरिये जहां वाणिज्य और निवेश की संभावनाओं को वास्तविकता में ढालने की कोशिश हो रही है, वहीं वैश्विक कूटनीति में परस्पर सहयोग को मजबूती देना भी इसका एक महत्वपूर्ण एजेंडा है. भारत और अफ्रीका समग्र रूप से दुनिया […]
भारत-अफ्रीका फोरम के तीसरे शिखर सम्मेलन से दोनों पक्षों की व्यापक उम्मीदें जुड़ी हैं. इस आयोजन के जरिये जहां वाणिज्य और निवेश की संभावनाओं को वास्तविकता में ढालने की कोशिश हो रही है, वहीं वैश्विक कूटनीति में परस्पर सहयोग को मजबूती देना भी इसका एक महत्वपूर्ण एजेंडा है.
भारत और अफ्रीका समग्र रूप से दुनिया की सबसे कमजोर अर्थव्यवस्थाओं में हैं, लेकिन उनके विकास की गति सर्वाधिक है. ऐसे में ठोस साझेदारी दोनों क्षेत्रों की दो अरब से अधिक की आबादी के लिए समृद्धि के नये द्वार खोल सकती है. इतनी बड़ी संख्या में अफ्रीकी राष्ट्रप्रमुखों और मंत्रियों की एक साथ भारत से वार्ता एक अनूठा अवसर है. भारत-अफ्रीका फोरम शिखर सम्मेलन पर आधारित है आज का समय…
अफ्रीका को लेकर भारत को बदलनी होगी नीति
पारू डेंस
अंतरराष्ट्रीय मामलों के स्तंभकार
हालांकि, अफ्रीका के साथ व्यापार को लेकर भारत और चीन किसी प्रकार की प्रतिद्वंद्विता से इनकार करते हैं, लेकिन यह तय है कि अफ्रीका में चीन के मुकाबले भारत तेजी से पिछड़ रहा है. भारत के पिछड़ने के कई कारण हैं, जिन पर तुरंत ध्यान देने की जरूरत है.
भारत-अफ्रीका फोरम के तीसरे सम्मेलन के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी करीब 40 देशों के प्रमुखों सहित 54 देशों के प्रतिनिधियों की मेहमानवाजी करेंगे. उम्मीद जतायी जा रही है कि वे इस दौरान भारत और अफ्रीका के बीच हो रहे करीब 70 बिलियन डॉलर के कारोबार को बढ़ाने के लिए कई उपायों की घोषणा करेंगे. अफ्रीका का जीडीपी 2.4 ट्रिलियन डॉलर है, जो कि भारत के 2 ट्रिलियन डॉलर जीडीपी से अधिक है.
गौर करनेवाली बात है कि 2014 में 10 सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में 7 अफ्रीकी देश रहे हैं. यहां की करीब 41.4 करोड़ आबादी शहरों में रहती है. अगर इंटरनेट के पहुंच की बात करें, जो मौजूदा डिजिटल अर्थव्यवस्था का महत्वपूर्ण पहलू है, तो भारत अफ्रीकी देशों को सॉफ्टवेयर उत्पादों का निर्यात बढ़ा कर घरेलू अर्थव्यवस्था को मजबूती प्रदान कर सकता है. विशेषज्ञों का मानना है कि सिर्फ साफ्टवेयर के निर्यात से भारत अफ्रीकी अर्थव्यवस्था में 300 बिलियन डॉलर तक का योगदान दे सकता है.
हैरानी की बात है कि वर्ष 2007 से अफ्रीका में एफडीआइ में वृद्धि दर 20 फीसदी रही है और यह निवेश के लिए विश्व का सबसे पसंदीदा स्थान बन गया है. निवेश की पसंदीदा जगह बनने की वजह वहां मौजूद प्राकृतिक संसाधन नहीं, बल्कि आर्थिक स्थिति में सुधार और पिछले 10 सालों में आयी राजनीतिक स्थिरता है.
इंफ्रास्ट्रक्चर और मानव पूंजी पर सरकारी खर्च के साथ ही कमोडिटी आयात के कारण घरेलू खपत बढ़ी और इस प्रक्रिया में एक बड़ा मध्यवर्ग तैयार हुआ. अफ्रीकी देश अपने औपनिवेशिक काल के दौर को भूलते हुए आगे बढ़ने की कोशिश में लगे हुए हैं. पश्चिमी देशों और अमेरिका का प्रभाव और निवेश अफ्रीकी देशों में कम हो रहा है, क्योंकि इन देशों की नयी पीढ़ी के उभरते नेताओं को चीन और भारत के साथ व्यापार करने में सुविधा महसूस होती है और इन देशों के साथ समान स्तर पर बातचीत का मौका भी रहता है.
अफ्रीका को लेकर भारत और चीन की नीति अलग-अलग है. चीन का अधिकतर निवेश सरकार करती है, जबकि भारत में निजी क्षेत्र का अधिक योगदान है. हालांकि, दोनों देश किसी प्रकार की प्रतिद्वंद्विता से इनकार करते हैं, लेकिन यह तय है कि अफ्रीका में चीन के मुकाबले भारत तेजी से पिछड़ रहा है. प्रधानमंत्री मोदी, जो देश और विदेश में लोकप्रिय हैं, को यह तथ्य जानकार परेशानी होगी.
चीन के मुकाबले भारत के पिछड़ने के कई कारण हैं. ऐतिहासिक तौर पर भारत का पूर्वी अफ्रीका से व्यापार का रिश्ता काफी पुराना है. अफ्रीकी देशों में भारतीय मूल के लोगों की काफी संख्या है, इसके बावजूद चीन का आक्रामक तौर पर विकास के लिए वित्तीय मदद करने के कारण भारत काफी पीछे रह गया है. चीन सिर्फ सड़क, पुल, स्कूल, अस्पताल का निर्माण ही नहीं कर रहा है, बल्कि बदले में व्यापक पैमाने पर चीनी उत्पादों का निर्यात भी कर रहा है. जिस तेज गति से निवेश के प्रोजेक्ट को मंजूरी मिल रही है और इस पर काम हो रहा है, वह हैरान करनेवाला है.
जब तक भारतीय कूटनीतिज्ञ अफ्रीका को लेकर योजना बनाते हैं, चीन उनसे कहीं आगे निकल गया होता है. चीन के अधिकारियों के अफ्रीका से जुड़े सोच और भारतीय अधिकारियों के सोच में काफी फासला है. चीनी अधिकारियों के अफ्रीकी नेताओं से अच्छे संबंध बन गये हैं. इसी का परिणाम है कि अफ्रीका और भारत के बीच द्विपक्षीय कारोबार 2005 से 30 फीसदी की सालाना दर से बढ़ने के बावजूद इस साल तक 90 बिलियन डॉलर पहुंचाने का लक्ष्य रखा गया है, जबकि चीन का व्यापार 200 बिलियन डॉलर का हो चुका है.
पिछले साल अफ्रीकी यूनियन की बैठक को संबोधित करते हुए चीन के प्रधानमंत्री ली क्वांग ने घोषणा की थी कि अफ्रीका के साथ व्यापार को 2020 तक 400 बिलियन डॉलर किया जायेगा और निवेश को 100 बिलियन डॉलर. निश्चित तौर पर चीन के स्तर पर पहुंचने के लिए भारत को बहुत कुछ करना होगा. हालांकि, चीन के निवेश का अफ्रीका पर पड़नेवाले नकारात्मक असर को देखा जा सकता है. चीन के सस्ते आयातित सामानों से स्थानीय मैन्युफैक्चरिंग उद्योग बंदी के कगार पर हैं और स्थानीय लोगों को नौकरी नहीं मिलने के कारण सामाजिक तनाव और अस्थिरता बढ़ रही है.
दूसरी ओर भारत का निवेश छोटा, समान रूप से वितरित और मैन्युफैचरिंग और सेवा क्षेत्र में है. इसमें स्थानीय लोगों को नियुक्त किया गया है और यह पारदर्शी भी है. औपनिवेशिक दौर में संघर्ष के दौरान भारत ने अफ्रीकी देशों को वैचारिक और राजनीतिक तौर पर काफी मदद की है.
इसी के आधार पर भारत ने अफ्रीकी देशों के साथ संबंधों को मजबूत करने की कोशिश की है. भारत के लिए अफ्रीका का सिर्फ व्यावसायिक महत्व ही नहीं है, बल्कि ‘मेक इन इंडिया’ योजना को सफल बनाने और भारत को सस्ती ऊर्जा मुहैया कराने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है. भारतीय मूल के लोगों की मौजूदगी काफी मायने रखती है. इस पूंजी की पूर्व की केंद्र सरकारों ने अनदेखी की है, लेकिन नयी सरकार इस दिशा में काम कर रही है.
मॉरीशस, जो अफ्रीका का गेटवे बनने की इच्छा रखता है, में भी भारतीय मूल के लोगों की अधिकता है. पूर्वी अफ्रीका में अधिकतर कारोबारी गुजराती हैं. डरबन में छोटे और मध्यम मैन्युफैचरिंग कंपनियों पर भारतीयों का कब्जा है. नाइजीरिया में सिंधी मूल के लोग कारोबार से जुड़े हुए हैं.
ऐसे में क्या भारतीय राजनयिकों, नौकरशाहों और कारोबारियों को साथ बैठ कर अफ्रीका को लेकर समग्र नीति नहीं बनानी चाहिए? क्या मॉरीशस के बैंकिंग सेक्टर के सालाना 75 बिलियन डॉलर में भारत की हिस्सेदारी नहीं होनी चाहिए? भारत द्वारा पिछड़े अफ्रीकी देशों को विकास के एवज में मदद देना एक महत्वपूर्ण हथियार है, लेकिन इस हथियार का प्रयोग गरीब देश चीन के प्रभाव को कम करने के लिए नहीं कर सकते हैं. ऐसे में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को दूसरे हथियार का उपयोग करना चाहिए, और वह है भारतीय मूल के लोग. इन लोगों से संपर्क बढ़ाने की कोशिश न सिर्फ भारत के लिए, बल्कि अफ्रीकी देशों के लिए भी लाभकारी साबित होगी.
(ले मॉरीशियन डॉट कॉम से साभार)
कई अर्थों में महत्वपूर्ण है यह सम्मेलन : मोदी
मेरे विचार से भारत-अफ्रीका फोरम शिखर सम्मेलन कई दृष्टियों से बहुत महत्वपूर्ण है. निश्चित रूप से मेजबान होने के नाते तो यह आयोजन हमारे लिए खास है ही, पर पहली बार इस बैठक में सभी 54 अफ्रीकी देशों को आमंत्रित किया गया है और ये सभी देश इसमें शिरकर कर रहे हैं. इस बार फोरम शिखर सम्मेलन के साथ वाणिज्य मंत्रियों का सम्मेलन भी आयोजित किया जा रहा है, क्योंकि हम चाहते हैं कि आनेवाले दिनों और सालों में भारत और अफ्रीका के बीच आर्थिक संबंध अधिक मजबूत हों.
आप पत्रकारों के अलावा अन्य 400 अफ्रीकी पत्रकार इस आयोजन के लिए आ रहे हैं और वे सभी अपने खर्च पर आ रहे हैं. यह तथ्य इस कार्यक्रम के महत्व का परिचायक है. जिस किसी से भी मैं चर्चा कर रहा हूं, यही पता मिल रहा है कि पूरी दुनिया का ध्यान इस सम्मेलन पर है और उसे बड़े महत्व के साथ देख रहे हैं. मैं इसे बहुत अच्छे संकेत के रूप में देखता हूं.
कहा जाता है कि लाखों साल पहले एशिया और अफ्रीका एक ही भूखंड थे जिन्हें आज समुद्र ने विभाजित किया है. वास्तव में, भारत का पश्चिमी तट और अफ्रीका का पूर्वी तट समुद्र से जुड़े हुए हैं. मैं गुजरात से हूं और दरअसल गुजरातियों ने ही अफ्रीका से व्यापार-वाणिज्य शुरू किया था. आज अफ्रीका में 2.7 लाख भारतीय हैं, जिनमें बड़ी संख्या में गुजराती हैं. मेरे भी अनेक अफ्रीकी लोगों से लंबे समय से बड़े अच्छे संबंध रहे हैं.
भारत और अफ्रीका में दुनिया की एक-तिहाई आबादी निवास करती है. दोनों क्षेत्रों में 65 फीसदी आबादी की उम्र 35 वर्ष से कम है तथा भारत और अफ्रीका के लिए यह बड़े भाग्य की बात है. भारत और अफ्रीका के बीच द्विपक्षीय व्यापार तेज गति से बढ़ रहा है और मुझे लगता है कि इस सम्मेलन से इसमें बड़ी तेजी आयेगी. मुझे पूरा भरोसा है कि इस शिखर सम्मेलन के दौरान और इसके बाद हम कई महत्वपूर्ण फैसले लेंगे, जो भारत और अफ्रीका दोनों को एक नया आत्म-विश्वास देंगे, हमारे संबंध गहरे और मजबूत होंगे तथा मुझे लगता है कि एक-साथ हम दुनिया में अपने योगदान की आधारशिला रख सकते हैं.इस आयोजन से भारत और अफ्रीका संबंधों को एक नयी ऊंचाई मिलेगी.
मैं समझता हूं कि यह सहभागिता और यह समानता जो सभी देशों को दी जा रही है, वह हमारी पहल है तथा मैं समझता हूं कि यह विशेषता पहले दो सम्मेलनों से इस सम्मेलन को भिन्न बनाती है. इस आयोजन के दौरान कई स्तरों पर वार्ताएं होनी हैं और मेरी राय में इससे अफ्रीका के हर कोने में एक नयी ताजगी आयेगी.
(भारत-अफ्रीका फोरम शिखर सम्मेलन में एडिटर्स फोरम में अफ्रीकी पत्रकारों को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा दिये गये संबोधन का संपादित अंश)
दीर्घकालिक सोच के साथ आगे बढ़ने की जरूरत
कैप्टन अजय लेले
असिस्टेंट डायरेक्टर, आइडीएसए
वैश्वीकरण के मौजूदा दौर में दुनिया के तमाम देश विकास की अपनी गति तेज करने का प्रयास कर रहे हैं. विकास के मौजूदा दौर में खासकर विकासशील देशों में औद्योगीकरण को मजबूत करने के लिए अधिकाधिक मात्रा में प्राकृतिक संपदा और खनिज पदार्थ की जरूरत होती है. इस ऐतबार से भारत और अफ्रीका के बीच व्यापारिक संबंध महत्वपूर्ण और व्यापक संभावनाओं से परिपूर्ण है.
अफ्रीका में बेशुमार प्राकृतिक संपदा मौजूद है. वहां लोहा, मैगनीज आदि की अधिकता है, जो कई उद्योगों के लिए जरूरी होते हैं. भारत को अपनी विकास और औद्योगिक नीति में इस तथ्य को ध्यान में रखना चाहिए और अफ्रीकी देशों से खनिज पदार्थ हासिल करने के लिए बड़े पैमाने पर निवेश करना चाहिए.
अफ्रीका भी भारत को अपने महत्वपूर्ण साझीदार मानता है.अफ्रीकी देशों पर जब भी कोई मुश्किल आती है, भारत हमेशा उनका साथ देता रहा है. ऐसे में भारत वहां निवेश करता है, तो हमें व्यापारिक रूप से कई बड़े फायदे होंगे और विकास की संभावनाओं को मजबूती मिलेगी.
जहां तक चुनौतियों का सवाल है, तो भारत और अफ्रीका के बीच भौगोलिक रूप से बहुत दूरी है. इसलिए व्यापारिक आवागमन को लेकर थोड़ी परेशानी है. अफ्रीका में ढेर सारे कई राज्य हैं, उनकी संस्कृति भी हमारे बिल्कुल ही उलट है. ऐसे में निवेश को लेकर जाहिर है कि वहां कुछ व्यापारिक चुनौतियां आयेंगी. और ये चुनौतियां तब ज्यादा होंगी, जब निवेश से बहुत जल्दी लाभ लेने
की होगी.
लेकिन अगर भारत वहां लंबे समय के लिए निवेश करता है, तो एक लंबे समय तक खनिज पदार्थों को हासिल करते रहने के लिए बहुत अच्छा अवसर है. उम्मीद की जानी चाहिए कि इस तीसरे भारत-अफ्रीका सम्मेलन में दोनों देश अपनी तमाम चुनौतियों को समझते हुए उनसे निपटने के साथ ही एक-दूसरे के परस्पर सहयोग से अपने व्यापारिक संबंधों को एक लंबे समय के लिए स्थापित करने के लिए तैयार हो जायेंगे.
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