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युवा ही करें इस बार के चुनाव में नेतृत्व
प्रेरणा प्रियाक्षी मुंबई से जब हमारी संस्कृति, राष्ट्रीयता और जन कल्याण की उदात्त भावना क्षुद्र और निकृष्ट स्वार्थ के अंधकूप में समाहित हो रही है. प्रजातंत्र, एकता और अखंडता शब्द देश के परिप्रेक्ष्य में निर्जीव प्रतीत हो रहे हैं, तो ऐसे समय में हमारे द्वारा इस बात पर विचार-विमर्श करना कि आगामी विधानसभा चुनाव किन […]
प्रेरणा प्रियाक्षी
मुंबई से
जब हमारी संस्कृति, राष्ट्रीयता और जन कल्याण की उदात्त भावना क्षुद्र और निकृष्ट स्वार्थ के अंधकूप में समाहित हो रही है. प्रजातंत्र, एकता और अखंडता शब्द देश के परिप्रेक्ष्य में निर्जीव प्रतीत हो रहे हैं, तो ऐसे समय में हमारे द्वारा इस बात पर विचार-विमर्श करना कि आगामी विधानसभा चुनाव किन मुददों पर लड़ा जाये, सच में एक विचारणीय प्रश्न है.
इसमें कोई शक नहीं कि वक्त के साथ लोगों की सोच बदली है और उनके रहन-सहन का ढंग भी. यहां तक की सरकार के काम करने के तौर-तरीकों में भी बदलाव आया है. उसी तरह से नौकरशाहों और सरकारी कर्मचारियों के रवैये में भी धीरे-धीरे परिवर्तन आ रहा है. लेकिन इस परिवर्तन की रफ्तार इतनी धीमी है कि इससे आम जन लाभान्वित नहीं हो पा रहा है. ऐसे में यदि यह कहा जाये कि देश में एक क्रांति की दरकार है, तो यह अतिशयोक्ति नहीं होगी. इस क्रांति को शुरू करनेवाले युवा होंगे.
जी हां, यह क्रांति युवाओं के द्वारा आयेगी और वे ही इसका नेतृत्व भी करेंगे. यही नहीं, वे ही इसे अंजाम तक ले जायेंगे. यह क्रांति असल में राजनीतिक क्रांति होगी. आगामी विधान सभा चुनाव में यह क्रांति होनी चाहिए. युवा चाहे किसी भी राजनीतिक दल से नाता रखते हों, उन्हें यह ठान लेना चाहिए कि राजनीति की बागडोर अब उन्हें अपने हाथों में लेनी है. वे नयी पीढ़ी से ताल्लुक रखते हैं. उन्हें मालूम है कि आज की पीढ़ी को क्या चाहिए.
वे यह जानते हैं कि आज का समय किस प्रकार की तकनीकों के अनुरूप है और किन तकनीकों का इस्तेमाल करके राज्य और उसकी जनता का विकास किया जा सकता है. युवाओं को यह मालूम है कि दुनिया के अन्य देशों में लोकतंत्र या राजतंत्र किस प्रकार से काम कर रहा है और बिहार में किस प्रकार की पद्धति का अब अनुसरण करने की जरूरत है.
इस बार के चुनाव में युवाओं को बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेने की जरूरत है, क्योंकि अब यदि चूक गये तो फिर पांच साल तक इंतजार करना पड़ेगा. इन पांच सालों में हमारा राज्य और कितना पीछे चला जायेगा, यह कह पाना मुश्किल है. हमारे युवा भले ही अलग-अलग राजनीतिक दलों के बैनर तले चुनाव लड़ें, अलग-अलग राजनीतिक दलों को वोट दें, लेकिन जब राज्य के हित की बात आये, राज्य के विकास की बात आये, तो वैसे मुद्दों पर वे जरूर एकजुट हो जायेंगे, क्योंकि वे समझदार हैं. भूमंडलीकरण और तकनीकी क्रांति की वजह से उनकी समझ इतनी विकसित हो गयी है कि वे दशकों से चली आ रही रुढ़ीवादी परंपराओं के खिलाफ बगावत करके, उनसे पृथक सोच कर मिल-जुल कर काम करने की नयी परंपरा शुरू करेंगे.
स्वतंत्रता संग्राम के दौरान भी बिहार की धरती से अनेक क्रांतिकारी पैदा हुए और बड़े-बड़े नेताओं ने बिहार की प्रतिभा और यहां के युवाओं के दमखम को पहचाना. वक्त आ गया है कि बिहार के युवा अपनी ताकत को पहचानें. राजनीति से दूरी बढ़ाने की बजाय इसके नजदीक आयें और एक राजनीतिक क्रांति छेड़ कर इस चुनाव में कुछ अलग करके दिखायें.
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