यह तन विषय की बेलरी गुरु अमृत की खान, सीस दिये जो गुरु मिले, तो भी सस्ता जान. कबीरदार के इस दोहे का मतलब गुरु की महिमा को बताने के लिए काफी है. कबीर कहते हैं कि यह शरीर तो विष, यानी पाप और बुराइयों की लता है. इसमें विषफल ही फलेंगे.
और गुरु अमृत की खान है. अपना सिर चढा देने पर भी, सर्वस्व न्यौछावर कर देने पर भी अगर सद्गुरु से भेट हो जाये तो भी यह सौदा सस्ता ही है. आज शिक्षक दिवस पर हम अपने गुरुओं को याद करें और जीवन में हमें उनका जितना भी सान्निध्य मिला, उसके लिए खुद को भाग्यशाली मानें. आज के इस विशेष आयोजन में पढ़ें अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन का वह मशहूर पत्र, जो उन्होंने अपने बेटे के शिक्षक को लिखा था. साथ ही पायें शिक्षक दिवस से जुड़ी कुछ रोचक सामग्री भी.
एक शिक्षक यह सिखलाता है कि जब तुम सफलता की ऊंचाइयों तक पहुंच जाओ तो उस समय अपने कदमों को यथार्थ के धरातल से डिगने मत देना.
सर्वपल्ली राधाकृष्णन
लिंकन का पत्र स्कूल मास्टर के नाम
आधुनिक मुहावरे में कहूं, तो जीने के लिए ‘लाइफ सपोर्ट’ चाहिए. निजी विचार में यह सपोर्ट किताबों, पुस्तकों, विचारों से मिलता है. लिंकन का यह ऐतिहासिक पत्र मानव समाज की धरोहर है. और समाज के लिए लाइफ सपोर्ट. खासतौर से शिक्षक दिवस के अवसर पर हम इसे छाप रहे हैं, क्योंकि यह पत्र न सिर्फ किसी अध्यापक के लिए है, और न किसी खास विद्यार्थी के लिए.
बल्कि भारत के लिए प्रासंगिक है. कहां पहुंच गये हैं हम? महान क्रांतिकारी संत रामनंदन मिश्र ने कहा था कि यह धरती इतनी बंजर हो गयी है कि बेहतर से बेहतर बीज डालिए, वे पौधा नहीं बनते. आजादी के 67 वषोंर्ं बाद, आबादी तो कई गुना बढ़ गयी पर जो हमारा नेतृत्व करने निकल रहे हैं, उनका चरित्र देखिए. झूठ बोलनेवाले, पाखंडी, दलाल और देश बेच खानेवाले. अगर इस दलदल से निकलना है, तो अब अध्यापक और बच्चे ही भविष्य हैं.
लिंकन ने अपने बच्चे के लिए उसके स्कूल मास्टर को यह पत्र लिखा. जिन्हें देश, समाज, भविष्य, परिवार और बेहतर नागरिक की चिंता है, वे इसे जरूर पढ़ें. हम प्रभात खबर में इसे पहले भी प्रकाशित कर चुके हैं. देश में व्याप्त सामाजिक-सांस्कृतिक संकट को देखते हुए आज फिर इसका पुनप्र्रकाशन कर रहे हैं.
-हरिवंश
मुङो मालूम है कि वह सीखेगा कि सभी मनुष्य न्यायपूर्ण नहीं होते. उचित-अनुचित का भेद नहीं करते. सभी मनुष्य सच्चे नहीं हैं. लेकिन मेरे बेटे को यह भी बताइए कि दुजर्न, दुष्ट और बदमाश हैं, तो समाज में हीरो (नायक) भी हैं. यानी बुरे लोग हैं, तो अच्छे भी हैं. अगर स्वाथ व आत्मकेंद्रित नेता हैं, तो समर्पित और सिर्फ समाज के लिए जीनेवाले राजनीतिक भी हैं.
मेरे बच्चे को यह भी बताएं कि समाज में दुश्मन हैं, तो मित्र भी हैं. मैं जानता हं, बच्चे को यह सब बताने, समझाने में वक्त लगेगा, लेकिन उसे यह जरूर बताइए कि परिश्रम से एक डॉलर कमाना अत्यंत मूल्यवान है, बिना श्रम के पांच पौंड पा लेने से. उसे बताइए कि जिंदगी में हारना सीखे.
पराजय का मर्म समङो और साथ ही उसे यह भी बताइए कि वह जीत या विजय या कामयाबी का आनंद भी उठाना जाने.
ईष्र्या से उसे बचाएं. दूर रखें. अगर आप उसे यह सिखा पाते हैं, पढ़ा पाते हैं, तो बताइए कि एकांत हंसी का राज क्या है? उसे यह जल्द सिखाइए कि दबंग या दादा सबसे पहले धूल चाटते हैं या पराजित होते हैं.
अगर आप बता सकें, तो उसे यह बताइए कि पुस्तकों का आनंद क्या है? उसे यह भी बताइए, अकेले शांत समय में वह आसमान में उड़ते पक्षियों के उड़ने के अनादि अनंत रहस्य को जाने. धूप, फूलों और हरी पहाड़ी वादियों में भंवरे और मधुमक्खियों के उड़ने का आनंद भी ले.
उसे यह पाठ भी पढ़ाइये कि स्कूल में फेल हो जाना ज्यादा सम्मानजनक है, बजाय चोरी करने के.
उसे यह भी बताइए कि अपने विचारों और आदशा में गहरी आस्था रखे, तब भी, जब हरेक उसे यह कह रहा हो कि वह गलत है. उसे यह जरूर बताएं कि वह नम्र लोगों के साथ नम्र हो, और उद्दंड, उग्र, बेरहम, निष्ठुर और कठोर लोगों के साथ सख्ती से पेश आये.
मेरे बेटे को यह क्षमता और ऊर्जा दें कि वह भीड़ के पीछे-पीछे तब न चले, जब हर आदमी एक साथ भेड़ियाधसान में लगा हो. उसे बताइए कि वह सुने सबकी, पर उसे यह विवेक दें कि वह इन सारी बातों को सच के परदे पर देखे, तौले और आंके, और इस प्रक्रिया से निकले सच को ही अपनाये.
उसे पढ़ाइए कि जब वह अत्यंत दुखी हो, तो वह हंसना जाने. उसे यह जरूर बताइए, आंसू के बहने में कोई शर्म नहीं है. उसे यह रहस्य समझाइए कि अत्यंत मीठा बोलनेवालों से सावधान रहे, और निंदक या कटु स्वभाववाले या दूसरों के दोष निकालनेवाले को गंभीरता से न ले.
उसे बताइए कि वह अपनी प्रतिभा, श्रम, सबसे अधिक पैसा देनेवालों के हाथ बेचे, पर अपने दिल और अपनी आत्मा को किसी भी कीमत पर बंधक न रखे.
अगर उसे लगे कि वह अपने बातों पर सही है, तो उसे लड़ना सिखाइए. उस हालत में भी, जब पागल और उन्मादी भीड़ उसके खिलाफ खड़ी हो और वह अकेले हो, तब भी अपने मूल्यों और आस्था पर टिके, न डिगे उसे यह बताइए.
उसे संवेदनशील बनाइये, पर उसे दुलरुआ मत बनाइये, क्योंकि सबसे तेज आंच और आग में ही सबसे बेहतर स्टील तैयार होता है.
उसमें अधैर्य होने का साहस हो, लेकिन बहादुर बनने का धैर्य भी हो, यह भी बताइए. उसे यह भी शिक्षा दीजिए कि उसका आत्मविश्वास उत्कृष्ट हो, क्योंकि तभी वह पूरी मानवता में उदात्त और उच्च विश्वास रखेगा.
यह बहत बड़ा काम है पर देखें आप क्या कर सकते हैं. वह छोटा सा बड़ा प्यारा लड़का है मेरा बेटा.
अब्राहम लिंकन
इन देशों में भी मनाया जाता है शिक्षक दिवस
ज्ञान की पूजा चहुंओर होती है. फिर ज्ञान का अलख जगानेवाले शिक्षक की पूजा क्यों न हो! इसीलिए भारत सहित दुनियाभर में शिक्षक दिवस छात्रों और शिक्षकों के बीच बड़ी अहमियत रखता है. हमारे देश भारत में शिक्षक दिवस पांच सितंबर को मनाया जाता है. भारत के दूसरे राष्ट्रपति डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन की याद में उनके जन्मदिन को हम शिक्षक दिवस के रूप में मनाते हैं.
वैसे तो भारत में शिक्षक दिवस हर साल पांच सितंबर को मनाया जाता है लेकिन दुनियाभर में ऐसे कई देश हैं, जहां यह अन्य दिनों में मनाया जाता है. हालांकि ये तारीखें भले ही अलग हों, लेकिन शिक्षक दिवस मनाने की भावना हर जगह एक ही है. ज्ञान का प्रकाश बिखेरनेवाले शिक्षक के प्रति आभार जताना. भारत में मनायी जानेवाली गुरु पूर्णिमा से इतर देखें तो शिक्षक दिवस मनाने की यह परंपरा कोई बहुत पुरानी नहीं है. इसकी शुरुआत 20वीं सदी के आसपास ही हुई है. तो आइए जानते हैं दुनिया के कुछ ऐसे देशों के बारे में जहां शिक्षक दिवस तो मनाया जाता है, लेकिन अलग तारीख पर अलग तरीके से.
तुर्की
यहां शिक्षक दिवस 24 नवंबर को मनाया जाता है. यह दिवस पूरी तरह से आधुनिक तुर्की के निर्माता कहे जाने वाले कमाल अतातुर्क को समर्पित है. कमाल अतातुर्क उर्फ मुस्तफा कमाल पाशा का जन्म 1881 में हुआ था, 1938 में इनका निधन हुआ.
इरान
यहां हर साल दो मई को शिक्षक दिवस मनाया जाता है. यहां पर शिक्षक दिवस देश के शिक्षक व लेखक प्रो अयातुल्लाह मुर्तजा की याद में मनाया जाता है. इस दिन यहां स्कूलों में बच्चे अपने शिक्षकों को उपहार स्वरूप फूल भेंट करते हैं.
रूस
वर्ष 1965 से लेकर 1994 तक रूस में शिक्षक दिवस अक्तूबर के पहले रविवार को मनाया जाता था. इसके बाद वर्ष 1994 में यूनेस्को ने इसके लिए पांच अक्तूबर की तारीख तय कर दी, तभी से रूस में शिक्षक दिवस हर साल पांच अक्तूबर को मनाया जाता रहा है.
मलेशिया
यहां शिक्षक दिवस हरि दिवस के रूप में भी मनाया जाता है. तारीख होती है 16 मई. मलेशिया में शिक्षक दिवस के दिन स्कूलों में विभिन्न तरह के कार्यक्रम का आयोजन होता है और बच्चे अपने शिक्षकों को उपहार देते हैं.
थाईलैंड
थाईलैंड में शिक्षक दिवस 16 जनवरी को मनाया जाता है. शिक्षक दिवस मनाये जाने की तारीख को यहां की सरकार ने 21 नवंबर, 1956 को एक बैठक के बाद तय किया था. इसके बाद वर्ष 1957 में पहली बार शिक्षक दिवस मनाया गया. तब से यहां शिक्षक दिवस मनाया जाता रहा है. शिक्षक दिवस के दिन यहां के सभी स्कूलों में रंगारंग कार्यक्रम आयोजित किये जाते हैं.
अपनी गरिमा से अनजान होता शिक्षक
शशिकांत झा
इंग्लैंड के अत्यंत चर्चित रहे प्रधानमंत्री चर्चिल मानते थे कि ‘प्रधानाचार्यों के हाथों में वे शक्तियां हैं जो अभी तक प्रधानमंत्रियों को भी नहीं मिल पायी है.’शिक्षक अथवा गुरु के आदेश पर सर्वस्व न्योछावर कर देने के लिए तैयार शिष्यों के दृष्टांतों से हम परिचित हैं. ‘शिक्षक राष्ट्र निर्माता हैं, शिक्षक सामाजिक परिवर्तन के दिग्दर्शक हैं तथा शिक्षक नये समाज के सर्जक हैं.’ ऐसे कथनों के ठोस ऐतिहासिक आधार भी है.
भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन की अहिंसक और क्रांतिकारी धाराओं को तेज करने में देश के अनेक शिक्षकों की महती भूमिकाएं रही हैं. शिक्षकों के सामाजिक बोध का लोहा हर युग में माना जाता रहा है. किंतु विडंबना यह है कि वर्तमान के आईने में शिक्षकों का चेहरा उतना गरिमामय नहीं दिखाई पड़ता. समाज को दिशा-निर्देश देनेवाले शिक्षकों में मौलिक चिंतन का अभाव दिखता है.
बहुत से शिक्षक अध्यापन को मात्र जीविकोपार्जन का साधन मान कर चल रहे हैं. समाज को बदलने की अकुलाहट उनमें नहीं जान पड़ती. अधिकांश शिक्षक अपने दिन प्रति दिन के कार्यक्र म में ही जकड़े रहते हैं. सामाजिक समन्वय और सामाजिक चेतना के उन्नयन के प्रति वे सर्वथा उदासीन हैं. नैतिक एवं चरित्र निर्माण जैसे मुद्दे शिक्षकीय सरोकार से बाहर होते जा रहे हैं.
वे अधिकाधिक धन, हैसियत और शोहरत पानेवाले छात्रों को तैयार करने में ही अपनी सफलता मानते हैं. एक नवीन समाज की रचना के लिए सच्चे अध्यापक को ढूंढ़ना मुश्किल है. शिक्षक अपने को शिक्षित करने से कतरा रहे हैं. एक अच्छे शिक्षक के लिए समानांतर रूप से छात्र बने रहने की आवश्यकता होती है. उसे छात्र की सतह तक अपने को ले जाना पड़ता है. किंतु ऐसा करने में शिक्षक अपनी हेठी समझते हैं.
तब जबकि आधुनिक युग में व्यक्ति और समाज की सबसे अधिक समझ रखनेवाले महात्मा गांधी का तो यह मानना है कि ‘जो शिक्षक अपने छात्रों से सीखने की कोशिश नहीं करता वह निकम्मा होता है.’ इस निकम्मेपन को अपनी प्रतिष्ठा समझने की शिक्षक की भूल की वजह से ही आज अध्यापन को सर्वाधिक सम्मानजनक तथा दायित्वपूर्ण वृत्ति मानने की जगह हीन दृष्टि से देखा जा रहा है. आज छात्रों के पास अपने शिक्षकों से संबंधित ज्यादा प्रेरक किस्से नहीं हैं.
इस मानवघाती माहौल बनाने में शिक्षकों की अपनी हीन ग्रंथि ही जिम्मेदार है. सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक दिशाहीनता के इस सर्वाधिक विषम दौर में शिक्षक कोई बड़ी पहल करने को तैयार नहीं है. वह विशुद्ध बाजारू और स्वार्थी हो चुके शासनतंत्र के मंसूबों को समझ सकने में भी असहाय दिखाई पड़ता है.
यह सच है कि शिक्षक भी किसी देवलोक से उतरा हुआ विशिष्ट जीव नहीं होता है. वह हाड़-मांस का बना सामान्य सा ही प्राणी होता है. उसका अपना भी परिवार होता है. तथा आर्थिक और भौतिक आवश्यकताएं भी होती है. यह भी सच है कि अभी पैसा प्रबुद्ध समाज नहीं स्वयं नहीं करनी पड़े. वरन् समाज ही शिक्षकों की आवश्यकताओं की देख-भाल करे.
इसके बावजूद यह भी सच है कि अध्यापक का काम किसी भी अन्य पेशे से अधिक संयम, समर्पण, मानवीयता और निष्पक्षता की अपेक्षा रखनेवाला काम है. क्योंकि शिक्षा खुशहाल जीवन यात्र का आनंददायक सोपान है. वह प्रगति और विकास का सन्मार्ग है. और उस मार्ग पर समाज को ले जाने का काम शिक्षकों को ही करना पड़ता है. किसी समाज को उन्नत बनाने और श्रेष्ठ मानवता के विकास की सर्वाधिक जिम्मेदारी शिक्षकों के ऊपर ही है.
यहां यह स्पष्ट कर देना जरूरी लगता है कि वह जिम्मेदारी सबसे ज्यादा सरकारी शिक्षण संस्थानों के शिक्षकों पर है. क्योंकि अभी भी देश के बहुसंख्यक छात्र सरकारी शिक्षण संस्थानों में ही पढ़ते हैं. किंतु विडंबना यह है कि सरकारी विद्यालयों की स्थिति अत्यंत दयनीय होती जा रही है. कोई भी सक्षम व्यक्ति अपने बच्चों की शिक्षा सरकारी विद्यालयों में दिलाना नहीं चाहता है.
सरकारी विद्यालयों में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा का नितांत अभाव होता जा रहा है. तात्पर्य कि देश के बहुसंख्यक बच्चों को शिक्षा के नाम पर जो प्राप्त हो रहा है वह उनके जीवन के लिए ज्यादा उपयोगी नहीं है. सरकारी विद्यालयों की इसी दुरावस्था को देखते हुए इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने सरकारी कोष से वेतन पानेवाले सभी अधिकारियों, कर्मचारियों तथा जनप्रतिनिधियों के बच्चों की प्राथमिक शिक्षा सरकारी विद्यालयों में अनिवार्य देने का आदेश दिया है. ऐसा नहीं करने पर दंडात्मक कार्रवाई का भी प्रावधान किया गया है.
न्यायालय को सरकारी विद्यालयों की दशा सुधारने के लिए ऐसा कदम उठाना अनिवार्य लगता है. तो यह अनुचित नहीं कहा जा सकता. किंतु यहां यह बताना भी जरूरी है कि किसी भी शिक्षा प्रणाली के संचालन की मुख्य धुरी शिक्षक ही होता है. यदि सरकारी विद्यालयों को शिक्षक न्यायालय की चिंता को चुनौती के रूप में स्वीकार करे तो सरकारी विद्यालयों की दशा सुधारने में वे स्वयं सबसे महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं. उनमें योग्यता का अभाव नहीं है. वे स्वयं को शिक्षा में सुधार के लिए तत्पर कर सकते हैं. उनके ऊपर समाज के गरीब और वंचित वर्ग से आये बच्चों को समर्थ बनाने की जिम्मेदारी होती है.
यदि वे अपने शिक्षक होने के महत्व और शक्ति पहचाने तो अपने विद्यालयों के प्रति समाज में आकर्षण पैदा करने में सफल हो सकते हैं. क्योंकि अच्छे विद्यालय का मतलब केवल कीमती पाठ्य-सामग्रियां संसाधन और विशाल भवन ही नहीं होते हैं, बल्कि अच्चे विद्यालयों का सबसे महत्वपूर्ण संबंध अच्छे शिक्षकों से होता है. यदि शिक्षकों की शक्ति समाज को बदलने की होती है, तो वे अपने विद्यालय को क्यों नहीं बदल सकते?
(लेखक सेवानिवृत्त शिक्षक हैं)