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मुकम्मल जहां नहीं मिलता!
– हरिवंश – स्टीव जाब्स, वर्षों से मौत के साथ-साथ जी और रह रहे थे. वर्षों पहले अचानक उन्हें पता चला कि उनका जीवन खत्म होने के कगार पर है. लाइलाज बीमारी. मौत से जूझते हुए हर पल स्टीव अपने काम और अपनी नयी तकनीक-उत्पादों को बाजार में उतारने में लगे रहे. योजना बना कर […]
– हरिवंश –
स्टीव जाब्स, वर्षों से मौत के साथ-साथ जी और रह रहे थे. वर्षों पहले अचानक उन्हें पता चला कि उनका जीवन खत्म होने के कगार पर है. लाइलाज बीमारी. मौत से जूझते हुए हर पल स्टीव अपने काम और अपनी नयी तकनीक-उत्पादों को बाजार में उतारने में लगे रहे. योजना बना कर वह एक-एक पल जीये. अंत तक. वह घर में सीढ़ियां नहीं चढ़ पाते थे, पर एक-एक क्षण के उपयोग के बारे में सजग थे. अंतिम कुछेक दिन वह अपने परिवार और खास मित्रों के साथ रहे. अपनी शर्तों पर जीये.
स्टीव जाब्स के निधन पर एक टिप्पणी थी. बार-बार दोहरायी जानेवाली. तीन एप्पल्स (सेव) ने संसार बदल दिया. पहला एप्पल, जिसे ईव ने खाया. दूसरा एप्पल, जो न्यूटन के सिर पर गिरा.और तीसरा एप्पल जिसे स्टीव ने (एप्पल कंपनी) बनाया.
एप्पल कंपनी ने तीन चीजों, आइपाड, आइफोन और आइपैड को एक-एक कर बाजार में तब उतारा, जब स्टीव जाब्स कैंसर से जूझ रहे थे. लीवर ट्रांसप्लांट हो रहा था. काम भी और मौत से लड़ना भी. साथ-साथ.
उस जीनियस ने कालेज की प़ढ़ाई अधूरी छोड़ी. भारतीय अध्यात्म की दुनिया में भटके. 20 वर्ष की उम्र में एप्पल कंपनी के को-फाउंडर (सह संस्थापक) बने. वहां से हटे, फिर एप्पल में लौटे. एक ऐसा इंसान (बकौल न्यूयॉर्क टाइम्स) जिसने कभी कॉलेज में पढ़ाई पूरी नहीं की. कभी किसी मैनेजमेंट संस्थान में पढ़ाई नहीं की. अपने वयस्क जीवन में कभी किसी के लिए एक दिन काम नहीं किया, फिर कैसे वह इंसान ऐसा विजनरी (स्वप्नदर्शी) बना, जिसने जिस बिजनेस (व्यवसाय) को छुआ, बदल डाला.
जादू कर डाला.वह इंसान, जिसने अपने स्पर्श, सोच और प्रजेंस (उपस्थिति) से हमारा संसार बदल डाला, टेक्नालाजी आविष्कार से, वह असमय चार दिनों पहले हमारे बीच नहीं रहा. 1955 से 2011 यानी कुल 56 साल जीने को मिले. 1955 में संसार को जहां पाया, 2011 में इस दुनिया को, अपने कामों से अलग बना कर छोड़ गया. जिसे ट्विटर पर अब तक की सबसे अधिक संवेदनाएं (प्रतिक्रियाएं) मिलीं. अब तक ओसामा बिन लादेन के मारे जाने पर सर्वाधिक प्रतिक्रियाएं मिली थीं. इसके बाद स्टीव जाब्स की मौत पर लोगों ने सर्वाधिक संख्या में संवेदनाएं पोस्ट की हैं.
अनाथ बन कर वह संसार में आया. भारतीय कर्ण की तरह. पर कर्ण की तरह, उसे समाज में, सामाजिक मान्यताओं से नहीं लड़ना पड़ा. अमेरिकी समाज के खुलेपन और उदारता ने अमेरिकी कर्ण को जीनियस बनने का माहौल दिया.
वह इंसान रंक बन कर जन्मा, पर जब मरा, तो न वह राजा था, न मशहूर फिलास्फर, न राष्ट्राध्यक्ष. पर दुनिया के कोने-कोने से राजा और रंक, हरेक ने उस इंसान के खोने का दर्द जाहिर किया. स्टीव आये गरीब घर में, पर संपत्ति छोड़ गये हैं 8.3 बिलियन डॉलर की.
हमारे समय का यह जीनियस या अनूठा इंसान, जीवन के बारे में क्या और कैसा सोचता था? मशहूर स्टैंडफोर्ड विश्वविद्यालय के अपने एक चर्चित व्याख्यान, स्टे हंग्री, स्टे फूल.. (भावार्थ -ज्ञानी होने पर भी ज्ञान पाने के लिए अतृप्त रहना.
इसे हर इंसान को पढ़ना चाहिए) में छात्रों से कहा था, ”तुम्हारे पास सीमित समय है (यानी जीवन की समय-अवधि तय है), इसलिए इसे नष्ट या बरबाद न करो, दूसरों का जीवन जी कर. यानी दूसरे जो आपके बारे में अपना मत-सिद्धांत या विचार देते हैं, उनके अनुसार अपना जीवन न जीयें, दूसरों की राय या आपके बारे में अन्य लोगों की टिप्पणियों को अपनी अंतरात्मा में जगह न दें.
और सबसे महत्वपूर्ण कि यह साहस उपजाइए कि आप अपने दिल, अपनी भावनाओं और इंट्यूशन (प्रज्ञा) से जीयेंगे. आपके दिल, आपकी भावनाओं को पता है कि आप क्या बनना चाहते हैं. या करना चाहते हैं. शेष सारी चीजें सेकेंड्री (प्राथमिक नहीं) हैं. ”
स्टीव जाब्स, वर्षों से मौत के साथ-साथ जी और रह रहे थे. वर्षों पहले अचानक उन्हें पता चला कि उनका जीवन खत्म होने के कगार पर है. लाइलाज बीमारी. मौत से जूझते हुए हर पल स्टीव अपने काम और अपनी नयी तकनीक-उत्पादों को बाजार में उतारने में लगे रहे.
योजना बना कर वह एक-एक पल जीये. अंत तक. वह घर में सीढ़ियां नहीं चढ़ पाते थे, पर एक-एक क्षण के उपयोग के बारे में सजग थे. अंतिम कुछेक दिन वह अपने परिवार और खास मित्रों के साथ रहे. अपनी शर्तों पर जीये. संसार के कोने-कोने से लोग मिलना चाहते थे. दुनिया की बड़ी से बड़ी हस्तियां, ताकतें, प्रतिभाएं और संपन्न लोग, पर स्टीव एक पल भी बरबाद करने को तैयार नहीं रहे.
जीवन के बारे में यह निस्संगता, तटस्थता और दृढ़ता कम लोगों में होती है. स्टीव जैसी जीवन दृष्टि मिल जाये, तो जीवन अपने आप बदल जाता है. स्टीव के व्याख्यान या एप्पल कंपनी के अपने साथियों को लिखे संबोधन को पढ़ कर, हाल के वर्षों में अन्य ऐसी पढ़ी पुस्तकों के अंश याद आये, पहली पुस्तक ट्यूजडेज विद मारी (लेखक मिच एलबाम), है. एक प्राध्यापक की सच्ची कहानी.
जिसे कैंसर होने का पता चलता है, प्रो. मारी के जीने या रहने के दिन गिने हैं, वह अपने जीवन अनुभवों के निचोड़ को अपने पूर्व छात्र लेखक मिच एलबाम को सुनाते हैं. इसी तरह मशहूर विश्वविद्यालय कार्नेगी मेलन के कंप्यूटर प्रोफेसर रैंडी पाश की किताब है, द लास्ट लेक्चर. युवा और प्रतिभावान प्राध्यापक को अचानक पता चला, लाइलाज कैंसर है. फिर विश्वविद्यालय उन्हें अंतिम व्याख्यान देने के लिए आमंत्रित करता है. अद्भुत मर्मस्पर्शी व्याख्यान. एक-एक शब्द दिल को छूते हैं. अंदर से हिला देते हैं. जीवन के उन्हीं सवालों की चर्चा इन दोनों पुस्तकों में हैं, जिन्हें हर इंसान पग-पग पर सामने पाता है.
इसलिए ये पुस्तकें पढ़ने वालों के अपने दिल की आवाज लगती है. अंतरात्मा की ध्वनि. इस ध्वनि को हम सुनें, तो जीवन की लय, धुन और तान बदल जाये. मौत, यह ऐसा सवाल है, जो सिर्फ स्टीव जाब्स, प्रो मारी या प्रो रैंडी पाश के लिए ही प्रासंगिक नहीं है. हममें से हर एक के लिए है. ये दोनों पुस्तकें दुनिया में अपार संख्या में बिकी हैं. तीसरी किताब थी, प्लेटो की लिखी, द लास्ट डेज आफ साक्रेटीज (सुकरात के अंतिम दिन). यह ईसा से 469-399 वर्ष पूर्व का वृत्तांत है.
सुकरात को सजा, सुनवाई और मौत के बारे में.
किसी भी समाज में इस तरह का साहित्य पढ़ना अनिवार्य होना चाहिए. इन्हें पढ़ने से व्यक्ति का मानस बदलता है. समष्टि से जुड़ता है. इस तरह व्यक्तियों के बदलने से समाज का स्तर ऊपर उठता है. गुणवत्ता बेहतर होती है. लोगों की दृष्टि व्यापक और उदार होती है. स्टीव का जीवन और व्याख्यान दोनों ही प्रेरित करते हैं.
वह दुनिया के सबसे धनी लोगों में रहे. सब कुछ उन्हें जीवन ने दिया. सिर्फ उम्र की सौगात नहीं दी. पर सबको कहां मुकम्मल जहां मिलता है, कभी जमीं, तो कभी आसमां नहीं मिलता? वैसे भी जीवन लंबे वर्षों से नहीं गिना जाता, उपलब्धियों से आंका जाता है और स्टीव तो मानव जाति के इतिहास के प्रमुख किरदारों में गिने जायेंगे, जिनके अनुसंधान या आविष्कार या देन ने दुनिया को नये धरातल पर पहुंचाया है.
दिनांक : 09.10.2011
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