दक्षा वैदकर
कुछ दिनों पहले मैं अपनी मम्मी को गिफ्ट करने के लिए साड़ी खरीदने एक बड़ी-सी शॉप में गयी. साड़ियां देख कर मैं कंफ्यूज हो गयी कि कौन-सी खरीदूं. मैंने अपनी मुंबई में रहनेवाली बहन को फोन लगाया और उससे पूछा? उसने कहा कि तुझे जो-जो साड़ी पसंद है, उन तीन-चार साड़ियों के फोटो खींच कर मुझे वॉट्सएप्प कर, मैं बताती हूं. मैंने फोटो खींच कर उसे भेजे. नेटवर्क स्लो था, तो फोटो जा नहीं रहे थे.
लेकिन मेरे पास अब इंतजार करने के अलावा कोई चारा नहीं था. पांच मिनट बाद वो फोटो गये, तब तक सेल्समैन के चेहरे पर भाव बिगड़ चुके थे. मानो वह कहना चाह रहा हो कि ‘ये क्या लगा रखा है. साड़ी लो और जाओ यार. इतनी जगह पूछताछ क्यों करते हो’. लेकिन मैं ऐसा नहीं कर सकती थी, क्योंकि साड़ी करीब 5 हजार की लेनी थी और यह रकम कोई छोटी नहीं होती. मैं अपने रुपये सही जगह लगाना चाहती थी. दीदी का फोन आया. उसने एक साड़ी चुन कर बता दी.
मैंने सेल्समैन को उस साड़ी को पैक करने कहा. उसने पूछा- बस एक साड़ी? मैंने हामी भर दी. अब वो मुझे तुच्छ नजरों से देख रहा था, मानो कह रहा हो कि ‘मेरे 10 मिनट बर्बाद किए और सिर्फ एक साड़ी खरीदी’. साड़ी की कीमत काउंटर पर चुकाने के बाद मैंने काउंटर पर पूछा, ‘आपके पास कोई सजेशन बॉक्स है?’ उन्होंने कहा, ‘ये डायरी है. आप इसमें लिख सकती हैं.’ मैंने अपना पूरा अनुभव लिखा और सुझाव दिया कि अपने सेल्समैन को ट्रेनिंग दें. उसे समझाएं कि ग्राहक के लिए एक-एक रुपये कीमती होते हैं. अगर वे किसी चीज को पसंद करने में ज्यादा वक्त भी लगाते हैं, तो ये उनका हक है.
इसके लिए उन्हें अपने चेहरे के भाव इस तरह बिगाड़ने नहीं चाहिए. सेल्समैन का काम है कि वह हमेशा मुस्कुराते रहें और ग्राहकों के प्रति उसका आदर न केवल बातचीत से नजर आये, बल्कि हावभाव में भी नजर आये. क्योंकि आपके सेल्समैन को मेरी शॉपिंग से इतनी ज्यादा परेशानी होती है, मैं दोबारा यहां नहीं आऊंगी.’ अंत में मैंने फोन नंबर लिखा. उसी दिन मेरे पास उस शॉप के ओनर का फोन आया और उन्होंने माफी मांगी.
बात पते की..
– अपने शॉप में काम करनेवाले उन लोगों को ट्रेनिंग जरूर दें, जो ग्राहकों से डील करते हों. फिर वह सेल्समैन हो या बिलिंग काउंटर के कर्मचारी.
– सेल्समैन ध्यान रखें कि आपको ग्राहकों को कंफर्टेबल माहौल देना है. भले ही वह छोटी शॉपिंग करे या बड़ी. उसे छोटा महसूस न करने दें.