रांची : रांची के 19 स्वतंत्रता सेनानियों में एकमात्र बचे 91 वर्षीय शालिग्राम अग्रवाल बीमार चल रहे है़ं उनके पूरे शरीर में झुर्रियां आ गयी है़ सुनाई भी कम देने लगा है़ बोलने में भी परेशानी होती है, पर आज भी वे अपने परिवार के सदस्यों को आजादी की कहानी सुनाते नहीं थकते. इसी क्रम में शुक्रवार को उनसे प्रभात खबर के संवाददाता को बातचीत करने का मौका मिला़
उन्होंने बताया : 9 अगस्त 1942 को मुंबई में कांग्रेस का अधिवेशन हुआ था. महात्मा गांधी ने नारा दिया हम हिंदुस्तान को आजाद करायेंगे या अपनी जान दे देंगे़ उस वक्त मैं 18 वर्ष का था़ रांची के बालकृष्णा स्कूल में आठवीं कक्षा में पढ़ रहा था़ मैं और मेरे कुछ दोस्त स्कूल के बाहर जुटे और जिला स्कूल के गेट के पास को-ऑपरेटिव सेंटर की दीवार पर खड़े होकर लोगों से आजादी की लड़ाई में शामिल होने का आह्वान किया़ तभी पुलिस आयी और हम सभी को पकड़ कर ले गयी और जेल में डाल दिया. दूसरे दिन एक दल नारेबाजी करता हुआ जेल के पास आया़ तभी हमलोगों ने जेल से निकलने की योजना बनायी़ हमलोगों ने संतरी से चाबी छीनी और बाहर निकलने का प्रयास किया़ इसी बीच पुलिस की नजर हम पर पड़ गयी. इसके बाद पुलिस ने लाठीचार्ज कर दिया, जिसमें हमारे कई साथी घायल हो गये़
उस दिन को याद कर आज भी उनके रोंगटे खड़े हो जाते है़ वे बताते हैं कि हम सभी को चार दिनों के लिए सेल में बंद कर दिया गया़ वहां से निकाल कर 30-30 बेंत मारने की सजा दी गयी. उसी वक्त हमारे हाथ व पैर को बेड़ियों से बांध दिया गया़ जेलर ने कहा कि इन्हें मारो़ इसके बाद पुलिस फोर्स ने हम सभी को घेर लिया. जेल का जल्लाद फूलचंद डकैत आया और जेलर के इशारे पर हम पर बेंत बरसाने लगा़ 15 वें बेंत लगने के बाद मैं बेहोश हो गया़ बेहोशी की हालत में भी वे बेंत मारते गये. इसके बाद हम सभी को फुलवारीशरीफ जेल भेज दिया गया़
कई तरह की यातनाएं दी जाती थीं : वे बतातें हैं कि स्वतंत्रता सेनानियों को कई तरह से यातनाएं दी जाती थी़ं भूख लगने पर सड़ा हुआ चावल दिया जाता था़