बिहार विधानसभा चुनाव की गहमागहमी बढ गयी है, सरकार किसकी बनेगी ? यही चर्चा चारो तरफ हो रही है. सब अपना अपना तर्क दे रहे है.
इस चुनाव में सभी राजनीतिक दलों ने एक काम समान रूप से किया है और वह है समाज की मूल समस्या भूखमरी, गरीबी, भ्रष्टाचार, महंगाई और बेरोजगारी को बहस से बाहर कर दिया है. कोई भी मुद्दों की बात नहीं कर रहा है. बात क्या हो रही है कि ये पार्टी जंगल राज चलाती है तो वो पार्टी साम्प्रदायिक है. ये अगड़ो की पार्टी है तो वो पिछडों की पार्टी है. राज्य में व्याप्त गंभीर समस्याओं की बात कोई नहीं कर रहा है. जैसे मानों हमें यह बताया जा रहा है कि हमें अपनी जाति और धर्म देखकर वोट डालना होगा.
बिहार में गिरती शिक्षा व्यवस्था की बात कोई नहीं कर रहा है. करे भी तो कौन करे, बिहार में पिछले आठ साल से सरकार में बैठी बीजेपी विपक्ष में आ गयी है और वो अपने नहीं किये गये कार्यों की आलोचना कैसे कर सकती है? वहीं, विपक्ष में बैठा राजद 10 साल से सरकार चलाने वाले जदयू के साथ जा बैठा. कोई अब सरकार के द्वारा नहीं किये कार्यों की आलोचना कैसे कर सकता है. ऐसी परिस्थिति में सबसे बडा नुकसान जनता का हो रहा है.
इस कारण समस्याओं से जूझ रही जनता की न तो कोई सुन रहा है और न ही कोई बात कर रहा है. पीने का पानी आज देश के साथ-साथ बिहार के लिए गंभीर संकट है. पानी की कमी बढ़ती जा रही है. पीाने के लिए साफ पानी नहीं मिल रहा है. जिसके कारण जानलेवा बीमारी से बच्चे मर रहे हैं. नदियों का पानी गंदा हो रहा है, जिसके कारण भूमिगत पानी भी गंदा हो गया है. लेकिन इन समस्याओं पर बात करने का समय किसी के पास नहीं है. लेफ्ट पार्टियां कहा हैं, ढूंढ़ने से नहीं दिखाई देतीं. जनता के पास कोई ऐसा विकल्प नहीं है जो उसकी आवाज बने. कुछ पार्टियां ाुनावी मौसम में नज़र आती है जैसे शिव सेना, बीएसपी, सपा इत्यादि. पटना सहित बिहार के सभी शहर भारी ट्रैफिक जाम और उससे पैदा होने वाले प्रदुषण से त्रस्त हैं. इससे कब व कैसे निजात मिलेगी, इस पर चर्चा का किसी पार्टी के पास समय नहीं है.