जरा याद उन्हें भी कर लो.. दुनिया मना रही थी बकरीद, वहीं देश के लिए शहीद हुआ लांस नायक मो फिरोज खान
देश वीरों की शौर्यगाथाओं से हमेशा गौरवान्वित होता रहा है. अपनी माटी की रक्षा करनेवाले ऐसे वीर सपूतों पर देश को अभिमान है. इसी कड़ी में हैं शहीद लांस नायक फिरोज खान, जिन्होंने अपने कर्तव्य का वीरता पूर्वक निर्वहन किया और 15 अक्तूबर को एलओसी पर पाकिस्तान के मोर्टार हमले में शहीद हो गये.
लेकिन मीडिया में फिरोज की शहादत को वह स्थान नहीं मिला, जिसके वह हकदार थे. पर इससे कौन इनकार कर सकता है कि फिरोज ने अपनी शहादत से वीर अब्दुल हमीद की शौर्यगाथा को जीवंत कर दिया.
‘उसने दो दिन पहले फोन किया था और बताया था कि इस बार वह बकरीद पर घर नहीं आयेगा. सीमा पर तनाव बढ़ रहा था. हम उन्हें फोन पर ही ईद मुबारक कहने वाले थे.
फोन आया, पर उनकी शहादत की खबर लेकर. ईद की खुशियां गम में बदल गयीं.’ ऐसा कहते हुए शहीद लांस नायक मोहम्मद फिरोज खान की बीवी नसरीन बेगम बार–बार बेहोश हो जाती हैं. वहीं, उनके तीन बच्चों, चार साल की बेटी अफसा फातिमा, दो साल का बेटा अरशद खान और आठ माह की बेटी आयेशा फातिमा को अब तक इस बात का एहसास भी नहीं है कि उनके प्यारे पापा अब दुनिया में नहीं हैं.
वह मनहूस शाम : 18 मद्रास रेजीमेंट के लांस नायक फिरोज खान जम्मू–कश्मीर के पूंछ के मेंढार तहसील स्थित बालाकोट सेक्टर में तैनात थे. 15 अक्तूबर, मंगलवार के दिन वह बड़ी मुस्तैदी से अपनी डय़ूटी बजा रहे थे. उस दिन सुबह से रुक–रुक कर पाकिस्तान की ओर से फायरिंग हो रही थी. तभी पंजानी नाला के नजदीक एलओसी पर सीजफायर का उल्लंघन करते हुए पाकिस्तान की ओर से मोर्टार से फायरिंग होने लगी. शाम 5.30 बजे वो पाकिस्तान के इस कायरतापूर्ण हमले के शिकार हो गये.
देशभक्ति का जुनून : फिरोज खान ने सेना में 15 साल की नौकरी पूरी कर ली थी. लेकिन देशसेवा के प्रति जुनून के कारण उन्होंने अपनी नौकरी तीन साल तक बढ़ा ली, जो छह माह में खत्म होनेवाली थी.
उनके परिवार वाले बताते हैं कि फिरोज उत्साह से लबरेज अपने सैन्य अनुभवों को अक्सर उनसे साझा करते थे. एक बहादुर फौजी थे, जिन्हें अपने देश पर गर्व था. अपनी नौकरी का अधिकांश हिस्सा सीमा की सुरक्षा में ही बिताया था.
यूएन मिशन में कांगो भी गये
फिरोज 2010-11 में यूएन शांति मिशन पर कांगो भी गये थे. गृह युद्ध की आग में जल रहे कांगो में भी उन्होंने अपने शौर्य और साहस का परिचय दिया था.
पिता भी सेना में
फिरोज के पिता मोहम्मद जफर खान भी भारतीय सेना में थे और उन्होंने देशसेवा में 25 वर्ष दिये थे. 15 साल पहले उनका इंतकाल हो गया था. फिरोज के कंधों पर परिवार की जिम्मेदारी थी. तीन बहनों की शादी करनी थी. फिरोज ने अपनी जिम्मेदारी बखूबी निभायी. एक छोटे भाई और बहन की शादी बाकी रह गयी थी. इसे पूरा करने से पहले ही दुनिया से चल बसे.
ईद की छुट्टी नहीं ली
फिरोज को बकरीद की छुट्टी मिल सकती थी, पर उन्होंने सीमा पर बढ़ते तनाव को देखते हुए छुट्टी नहीं ली. सेना के एक वरिष्ठ अफसर ने बताया कि फिरोज ने घर–परिवार के ऊपर देशसेवा को प्राथमिकता दी और उसने कहा था कि इस बार चारमीनार की जगह यहीं सीमा पर ही अपने साथियों के साथ वह ईद मनायेगा.
– लांस नायक मोहम्मद फिरोज खान
– 18 मद्रास रेजीमेंट, उम्र-33 वर्ष
– निवासी–पुराने हैदराबाद के
नवाब साहब कुंटा
परमवीर चक्र विजेता अब्दुल हमीद (1933-65)
भारत–पाकिस्तान के बीच 1965 के युद्ध में अद्वितीय वीरता का परिचय देनेवाले भारतीय सेना के 4 ग्रिनेडियर्स यूनिट के कंपनी क्र्वाटर मास्टर हवलदार अब्दुल हमीद को मरणोपरांत भारतीय सेना के सर्वोच्च वीरता सम्मान परमवीर चक्र दिया गया था. यह सम्मान 1966 में गणतंत्र दिवस के अवसर पर राष्ट्रपति सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने उनकी पत्नी रसूलन बीबी को दिया था.
उत्तर प्रदेश के गाजीपुर जिले के धामुपुर गांव में जन्मे अब्दुल हमीद का चयन सेना के इंफैंट्री डिवीजन में हुआ था. उन्होंने अपनी सेवा का पांच वर्ष एंटी टैंक सेक्शन में दिया था. उन्हें प्रमोट करके अपनी कंपनी का क्र्वाटर मास्टर का प्रभार दिया गया. जब 1965 में भारत–पाकिस्तान के बीच युद्ध छिड़ा, तब 4 ग्रिनेडियर्स की तैनाती खेमकरन सेक्टर में थी.
अब्दुल हमीद ने अद्भुत साहस दिखाया और खुली जीप पर बंदूक तान दुश्मनों के घेरे में जाकर कई टैंकों को उड़ा दिया. आखिरकार दुश्मनों से लड़ते हुए वह शहीद हो गये.