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मढ़ौरा चीनी मिल : आंदोलन तो खूब हुए, पर चालू नहीं हुआ

जब भी चुनाव आता है प्रत्याशी और पार्टियां बड़े-बड़े वायदे करती हैं. चुनाव के बाद उनके वायदों का क्या होता है? कुछ पूरे होते हैं, तो ज्यादातर सिर्फ भरोसे की भेंट चढ़ जाते हैं. प्रत्याशी या पार्टियां भले ही उन्हें भुला दें, लेकिन संबंधित इलाके की जनता के बीच यह मुद्दा जीवित रहता है. बिहार […]

जब भी चुनाव आता है प्रत्याशी और पार्टियां बड़े-बड़े वायदे करती हैं. चुनाव के बाद उनके वायदों का क्या होता है? कुछ पूरे होते हैं, तो ज्यादातर सिर्फ भरोसे की भेंट चढ़ जाते हैं. प्रत्याशी या पार्टियां भले ही उन्हें भुला दें, लेकिन संबंधित इलाके की जनता के बीच यह मुद्दा जीवित रहता है.

बिहार विधानसभा चुनाव के मौके पर राज्य के उन मुद्दों को प्रभात खबर सामने लाने की कोशिश करेगा, जो व्यापक आबादी से जुड़े हैं, लेकिन अब तक पूरे नहीं हुए हैं. आज पढ़िए इसकी पहली कड़ी.

मढ़ौरा : मढ़ौरा विधानसभा क्षेत्र की पहचान बन गये बंद पड़ी चीनी मिल, मॉर्टन चॉकलेट फैक्टरी एवं सारण इंजीनियरिंग फैक्टरी को प्रत्येक चुनाव में हर पार्टी द्वारा मुद्दा बनाया जाता है. चुनाव समाप्त हो जाता है. उम्मीदवारों की जीत-हार हो जाती है, पर इन मिलों से कोई आवाज नहीं निकलती. इस बार भी मिलों को चालू करने को हर उम्मीदवार अपनी पहली प्राथमिकता बता रहा है.

जाहिर है कि यह अहम मुद्दा होगा. कारण भी स्पष्ट है कि ये फैक्ट्रियां मढ़ौरा के लोगों ही नहीं, बल्कि पूरे जिले के वासियों के लिये परोक्ष या अपरोक्ष रूप से लाइफ लाइन की हैसियत रखती हैं. एक जमाना था कि मॉर्टन चॉकलेट को लेकर सारण व मढ़ौरा देश ही नहीं, बल्कि विदेशों में भी पहचान रखते थे.

वहीं फैक्ट्रियों के बड़े विशालकाय कल पूज्रे निर्माण में सारण इंजीनियरिंग देश में दूसरा स्थान रखता था. मिलों के बंद होने से कर्मी तो बेकार हुए ही, किसानों के गन्‍नों के पैसे भी बाकी रह गये. मजदूरों की तनख्वाह की मोटी रकम नहीं मिली. उद्योग के नाम पर जिले के पास मढ़ौरा एकमात्र स्थल था.

होते रहे हैं आंदोलन

सन 2000 के दशक में मिलों के ठप पड़ने के बाद यह चुनावी मुद्दा बनने के साथ ही आंदोलन का मुद्दा भी बनता रहा है. मगर फैक्ट्रियों के कल पूज्रे गायब होने, भवन के खंडहरों में तब्दील होने का सिलसिला लगातार जारी रहा.

समाजसेवी रामबाबू सिंह, कौशल किशोर सिंह एवं शंकर ओझा ने इसे सामाजिक, मुद्दा बनाकर वृहद आंदोलन चलाया. आंदोलन को किसानों, मजदूरों व स्थानीय लोगों का भरपूर समर्थन भी प्राप्त हुआ, लेकिन आश्वासन के कुछ नहीं मिला.

रूडी का प्रयास भी हुआ विफल

2005 में जदयू-भाजपा की सूबे में सरकार बनने पर वर्तमान में केंद्रीय मंत्री राजीव प्रताप रूडी ने मिल के चालू करने का प्रयास किया. राज्य सरकार के सहयोग से उन्होंने इसे निजी क्षेत्र में हस्तानांतरित कर उद्योगपति जायसवाल के माध्यम से पुनरूद्धार का काम भी शुरू किया गया. किसानों ने भी उत्साहित होकर सैकड़ों एकड़ में अपने खेतों में गन्ना लगाया, मगर मिल शुरू नहीं हो सकी और किसानों को अपने गóो की खड़ी फसल को जलाना पड़ा.

विधानसभा चुनाव को लेकर इलाके के लोग इसे मुद्दा बनाये हुए हैं. अब देखना है कि मिल को चालू कराने के लिए किस दल से क्या आश्वासन मिलता है.

क्या कहते हैं विधायक

मढ़ौरा चीनी मिल व उद्योग के नाम पर हमेशा लोगों को छला गया है. स्क्रैप बिक गये, खेतों में लगे हुए गन्‍नों जलाने पड़े. निश्चित रूप से उसे प्रारंभ करना मेरी पहली प्राथमिकता है. आगामी विधानसभा चुनाव के बाद महागठबंधन की सरकार बननी तय है. नयी सरकार में मिल प्रारंभ होना निश्चित है और मैं नयी ताकत व उर्जा से उसके पुराने गौरव व वैभव को लौटाने का काम करूंगा.

जीतेंद्र कुमार राय, विधायक

चीनी मिल बड़ा मुद्दा

मढ़ौरा चीनी मिल से 22 हजार किसान एवं 1370 मजदूर प्रत्यक्ष रूप से जुड़े रहे हैं. आगामी चुनाव में पूरे अनुमंडल क्षेत्र को फैक्टरी का मुद्दा प्रभावित करेगा. विस क्षेत्र में इसका व्यापक असर होगा. आने वाले दिनों में मिल चुनावी मुद्दा अवश्य बनेगा.

रामबाबू सिंह, मजदूर नेता एवं आंदोलनकर्ता

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