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अल्पमत से क्यों चुने जायें जनप्रतिनिधि?
राजीव कुमार आजादी के बाद पहली बार देश में ‘‘फस्र्ट पास्ट द पोस्ट’’ प्रणाली के साथ सार्वभौमिक व्यस्क मताधिकार 1952 के आम चुनाव में पेश किया गया. राजनैतिक दलों की अधिकता और चुनाव परिणाम से यह स्पष्ट होता है कि ‘‘फस्र्ट पास्ट द पोस्ट’’ प्रणाली से भारी संख्या में सांसद और विधायक अल्प मतों से […]
राजीव कुमार
आजादी के बाद पहली बार देश में ‘‘फस्र्ट पास्ट द पोस्ट’’ प्रणाली के साथ सार्वभौमिक व्यस्क मताधिकार 1952 के आम चुनाव में पेश किया गया. राजनैतिक दलों की अधिकता और चुनाव परिणाम से यह स्पष्ट होता है कि ‘‘फस्र्ट पास्ट द पोस्ट’’ प्रणाली से भारी संख्या में सांसद और विधायक अल्प मतों से निर्वाचित होते हैं.
मतदान का प्रतिशत कम होने के बावजूद वे प्रतिनिधि जो चुने जाते हैं. उन्हें सामान्यत: 50 प्रतिशत से कम वोट प्राप्त होते हैं. इसका अर्थ यह हुआ कि उनके खिलाफ दिये गये मतों की संख्या उनके पक्ष में दिये गये मत से अधिक है. ऐसे उम्मीदवार भी निर्वाचित हो जाते हैं जिन्हें पूर्ण मतदान के मात्र एक तिहाई मत ही मिले हों. औसतन 60 फीसदी सांसद अल्पमत पर निर्वाचित होते हैं. इसका मतलब हुआ कि जीतने वाले उम्मीदवारों को विधानसभा क्षेत्र के पूरे मतदाताओं का मात्र 6 फीसदी वोट ही प्राप्त होता है.
14 वीं विधानसभा में 151 विधायकों ने 20 प्रतिशत से भी कम वोट हासिल किया. पर वे चुनाव जीत गये. अक्टूबर- नवम्बर, 2005 में हुए बिहार विधानसभा के चुनाव और चौंकानेवाले साबित हुए. चुनाव मे जीत दर्ज करने वाले धनहा के विधायक राजेश सिंह ने अपने क्षेत्र के कुल मतदाताओं में से 19,164 वोट लेकर ही जीत का सेहरा बांध लिया जबकि उनके क्षेत्र में कुल 1,20,838 मतदाता थे. आधे से भी कम मतदाताओं ने चुनाव में हिस्सा लिया. इसका मतलब यह है कि उस निर्वाचन क्षेत्र के अधिकतर मतदाताओं की पसंद वह नहीं थे. पर जीत उनकी हुई.
इस तरह ‘‘फस्र्ट पास्ट द पोस्ट’’ की प्रणाली निर्णायक तो है, लेकिन पूर्ण से प्रतिनिधिक नहीं. आनुपातिक प्रतिनिधित्व की वैधता अधिक है. प्रतिनिघित्व के सिद्वांत को काफी हद तक मूर्त रूप दिया जा सकता है. यदि निर्वाचित होने के लिए कम से कम मतदान 50 प्रतिशत प्लस- 1 मत प्राप्त होने के प्रावधान को अनिवार्य कर दिया जाये. 50 प्रतिशत + 1 मत के आंकड़े को प्राप्त करना आसान नहीं है.
यह इस स्थिति में ज्यादा उपयुक्त एवं प्रतीत होता है कि उम्मीदवार को निर्वाचित होने के लिए कुल मतदान का कम से कम 40 प्रतिशत मत प्राप्त करना ही होगा. यदि सबसे अधिक मत ( कम से कम 40 प्रतिशत ) पाने वाले उम्मीदवार तथा उनके निकटतम उम्मीदवार के मत का अन्तर पांच प्रतिशत से अधिक हो, तब 40 प्रतिशत मत पानेवाले को पांच प्रतिशत + 1 मत प्राप्त को निर्वाचित घोषित किया जायेगा. यदि किसी भी उम्मीदवार को 40 प्रतिशत का न्यूनतम वोट प्राप्त नहीं होता हो, तब प्रथम दो उम्मीदवारों के बीच पुन: मतदान किया जायेगा.
मोटे तौर पर यह व्यवस्था फ्रांस में है. यह प्रावधान लोकतांत्रिक प्रक्रिया में निर्वाचित प्रतिनिधियों की ज्यादा वैधता सुनिश्चित करेगी. इस प्रकार यह व्यवस्था जाति, संप्रदाय, धर्म एवं भाषा के आधार मात्र पर निर्वाचित होने की प्रक्रिया को हतोत्साहित करने में सहायक भी होगी.
(लेखक बिहार में नेशनल इलेक्शन वाच के समन्वयक हैं.)
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