सीरिया में विद्रोहियों के खिलाफ रासायनिक हथियारों के इस्तेमाल की खबर ने पूरी दुनिया को चिंता में डाल दिया था. इस संबंध में अमेरिका और रूस के बीच एक समझौते के बाद संयुक्त राष्ट्र की देखरेख में अंतराष्ट्रीय निरीक्षकों ने सीरिया से रासायनिक हथियारों का जखीरा नष्ट करने की कार्रवाई शुरू कर दी है.
लेकिन हकीकत यह है कि रासायनिक हथियारों का जखीरा अनेक देशों में घोषित–अघोषित रूप में मौजूद है. कभी कीटनाशक के रूप में रसायनों के इस्तेमाल को ईजाद करनेवालों ने सोचा नहीं होगा कि भविष्य में इसका इस्तेमाल मनुष्यों को मारने के लिए भी हो सकता है. रासायनिक हथियारों के विभिन्न पहलुओं की जानकारी दे रहा है नॉलेज.
संयुक्त राष्ट्र की ओर से जारी वक्तव्य के अनुसार अंतरराष्ट्रीय हथियार निरीक्षकों ने सीरिया से रासायनिक हथियारों को खत्म करने का काम शुरू कर दिया है. ये निरीक्षक उन उपकरणों को भी खत्म कर रहे हैं, जिसकी मदद से रासायनिक हथियारों को तैयार किया जाता है.
हालांकि, इस बारे में संशय बरकरार है कि क्या–क्या चीज खत्म की गयी है, लेकिन अगले कुछ दिनों में कुछ ठिकानों के रासायनिक हथियारों और उत्पादन केंद्रों को नष्ट कर दिया जाना है. रासायनिक हथियारों को हटाने के इस ऑपरेशन को ‘ऑर्गनाइजेशन फॉर प्रोहिबिशन ऑफ केमिकल वीपंस’ (ओपीसीडब्ल्यू) नाम की अंतरराष्ट्रीय संस्था के सदस्य अंजाम दे रहे हैं.
इस मिशन को यूएन के प्रस्ताव के तहत अंजाम दिया जा रहा है, जिसे रूस और अमेरिका के बीच समझौते के तहत पारित किया गया था. अंतरराष्ट्रीय समुदाय ने सीरिया की राजधानी दमिश्क के पास अगस्त में हुए रासायनिक हमले पर विरोध जताया था. इस हमले में 1,200 से अधिक लोगों के मरने की खबरें आयी थीं. इस हमले के लिए अमेरिका और कई पश्चिमी देशों ने सीरिया की बशर अल असद सरकार को जिम्मेवार ठहराया था.
हालांकि, सीरिया सरकार इसे विद्रोहियों की साजिश बताती रही है. दुनियाभर में इसका विरोध होने के बाद अमेरिका और रूस के बीच एक समझौता हुआ था.
यूएन और ओपीसीडब्ल्यू की संयुक्त टीम के अधिकारियों का कहना है कि अंतरराष्ट्रीय टीम रासायनिक हथियारों के ढेर और उन्हें बनानेवाले उपकरणों को नष्ट करने की प्रक्रिया में है. इनमें मिसाइल वॉरहैड, हवा से जमीन पर गिराये जानेवाले रासायनिक बम और हथियार तैयार करने के लिए मिक्सिंग और फिलिंग उपकरण शामिल हैं.
उधर, रासायनिक हथियारों से जुड़े विशेषज्ञों का मानना है कि सीरिया के पास व्यापक तादाद में इसका भंडार मौजूद है. हालांकि, सीरिया की सरकार का कहना है कि ये हथियार सैन्य बलों के कब्जे में पूरी तरह से सुरक्षित हैं और देश के भीतर कभी भी इसका इस्तेमाल नहीं किया जायेगा, सिर्फ बाहरी आक्रमण की दशा में इसका उपयोग किया जा सकता है.
अधिकतर देश पाबंदी पर सहमत
रासायनिक हथियारों की भयावह मारक क्षमता को ध्यान में रखते हुए 1925 में इस तरह के किसी भी घातक रसायन को हथियार के रूप में दुरुपयोग किये जाने को प्रतिबंधित करने के मकसद से एक संधि पर विश्व के अधिकतर देशों ने हस्ताक्षर किये थे.
हालांकि, इसके बावजूद कई देशों में चोरी–छुपे इस पर शोध जारी रहा, ताकि इनका इस्तेमाल और भी प्रभावी एवं नियंत्रित रूप से किया जा सके. द्वितीय विश्व युद्ध के समय जर्मनी में हिटलर ने यहूदियों को खत्म करने के लिए गैस चैम्बर्स का इस्तेमाल किया था. बताया जाता है कि इन गैस चैम्बर्स में लोगों को गंभीर यातनाएं दी जाती थीं.
इराक में भी हुआ दुरुपयोग
तकरीबन 25 वर्ष पूर्व इराकी सेना ने अपने हजारों नागरिकों की हत्या कर दी थी. बताया जाता है कि इस सामूहिक हत्याकांड को अंजाम देने के लिए सेना ने रासायनिक हथियारों का इस्तेमाल किया था.
यह घटना है इराक के कुर्द कस्बे हलब्जा की. घटना के 25 वर्ष बीतने के बाद अब इस बात की पड़ताल की जा रही है कि इन रासायनिक हथियारों की आपूर्ति किस देश ने की थी और ये हथियार कहां बनाये गये थे. दरअसल, 16 मार्च, 1988 को हलब्जा पर रासायनिक हथियारों से हमले के बाद हर जगह लाशें ही लाशें नजर आ रही थीं. गौर से देखने पर पता चला था कि मरनेवाले किसी न किसी को बचाने की कोशिश करते हुए मारे गये थे. हालांकि, वे जिसे बचाने की कोशिश कर रहे थे, वे भी मारे गये.
बताया जाता है कि इराक में तत्कालीन शासक सद्दाम हुसैन के समर्थकों ने सत्ता की कुछ नीतियों का विरोध करनेवाले ‘कुर्द’ लोगों को सबक सिखाने के लिए यहां रासायनिक हथियारों का इस्तेमाल किया था. यहां निर्देष नागरिकों पर जहरीली गैसें छोड़ी गयी थीं, जिनमें महिलाएं और बच्चे भी शामिल थे.
हथियार खत्म करने की चुनौती
वर्ष 1985 में अमेरिकी कांग्रेस ने एक प्रस्ताव को मंजूरी देते हुए रासायनिक हथियारों का जखीरा खत्म करने पर बल दिया था. ‘आर्म्स कंट्रोल एसोसिएशन’ की एक वेबसाइट में बताया गया है कि उस समय अमेरिका में तकरीबन 19,000 टन रासायनिक हथियारों का भंडार था. हालांकि, अमेरिकी सेना इस प्रस्ताव को पूरी तरह से अमल में नहीं लायी थी और ज्यादातर रासायनिक हथियारों को नष्ट नहीं किया गया था.
वर्ष 1992 में अमेरिकी कांग्रेस ने एक बार फिर अपनी सेना से इसे नष्ट करने का अनुरोध करते हुए इसके उत्पादन पर पूरी पाबंदी लगाये जाने की वकालत की थी. इसके बाद अमेरिकी सीनेट ने रासायनिक युद्ध पर पाबंदी लगाने के मकसद से 24 अप्रैल, 1997 को एक प्रस्ताव पारित किया और दुनियाभर में इन हथियारों के इस्तेमाल किये जाने पर पाबंदी लगाने के लिए केमिकल वीपंस कन्वेंशन (सीडब्ल्यूसी) के बारे में सहमति कायम करने पर जोर दिया.
अमेरिका में कितना रासायनिक हथियार
अमेरिका ने अपने सात राज्यों में 13 रासायनिक हथियारों के उत्पादन केंद्रों की आधिकारिक घोषणा की थी. इनमें से अलाबामा, कैलिफोर्निया, इंडियाना, मेरीलैंड और उत्तरी कैरोलिना में एक–एक और अरकांसास समेत कोलोरेडो में चार–चार उत्पादन केंद्र थे.
यूनाइटेड स्टेट्स आर्मी केमिकल मेटेरियल्स एजेंसी द्वारा जनवरी, 2012 में कहा गया था कि अमरिका के पास रासायनिक हथियारों का 31,000 मीट्रिक टन भंडार था, जिसमें से तकरीबन 90 फीसदी को नष्ट कर दिया गया है. इसमें सबसे ज्यादा तादाद मस्टर्ड गैस की थी.
इसके अलावा वीएक्स और सरीन गैस का बड़ा भंडार भी नष्ट किया गया. बताया गया कि रासायनिक हथियारों का तकरीबन 86 फीसदी हिस्सा वर्ष 2006 से पहले ही नष्ट किया जा चुका था.
– कैसे–कैसे रासायनिक हथियार
सरीन
वर्ष 1938 में जर्मनी के वैज्ञानिकों ने इसे बनाया था. इसे हानिकारक कीटों को मारने के लिए कीटनाशक के तौर पर तैयार किया गया था. आज सरीन को सबसे खतरनाक तंत्रिका जहर (नर्व गैस) माना जाता है. तरल रूप में यह गंधहीन और रंगहीन होता है. वाष्पशील होने के कारण यह आसानी से गैस में बदल जाता है. यह बेहद अस्थिर होता है, जिससे यह जल्द ही नुकसानरहित यौगिकों में बदल जाता है. इस गैस की एक छोटी सी मात्र भी घातक हो सकती है. गैस मास्क और पूरे शरीर को ढकनेवाली पोशाक से इससे बचा जा सकता है.
यह आंखों और त्वचा के रास्ते भी शरीर में प्रवेश कर सकता है. यह तंत्रिकाओं में आवेग भेजता रहता है, जिससे नाक और आंख से पानी गिरने लगता है. मांसपेशियों में ऐंठन आ जाती है और इनसान की मौत हो जाती है.
ताबुन
द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान जर्मनी में ही ये रासायनिक हथियार बनाये गये थे. हालांकि, इनका इस्तेमाल नहीं हुआ. तरल रूप में ताबुन की खुशबू कुछ हद तक कड़वे बादाम की तरह होती है. त्वचा के संपर्क में आने या सूंघने पर नाक के जरिये यह गैस शरीर में चली जाती है. इसका असर और लक्षण सरीन जैसा ही है.
वीएक्स
इसे भी कीटनाशी के तौर पर ही तैयार किया गया था. वैज्ञानिकों ने शीघ्र यह जान लिया कि खेती में इस्तेमाल करने के लिए यह ज्यादा खतरनाक है. इसके घातक असर ने ही इसे रासायनिक हथियार के तौर पर बढ़ावा दिया. इसका असर ज्यादा स्थायी होता है और यह ज्यादा जहरीला होता है. यह कुछ–कुछ तैलीय होता है और त्वचा, कपड़े व अन्य चीजों से चिपक जाता है और लंबे समय तक वहां बना रहता है.
मस्टर्ड गैस
इस गैस का इस्तेमाल सबसे पहले प्रथम विश्व युद्ध के दौरान हुआ था. हालांकि, युद्ध से बहुत पहले ही इसके साथ प्रयोग किये गये थे. रासायनिक हथियार के रूप में इस्तेमाल होनेवाले अन्य गैसों की तरह इसे आधिकारिक तौर पर विनाश का हथियार नहीं माना गया है. यह गैस कपड़ों को छेद कर त्वचा में समा जाती है. संपर्क में आने के 24 घंटे बाद ही इस गैस का असर दिखना शुरू होता है.
गैस के असर से पहले त्वचा लाल हो जाती है और फिर फफोले निकलते हैं. बाद में वहां की त्वचा छिलके की तरह उतर जाती है. नाक के रास्ते शरीर के भीतर पहुंच चुकी गैस इनसान के लिए जानलेवा हो सकती है, क्योंकि यह फेफड़ों के उत्तकों को नुकसान पहुंचाती है.
कैसे काम करता हथियार
स्नायु तंत्र की कोशिकाएं सूचना संप्रेषण के लिए ‘एसिटिलकोलीन’ नामक रसायन का स्नव करती हैं. मांसपेशियों का संकुचन भी स्नायु तंत्र की सूचना संप्रेषण प्रणाली पर ही निर्भर करता है. यदि स्नायु तंत्र की कोशिकाओं से एसिटिलकोलीन को न हटाया जाय, तो हमारे शरीर की मांसपेशियां अनियंत्रित रूप से लगातार संकुचित होने लगेंगी और यदि छाती और पेट को अलग करनेवाले ‘डायफ्राम’ की मांसपेशियों के साथ ऐसा हुआ, तो इनसान घुट कर मर जायेगा.
दम घुटने से होती है मौत
‘एसिटिलकोलीन’ को स्नायु तंत्र की कोशिकाओं से हटाने के लिए ‘कोलीनस्टरेज’ नामक एंजाइम की जरूरत होती है. कई तरह की जहरीली गैसें इन एंजाइमों से प्रतिक्रिया कर एसिटिलकोलीन को हटाने के कार्य में बाधा पैदा करती हैं. इसी वजह से पीड़ित व्यक्ति कुछ ही पलों में दम घुटने के चलते मौत के आगोश में चला जाता है.
एक मिलीग्राम ही काफी
इनसान के फेफड़ों में उक्त जहरीली गैसों की एक मिलीग्राम मात्र ही जिंदगी को समाप्त करने के लिए काफी है. मस्टर्ड एवं लेविसाइट जैसी गैसों का दुष्प्रभाव त्वचा पर छाले एवं ऊतकों के विनाश के रूप में सामने आता है.
विश्वयुद्ध से जारी प्रयोग
मस्टर्ड गैस का चलन प्रथम विश्व युद्ध के समय से ही है. इसकी दस मिलीग्राम की मात्र ही इनसान की मौत के लिए पर्याप्त है. इसी तरह सरीन एक शक्तिशाली न्यूरो टॉक्सिन है. इस नर्व गैस को बीसवीं सदी के चौथे दशक में नाजी वैज्ञानिकों ने तैयार किया था. यह सायनाइड से 20 गुना ज्यादा खतरनाक है. सुई की नोक के बराबर की इसकी मात्र किसी व्यक्ति की जान ले सकती है. यह शरीर के एक एंजाइम को निष्क्रिय कर मनुष्य के नर्वस सिस्टम को पंगु कर देता है.
कीटनाशक से बना हथियार
रासायनिक हथियारों का निर्माण योजनाबद्ध आविष्कार के तहत नहीं किया गया था, बल्कि कीटनाशकों में इनसान पर पड़नेवाले व्यापक दुष्प्रभाव को देखते हुए इसे हथियार के तौर पर विकसित किया गया. इसे बनाने के लिए किसी जटिल उपकरण की जरूरत नहीं होती.